dddबिहार में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों का वक्त जैसे-जैसे करीब आ रहा है त्यों-त्यों औरंगाबाद जिले में राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ती जा रही हैं. जिले की लगभग सभी राजनीतिक पार्टियों ने अपना चुनावी एजेंडा तय कर लिया है जिसके बलबूते वो इस चुनामी समर को पार करने की कोशिश करेंगी. साथ ही उनका जनसंपर्क अभियान भी तेज होता हुआ दिख रहा है. इसी तैयारी के क्रम में कोई डोर टू डोर अर्जी लगाकर अपनी उपस्थिति दर्ज करा है तो कोई कार्यकर्ता सम्मेलन बुलाकर अपनी जोर आजमाइश कर रहा है. इससे इतर जदयू द्वारा बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के नाम पर जगह-जगह महाधरना प्रदर्शन कर रही है इस वजह से उसकी केन्द्र को दोषी ठहराने की कवायद जोर पकड़ रही है.
गौरतलब है कि इस जिले के अंदर छह विधानसभा क्षेत्र हैं, जिनमें वर्तमान में चार पर जदयू, एक पर भाजपा, एक निर्दलीय और एक पर राजद का झंडा लहरा रहा है. चूंकि लोकसभा चुनाव के वक्त जिले के राजनीतिक हालात काफी बदला सा लग रहा था. साथ ही भाजपा के भीतर कलह की स्थिति भी उत्पन्न हो गई थी, लेकिन कहते हैं कि समय हर जख्म को भर देता है और हुआ भी यही. लोकसभा में कमल के फूल खिलते ही कार्यकर्ताओं के चेहरे पर खुशी के फूल खिल गए और भाजपा को जीत मिलने से युवाओं के बीच नमो-नमोे का जाप होने लगा. भाजपा के वर्तमान सांसद सुशील सिंह द्वारा विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र पार्टी के सभी कार्यकर्ताओं से एकजुटता दिखाने की बात बार-बार कही जा रही है. लगभग सभी पार्टी के प्रमुख नेता लगातार जनसंपर्क कर रहे हैं और क्षेत्र का दौरा लगातार कर रहे हैं. केरल के पूर्व राज्यपाल निखिल कुमार द्वारा मतदाताओं की समस्याओं को सुना जा रहा है और उन्हें हर संभव सहायता तत्काल करने के लिए पार्टी के अन्य नेताओं को कहा जा रहा है ताकि मतदाताओं की समस्या का समाधान तुरंत हो सके.

इन सभी में जिलों का सिरमौर कही जाने वाली औरंगाबाद विधानसभा सीट भाजपा को मिलना तय माना जा रहा है क्योंकि यहां से भाजपा के प्रत्याशी रामाधार सिंह लगातार तीन बार विपक्षी पार्टियों को शिकस्त देने में सफल रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ रफीगंज सीट से जदयू हैट्रिक बनाने का दावा कर रही है. वहीं एक ओर इसी बैचेनी के साथ जदयू-राजद का महागठबंधन भी दिन गिन रहा है

चुनाव से पहले विभिन्न पार्टियों के कार्यकर्ता मोदी लहर को नकार रहे थे. लेकिन हरियाणा एवं महाराष्ट्र के चुनाव परिणाम को देखते हुए अब कोई भी पार्टी कुछ भी स्पष्ट रूप से बोलने से कतरा रही है. यहां तक की जो दावेदारी एलायंस पार्टी के नेताओं द्वारा पहले की जा रही थी वे अब कुछ भी सरेआम बोलने से परहेज कर रही हैं. 2015 के विधानसभा चुनाव के लिए सभी पार्टियां अपनी-अपनी दावेदारी को प्रबल मान रही हैं.
लोजपा-भाजपा-रालोसपा गठबंधन के उम्मीदवार काफी कश्मकश में हैं कि इस तिगड़ी में सीटों का औसत बंटवारा क्या होगा? मगर इन सभी में जिलों का सिरमौर कही जाने वाली औरंगाबाद विधानसभा सीट भाजपा को मिलना तय माना जा रहा है क्योंकि यहां से भाजपा के प्रत्याशी रामाधार सिंह लगातार तीन बार विपक्षी पार्टियों को शिकस्त देने में सफल रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ रफीगंज सीट से जदयू हैट्रिक बनाने का दावा कर रही है. वहीं एक ओर इसी बैचेनी के साथ जदयू-राजद का महागठबंधन भी दिन गिन रहा है. साथ ही पार्टी गठबंधन नेताओं बीच भी यह प्रश्‍न, यक्ष प्रश्‍न की तरह मुंह बाए खड़ा है कि उनके आलाकमान द्वारा क्या निर्णय लिया जाता है इसलिए पार्टी में भीतर तक अपनी खास पकड़ रखने वाले रसूखदार नेता भी सीट बंटवारे को लेकर मुंह खोलने से कतरा रहे हैं. परंतु आंंख मिचौली के इस खेल में पार्टी कार्यकर्ताओं द्वारा कुछ सीटें पूर्व र्निधारित भी मानी जा रही हैं. हांलाकि, वोटरों के द्वारा वर्तमान सरकार के पूर्व कार्यों की सराहना भी की जा रही है साथ ही उनके कुछ कार्यों से मतदाताओं मे रोष भी व्याप्त है. इस कारण किसी भी पार्टी का कोई भी उम्मीदवार प्रत्यक्ष बोलने से कतरा रहा है. लोकसभा में मोदी लहर को विधानसभा में नकारने वाले विभिन्न पार्टियों के कार्यकर्ता अब हरियाणा और महाराष्ट्र के हालिया विधानसभा चुनाव परिणाम देखने के बाद चुप्पी साधने को मजबूर हैं क्योंकि राजनीतिक शतरंज की अगली चाल क्या होगी यह कहना किसी भी पार्टी कार्यकर्ता के लिए उचित नहीं है. चूंकि भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में चुनाव मुद्दों पर लड़ा जाता है. अत: हर राज्य एवं जिले और इसके विधानसभा की समस्या अलग-अलग होती है. इस जिले मे भी छह विधानसभा क्षेत्र हैं तो लाजिमी है कि यहां की समस्याएं भी अलग होंगी. अब आगे यह देखना काफी दिलचस्प होगा कि कौन सा प्रत्याशी किस मुद्दे को अपना चुनावी शस्त्र बनाकर इस चुनावी रण में आगे आता है.

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