हाल ही में आंध्र प्रदेश से अलग होकर तेलंगाना साकार रूप ले चुका है. के. चंद्रशेखर राव ने नवगठित राज्य के पहले मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. हालांकि, नौकरशाही में अब भी मंथन चलता रहेगा, जबकि प्रशासन स्थिर होने लगा है. शुरुआती और अस्थिर दिनों में जो आईएएस अधिकारी तेलंगाना को दिए गए हैं, वे अधिकारियों की कमी के चलते एक साथ कई ज़िम्मेदारियां संभाल रहे हैं. सूत्रों का कहना है कि तेलंगाना में 44 में से 36 आईएएस अधिकारी कई विभाग संभाल रहे हैं. प्रमुख सचिव राजीव शर्मा भी भू-प्रबंधन आयुक्त का अतिरिक्त प्रभार संभाल रहे हैं. यह अव्यवस्था आने वाले कुछ महीनों में समाप्त हो जाएगी, लेकिन इन बदलावों से ज़्यादा हैदराबाद में नौकरशाहों के बीच मेंडक ज़िले की पूर्व कलेक्टर स्मिता सबरवाल की मुख्यमंत्री कार्यालय में नियुक्ति को लेकर चर्चा हो रही है. वह आंध्र प्रदेश के इतिहास में मुख्यमंत्री कार्यालय में पदस्थ होने वाली पहली महिला आईएएस अधिकारी हैं.
पीएमओ ने खलबली मचाई
यूपीए के कार्यकाल में मंत्रियों के लिए काम करने वाले नौकरशाहों पर भरोसा करने की प्रधानमंत्री कार्यालय(पीएमओ) की अनिच्छा ने बाबू हलकों में खलबली पैदा कर दी है. पिछली सरकार में सचिवों के पद पर कार्य कर रहे नौ नौकरशाहों की फिर से नियुक्ति को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है. कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने परिपत्र जारी करके निर्देश दिया है कि मंत्रियों के निजी सचिवों और ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी की नियुक्ति के लिए मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति की मंजूरी लेना आवश्यक है. जाहिर तौर पर नौकरशाह इस फैसले से नाराज़ हैं, लेकिन सीधे तौर पर प्रधानमंत्री कार्यालय को इसके लिए ज़िम्मेदार न ठहराते हुए कुछ नौकरशाहों ने निजी तौर पर, तो कुछ ने सार्वजनिक रूप से नई सरकार द्वारा कैबिनेट सचिव अजीत सेठ का सेवा विस्तार किए जाने और मोदी के मुख्य सचिव नृपेंद्र मिश्र की अध्यादेश के जरिये की गई नियुक्ति पर सवाल खड़े किए हैं. ऐसी अफवाहों की वजह से पीएमओ की नई नीति को वापस लिए जाने की संभावना कम ही है. इसलिए अब जो बाबू स्वयं को अराजनीतिक समझते हैं, वे अब अपने पति/पत्नी को भाजपाई मंत्रियों के साथ काम करने के लिए पदस्थ कराने की लॉबिंग कर रहे हैं. यह एक और संकेत है कि खेल के नियम बदल गए हैं!
उम्मीदें धराशायी
सीबीआई प्रमुख रंजीत सिन्हा इंटरपोल के महासचिव बनने की दौड़ में पीछे रह गए. फ्रांस के ल्योन शहर की राह कभी आसान नहीं रही है. इस बार भारत को उम्मीदें तो बहुत थीं, लेकिन अंतत: वे धराशायी हो गईं. वर्तमान में देश के सबसे वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी रंजीत सिन्हा सहित छह लोग इस पद की दौड़ में थे, जिनमें से तीन यूरोप के थे. चुने गए अधिकारियों को 190 देशों के समूह के 13 एग्जीक्यूटिव मेंबर्स के सामने प्रस्तुत होना पड़ता है. यदि महासचिव का चुनाव आम सहमति से नहीं हो पाता है, तो वोटिंग की जाती है. सूत्रों के हवाले से पता चला है कि सिन्हा जर्मनी के उम्मीदवार से पिछड़ गए. इसके बावजूद सिन्हा दुनिया की सबसे बड़ी पुलिस संस्था के प्रमुख के पद के चयन के लिए अंतिम दौर तक पहुंचने वाले भारत के पहले पुलिस अधिकारी बन गए हैं.
दिल्ली का बाबू: नए असमंजस
Adv from Sponsors