कोयले की काली कमाई की चमक से सभी लोग आकर्षित होते हैं और जल्दी कमाने की होड़ में अपना गैंग बनाने में जुट जाते हैं. नए लोग बंद पड़े खदानों से अवैध उत्खनन कर करोड़ों की कमाई करते हैं और संरक्षण देने वाले अपने आकाओं को एक बड़ी राशि रंगदारी के रूप में देते हैं. ये छोटे गैंग स्थानीय लोगों से बंद पड़े खदानों से कोयला निकलवाते हैं और प्रति टन 600 रुपए उन्हें देते हैं, जबकि बाजार में इसी कोयले को 7000 रुपए में बेचते हैं.

coal miningकोयले की अवैध काली कमाई पर वर्चस्व को लेकर झारखंड के कोयलांचल में हत्याओं का दौर लगातार जारी है. कोयलांचल में आठ बड़े गैंग में चार सौ करोड़ रुपए से भी अधिक की रंगदारी को लेकर खूनी खेल चलता रहता है. 29 साल में 340 से भी ज्यादा लोगों की हत्याएं माफियाओं ने कर दी, जबकि छोटे-छोटे प्यादे तो लगभग रोज ही मारे जाते हैं.

कोयलांचल में 40 वैध खदानें हैं, जबकि इससे कहीं अधिक अवैध खनन. इन वैध खदानों से लगभग 1.50 लाख टन कोयले का उत्पादन होता है, जबकि इस उत्पादन में लोडिंग, अनलोडिंग और तस्करी में लगभग 400 करोड़ रुपए की रंगदारी वसूली माफिया के गुर्गे करते हैं. वैसे पिछले 57 साल से कोयलांचल में वर्चस्व की लड़ाई चल रही है, लेकिन पिछले 29 सालों से इस लड़ाई ने हिंसक रूप ले लिया है.

29 साल में कोयलांचल में वर्चस्व को लेकर साढ़े तीन सौ से भी ज्यादा हत्याएं हो चुकी हैं. उसके बाद भी हर रोज एक छोटा गैंग उभरकर सामने आ जाता है. लेकिन कोयलांचल में अभी भी सिंह मेंशन का ही दबदबा है. अब फर्क सिर्फ ये हो गया है कि सिंह मेंशन में भी बंटवारा हो गया और चारों भाईयों एवं उनके बेटों का अलग गैंग हो गया है. इतनी हत्याओं के बाद भी कोयले की अवैध काली कमाई से लोगों का मोहभंग नहीं हो पा रहा है. अब तो गोरखपुर के भी माफिया डॉन कोयलांचल के माफियाओं के साथ मिलकर इस अवैध काली कमाई में लग गए हैं.

धनबाद में हाल ही में हुई उप महापौर नीरज सिंह की हत्या ने कोयलांचल में एक बार फिर बदले की आग को भड़का दिया है. नीरज सिंह सहित चार लोगों को 21 मार्च की शाम गोलियों से भून दिया गया था. नीरज की हत्या का आरोप उनके ही चचेरे भाई एवं सूरजदेव सिंह के बेटे संजीव सिंह पर लगा. संजीव अभी झरिया से भाजपा के विधायक हैं. पुलिस ने हत्या के आरोप में संजीव सिंह को गिरफ्तार किया है.

वैसे संजीव इस हत्या के आरोपों से इंकार करते हुए कहते हैं, भला मैं अपने चचेरे भाई की हत्या क्यों करूंगा. इस हत्या को सिंह मेंशन के करीबी रहे रंजय सिंह की हत्या से जोड़कर देखा जा रहा है. नीरज के बाद उनके भाई एकलव्य सिंह एक बड़ा चेहरा हैं. अभी वे धनबाद नगर निगम के उपमहापौर हैं. सूरजदेव सिंह के छोटे बेटे संजीव सिंह हमेशा 25 अंगरक्षकों से घिरे रहते हैं. वे झरिया से भाजपा के विधायक हैं. कई कोलियरी पर इनका कब्जा है. सूरजदेव सिंह के एक अन्य भाई सकलदेव सिंह की हत्या के बाद उनके बेटे रणविजय सिंह ने कतरास के इलाके में अपना कब्जा जमा रखा है. ये भी 23 एक्स आर्मी मैन के जत्थे वाला सुरक्षा घेरा लेकर चलते हैं. इनके घर की भी मजबूत किलेबंदी है.

दरअसल, पिछले कुछ सालों में माफियाओं ने युनियन की आड़ में कोयलांचल में अपना वर्चस्व कायम कर लिया है. इन वर्षों में अगर सबसे ज्यादा मार किसी पर पड़ी, तो वे मजदूर हैं. करीब साढ़े तीन सौ से भी ज्यादा हत्याएं हुईं, कई की तो लाशें भी नहीं मिलीं. उन्हें बेदर्दी से जलती आग में फेंक दिया गया. कई हाई प्रोफाईल हत्याएं भी हुईं. आपसी जंग में माफियाओं ने एक-दूसरे का खूब खून बहाया.

आज कोयलांचल में लगभग आठ बड़े गैंग हैं, जबकि सैकड़ों छोटे गैंग. वैसे, माफिया शब्द का पहली बार सरकारी भाषा में इस्तेमाल 1988 में हुआ था. बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद ने पहली बार इस शब्द का इस्तेमाल किया. समय के साथ चेहरे बदलते गए. कोयले की काली धरती खून से लाल होती गई, लेकिन कोयलांचल की तकदीर नहीं बदली.

कोयलांचल में हत्या कोई नई बात नहीं है झारखंड में कोयले की काली कमाई में वर्चस्व को लेकर खून से धरती लाल होती रहती है, लेकिन सरकार एवं पुलिस इसे रोकने में पूरी तरह से असफल है. कोयले की अवैध कमाई में राजनेताओं के साथ ही पुलिस-अधिकारी गठजोड़ को भी भारी-भरकम राशि मिलती है. बिहार, झारखंड के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के भी कुख्यात अपराधी यहां अपना वर्चस्व कायम करने के लिए हिंसक वारदातों को अंजाम देते रहते हैं.

अभी हाल के दिनों में वर्चस्व को लेकर भोला पाण्डेय, सुरेश सिंह, राजीव रंजन सिंह, अमरेन्द्र तिवारी, सुशील श्रीवास्तव, नीरज सिंह की फिल्मी अंदाज में हत्याएं कर दी गई. कोयले में वर्चस्व को लेकर हर साल पचास से भी ज्यादा जानें जाती हैं. पांच सौ करोड़ प्रतिवर्ष की अवैध कोयले की कमाई में वर्चस्व को लेकर हिंसा-प्रतिहिंसा का दौर कब तक जारी रहेगा, इस पर पुलिस का कब शिकंजा कसेगा, ये बताना आसान नहीं है.

1976 में श्रमिक नेता एवं माफिया के रूप में उभरे बी.पी. सिन्हा की हत्या कर सुरजदेव सिंह कोयलांचल में वर्चस्व कायम करने में पूरी तरह से सफल रहे और इनका एकछत्र राज्य कोयलांचल में कायम हो गया. इसके बाद अवैध कमाई का गवाह इनका निवास सिंह मेंशन बना. सूरजदेव सिंह के परिवार में वर्चस्व को लेकर खूनी जंग छिड़ी हुई है. इसमें इस परिवार के ही आधा दर्जन से अधिक लोग की हत्याएं हो चुकी है.

अभी नीरज सिंह समेत चार लोगों की दिन-दहाड़े हुई हत्या ने धनबाद की पुरानी हत्याओं की यादें ताजा करा दी है. नीरज को 40 से अधिक गोलियां मारी गईं. इससे पहले भी विनोद सिंह को इसी अंदाज में गोली मारी गई थी. सिंह मेंशन के करीबी माने जाने वाले रंजय सिंह की हत्या भी इसी साल जनवरी में अपराधियों ने कर दी थी. रंजय सिंह की हत्या के प्रतिशोध के कारण ही नीरज सिंह की हत्या हुई. पुलिस भी इसी प्रतिशोध को कारण मान रही है. इस हत्या के पीछे सिंह मेंशन का नाम आ रहा है.

26 मई, 1996 को नीरज सिंह के मौसा संजय सिंह की हत्या के बाद दोनों परिवारों के बीच खटास पैदा हो गई और इसके बाद दरार धीरे-धीरे बढ़ता ही चला गया. पहले इस हत्याकांड में सुरेश सिंह पर आरोप लगा, लेकिन बाद में सूरजदेव सिंह के बेटे राजीव रंजन सिंह और रामाधीर सिंह को हत्या का अभियुक्त बनाया गया. इसके प्रतिशोध में राजीव रंजन सिंह एवं सुरेश सिंह की भी हत्या फिल्मी अंदाज में शार्प शूटरों ने कर दी.

सिंह मेंशन हमेशा सुर्खियों में रहा और कोयला कारोबार से लेकर राजनीति तक इस परिवार का दबदबा रहा. सिंह मेंशन के सूरजदेव सिंह कई बार धनबाद से विधायक चुने गए. उनकी पत्नी कुंति सिंह भी झरिया से विधायक रहीं. अभी उनका पुत्र संजीव सिंह झरिया से भाजपा का विधायक है. सियासत में इनके मजबूत दखल का प्रमाण ये भी है कि धनबाद नगर निगम की कुर्सी इन्हीं परिवारों के बीच रही है. धीरे-धीरे नीरज सिंह भी राजनीति में तेजी से उभरने लगा.

पिछले विधानसभा चुनाव में वो कांग्रेस के टिकट पर झरिया से उमीदवार था, जबकि उसके चचेरे भाई संजीव सिंह भाजपा के टिकट पर. जीत संजीव की हुई. इससे परिवार के बीच विवाद और खुलकर सामने आ गया. नीरज सिंह 2019 के लोकसभा चुनाव में खड़ा होने वाला था. लेकिन नीरज की हत्या करा दी गई. माना जा रहा है कि कोयले की लोडिंग प्वाईंट पर आउटसोर्सिंग कंपनियों पर कब्जे को लेकर हत्या हुई. आउटसोर्सिंग पर वर्चस्व के लिए बात-बात पर खून की होली खेली जाती है.

आउटसोर्सिंग से इन माफियाओं को भारी कमाई होती है. आउटसोर्सिंग कम्पनियां कमीशन के रूप में करोड़ों रुपए माफिया को देती हैं और इसके बदले माफियाओं द्वारा इनको सुरक्षा प्रदान की जाती है. कोयले और सियासत में नीरज सिंह की सक्रियता से कई दुश्मन बन गए थे. नीरज उस परिवार से था, जो कोयला और झरिया की राजनीति में सबसे ज्यादा सफल रहा. इस वर्चस्व को लेकर ही दोनों परिवारों के बीच अदावत थी. इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि कोयलांचल में सूरजदेव सिंह की तूती बोलती थी. सूरजदेव सिंह का सम्पर्क पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर से था.

अब धनबाद में गैंगवार पारिवारिक युद्ध में बदल गया है. परिवार के बीच चल रहे इस युद्ध में दोनों ही परिवार के पंद्रह लोगों की हत्या हो चुकी है. नीरज सिंह की हत्या के बाद अब इसके और बढ़ने की संभावना प्रबल हो गई है और इस कारण सिंह मेंशन की भी सुरक्षा बढ़ा दी गई है. नीरज सिंह की हत्या बाइक पर सवार चार अपराधियों ने गोली मारकर कर दी.

लगभग डेढ़ सौ राउंड गोली चली और इसमें नीरज के साथ उनका पीए अशोक यादव, निजी अंगरक्षक मुन्ना तिवारी और ड्राइवर घोलटू मारे गए. जहां पर नीरज सिंह की हत्या हुई, उसके पास ही संजीव सिंह का आवास सिंह मेंशन है. इस हत्या में नीरज सिंह के चचेरे भाई संजीव सिंह को ही मुख्य अभियुक्त बनाया गया है. इससे दो माह पूर्व ही संजीव के करीबी माने जाने वाले रंजय की हत्या अपराधियों ने कर दी थी.

कोयले की काली कमाई की चमक से सभी लोग आकर्षित होते हैं और जल्दी कमाने की होड़ में अपना गैंग बनाने में जुट जाते हैं. नए लोग बंद पड़े खदानों से अवैध उत्खनन कर करोड़ों की कमाई करते हैं और संरक्षण देने वाले अपने आकाओं को एक बड़ी राशि रंगदारी के रूप में देते हैं. ये छोटे गैंग स्थानीय लोगों से बंद पड़े खदानों से कोयला निकलवाते हैं और प्रति टन 600 रुपए उन्हें देते हैं, जबकि बाजार में इसी कोयले को 7000 रुपए में बेचते हैं. कोयले की तस्करी बनारस एवं उत्तर प्रदेश के अन्य मंडियों में होती है. राजनेता, पुलिस एवं पत्रकारों की गठजोड़ से कोयले की तस्करी कराई जाती है.

पुलिस-अधिकारियों की भूमिका इसमें अत्यन्त अहम होती है. पुलिस-अधिकारियों को भी कोयला तस्कर नजराने की एवज में मोटी राशि देते हैं. इसके साथ ही लोडिंग, अनलोडिंग और कोयला खनन में लगे आउटसोर्सिंग कंपनियों को सुरक्षा प्रदान करने के एवज में माफिया तत्व करोड़ों रुपए की रंगदारी वसूलते हैं. आउटसोर्सिंग कंपनियां भी इन्हीं के रहमोकरम पर अपना काम कर पाती है.

कोयले की अवैध कमाई की पृष्ठभूमि 1950 में बीपी सिन्हा ने बनाई. पूरे कोयलांचल में सिन्हा का एकछत्र राज था. बरौनी निवासी बिंदेश्वरी प्रसाद सिन्हा 1950 में धनबाद आए. भाषण की कला, हिम्मत, ताकत सबमें माहिर माने जाते थे. कोलियरी मालिकों के बीच उनकी जबरदस्त पैठ बनी. बीपी सिन्हा इंटक से जुड़े और ताकतवर मजबूत नेता के रूप में उभरे. युवा पहलवानों की फौज बनाई, जिसमें सूरजदेव सिंह इनके सबसे विश्वासपात्र पहलवान थे. इनका इतना दबदबा था कि इन्हीं की मर्जी से कोयला खदाने चलती थीं. लेकिन 29 मार्च, 1978 को अपने ही लोगों ने उनकी हत्या कर दी. हत्या का आरोप सूरजदेव सिंह और सकलदेव सिंह पर लगा. बीपी सिन्हा की हत्या के बाद सूरजदेव सिंह का नाम उभरा और कोयलांचल में सूरजदेव का राज कायम हो गया.

पूरे कोयलांचल में इनका आतंक था और इनका आवास सिंह मेंशन कोयलांचल की राजनीति और अवैध कमाई की धुरी बना. सिंह मेंशन के इशारों पर ही कोयलांचल में पत्ता हिलता था. वे अपने विरोधियों को बर्दाश्त नहीं कर पाते थे और उन्हें अपने रास्ते से हटाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते. चंद्रशेखर के करीब आकर कोयलांचल में उनका कद और बढ़ गया और पूरे कोयलांचल में सिंह मेंशन की तूती बोलने लगी. 1991 में हार्ट अटैक से हुई उनकी मौत के बाद परिवार के बीच ही विवाद हो गया और सभी भाइयों के बीच वर्चस्व की लड़ाई शुरू हो गई. इसके कारण परिवार में ही गैंगवार छिड़ गया और एक दर्जन से ज्यादा लोगों की हत्या हुई.

बंद पड़े खदानों से अरबों की कमाई
कोयला कंपनियों द्वारा खनन के बाद बंद की गई कोयला खदानों को कोयला तस्कर एवं माफिया निशाना बनाते हैं. रैट होल के जरिए स्थानीय मजदूरों एवं कोयला चोरों को बंद खदानों में खनन के लिए भेजते हैं. इन बंद खदानों की सुरक्षा के लिए कोयला कंपनियां करोड़ों रुपए खर्च करती हैं, इसके बाद भी कोयला तस्कर बंद खदानों से प्रतिदिन लाखों टन कोयला निकालने में सफल होते हैं. इस कोयला की तस्करी कर इसे बनारस सहित देश की अन्य मंडियों में भेजा जाता है. हर पुलिस नाके पर एक निश्चित राशि तय होती है, जिसे कोयला माफिया ईमानदारी से पुलिस को पहुंचा देते हैं.

कोयलांचल में पदस्थापित पुलिस अधिकारियों की कमाई करोड़ों में होती है और ये धंधा बेरोकटोक चलता है. इस अवैध कमाई में राजनेताओं और पत्रकारों का भी हिस्सा होता है. बंद पड़े खदानों से कोयला की तस्करी कर माफिया रातों-रात करोड़पति बन जाते हैं. अब उत्तर प्रदेश के माफियाओं सहित बिहार एवं कोयलांचल के माफियाओं की भी धमक है. छोटे-छोटे कोयला तस्कर इन लोगों द्वारा संरक्षण देने के एवज में एक मोटी राशि माफियाओं को देते हैं, ताकि धंधे में कोई रुकावट न आ सके.

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