सरकार के स्वच्छता अभियान से जुड़े अधिकारी-कर्मचारी ही कहते हैं कि जब बिना सफाई के ही स्मार्ट सिटी का खिताब और ऊंचा नंबर मिल जाता है, तो सफाई पर अधिक माथा खपाने की क्या जरूरत है! बनारस का प्रसंग आपने देख ही लिया. जब राजनीतिक कारणों से ही किसी क्षेत्र को अव्वल स्थान मिलना है, तो फिर सफाई की जरूरत क्या है! देशभर में स्वच्छता में वाराणसी को 32वां स्थान मिलने से वाराणसी के ही लोग हैरान हैं. लोग पूछते हैं कि काशी में गंदगी तो वैसी ही है, फिर रैंकिंग में तिकड़म कैसे हो गई! आप याद करते चलें कि बनारस देश के 10 सबसे गंदे शहरों में शुमार था. अब वह यूपी का सबसे साफ शहर है. उसे देश के 50 सबसे साफ शहरों में 32वें स्थान पर खड़ा कर दिया गया है. देशभर में सफाई का निरीक्षण-सर्वेक्षण क्वालिटी कंट्रोल ऑफ इंडिया ने किया.

इस संस्था पर घूस लेकर रैंकिंग घटाने-बढ़ाने के गंभीर आरोप हैं. 2014 में पहली बार हुए सर्वे में बनारस सफाई के मामले में 418वें स्थान पर था. वर्ष 2015 में दूसरी बार सर्वे हुआ, तो सौ सबसे साफ शहरों में वाराणसी 69वें स्थान पर आ गया और इस साल उसे 32वां स्थान मिल गया. सफाई की इस घटिया राजनीति के कारण सफाई के काम में लगे विभागों, अधिकारियों और कर्मचारियों का अपने मूल काम से मन हट गया है. अब वे कहते हैं कि जिस नेता की जितनी औकात होगी, वह अपने क्षेत्र को उतने ऊपर की रैंकिंग दिला लेगा. यूपी की राजधानी लखनऊ पर ही इसका बुरा असर पड़ा है. जो लोग बनारस और लखनऊ में सफाई का फर्क जानते हैं, वे रैंकिंग निर्धारण के तौर-तरीके पर हंसते हैं और मजाक उड़ाते हैं. सफाई के इस तथाकथित सर्वेक्षण में लखनऊ को 269वां स्थान मिलने पर नगर निगम के एक अधिकारी ने कहा था, ‘भई बनारस को मोदी की कृपा से 32वां स्थान मिला और लखनऊ को राजनाथ की औकात से 269वां स्थान मिला, ये तो औकात-औकात की बात है!’

राजधानी लखनऊ की सफाई इसी ‘औकात’ पर आ गई है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ फिल्म अभिनेता अक्षय कुमार और अभिनेत्री भूमि पेडनेकर के साथ सड़क पर झाड़ू लगाते अपना फोटो सेशन भले ही करा लें, लेकिन लखनऊ की सफाई की दशा अत्यंत घटिया स्तर पर आ गई है. जिन दिनों मुख्यमंत्री का फिल्मी हीरो-हिरोइन के साथ झाड़ू फोटो सेशन हो रहा था, उसके कुछ ही दिन पहले नगर निगम सदन की बैठक में यह आधिकारिक तौर पर स्वीकार कर लिया गया कि लखनऊ की सफाई और स्वच्छता का ऐसा कोई भी काम नहीं हुआ जो शहर में दिखे. न कूड़ा प्रबंधन योजना आई और न शहर अतिक्रमण से मुक्त हो पाया. शहर सीवर, पेयजल और सफाई समस्या से जूझता रह गया. आवारा पशुओं के लिए कोई ठोस उपाय नहीं हो पाया. लखनऊ की सड़कों और गलियों में आवारा गायों और खतरनाक कुत्तों की भरमार है, लेकिन सरकार का इस तरफ कोई ध्यान नहीं है. हर दिन लोगों के कुत्तों से काटे जाने की घटनाएं हो रही हैं, लेकिन शहर कुत्तों और उनके प्रेमियों से परेशान है.

नगर निगम ने खुद ही यह माना है कि जवाहरलाल नेहरू शहरी नवीकरण मिशन (जेएनयूआरएम) के तहत ट्रांसगोमती में सीवर लाइन बिछाने का काम पूरा नहीं हो पाया. शहर के कई इलाकों में पेयजल संकट दूर करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया जा सका. पार्षद निधि से लगे सब-मर्सिबल पंप समय से पहले ही खराब हो गए. अतिक्रमण हटाने और पटरी दुकानदारों के लिए फेरी नीति लागू कराने की दिशा में कोई निर्णय नहीं हुआ. अनियोजित कॉलोनियों का विस्तार रोकने के बजाय नेताओं और पार्षदों ने ऐसी कॉलोनियों में अपनी विकास निधि लगाकर उसे बढ़ावा देने का काम किया. शहर में नई कैटल कॉलोनी बनाने की दिशा में भी कोई योजना नहीं बनी. राजधानी की सफाई का हाल यह है लेकिन मुख्यमंत्री या अन्य मंत्रियों को झाड़ू के साथ फोटो खिंचाने और अखबार में छपवाने में कोई झेंप भी नहीं होती.

लखनऊ में करीब नौ सौ करोड़ रुपए खर्च कर विभिन्न इलाकों में सीवर लाइन डालने का काम हुआ था. लेकिन वह काम आज तक पूरा नहीं हुआ. सात साल से सीवर का काम ही चल रहा है. दरअसल, यह भ्रष्टाचार का जरिया बन गया है. नेता से लेकर नौकरशाह और ठेकेदार तक सीवर का गंदा पैसा खाने से भी हिचक नहीं रहे हैं. जल निगम के परियोजना प्रबंधक (अस्थायी गोमती प्रदूषण नियंत्रण इकाई) की ताजा रिपोर्ट को लेकर सफाई पसंद नागरिक हतप्रभ हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि नालियों को सीवर लाइन से जोड़ना बंद नहीं किया गया, तो सीवर योजना ध्वस्त हो जाएगी. लखनऊ के दौलतगंज, दुबग्गा, बालागंज की 369 किलोमीटर लंबी सीवर लाइन भीषण मुश्किलों में है. इस इलाके में सीवर कनेक्शन देने के लिए 7682.57 लाख की योजना मंजूर की गई थी.

इसी तरह अलीगंज, जानकीपुरम, कल्याणपुर, विकासनगर, रहीमनगर, खुर्रमनगर, महानगर, निरालानगर, डालीगंज और निशातगंज इलाकों में जेएनयूआरएम के तहत पांच सौ किलोमीटर सीवर लाइन डाली गई थी. इन इलाकों में 50 हजार से अधिक घरों में सीवर का कनेक्शन करने के लिए 13933.27 लाख मंजूर किए गए थे. इंदिरा नगर, गोमती नगर और फैजाबाद रोड से जुड़े इलाकों में भी 350 किलोमीटर सीवर लाइन डाली गई थी. यहां साढ़े 24 हजार घरों में सीवर का कनेक्शन होना है. जिस पर 7920.50 लाख की योजना को मंजूरी मिली.

लेकिन यह सब घपले-घोटाले की भेंट चढ़ गई. वर्ष 2008 से शुरू हुए सीवर लाइन के काम में जल निगम ने बड़े पैमाने पर गड़बड़ी की. बसपा सरकार और सपा सरकार के अलमबरदारों ने भी इस गंदगी में खूब मुंह मारा. इसका असर यह पड़ा कि ठेकेदारों ने सीवर लाइन तो डाल दी, लेकिन मैनहोल बनाने के दौरान डाली गई बोरियां और मलबे वहीं छोड़ दिए. सीमेंट और कंकरीट के मलबों की सफाई न होने से सीवर लाइनें शुरू होने के पहले ही जाम हो गईं. विडंबना यह है कि जलकल महकमे ने कागज पर सीवर लाइनों का हैंड-ओवर दिखा दिया, जबकि सीवर लाइन आज तक चालू ही नहीं हो पाई.

विकास जन कल्याण सेवा समिति इंदिरा नगर के मुख्य संरक्षक समाजसेवी विजय गुप्ता कहते हैं कि यह राजधानी लखनऊ का दुर्भाग्य है कि 900 करोड़ रुपए फूंकने के बाद भी आज तक सीवर लाइन शुरू नहीं की जा सकी. अकेले इंदिरा नगर के ही करीब 12 लाख उपभोक्ताओं को सीवर लाइन की सुविधा नहीं मिल रही. शहर में गंदगी से बजबजाती नालियों और जलभराव की समस्या आम है. स्वच्छ भारत के राजनीतिक नारे की यही जमीनी असलियत है. विजय गुप्ता ने दीनदयालपुरम तकरोही का हवाला देते हुए बताया कि वहां जब सीवर लाइन बिछाने काम शुरू हुआ, तो सीवर लाइन की निकासी के लिए उचित गहराई नहीं मिल पाई.

इसके बावजूद लाइन डालकर मिट्टी डाल दी गई. अब वहां सीवर लाइन दोबारा उखाड़ने की नौबत है, या उसे छोड़ कर दूसरी सीवर लाइन निर्धारित गहराई में फिर से लगाई जाएगी. झाड़ू लगा कर फोटो खिंचवाने वाले नेताओं को यह गंदगी नहीं दिखती. गुप्ता कहते हैं कि सीवर लाइन शुरू भी नहीं हुई, लेकिन सीवर लाइन के चैंबर्स के प्लास्टर झड़ कर दीवार को नंगा कर चुके हैं. कई जगह इस सीवर लाइन में स्थानीय लोगों ने अनधिकृत रूप से सीवर जोड़कर चैंबर्स को जाम कर दिया है. कई इलाकों में सीवर लाइन बिछने से पहले ही नगर निगम द्वारा सड़क निर्माण कर दिया गया. फिर नई बनी सड़कों को खोद कर सीवर लाइन डाली गई. यह गड़बड़झाला करोड़ों रुपए खाने के लिए किया गया.

स्वच्छता के महा-अभियान का यह हाल है. जेएनएनयूआरएम योजना के तहत तकरीबन डेढ़ हजार किलोमीटर लंबी सीवर लाइन बिछाने का काम जल निगम ने वर्ष 2007 में ही शुरू किया था. इसे 2014 तक पूरा कर देना था. लेकिन जल निगम ने इस काम में घोर लापरवाही बरती. इस लापरवाही के कारण डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) में ही करीब 50 हजार कनेक्टिंग चैंबर्स का प्रावधान नहीं हो सका. जल निगम द्वारा डीपीआर में लापरवाही बरतने के कारण सीवर लाइन का बजट गड़बड़ हो गया. एक आला अधिकारी ने कहा कि जल निगम ने उसी समय सरकार से कनेक्टिंग चैंबर्स का बजट मांग लिया होता, तो यह समस्या नहीं आती. उक्त अधिकारी का कहना था कि परियोजना में तकनीकी खामियों के साथ-साथ लापरवाहियों के कारण योजना के पूरे होने का समय बढ़ता चला गया और देरी के कारण बजट में प्रस्तावित लागत भी बढ़ती रही.

मामला केवल सीवर से फैल रही गंदगी का ही नहीं है. राजधानी लखनऊ से लेकर प्रदेश के किसी भी शहर में जाएं, सड़कों पर कूड़े के अंबार मिलेंगे और गलियां गंदगी से बजबजाती मिलेंगी. जहां नेता झाड़ू लगाने जाते हैं, वहां पर पहले से सफाई कर दी जाती है. अखबार वालों को बुला लिया जाता है और झाड़ू लेकर स्माइल-प्लीज के साथ फोटो खिंच जाती है. जिस तरह आम आदमी पार्टी ने आम आदमी को बेचने की सियासत की उसी तरह भारतीय जनता पार्टी राष्ट्रवाद और स्वच्छता को बेचने की सियासत कर रही है. आम आदमी को भी खुद को बिकवाने और गंदगी में ही मजा लेते रहने की आदत पड़ चुकी है.

वाह ताज नहीं, दाद खाज बोलिए…

उत्तर प्रदेश सरकार के पर्यटन विभाग ने आगरा को पर्यटन की सूची में शामिल नहीं करने की चूक तो की, लेकिन उससे ताजमहल का महत्व कम नहीं हो गया. पर्यटन की दृष्टि से आगरा का महत्व बना रहेगा. लेकिन स्वच्छता की दृष्टि से आगरा की बदनुमा तस्वीर ही सामने है. भ्रष्टाचारी नेताओं-नौकरशाहों और ठेकेदारों ने पूरे स्वच्छता अभियान को अपना चारा बना लिया है. आगरा शहर के कई हिस्सों में सीवर लाइन नहीं बिछने से भीषण गंदगी फैल रही है. बड़ी मात्रा में दूषित जल भूगर्भ में समा रहा है. करोड़ों रुपए खर्च कर जहां सीवर लाइन डाली भी गई, वह सब ध्वस्त और नाकाम हो चुकी है. सीवर लाइन से कनेक्शन ही नहीं किए गए. सीवर का गंदा पानी भूगर्भ में जा रहा है या सड़कों पर बह रहा है. वर्ष 2008 में ही यहां की भीम नगरी और देवरी रोड पर सीवर लाइन बिछाने के लिए 53.36 करोड़ रुपए का बजट स्वीकृत हुआ था. जल निगम ने 63 किलोमीटर लंबी सीवर लाइन बिछाकर जल संस्थान को सौंप भी दी, लेकिन यह सब कागजों पर हो गया. जमीनी असलियत यही है कि अभी तक सीवर लाइन का निस्तारण नहीं हो सका है. जगह-जगह काम अधूरा होने से सीवर लाइनें बंद पड़ी हैं.

सीवेज मास्टर प्लान में आगरा शहर को आठ जोन में बांटा गया था. यमुना एक्शन प्लान और जेएनएनयूआरएम के तहत सीवर लाइनें बनीं. जल संस्थान ने सीवर लाइन जल निगम को हस्तांतरित भी कर दी, लेकिन इन सीवर लाइनों को कनेक्ट करने के लिए कनेक्टिंग चैंबर ही नहीं बनाए गए. लिहाजा, ये चालू ही नहीं हुए. आगरा सीवेज स्कीम फेज-वन में सेंट्रल और ताजगंज जोन में सीवर लाइन, पंपिंग स्टेशन और एसटीपी के लिए 195 करोड़ रुपए का बजट आवंटित हुआ था. सेंट्रल सीवर लाइन के लिए शाहजहां पार्क से पुरानी मंडी मार्ग के बीच कॉमन चैंबर प्रस्तावित हैं. लेकिन ये सीवर चैंबर नौकरशाही के चैंबर में फंस गए हैं.

ताजनगरी में यमुना किनारे बने सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट फेल पड़े हैं. सीवर लाइन नहीं होने से कई इलाकों से गंदगी नालों के जरिए बहती हुई सीधे यमुना नदी में गिर रही है. यह सत्ताधारियों को नहीं दिखता. जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में कहा गया है कि आगरा क्षेत्र का भूगर्भ जल भयानक रूप से प्रदूषित हो चुका है. इससे डेंटल फ्लोरोसिस के साथ-साथ अन्य कई गंभीर बीमारियां फैल रही हैं. यमुना सूखती जा रही है. तालाबों पर बहुमंजिला इमारतें खड़ी हो गई हैं. सीवर और औद्योगिक इकाइयों का गंदा पानी भूगर्भ जल को दूषित कर रहा है. जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने आगरा के 15 ब्लॉकों में 46 जगह से पानी के सैंपल लिए थे.

उसकी जांच में अलग-अलग क्षेत्रों में फ्लोराइड की मात्रा 0.2 से 12.8 मिलीग्राम प्रति लीटर तक पाई गई. मानसून बाद लिए गए 27.4 प्रतिशत नमूनों में यह अधिकतम सीमा 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर से भी अधिक मिली. आगरा के नगला तल्फी, देवरी की गढ़ी, जारुआ कटरा, मुहम्मदाबाद और नगला प्रताप सिंह में डेंटल फ्लोरोसिस के गंभीर लक्षण देखे गए. पट्टी पचगाई में प्रदूषित भूगर्भ जल के चलते हड्डियों की विकृति के कई मामले सामने आए. 46 प्रतिशत नमूनों में क्लोराइड जरूरत से अधिक पाया गया. 11.6 प्रतिशत नमूनों में यह अंतिम सीमा 1000 मिलीग्राम प्रति लीटर से भी अधिक पाया गया. 28 प्रतिशत नमूनों में कैल्शियम जरूरत से अधिक पाया गया.

80 प्रतिशत नमूनों में आयरन की उच्च मात्रा पाई गई. 92 प्रतिशत नमूनों में मैग्नीशियम जरूरत से अधिक पाया गया, यहां तक कि 31.3 प्रतिशत नमूनों में यह अधिकतम सीमा से भी अधिक मिला. 15.7 प्रतिशत नमूनों में नाइट्रेट की मात्रा अधिकतम सीमा 45 मिलीग्राम प्रति लीटर से ज्यादा मिली और 49 प्रतिशत से अधिक नमूनों में सोडियम की मात्रा मानक से अधिक पाई गई. पेट की बीमारियां बढ़ाने वाले टीडीएस की मात्रा भी आगरा के पानी में खतरनाक स्तर पर पाई गई है. मानक के अनुसार एक लीटर पानी में 500 माइक्रोग्राम टीडीएस ही होना चाहिए, जबकि आगरा शहर के पानी में टीडीएस की मात्रा प्रति लीटर पानी में 722 से 1910 माइक्रोग्राम पाई गई है.

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here