12पिछले साल चार राज्यों में विधानसभा के चुनाव हुए थे. सियासी जानकारों को उम्मीद तो यही थी कि इन चारों राज्यों में भगवा ध्वज अपने पूरे उफान के साथ फहराएगा, लेकिन चार दिसंबर को आए नतीजों में अगर किसी ने सबसे ज्यादा चौंकाया तो वह दिल्ली के ही नतीजे थे. स़िर्फ एक साल पुरानी आम आदमी पार्टी ने देश की राजधानी की 28 सीटों पर क़ब्ज़ा कर लिया. वहीं दिल्ली में भगवाध्वज फहराने की तैयारियों में जुटी भारतीय जनता पार्टी के मंसूबे ध्वस्त हो गए. तब से यह अनुमान लगाया जा रहा था कि आम चुनावों में आम आदमी पार्टी को देश की राजधानी में बड़ी बढ़त हासिल हो सकेगी, लेकिन 14 जनवरी, 2013 को दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से केजरीवाल के इस्ती़फे ने केजरीवाल से दबे-छुपे ही सही उम्मीद लगा बैठे समाज के उस वर्ग को भी झटका लगा, जिसने केजरीवाल को स़िर्फ व्यक्ति नहीं, राजनीति की दुनिया में आए भाई-भतीजावाद, धार्मिक संतुष्टिकरण और भ्रष्टाचार में बदलाव की प्रवृत्ति के तौर पर देखा था.
ध्यान देने की बात यह है कि समाज में बेशक ऐसी सोच रखने वाला वर्ग ख़ुद की संख्या के आधार पर ताक़तवर नहीं हो, लेकिन वह ओपीनियन मेकर के तौर पर समाज के बड़े तबके को प्रभावित करने और सामाजिक एजेंडा तय करने की हैसियत ज़रूर रखता है. आम चुनावों में देश की राजधानी के चुनाव नतीजे संख्या के नज़रिए से बड़ा असर भले ही न डाल पाएं, लेकिन उनका अपना राजनीतिक महत्व ज़रूर रहेगा. इसीलिए इन पर सियासी पंडितों की नज़र कुछ ज़्यादा ही है. दिल्ली में सात लोकसभा सीटें हैं और इनका क्रमवार विवेचन ज़रूरी है. दिल्ली की सबसे संभ्रांत मानी जाती है दक्षिण दिल्ली सीट. इस सीट पर क़रीब साढ़े पंद्रह लाख मतदाता हैं. पिछले चुनाव में यहां से सिख दंगों के आरोपी रहे दिल्ली कांग्रेस के दिग्गज नेता सज्जन कुमार के छोटे भाई रमेश कुमार यहां से सांसद हैं. रमेश कुमार एक बार फिर कांग्रेस की तरफ से मैदान में हैं. वहीं भारतीय जनता पार्टी ने यहां से अपने दिल्ली प्रदेश के महासचिव और तेज़तर्रार विधायक रमेश बिधूड़ी को मैदान में उतारा है, जबकि आम आदमी पार्टी ने देवेंद्र सहरावत को अपना उम्मीदवार बनाया है. इस क्षेत्र में दिल्ली का सबसे पॉश महानगरीय इलाक़ा के साथ ही गांवों का भी इलाक़ा आता है, जिसमें जाट और गुर्जर मतदाताओं की अच्छी-ख़ासी तादाद है. तुगलक़ाबाद से विधायक रमेश बिधूड़ी गुर्जर समुदाय से आते हैं. ज़ाहिर है कि दिल्ली के गांवों में उन्हें इस समुदाय का साथ मिलेगा. इस विधानसभा की दस में से सात सीटों पर भारतीय जनता पार्टी का क़ब्ज़ा है, जबकि तीनों सुरक्षित सीटों पर आम आदमी पार्टी का क़ब्ज़ा है. अगर ज़्यादा समीकरण नहीं गड़बड़ाए, तो यह सीट भारतीय जनता पार्टी के ही पाले में जा सकती है.
दिल्ली की दूसरी सीट पश्‍चिमी दिल्ली है. कभी बाहरी दिल्ली के तौर पर मशहूर रही इस सीट का आंकड़ा भी भारतीय जनता पार्टी के पाले में जाते दिख रहा है. यहां क़रीब 17 लाख वोटर हैं. यहां से भारतीय जनता पार्टी ने दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और जाट समुदाय के कद्दावर नेता साहब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश वर्मा को टिकट दिया है. प्रवेश फ़िलहाल दक्षिण दिल्ली की महरौली सीट से भारतीय जनता पार्टी से विधायक हैं. पश्‍चिमी दिल्ली की दस सीटों में से पांच पर भारतीय जनता पार्टी का क़ब्ज़ा है. वहीं उसकी सहयोगी अकाली दल के पास एक सीट है, जबकि आम आदमी पार्टी के पास चार सीटें है. पश्‍चिमी दिल्ली संसदीय सीट से आम आदमी पार्टी ने दैनिक जागरण के पत्रकार रहे जनरैल सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है. जरनैल सिंह को दैनिक जागरण ने चिदंबरम पर जूता चलाने के बाद हटा दिया था, जबकि कांग्रेस ने अपने मौजूदा सांसद महाबल मिश्रा पर ही दांव लगाया है. अगर विधानसभा चुनाव नतीजों को देखें, तो इसी तरह उत्तर पश्‍चिमी दिल्ली का भी समीकरण भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में दिख रहा है. यहां से दलित चिंतक और हाल ही में बीजेपी में शामिल हुए उदित राज को पार्टी अपना उम्मीदवार बनाया है, जबकि कांग्रेस ने कृष्णा तीरथ को मैदान में उतारा है. कृष्णा यहां की मौजूदा सांसद हैं और केंद्र में मंत्री भी हैं. इसी तरह आम आदमी पार्टी ने राखी बिड़लान को अपना उम्मीदवार बनाया है. हालांकि इस सीट से महेंद्र सिंह को आम आदमी पार्टी ने उम्मीदवार बनाया था, लेकिन महेंद्र सिंह ने दिल्ली सरकार में मंत्री रहीं राखी बिड़लान पर उन्हें सहयोग नहीं करने के सवाल पर टिकट लौटा दिया था.
यहां क़रीब 18 लाख वोटर हैं. पिछले विधानसभा चुनाव नतीजों का समीकरण भी एक लिहाज़ से भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में रहा है. फ़िलहाल भाजपा के पास दस में से पांच सीटें हैं, जबकि आम आदमी पार्टी को तीन और कांग्रेस को दो सीटें मिली हैं. दिल्ली की उत्तर-पूर्वी सीट पर भी दिलचस्प मुक़ाबला होना तय है. यहां की दस सीटों में से भारतीय जनता पार्टी के पास पांच, आम आदमी पार्टी के पास तीन और कांग्रेस के पास दो सीटें हैं. इसी इला़के में किराड़ी विधानसभा सीट भी आती है, जहां से बीजेपी के अनिल झा ने दिल्ली में सबसे ज़्यादा 49 हज़ार मतों के अंतर से जीत हासिल की है. यहां प्रवासी बिहारी और पूर्वी उत्तर प्रदेश के मतदाताओं की संख्या ज़्यादा है. यही वजह है कि भारतीय जनता पार्टी ने इस बार मशहूर भोजपुरी गायक और अभिनेता मनोज तिवारी को चुनावी मैदान में उतारा है. दूसरी तरफ कांग्रेस ने अपने मौजूदा सांसद जयप्रकाश अग्रवाल पर विश्‍वास जताया है. वहीं आम आदमी पार्टी ने जवाहर लाल नेहरू विश्‍वविद्यालय (जेएनयू) के प्राध्यापक प्रो. आनंद कुमार पर दांव खेला है. समाजवादी पृष्ठभूमि से जुड़े प्रो. आनंद कुमार भी भोजपुरीभाषी है, लेकिन वह मतदाताओं पर कितना असर डाल पाएंगे, यह देखना दिलचस्प रहेगा.
कांग्रेस ने क़रीब 16 लाख वोटरों वाली पूर्वी दिल्ली सीट पर मौजूदा सांसद संदीप दीक्षित, तो भारतीय जनता पार्टी ने नए उम्मीदवार महेश गिरी पर दांव आजमाया है. वहीं आम आदमी पार्टी ने गांधी जी के पोते राजमोहन गांधी को मैदान में उतारा है. हालांकि पिछले विधानसभा चुनावों का गणित आम आदमी पार्टी के पक्ष में रहा है. जहां की दस में से पांच सीटों पर आम आदमी पार्टी का क़ब्ज़ा है. वहीं भारतीय जनता पार्टी के पास तीन और कांग्रेस के पास दो सीटें हैं. भारतीय जनता पार्टी के लिए मुश्किल भरी सीट नई दिल्ली मानी जा रही है. भाजपा ने यहां से सुप्रीम कोर्ट में वकील और पार्टी प्रवक्ता मीनाक्षी लेखी को मैदान उतारा है. कांग्रेस की तरफ से पार्टी के प्रवक्ता अजय माकन ही हैं, जबकि आम आदमी पार्टी ने खोजी पत्रकार आशीष खेतान को अपना उम्मीदवार बनाया है. क़रीब पौने चौदह लाख वोटरों वाली इस लोकसभा सीट की दस विधानसभा क्षेत्रों में से सात सीटों पर आम आदमी पार्टी का क़ब्ज़ा है, जबकि भारतीय जनता पार्टी को महज़ तीन सीटों से ही संतोष करना पड़ा था. कांग्रेस को अजय माकन की साफ़छवि का भरोसा है, तो आम आदमी पार्टी को अपने पुराने करिश्मे का, लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि आशीष खेतान को यहां का वोटर जानता तक नहीं है. ग़ौरतलब है कि शाजिया इल्मी यहां से उम्मीदवार बनना चाहती थीं. हालांकि उन्हें टिकट नहीं दिया गया. ध्यान देने योग्य यह है कि इसी इला़के की सीट से दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की सीट भी आती है, जहां से फ़िलहाल अरविंद केजरीवाल विधायक हैं.
लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सबसे हाईप्रोफाइल सीट चांदनी चौक बन गई है. जहां से दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष हर्षवर्धन, आम आदमी पार्टी से पूर्व पत्रकार आशुतोष और कांग्रेस से केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल मैदान में हैं. क़रीब साढ़े चौदह लाख वोटरों वाली इस लोकसभा सीट की दस विधानसभा क्षेत्रों में से आम आदमी पार्टी के पास चार, भारतीय जनता पार्टी के पास तीन, कांग्रेस के पास दो और जनता दल यूनाइटेड के पास एक सीट है. आम आदमी पार्टी को उम्मीद है कि वह यहां से करिश्मा दिखा सकती है. वहीं हर्षवर्धन के सहारे बीजेपी भी जीत की उम्मीद पाले बैठी है. कपिल सिब्बल भी ख़ुद को यहां से दोहराने की कोशिश में हैं, लेकिन जिस तरह यहां की गलियों में आशुतोष का विरोध हुआ, उससे साफ़ है कि आम आदमी पार्टी के लिए यहां से राह आसान नहीं है.
दिल्ली में यूं तो गुड़गांव और गाज़ियाबाद की सीटें नहीं आती हैं, लेकिन राष्ट्रीय राजधानी से नज़दीक होने और हाईप्रोफाइल उम्मीदवारों के चलते ये दोनों सीटें भी महत्वपूर्ण हो गई हैं. गुड़गांव से आम आदमी पार्टी के योगेंद्र यादव और बीजेपी से राव इंद्रजीत सिंह मैदान में हैं, जबकि कांग्रेस ने राव धर्मपाल को मैदान में उतारा है. गुड़गांव-रेवाड़ी नाम वाली यह सीट यादव बहुल मानी जाती है और तीनों ही पार्टियों ने इसी जाति के लोगों को उम्मीदवार बनाया है. कांग्रेस ने जाक़िर हुसैन को उम्मीदवार बनाकर करीब 18 लाख वोटरों वाली इस सीट पर मुस्लिम मतदाताओं के सहारे मैदान में है. शहरी बहुल सीट और आम आदमी पार्टी का चेहरा माने जाने वाले योगेंद्र यादव के चलते यहां मुक़ाबला दिलचस्प हो गया है. हालांकि अब तक माना जा रहा है कि राव इंद्रजीत के पक्ष में ही पलड़ा भारी है.
गाज़ियाबाद के क़रीब साढ़े तेइस लाख वोटरों पर भी लोगों की निगाह है. यहां भारतीय जनता पार्टी ने पूर्व थल सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह, कांग्रेस ने सिने अभिनेता राजबब्बर, आम आदमी पार्टी ने पूर्व पत्रकार शाजिया इल्मी, समाजवादी पार्टी ने सुधन रावत और बहुजन समाज पार्टी ने मुकुल उपाध्याय को मैदान में उतारा है. वैसे गाज़ियाबाद आम आदमी पार्टी की जन्मभूमि माना जाता है. पार्टी के तीनों प्रमुख नेता अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसौदिया और कुमार विश्‍वास यहीं के बाशिंदे हैं. पार्टी गठन से लेकर दिल्ली में सरकार बनाने व चलाने की तमाम रणनीतियां गाज़ियाबाद में ही बनीं. यहां आम आदमी पार्टी की उम्मीदवार शाजिया इल्मी के लिए सबसे बड़ी चुनौती पार्टी की जन्मभूमि पर असर दिखाने की है. फ़िलहाल यहां की पांच विधानसभा सीटों में से चार पर बहुजन समाज पार्टी का क़ब्ज़ा है. हालांकि इस बार मुख्य मुक़ाबला भाजपा उम्मीदवार जनरल वीके सिंह और कांग्रेस प्रत्याशी राजबब्बर के बीच माना जा रहा है. इसकी बड़ी वजह है इन दोनों का अपना कद और व्यक्तित्व.
बहरहाल, चुनाव नतीजों का ठीक-ठीक आकलन कर पाना आसान नहीं होता, लेकिन यह तय है कि स्थानीय मुद्दों की बजाय इस बार दिल्ली समेत उसकी आस-पास की सभी सीटों पर राष्ट्रीय मुद्दे ही असर डालेंगे और इसकी बड़ी वजह इनका शहरी क्षेत्र होना है. वैसे एक बात तय मानी जा रही है कि आम आदमी पार्टी को लेकर जो उत्साह दिल्ली विधानसभा चुनावों के दौरान देखा गया था, उसमें कमी तो नज़र आ ही रही है.

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