भोपाल। जन सहयोग और सहकारिता के फार्मूले पर बनने वाली संस्थाओं की बदनीयती का खामियाजा हजारों लोगों को उठाना पड़ रहा है। 56 बरस पहले अपनी अंशपूंजी लगाकर जिस संस्था को लोगों ने खड़ा किया था, वह अब अपने शेयरधारकों को लगभग भूल ही गए हैं। इतने बरसों में आज तक इन लोगों को मुनाफे की राशि से एक पैसा भी अदा नहीं किया गया है। संस्था के संरक्षण के लिए बैठाए गए लोग इसके मालिक बन बैठे हैं और अपनी जेबें भरने में लगे हुए हैं। यह अपने फायदे के लिए इस बरसों पुरानी संस्था को नुकसान पहुंचाने का कोई मौका भी नहीं चूक रहे हैं।
मामला धार जिले के धामनोद नगर का है। जहां वर्ष 1964 में एक सहकारिता संस्था को आकार दिया गया था। इसे जनता को-ऑपरेटिव मिल्स लिमिटेड नाम दिया गया था। लोगों के जनसहयोग और छोटी अंशपूंजी से यह संस्था खड़ी की गई थी। नियम और शर्तों को तय करते समय इस बात का आश्वासन भी दिया गया था कि सोसायटी को होने वाले मुनाफे में सभी अंशधारक बराबर के भागीदार होंगे। मुनाफे की राशि सभी अंशधारकों को सालाना किश्त के रूप में हासिल होगी। लेकिन सूत्रों का कहना है कि जनता को-ऑपरेटिव मिल्स द्वारा वजूद में आने के इतने बरसों बाद भी किसी शेयरधारक के लिए मुनाफा या कमाई का जरिया नहीं बन पाई है। इस पूरी अवधि में अब तक किसी शेयरधारक को एक भी पैसा नहीं मिला है। इस दौरान अंशपूंजी देने वाले लोगों में से अधिकांश दिवंगत भी हो चुके हैं।
फायदे पर संरक्षकों का कब्जा
करीब 56 बरस से संचालित इस संस्था को कभी फायदे के हालात नहीं बने ऐसा भी नहीं कहा जा सकता। विस्तारित क्षेत्र और बड़े कारोबार का पर्याय बन चुकी इस संस्थ को सालाना करोड़ों रुपए का फायदा हो रहा है। लेकिन संस्था संचालन और इसके संरक्षण के लिए पाबंद किए जाने वाले लोग इस मुनाफे को अपनी अतिरिक्त कमाई का जरिया बनाने से नहीं चूकते हैं। यही वजह है कि जिन अंशधारकों ने अपनी गाढ़ी कमाई का बड़ा हिस्सा इस सोसायटी को खड़ा करने के लिए लगाया था, इस संस्था से होने वाला फायदा उनकी बजाए दूसरों की जेबों में पहुंच रहा है।
अपना फायदा हो, संस्था के नुकसान से नाता नहीं
जनता को-आपरेटिव मिल्स लिमिटेड ने पिछले दिनों ग्राम बाकानेर में निर्माण कराए गए शॉपिंग कॉम्पलेक्स को औने-पौने दाम पर बेच दिया है। जिन दुकानों की कीमत वर्तमान में 15 से 20 लाख रुपए तक वसूली जा सकती थी, संस्था के जिम्मेदारों ने महज 5-5 लाख रुपए में बेच दी हैं। संस्था ने इसी तरह का एक कॉम्पलेक्स करीब 15 साल पहले भी इसी गांव में बनाया था, उस दौरान भी एक दुकान की कीमत 5 लाख रुपए ही आंकी गई थी। 15 बरस बाद दुकानों की कीमत में कोई इजाफा न करते हुए सोसायटी पदाधिकारियों ने टेबल के नीचे से बड़ा लेनदेन कर लिया है। मामले को लेकर क्षेत्रीय विधायक हीरालाल अलावा सहित कई सामाजिक संस्थाओं ने सहकारिता मंत्री अरविंद भदौरिया से की है। इस मामले की शिकायत सहकारिता पंजीयक और जिला कलेक्टर को भी की गई है।
खान अशु
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