देश में जारी एक महा हंगामे से निजात की वजह बने कोरोना का जितना शुक्रिया अदा किया जाए, कम होगा…! जैसे-जैसे ये करीब आता गया, फायदों की रेवड़ियां दामन भरती गई …! इलाज के नाम पर करोड़ी कमाई ने अस्पताल वालों को तर-बतर करने के साथ इसने सरकारों को लोगों से खेलने का साधन दे दिया…! कभी बंद, कभी शुरू… कभी पाबंदी, कभी छूट… कभी रियायतें और कभी निषेधाज्ञा…!

सरकार गिराने से लेकर सरकार खड़ी करने के बीच का समय भी सुकून से गुजारा गया…! उस चुनाव से आने वाले नए चुनाव के बीच कई नौटंकियां देखने को मिलीं, शाम के बाद कोरोना का खतरा, दुकानें खुलने से संक्रमण फैलने का डर, शादी, ब्याह, धार्मिक आयोजनों से लेकर लोगों के जुटने को कोरोना से जोड़ा गया… बस चुनावी सभाओं, रैलियों, जलसों, हंगामों के बीच इसका डर काफूर होता गया…! चंद दिनों की पाबंदियां और फिर एक नए चुनाव की सुगबुगाहट… सब ठीक है, की आवाजें फिर गूंजने लगी हैं…! इसे महज इत्तेफाक से न जोड़ा जाए, प्रदेश में नगरीय निकाय चुनावों के रास्ते खुलते हैं और बाजारों के शटर देर रात तक खुले रखने की छूट और नाइट कर्फ्यू की मनहूसियत से भी राहत मिलती चली जाती है…! कोरोना के नाम पर होते हास्यास्पद सरकारी खेलों ने लोगों की इस बीमारी के प्रति गंभीरता को छीन लिया है…! जब वे डरने की तरफ बढ़ते हैं उन्हें चुनाव की भीड़ याद आ जाती है…! जब वे इससे बचने के उपाय के बारे में सोचते हैं उन्हें अहसास होने लगता है कि महज आधी रात को बाजारों में टहलने वाली बीमारी कैसी है…! जब उनके मन में महामारी से बचने इलाज का इरादा खड़ा होता है, दवाएं बनने के दावे और खुद अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने की बातें याद आ जाती हैं…! कोरोना की पिच पर जितनी कबड्डी सरकार को खेलना थी, वह खेल चुकी, अब जन का मन डर से खाली हो चुका, अब तो लगता है बेवकूफ बनाने के लिए कोई और खेल ही ईजाद करना पड़ेगा…!

पुछल्ला
मौका लूटना तो बनता है
बारह दिनों से अपने दम पर खुली सड़कों पर सर्द रातों का दर्द बर्दाश्त करते किसानों को हमदर्दी का मरहम देने अब सियासत पहुंचने लगी है। दुश्मन का दुश्मन अपना दोस्त हो सकता है, की धारणा से विपक्षियों ने आंदोलन के बंद वाले चरण को हथियाने हाथ बढ़ा दिए हैं। किसान का ‘क’ और खेती का ‘ख’ नहीं जानने वाले गांव का ‘ग’ अलापते नजर आ रहे हैं। उनके अलाव अपनी सियासी सिकाई में जुटे विपक्षियों से आंदोलन का खेल बिगड़ न जाए, इस बात की फिक्र की जाना चाहिए।

खान अशु


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