अपने कार्यकाल के शेष बचे 20 महीने पहले ही व्यक्तिगत कारणों से नेहचल संधू उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के पद से हट गए. उनके इस क़दम ने कइयों को आश्चर्य में डाल दिया है. इसे यूपीए द्वारा नियुक्त किए लोगों को लेकर मोदी सरकार की नीति के हिस्से के रूप में देखा जा रहा है. संधू ने अपने दो अन्य सहयोगियों के प्रति वफादारी दिखाई है, जिन्हें यूपीए सरकार ने नियुक्त किया था और वे दोनों अपने पद से रिटायर हो चुके हैं. उनके नाम हैं अजीत लाल, ज्वाइंट इंटेलिजेंस काउंसिल के अध्यक्ष और लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) प्रकाश मेनन, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के सैन्य सलाहकार. हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अजीत डोभाल चाहते थे कि संधू अपने पद पर बने रहें, लेकिन संधू ने स्पष्ट रूप से ऐसा निर्णय लेने के लिए अपना मन बना लिया था. कथित तौर पर मोदी ने खुफिया ब्यूरो के इस पूर्व निदेशक की तारीफ़ करते हुए एक प्रशस्ति पत्र दिया. जाहिर है, संधू के उत्तराधिकारी और पूर्व आईएफएस अधिकारी अरविंद गुप्ता को काफी काम करना होगा.
क्षत्रिय की दमदार वापसी
यह एक शानदार वापसी मानी जाएगी. कुशल प्रशासक, 1980 बैच के आईएएस अधिकारी स्वाधीन क्षत्रिय को चार साल पहले मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने नगर निगम आयुक्त के पद से हटाकर महत्वहीन पद पर भेज दिया था. अब चार साल बाद खुद पृथ्वीराज चव्हाण ने उसी अधिकारी को महाराष्ट्र का नया मुख्य सचिव बनाने का फैसला किया है. क्षत्रिय को एक अच्छे प्रशासक के रूप में जाना जाता है. राजस्व सचिव रहते हुए क्षत्रिय ने कई अभिनव एवं नागरिकों के अनुकूल योजनाओं की शुरुआत की थी. चव्हाण ने मुख्य सचिव पद के चयन में वरिष्ठता का सिद्धांत नज़रअंदाज कर दिया और क्षत्रिय को इस पद के लिए चुना. यह ऐसी वापसी है, जिसे शायद महाराष्ट्र की नौकरशाही के गलियारों में लंबे समय तक याद किया जाएगा.
वे पुराने दिन
सार्वजनिक क्षेत्र में काफी नाम कमा चुके पूर्व नौकरशाह वी कृष्णमूर्ति अपनी एक किताब (संस्मरण) को लेकर बाबुओं के बीच काफी चर्चित हो रहे हैं. उनकी यह किताब कई मायनों में आज के बेस्ट सेलर्स से कहीं आगे की चीज है. यह एक ऐसा संस्मरण है, जिसे लंबे समय तक संभाल कर रखा जाएगा. हाल में जारी यह संस्मरण (एट द हेल्म: अ मेमोआयर) न स़िर्फ सार्वजनिक क्षेत्र के एक पेशेवर प्रबंधक के जीवन की कहानी है, बल्कि यह सार्वजनिक क्षेत्र के विकास का पूरा लेखा-जोखा भी है. इंदिरा और राजीव गांधी युग में देश के सबसे शक्तिशाली टेक्नोक्रेट बनकर उभरने वाले कृष्णमूर्ति ने सफलतापूर्वक भेल, सेल और मारुति जैसी सार्वजनिक क्षेत्र की दिग्गज कंपनियां चलाईं. उनकी यह कहानी न स़िर्फ बाबुओं के लिए पढ़ना ज़रूरी है, बल्कि उनके लिए भी काफी महत्वपूर्ण है, जो आर्थिक उदारीकरण के पहले दौर को समझना चाहते हैं.
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