अब जबकि दिल्ली में नई सरकार बनने में लगभग एक महीने का समय शेष रह गया है, नौकरशाह नए बदलाव की तैयारी में लग गए हैं. यह आशा की जा सकती है कि आर्थिक गति ठीक करने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय और दूसरे मंत्रालयों में कई नई नियुक्तियां की जाएंगी. मामले पर निगाह रखने वालों का मानना है कि ज़्यादातर बदलाव रक्षा, वित्त और गृह मंत्रालयों में हो सकते हैं. इन सबके बीच कैबिनेट सचिव को बदले जाने की संभावना सबसे बड़ा परिवर्तन साबित हो सकती है. इस पद पर वर्तमान समय में तैनात अजीत सेठ सेवा विस्तार पर काम कर रहे हैं, जो जून के मध्य में समाप्त हो जाएगा. इस तरह के महत्वपूर्ण पदों के लिए सरकार साधारणतय: तैनात अधिकारी के सेवानिवृत्त होने के कुछ सप्ताह पूर्व ही नए अधिकारी की घोषणा कर देती है. नौकरशाहों में इस बात को लेकर चर्चा है कि क्या नई सरकार कैबिनेट सचिव के पद पर नियुक्ति के लिए वरिष्ठता को आधार बनाएगी? अगर वरिष्ठ होने को आधार बनाया जाएगा, तो 1976 बैच एवं हिमाचल कैडर के अधिकारी सुतानू बेहूरिया को नामित किया जा सकता है.
कार्रवाई बंद है
क्या आपको अरुणाचल प्रदेश के नीडो तानिया की नस्लीय हमले में हुई मौत के बाद हुआ बवाल याद है? सरकार ने इसे लेकर पूर्व आईएएस अधिकारी एम पी बेजबरुआ की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की थी, जिसका काम सभी शहरों में होने वाले इस तरह के नस्लीय भेदभाव पर नज़र रखना था, लेकिन जैसे ही यह मामला मीडिया की निगाहों से ओझल हुआ, सरकार भी इसे लेकर ढीली पड़ गई. कई लगातार बैठकों के बाद उत्तर-पूर्व के बड़े शहरों के लोगों से जब कमेटी के सदस्य मिले थे, तो लग रहा था कि कमेटी पूरे मनोयोग से इस काम में लगी हुई है. जो इस मामले को जानते हैं, उन्हें मालूम है कि कमेटी के सदस्य मार्च के बाद से नहीं मिले. उन्हें उसी महीने में अपनी रिपोर्ट सौंपनी थी. विशेष बात तो यह है कि कई सदस्यों को यह तक नहीं मालूम है कि कमेटी ने काम करना क्यों बंद कर दिया? कमेटी के सचिव एवं गृह मंत्रालय में डिप्टी सचिव एस साहा से जब उत्तर-पूर्व के छात्रनेताओं ने इस बाबत पूछा, तो वह कोई जवाब नहीं दे पाए. उन्होंने कहा कि ऐसा शायद चुनाव की वजह से है. अब जबकि नौकरशाह इस मामले पर कोई जवाब नहीं दे रहे हैं, तो इसका मतलब यह भी निकाला जा सकता है कि सरकार मामले को ज़्यादा तवज्जो नहीं दे रही है.
संशय में नौकरशाह
आंध्र प्रदेश के बंटवारे को लेकर राज्य के नौकरशाहों में भ्रम और ज़्यादा बढ़ गया है. इसका कारण सुप्रीम कोर्ट का हालिया निर्णय है, जो नगर निगम चुनावों को लेकर है. ग़ौरतलब है कि यह निर्णय तब आया है, जबकि नगर निगम चुनावों के दो चरण अभी पूरे हुए हैं. मजेदार ढंग से नौकरशाहों का एक धड़ा विभाजन की प्रक्रिया से अप्रभावित रहा. आईएएस एवं आईपीएस अधिकारियों के विपरीत आईआरएस अधिकारियों को इसमें छुआ तक नहीं गया, क्योंकि उनका काम भौगोलिक सीमाओं पर आधारित न होकर व्यवसायिक संभावनाओं पर आधारित होता है. इसके अलावा मुख्य सचिव पी के मोहंती के भाग्य को लेकर भी संशय बरकरार है, जिनके सेवा विस्तार को लेकर हाल में राज्य हाईकोर्ट में केस दायर किया गया है. अगर उन्हें सेवा विस्तार नहीं मिलता है, तो ऐसी अवस्था में यह पद भूमि प्रशासन के मुख्य आयुक्त आईवाईआर कृष्णराव के पास जा सकता है. ऐसा माना जा रहा है कि विभाजन को लेकर यह संशय तभी समाप्त होगा, जब इसके लिए बनाई गईं 21 कमेटियां अपनी रिपोर्ट सौंप देंगी.
दिल्ली का बाबू : बदलाव के लिए तैयार
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