jharkhandझारखंड गठन के बाद रघुवर दास ऐसे पहले मुख्यमंत्री है, जिन्होंने एक हजार दिन पूरा किया. वैसे यह रघुवर दास की कोई उपलब्धि नहीं मानी जाएगी. राज्य गठन के बाद पहली बार भाजपा बहुमत में आई और रघुवर दास मुख्यमंत्री बने. इस पद पर अपने को सुरक्षित रखने के लिए उन्होंने झारखंड विकास मोर्चा के छह विधायकों को तोड़ कर भाजपा में मिला लिया. एक हजार दिन पूरे होने पर मुख्यमंत्री ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से पांच वर्षों तक शासन करने का आर्शीवाद भी ले लिया. एक हजार दिन की अपनी उपलब्धियां बताते हुए रघुवर दास ने कहा कि जब उन्होंने संभाली, उस समय राज्य आर्थिक और सामाजिक दोनों ही क्षेत्रों में पिछड़ा हुआ था. हमने सभी क्षेत्रों में अभूतपूर्व काम किया है. उनका ये भी कहना था कि मैं मुख्यमंत्री पद को सुशोभित करने के लिए मुख्यमंत्री नहीं बना हूं. जनता ने राज नहीं काम करने के लिए मुख्यमंत्री बनाया है. उन्होंने कहा कि 2020 तक हम ऐसा झारखंड बनाएंगे, जिसे देखकर दुनिया सराहेगी. हमारा राज्य विकास के मामले में तो शीर्ष पर होगा ही, डर, भय, भुुख नाम की भी कोई चीज यहां नहीं होगी.

दावों से दूर है वास्तविकता

ऐसा लगता है कि अपने एक हजार दिनों की उपलब्धियां गिनातते हुए मुख्यमंत्री पूरी तरह से जमीनी हकीकत से बेखबर हैं. प्रदेश में 67 प्रतिशत लड़कियां एवं महिलाएं कुपोषण की शिकार हैं, पर स्वस्थ झारखंड का दावा किया जा रहा है. एक माह में लगभग तीन सौ बच्चों की मौत कुपोषण से हो गई. अभी भी राज्य में निरक्षरों की संख्या लगभग चालीस प्रतिशत है. आधी से अधिक आबादी गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर कर रही है, लेकिन पूरे राज्य से गरीबी दूर करने की बात की जा रही है. बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है. लोग पेयजल, बिजली, मकान, शौचालय, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं सड़क की समस्याओं से जूझ रहे हैं, लेकिन उन्हें विकसित झारखंड का हसीन सपना दिखाया जा रहा है.

3 लाख 10 हजार करोड़ के औधोगिक निवेश का दावा तो किया जा रहा है, लेकिन एक भी बड़ा उद्योग झारखंड में अभी तक स्थापित नहीं हो सका. सरकार ने केवल छोटे-छोटे उद्यमियों से निवेश कराकर वाहवाही लूटने का काम किया है. मुख्यमंत्री ने लाखों लोगों को नौकरी देने की बात कही, लेकिन किसे कहां नियुक्त किया गया, किसी को पता नहीं. उन्होंने यह भी दावा किया कि राज्य के किसानों की आय दोगुनी हो गई है, लेकिन एक माह के अंदर कर्ज में फंसे आधा दर्जन किसानों ने आत्महत्या कर ली.

किसानों के कल्याण के लिए दर्जनों योजना शुरू की गईं, लेकिन सभी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गईं. उच्च न्यायालय की फटकार के बाद भी राज्य की एक प्रमुख सड़क रांची-टाटा हाइवे का काम पूरा नहीं हो सका है. वहीं राज्य की लगभग एक सौ से भी ज्यादा स्वीकृत ग्रामीण सड़कों का निर्माण कार्य अधर में है. हाल के बरसात में प्रदेश के 100 से ज्यादा पुल-पुलिया क्षतिग्रस्त हो गए, जबकि इनका निर्माण दो-तीन वर्ष पूर्व ही हुआ था. मुख्यमंत्री ने यह घोषणा की थी कि 2018 तक अगर सभी गांवों में बिजली नहीं दे सका, तो अगले चुनाव में वोट मांगने नहीं आऊंगा, साथ ही उन्होंने जीरों पावर कट की भी बात कही थी.

लेकिन हकीकत ये है कि राजधानी में ही घंटो तक पावर कट होता रहता है, गांवों की बात तो दूर है. ग्रामीण इलाकों में तो बिजली अभी भी एक सपना ही है. मुख्यमंत्री का ये दावा भी हकीकत से दूर है कि सभी पंचायतों में स्वच्छ पेयजल पहुंचाया जा चुका है. एक बड़ी आबादी अब भी मीलों दूर से पानी का पानी ढो कर लाती है. स्वच्छ भारत अभियान के तहत पूरे राज्य को खुले में शौच से मुक्त करने का दावा तो हकीकत से पूर्णत: विपरीत है. अव्वल तो ज्यादातर शौचालयों का निर्माण कागजों में ही हुआ, लेकिन जो बने वे भी निर्माण के कुछ देर समय बाद ही टूट गए. एक तरह से कहा जा सकता है कि सारी उपलब्धियां कागजों तक ही सिमट कर रह गई हैं. मुख्यमंत्री रघुवर दास भ्रष्टाचार के मामले में जीरों टालरेंस की बात करते हैं, लेकिन यहां भ्रष्टाचार चरम पर है. विकास के नाम पर धड़ल्ले से लूट-खसोट और पैसों का बंदरबांट जारी है.

काम से ज्यादा उपलब्धियां गिनाने पर जोर

झारखंड में जब जमीनी स्तर पर जनता को विकास नहीं दिखा, तब मुख्यमंत्री ने अपने मंत्रिमंडल के सभी सदस्यों को अपनी उपलब्धियां गिनाने का निर्देश दिया. विभागीय मंत्रियों ने प्रेस के माध्यम से जमकर उपलब्धियां गिनाई. समाचार पत्रों एवं चैनलोंे में बड़े-बड़े विज्ञापन आए, लेकिन जब जनता उससे संतुष्ट नहीं हुई, तो विभागीय सचिवों को भी विभाग से सम्बन्धित उपलब्धि बताने का फरमान सुनाया गया. लेकिन उपलब्धियां गढ़ी तो नहीं जा सकतीं, जब जमीनी स्तर पर कोई काम ही नहीं दिख रहा, तो मंत्री या सचिव जनता को क्या बताएंगे. इधर मुख्यमंत्री रघुवर दास यह दावा कर रहे हैं कि एक हजार दिनों में 16 लाख लोगों को रोजगार मिला, लेकिन किसे मिला ये पता नहीं. उन्होंने कहा कि आदिम जनजातीय की स्थिति में सुधार हो रहा है और उन लोगों के घर पीजीटी डाकिया योजना के तहत राशना पहुंचाया जा रहा है. दरअसल, मुख्यमंत्री घोषणाओं को भी उपलब्धियां बताने लगे. जैसे, 289 सेवाओं को राईट टू सर्विस में शामिल करना, मोमेंटम झारखंड में 3.10 लाख करोड़ का निवेश, 2022 तक सभी को आवास, सभी को शुद्ध पेयजल और शौचालय आदि सरकार की घोषणाएं हैं, जिसे कई बार दोहराया जा चुका है.

हालांकि सरकार ने जहां काम करने की कोशिश की, वहां भी वांछित सफलता नहीं दिख रही है. बेघरों को घर देने का काम, ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सम्बन्धी काम देखने वाली हजारों सहिया की नियुक्ति, छोटे-मोटे उद्योगों की स्थापना और वर्षों से लटकी हुई स्थानीय नीति को लागू करने जैसे काम किए गए, लेकिन इनका परिणाम वैसा नहीं निकला, जो होना चाहिए था. बेरोजगारी दूर करने के उद्देश्य से लाखों स्वयं सहायता समूहों का गठन किया गया, लेकिन इसमें कोई खास सफलता नहीं मिल सकी. कई नीतियां को लागू करने को लेकर भी मुख्यमंत्री की काफी किरकिरी हुई, जैसे सीएनटी-एसपीटी संशोधन को लेकर मुख्यमंत्री को भारी फजीहत का सामना करना पड़ा. विपक्षी नेताओं के साथ-साथ सता पक्ष के लोगों ने भी उसका पुरजोर विरोध किया. अंतत: मुख्यमंत्री को इस संशोधन विधेयक को वापस लेना पड़ा. इधर तीन नए मेडिकल कॉलेज सहित देवघर में एम्स खोलने की सराहनीय पहल मुख्यमंत्री ने की है. अगर यह काम पूरा होता है, तो इससे राज्य में स्वास्थ्य सुविधा बहाल हो सकेगी.

औधोगिक विकास, और इज आफॅ डूइंग बिजनेस के मामले में गुजरात के बाद झारखंड दूसरे स्थान पर है, लेकिन यहां न तो औधोगिक विकास दिखता है और न न ही उद्योग-धंधों के लिए माकूल माहौल. झारखंड में निवेश के लिए 3 लाख 10 हजार करोड़ के 290 एमओयू हुए, पर कोई भी बड़ा उद्योग स्थापित नहीं हो सका. नक्सल समस्या भी सरकार के लिए बड़ी चिंता की बात है. झारखंड के अधिकांश जिले नक्सल प्रभावित हैं. सरकार के लाख दावों के बाद भी नक्सली घटनाओं में कोई कमी नहीं आ रही है. नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास का काम कराना सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है.

राजधानी से सटे खूंटी, गुमला एवं सिमडेगा जिले के कई गांवों में तो ये हाल है कि वहां पुलिए भी जाने से बचती है. अन्य कई जिलों में भी नक्सलियों ने लेवी के नाम पर विकास के पहिए को लगभग रोक दिया है. जाहिर है, ये जिले न सिर्फ पिछड़े हैं, बल्कि वहां अशिक्षा, बेरोजगारी और अपराध चरम पर है. नक्सलियों की शह पर वहां व्यापक स्तर पर नशीले पौधों की खेती भी घड़ल्ले से हो रही है. इसके साथ-साथ इन इलाकों में मानव तस्करी भी जोरो पर है. इस सभी से निजात पाना और इन इलाकों को भी विकास से जोड़ना राज्य सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है.

सरकार के जश्न पर विपक्ष का सवाल

एक तरफ सरकार एक हजार दिनों के जश्न में डूबी है, तो वहीं विपक्ष ने सरकार के दावों पर सवाल उठाना शुरू कर दिया है. पूर्व मुख्यमंत्री एवं झाविमों सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी ने सरकार की उपलब्धियों पर सवाल खड़ा कर दिया. उनका कहना है कि सरकार ये बताए कि उन्होंने कौन सा विकास का काम किया है. इधर प्रदेेश कांगे्रस अध्यक्ष सुखदेव भगत ने कहा है कि ये सरकार जमीनी स्तर पर कोई भी उल्लेखनीय काम नहीं कर सकी है. केवल मीडिया के विज्ञापनों के जरिए विकास का ढिढ़ोरा पीटा जा रहा है. वे दावे किए जा रहे हैं, जिनका कोई जमीनी वास्ता ही नहीं है. सिर्फ विपक्ष ही नहीं, सत्ता पक्ष के लोग भी सरकार की इस प्रचार नीति पर सवाल उठाने लगे हैं.

रघुवर मंत्रिमंडल के ही एक वरिष्ठ मंत्री सरयू राय का कहना है कि सरकार ने जब काम किया है, तो जनता उसे देखेगी ही, उपलब्धियों गिनाने की जरूरत क्या है. गौर करने वाली बात ये है कि मुख्यमंत्री के निर्देशों से इतर, सरयू राय ने विभागीय उपलब्धियां बताने के लिए प्रेस काफ्रेंस नहीं किया. इन्होने कहा कि सरकार की नीतियों के कारण सरकार एवं पाटी को नुकसान ही हुआ है. सरयू राय का ये भी मानना है कि सरकार को विपक्ष की आलोचनाओं पर भी ध्यान देना चाहिए.

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