पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शामली और मुज़फ़्फ़रनगर में होने वाले सांप्रदायिक दंगों में 19 गांव प्रभावित हुए हैं और लगभग एक लाख मुस्लिम आबादी बेघर हुई है. स्थानीय लोगों के मुताबिक, इन दंगों में मरने वालों की संख्या 500 के क़रीब है. ज़िला प्रशासन इन दंगों को रोकने में विफल रहा, जिसकी वजह से हालात ज़्यादा ख़राब हो गए. देश भर के मीडिया का ध्यान केवल मुज़फ़्फ़रनगर पर ही रहा, जबकि दंगों की शुरुआत शामली ज़िले से हुई और यही दंगों का केंद्र भी रहा. चौथी दुनिया की टीम ने शामली ज़िले के कुछ स्थानों का दौरा किया और तथ्यों को जानने की कोशिश की. प्रस्तुत है यह रिपोर्ट :
पश्चिमी उत्तर प्रदेश का शामली और मुजफ़्फरनगर ज़िला साम्प्रदायिक हिंसा की चपेट में है, जिसके कारण अब तक सैंकड़ों लोगों की मौत हो चुकी है और हजारों परिवार अपना घर-बार छोड़कर सुरक्षित जगहों की तलाश में पलायन कर रहे हैं. इस क्षेत्र के अधिकतर लोग मूलत: किसान हैं. हिंदू-मुस्लिम भाईचारे की ज़िंदगी जीते चले आए हैं. इस इला़के में कभी दंगे नहीं हुए. ऐसे में यह सवाल उठता है कि आख़िर क्या वजह थी कि यहां सांप्रदायिक तनाव बढ़ा और दंगों ने इतना विकराल रूप धारण कर लिया. मीडिया के जरिये यह पता चला कि एक समुदाय की लड़की के साथ दूसरे समुदाय के लड़के का प्रेम-प्रसंग और फिर इसके नतीजे में दोनों समुदायों के तीन लड़कों की हत्या हो जाना ही दंगे का असल कारण बना. इसी को बहाना बनाकर क्षेत्र के नेताओं ने अपनी सियासी रोटियां सेंकनी शुरू कर दी. पंचायतों और महापंचायतों का सिलसिला शुरू हुआ, एक दूसरे के ख़िलाफ़ भड़काऊ नारेबाज़ी शुरू हुई और इस तरह नफ़रत की चिंगारी धीरे-धीरे पूरे क्षेत्र में फैलने लगी, जिसने आख़िरकार ख़ूनी रूप धारण कर लिया. सिर्फ एक घटना की वजह से दंगे हो गए, यह नहीं माना जा सकता है, क्योंकि इस तरह की घटनाएं हर शहर में होती हैं, लेकिन क्या वहां दंगा भड़कता है? चौथी दुनिया की तहक़ीक़ात बताती है कि शामली और मुजफ़्फनगर ज़िले में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच टकराव की स्थिति पिछले चार-पांच महीनों से बनी हुई थी, जिसे भाजपा से जुड़े नेता निरंतर हवा दे रहे थे. स्वयं आरएसएस के कुछ लोग पिछले कई महीनों से छोटी-छोटी घटनाओं में मुसलमानों को निशाना बना रहे थे और इस मौके की तलाश में थे कि कैसे एक चिंगारी को शोले की शक्ल दी जाए, ताकि बड़े पैमाने पर मुसलमानों का नरसंहार किया जा सके. वैसे चौथी दुनिया ने जुलाई महीने में ही देश की जनता को आगाह कर दिया था कि दंगे होने ही वाले हैं और शरारती तत्वों के साथ-साथ आरएसएस और भाजपा के लोग बस मौ़के की तलाश में हैं. तीन महीने पूर्व उन्हें ऐसा ही एक मौक़ा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ज़िले शामली में हाथ लग गया.
तीन महीने पूर्व यानी जून में हरिद्वार की एक हिंदू लड़की रुड़की के एक मुस्लिम लड़के के साथ शामली आई. ये दोनों शामली के आज़ाद चौक के नजदीक एक होटल में रुके. इन दोनों के साथ उस कमरे में उसके कुछ मुस्लिम दोस्त भी थे. इस घटना के बारे में जब शामली के एक मुस्लिम पत्रकार को पता चला तो उसने स्थानीय पुलिस को इसकी सूचना दे दी. इंस्पेक्टर आरएन यादव ने पुलिस बल के साथ होटल में छापा मारा और इन लड़कों को पकड़ लिया. इसके साथ-साथ पुलिस ने कुछ और भी मुस्लिम लड़कों को भी गिरफ्तार किया, जो इसमें शामिल नहीं थे. इसी दौरान थाने से ही किसी ने क्षेत्र के भाजपा विधानमंडल के नेता हुकुम सिंह को फोन करके बता दिया कि थाने में एक ऐसी हिंदू लड़की मौजूद है, जिसके साथ यहां के मुस्लिम लड़कों ने सामूहिक बलात्कार किया है. हुकुम सिंह फौरन ही थाने पहुंच गए और पुलिस पर दबाव बनाने लगे कि वहां पर मौजूद मुस्लिम लड़कों के साथ-साथ कुछ दूसरे मुस्लिम लड़कों के ख़िलाफ़ भी बलात्कार का मामला दर्ज किया जाए. गांव के कुछ लोगों के अनुसार, हुकुम सिंह जिन दूसरे मुस्लिम लड़कों के ख़िलाफ़ पुलिस केस दर्ज कराना चाहते थे, उनका इस लड़की के साथ कोई संबंध नहीं था. हुकुम सिंह दरअसल जाटों और मुसलमानों को एक-दूसरे से लड़ाकर आगे की राजनीतिक रणनीति के तहत यह सब काम कर रहे थे, इसीलिए उन्होंने जान-बूझकर कुछ निर्दोष मुसलमानों के ख़िलाफ़ पुलिस केस दर्ज कराने की कोशिश की. इंस्पेक्टर आरएन यादव ने हुकुम सिंह की बात को मानने से इन्कार कर दिया और कहा कि लड़की जिसका नाम लेगी, उसके ख़िलाफ़ मामला दर्ज होगा. पुलिस के पूछने पर हरिद्वार की इस हिंदू लड़की ने रुढ़की के मुस्लिम लड़के को अपना दोस्त बताया और कहा कि वो यहां घूमने आई थी. पुलिस के सामने अपनी बात बनते न देखकर हुकुम सिंह वहां से नाराज़ होकर चले गए और उन्होंने पहले तो भाजपा कार्यकर्ताओं को भड़काया और फिर अपने अन्य साथियों की सहायता से हिंदुओं, विशेषकर जाटों में अफवाह फैलानी शुरू कर दी. अफ़वाह के कारण हिंदुओं में मुसलमानों के विरुद्ध गुस्सा फूटने लगा और उन्होंने इस घटना के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करना शुरू कर दिया. इस घटना पर भाजपा ने शामली में तीन दिन के बंद का ऐलान भी किया. हालांकि जब शामली के एसपी अब्दुल हमीद ने विरोध करने वाले हिंदुओं पर एक जगह लाठीचार्ज का आदेश दिया तो उन पर यह आरोप लगाया जाने लगा कि वह मुसलमानों का साथ दे रहे हैं और दोषियों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं. इला़के के हिंदुओं की ओर से एसपी अब्दुल हमीद को हटाने की भी मांग ज़ोर पकड़ने लगी और आख़िरकार उनको वहां से हटना ही पड़ा.
भाजपा नेता हुकुम सिंह ने इस बीच शामली के कुछ गावों में पंचायत बुलाने की भी कोशिश की, लेकिन चूंकि वहां के हिंदुओं ने जब हुकुम सिंह का साथ नहीं दिया और कोई भी हिंदू किसी भी पंचायत में शामिल नहीं हुआ तो हुकुम सिंह ने शामली छोड़कर मुजफ्फरनगर का रुख़ किया और वहां के हिंदुओं को अपने साथ मिलाने की कोशिश शुरू कर दी.
हुकुम सिंह पर शामली के मुसलमानों का यह भी आरोप है कि उन्होंने मार्च में होली से एक दिन पहले अपने पैतृक गांव बुच्चाखेड़ी (कोतवाली केराना, ज़िला शामली) में होली के मौ़के पर जलाने के लिए जमा की गई लकड़ी में स्वयं कुछ हिंदुओं से कहकर आग लगवा दी और मुसलमानों पर इसका आरोप लगा दिया. इसके बाद वहां की मस्जिद के एक इमाम को पीटा गया, एक मस्जिद की दीवार गिरा दी गई. और मस्जिद में मौजूद कुरआन के 40 नुस्ख़ों को आग लगा दी. उल्लेखनीय है कि बुच्चाखेड़ी जाट बहुल गांव है, जिसमें मुसलमानों के केवल 20 घर हैं. इसके बाद बुच्चाखेड़ी में तनाव बढ़ गया. लिहाज़ा, तत्कालीन एसपी अब्दुल हमीद और एडीशनल एसपी अतुल सक्सेना ने गांव के कुछ दोषियों को पकड़ा और उनमें से कुछ को जेल भी हुई, लेकिन मस्जिद में आग लगाने वाले असामाजिक तत्वों को हुकुम सिंह ने गिरफ्तार नहीं होने दिया. ये लोग आज भी पुलिस की गिरफ्त से बाहर हैं. इस घटना के बाद वहां के हिंदुओं और मुसलमानों ने एक अमन कमेटी गठित की और दोनों समुदायों के लोगों को समझाने की कोशिश की. कुछ दिनों तक इस गांव में शांति रही, लेकिन पुन: तनाव शुरू हो गया.
बुच्चाखेड़ी की घटना के बाद हुकुम सिंह के कहने पर भाजपा और आरएसएस से जुड़े कुछ कट्टर तत्वों ने जगह-जगह पर मुसलमानों को अकेला पाकर मारने-पीटने का सिलसिला शुरू कर दिया. ये लोग जहां भी दाढ़ी-टोपी वाले मुसलमानों को देखते, उनकी पिटाई कर देते या गालियां बकते थे. उनमें से अधिकतर या तो तब्लीग़ी जमात से जुड़े हुए थे या फिर मदरसों में पढ़ने वाले बच्चे थे. इसका उद्देश्य मुसलमानों को अपमानित करके उन्हें भड़काना था. दाढ़ी और टोपी वाले मुसलमानों को निशाना बनाने की घटना विशेषकर दिल्ली से मुज़फ़्फ़रनगर, देवबंद या सहारनपुर जाने वाली रेलगाड़ियों में घटी और बीच रास्ते में उन मुसलमानों के साथ मारपीट की गई. इससे मुसलमानों में भी हिंदुओं के विरुद्ध गुस्सा भड़कने लगा, जिसे हुकुम सिंह और उनके साथी लगातार हवा देते रहे. दरअसल, हुकुम सिंह की शुरू से यही कोशिश थी कि क्षेत्र के हिंदू (जाट और गुर्जर) मुसलमानों के ख़िलाफ़ खड़े हो जाएं और पूरी तरह हुकुम सिंह या उनकी पार्टी भाजपा का साथ दें.
ट्रेन, बस, टैम्पो और मोटरसाइकिल से सफर कर रहे दाढ़ी और टोपी वाले मुसलमानों को जगह-जगह पर मारने-पीटने का सिलसिला शामली और मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले में लगातार जारी रहा. इसी बीच शामली ज़िले में एक ऐसी घटना हुई, जिसने हिंदुओं और मुसलमानों के बीच ज़बरदस्त टकराव की स्थिति उत्पन्न कर दी. लखनऊ के रहनेवाले तीन मुसलमान जो देवबंद के एक मदरसे में शिक्षक हैं, बीते 29 अगस्त को कांधला (ज़िला शामली) के मशहूर धर्मगुरु मौलाना इतिख़ार उल हसन से मुलाक़ात करने के लिए आ रहे थे, उसी समय कुछ कट्टर हिंदुओं ने कांधला थाने के तहत आनेवाले भभीसा गांव में उन तीनों को ज़बरदस्ती टैम्पो से उतारा और उनमें से दाढ़ी और टोपी वाले दो मुसलमानों को बुरी तरह मारा-पीटा, जबकि तीसरे को इसलिए छोड़ दिया, क्योंकि उसके चेहरे पर न तो दाढ़ी थी और न ही सिर पर टोपी. इस घटना की ख़बर जैसे ही कांधला पहुंची, वहां के मुसलमानों में ज़बरदस्त गुस्से की लहर दौड़ गई. उन्होंने बड़ी संख्या में सड़कों पर विरोध प्रदर्शन करना शुरू कर दिया और पुलिस से दोषियों को गिरफ्तार करने की मांग करने लगे. स्थिति को बिगड़ता देखकर क्षेत्र के ज़िलाधिकारी (डीएम) प्रवीण कुमार ने मुसलमानों को समझाया और उन्हें भरोसा दिलाया कि जल्द ही दोषियों को पकड़ा जाएगा, जिसके बाद मुसलमान अपने-अपने घर वापस लौट गए.
दूसरी ओर इससे दो दिन पहले ही यानी 27 अगस्त को मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले के कवाल गांव में तीन लड़कों की हत्या कर दी गई थी, जिनमें से एक तो मुसलमान था, जबकि दो लड़के हिंदू थे. घटना बहुत साधारण थी, लेकिन इसी ने इस इला़के में काफ़ी दिनों से हिंदुओं और मुसलमानों के बीच चले आ रहे तनावपूर्ण माहौल को पूरी तरह बिगाड़ दिया, जिससे इस क्षेत्र में हिंदू और मुस्लिम फ़साद फूट पड़ा. दरअसल, विशाल और सचिन नाम के दो जाट लड़कों ने कवाल गांव के चौराहे पर शाहनवाज़ नाम के एक मुस्लिम लड़के को अपनी मोटरसाइकिल से टक्कर मार दी. तीनों में तू-तू, मैं-मैं हुई और बात इतनी बिगड़ गई कि विशाल और सचिन ने शाहनवाज़ की हत्या कर दी और अपनी मोटरसाइकिल पर सवार होकर भागने लगे, लेकिन चूंकि कुछ फ़ासले पर मुसलमानों के कई घर हैं. लिहाज़ा, मुसलमानों ने इन दोनों जाट लड़कों की भी वहीं हत्या कर दी. इसके बाद जाटों की ओर से विभिन्न गावों में पंचायतें शुरू हुईं. मामले को बिगड़ता हुआ देख, इस पूरे इला़के में दफ़ा 144 लगा दी गई, लेकिन पुलिस ने इस पर सख़्ती से अमल नहीं कराया. पुलिस प्रशासन की लापरवाही के कारण जाटों द्वारा कवाल, गंगेरू, लिसाढ़, बहावड़ी, फुगाना, बसी, पलड़ी, जांसठ, शाहपुर, लांख, खरड़ आदि विभिन्न गांवों में अवैध रूप से पंचायतें होती रहीं और पंचायतों में मुसलमानों के ख़िलाफ़ न केवल नारेबाज़ी की गई, बल्कि उन्हें जान से मारने का बाक़ायदा ऐलान भी किया गया. दंगा शुरू होने के बाद मुसलमानों का सबसे अधिक जान-माल का नुक़सान इन्हीं गांवों में हुआ.
बुच्चाखेड़ी की घटना के बाद हुकुम सिंह के कहने पर भाजपा और आरएसएस से जुड़े कुछ कट्टर तत्वों ने जगह-जगह पर मुसलमानों को अकेला पाकर मारने-पीटने का सिलसिला शुरू कर दिया. ये लोग जहां भी दाढ़ी-टोपी वाले मुसलमानों को देखते, उनकी पिटाई कर देते या गालियां बकते थे. उनमें से अधिकतर या तो तब्लीग़ी जमात से जुड़े हुए थे या फिर मदरसों में पढ़ने वाले बच्चे थे. इसका उद्देश्य मुसलमानों को अपमानित करके उन्हें भड़काना था. दाढ़ी और टोपी वाले मुसलमानों को निशाना बनाने की घटना विशेषकर दिल्ली से मुजफ्फरनगर, देवबंद या सहारनपुर जाने वाली रेलगाड़ियों में घटी और बीच रास्ते में उन मुसलमानों के साथ मारपीट की गई.
कवाल गांव की इस घटना से आक्रोशित होकर 52 गांवों पर आधारित गठवाला खाप के चौधरी बाबा हरि किशन ने 5 सितंबर को अपने पैतृक गांव लेसाढ़ा (जो थाना फुगान, ज़िला मुज़फ़्फ़रनगर के तहत आता है) और फिर दो दिन बाद यानी 7 सितंबर को नांगला मंडोर में एक महापंचायत बुलाई. इस पंचायत में इन सभी 52 गांवों के जाट शामिल हुए और भाजपा और भारतीय किसान यूनियन के नेताओं के अलावा कई जाट प्रतिनिधियों ने भड़काऊ भाषण दिया और मुसलमानों के विरुद्ध नारेबाज़ी की. पंचायतों में जाने वाले ये लोग मुसलमानों की जिन-जिन बस्तियों से गुज़रे, मुसलमानों के ख़िलाफ़ ख़ूब नारेबाज़ी की और भाले, फरसे के रूप में वे जो भी हथियार लेकर जा रहे थे, उसे हवा में लहराया. नांगला की महापंचायत में जाते हुए जाटों का जब एक क़ाफ़िला बस्सी पलड़ी गांव पहुंचा तो वहां पर स्थित एक मदरसे के बाहर चार पुलिसवाले पहले से तैनात थे, जिन्होंने इन जाटों को मुसलमानों के ख़िलाफ़ नारेबाज़ी करने से मना किया. इस पर वे लोग पुलिस वालों को ही मारने लगे, तब पुलिस ने मदरसे में मौजूद मुसलमानों से अपनी जान बचाने की गुहार लगाई. लिहाज़ा, मुसलमानों ने इन जाटों पर पत्थर चलाना शुरू कर दिया, जिसमें कई लोग घायल हो गए. ये जाट जब नांगला मंडूर की महापंचायत में पहुंचे तो भाजपा के नेताओं ने उन्हें स्टेज पर बुलाकर वहां मौजूद सारे लोगों को भड़काया और कहा कि देखो मुसलमान किस प्रकार हिंदुओं को मार रहे हैं. इसी के बाद इस पूरे क्षेत्र में मुसलमानों को मारने-काटने की शुरुआत हुई और यह आग गठवाला खाप के तहत आने वाले सभी 52 गांवों में फैल गई.