तिब्बतियों के धर्मगुरु दलाई लामा को पूरी उम्मीद है कि चीन में लोकतंत्र के आगमन में अब ज़्यादा देर नहीं है. वह कहते हैं कि गांधीजी के अहिंसा के मार्ग पर चलकर हम पूरे चीन में लोकतंत्र लाना चाहते हैं. पूरा विश्वास है कि पूरे चीन में लोकतंत्र के पक्ष में जो हवा चल रही है, उसे किसी भी हालत में वहां की सत्ता के शिखर पर बैठे लोग रोक नहीं पाएंगे. दलाई लामा ने कहा कि अमेरिका की तिब्बत के प्रति प्रतिबद्धता की बात पर उन्हें किसी तरह की आशंका नहीं है. अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा तिब्बत की स्वायत्तता का संरक्षण करते हैं. दलाई लामा पिछले दिनों हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला स्थित मैलोडगंज के चुगंलाखंग बौद्धमठ में आईएफडब्ल्यूजे के बैनर तले पत्रकारों को संबोधित कर रहे थे.
दलाई लामा के अनुसार, ओबामा ने अपने चुनाव के समय भी उनसे बात कर तिब्बत की स्वायत्तता का समर्थन किया था. उन्होंने ओबामा के चीन जाने से पहले उनसे इसलिए मुलाकात नहीं की, ताकि चीन किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित न हो जाए. उनसे मिलकर जाने पर इस बात की आशंका थी कि चीन अमेरिका के ख़िला़फ कोई भी कड़ा रुख अपना सकता था. उन्होंने उम्मीद जताई कि अगले साल ओबामा से उनकी मुलाकात ज़रूर होगी.
दलाई लामा कहते हैं, हमने चीन के संविधान के अंतर्गत रहकर ही तिब्बत की स्वायत्तता की मांग की है, लेकिन चीन के मन में भय है, इसलिए वह हमें अलगाववादी के रूप में प्रचारित करता रहता है. हमारे प्रयास के ठोस नतीजे अभी तक भले ही न निकले हों, लेकिन आज स्थितियां पूरे चीन में बदल रही हैं. जनता का भी मन बदल रहा है.
वहां के हजारों शिक्षकों, पत्रकारों, लेखकों और न्यायपालिका से जुड़े लोगों ने हमसे मिलकर बदलाव की बात कही है. चीन की वर्तमान शासन व्यवस्था का़फी पुरानी हो चुकी है, जनता अब बदलाव का मन बना रही है. लोग चाहते हैं कि मीडिया एवं न्यायपालिका स्वतंत्र रहे और लोकतंत्र क़ायम हो.
दलाई लामा ने बताया कि तिब्बत की स्वायत्तता के सवाल पर अब तक आठ बार उनकी चीन से वार्ता हो चुकी है. वह कहते हैं कि मैं तो गांधीजी के जीवन के एक छोटे से भाग अहिंसा के मार्ग का अनुयायी हूं. उन्होंने नेल्सन मंडेला की भी सराहना की और कहा कि उनकी पहली प्रतिबद्धता सद्भावना एवं अहिंसा के सिद्धांत को विश्व के कोने-कोने तक पहुंचाना है, क्योंकि इसके बिना न कोई लक्ष्य हासिल हो सकता है और न ही विश्व में शांति कायम हो सकती है.
आतंकवाद पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए दलाई लामा ने कहा कि इसका मुक़ाबला जनता को शिक्षा एवं जनजागरण के हथियार से लैस करके अहिंसा के मार्ग को अपनाने के आत्मबल द्वारा ही किया जा सकता है. वर्तमान विश्व में राष्ट्रीय सीमाएं महत्वहीन होती जा रही हैं. पूरा विश्व एक देश के रूप में विकसित हो रहा है और सभी देश एक दूसरे पर निर्भर हैं. ऐसे में अकेले रहकर कोई महान नहीं हो सकता. उन्होंने कहा कि हम भारतीय हैं, धर्मशाला और भारत हमारे घर जैसा है. हमने भारत में 50 वर्ष रहकर लोकतंत्र को पलते-ब़ढते देखा है. हमने यहीं रहकर सीखा कि लोकतंत्र क्या है? इसी से प्रभावित होकर हमने अपने स्तर पर 2001 से निर्वासित तिब्बतियों की भी लोकतांत्रिक सरकार का गठन किया है.