कांग्रेस के सामने दूसरा संकट यह भी है कि 2017 में पीडीएफ के कब्जे वाले सात विधानसभा क्षेत्रों के पार्टी कार्यकर्ताओं और पिछले विधानसभा चुनाव के उम्मीदवारों को वह किस आधार पर काम करने के लिए प्रेरित करे. जानकारों का कहना है कि इसी वजह से पार्टी नेतृत्व पीडीएफ विधायकों को कांग्रेस में शामिल करने की कोशिश में था. लेकिन, कैबिनेट मंत्री हरीश चंद्र दुर्गापाल के कांग्रेस में शामिल होने से उनकी विधायकी जाने की आशंका के चलते पार्टी की इस कोशिश को भी पलीता लग चुका है. 

modi-shashप्रदेश की राजधानी देहरादून में दो दिनों तक चले कांग्रेस के चिंतन शिविर में नरेंद्र मोदी और अमित शाह की आक्रामता का भय पूरी तरह छाया रहा. कांग्रेस के दिग्गज नेता पर्दे के पीछे से मुख्यमंत्री हरीश रावत को कमजोर करने की कोशिश करते दिखे. उन्होंने अंतिम दिन कड़ा रुख अपनाते हुए साफ़ कहा कि कांग्रेस छोटे दलों के साथ रहने की अपनी नीति पर कायम रहेगी. हरीश के उक्त बयान ने पीडीएफ के सरकार में बने रहने की बात साफ़ करने के साथ ही विरोधियों की हवा निकाल दी. पीडीएफ को सरकार से बाहर करने और दायित्व बांटने की आवाज़ों से घिरे मुख्यमंत्री रावत आख़िरी दिन बैकफुट से फ्रंटफुट पर आ गए और अपने स्वभाव के अनुसार मोर्चा संभालते हुए नीतिगत बात कहकर सबकी बोलती बंद कर दी.

मंथन शिविर की शुरुआत में एजेंडा सामने रखते हुए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने कहा कि देश में इस वक्त राजनीतिक शक्ति की सरकार है, जो कांग्रेस मुक्त भारत की बात करती है. कांग्रेस मुक्त भारत का मतलब है, गांधी की विचारधारा से मुक्त भारत, जो किसी क़ीमत पर स्वीकार नहीं हो सकता. काबीना मंत्री डॉ. इंदिरा हृदयेश ने सोशल मीडिया में प्रचार में भाजपा से पिछड़ जाने पर अफ़सोस जताया. उन्होंने मध्य वर्ग को कांग्रेस के पक्ष में लाने के लिए सोशल मीडिया पर पार्टी की विचारधारा और नीतियों के प्रचार की ज़रूरत बताई. अनुसूचित जाति एवं जनजाति प्रकोष्ठ के नेताओं का कहना था कि पार्टी इस वर्ग पर ध्यान नहीं दे रही, जबकि यह कांग्रेस का पारंपरिक वोट बैंक है. उपेक्षा की वजह से ही यह वर्ग लोकसभा चुनाव में भाजपा के पक्ष में चला गया. देहरादून के राजपुर रोड स्थित एक होटल में आयोजित उक्त मंथन शिविर में गढ़वाल मंडल के विभिन्न ज़िलों के छह समूहों ने कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव एवं प्रदेश प्रभारी अंबिका सोनी, हरीश रावत, किशोर उपाध्याय और सह प्रभारी संजय कपूर के सामने अपने विचार रखे.
चर्चित कैबिनेट मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत ने कहा कि पीडीएफ को लेकर ़फैसला लेने का यह सही वक्त है. मंथन शिविर के दौरान मीडिया से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि वह टिहरी ज़िले के प्रभारी मंत्री भी हैं. टिहरी से पीडीएफ कोटे के दो मंत्री हैं. उन्हें पता है कि उनके साथ समन्वय स्थापित करने में कितनी दिक्कत आती है और कांग्रेस कार्यकर्ता उनसे कितने संतुष्ट हैं. विधायक गणेश गोदियाल ने भी पीडीएफ विरोधियों के सुर में सुर मिलाया. वहीं कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य द्वारा देहरादून में मौजूद होने के बावजूद चिंतन शिविर में हिस्सा न लेना चर्चा का विषय बना रहा. मुख्यमंत्री रावत पीडीएफ के साथ मजबूती से खड़े नज़र आए. उन्होंने पीडीएफ के मंत्रियों के कामकाज की सराहना करते हुए कहा कि वे अच्छा काम कर रहे हैं. पीडीएफ का साथ छोड़ने का सवाल नहीं पैदा होता. मंथन शिविर से पहले मीडिया से बातचीत में अंबिका सोनी ने कहा कि पीडीएफ को लेकर ़फैसला सरकार और प्रदेश संगठन यानी हरीश रावत और किशोर उपाध्याय को करना है. इस संदर्भ में मुख्यमंत्री रावत का कहना है कि पीडीएफ ने ज़रूरत के वक्त कांग्रेस की मदद की थी. हालांकि, वह यह भी कह चुके हैं कि पीडीएफ को लेकर कांग्रेस आलाकमान ही फैसला लेगा. दरअसल, कांग्रेस के सामने इस समय भरोसे का संकट है. यदि कांग्रेस पीडीएफ से अपना पल्ला छुड़ाती है, तो उस पर यह आरोप लगाना आसान होगा कि वह विश्‍वास के काबिल नहीं है. राजनीति में वैसे भी विश्‍वसनीयता बहुत ज़रूरी होती है. यदि उसने पीडीएफ को छोड़ा, तो भविष्य में होने वाले चुनावों में फिर से समर्थन लेने के हालात पैदा होने पर छोटे दल अथवा निर्दलीय शायद ही उस पर भरोसा कर सकेंगे. कांग्रेस के सामने दूसरा संकट यह भी है कि 2017 में पीडीएफ के कब्जे वाले सात विधानसभा क्षेत्रों के पार्टी कार्यकर्ताओं और पिछले विधानसभा चुनाव के उम्मीदवारों को वह किस आधार पर काम करने के लिए प्रेरित करे. जानकारों का कहना है कि इसी वजह से पार्टी नेतृत्व पीडीएफ विधायकों को कांग्रेस में शामिल करने की कोशिश में था. लेकिन, कैबिनेट मंत्री हरीश चंद्र दुर्गापाल के कांग्रेस में शामिल होने से उनकी विधायकी जाने की आशंका के चलते पार्टी की इस कोशिश को भी पलीता लग चुका है. लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में बह जाने के बाद कांग्रेस ने खुद के ऊपर मंडरा रहे संकट को पहचान तो लिया है, लेकिन उससे निजात पाने के उपाय वह फिलहाल ढूंढ नहीं पा रही है.
उधर, कांग्रेस के 15 विधायकों ने एक बार फिर सरकार के ख़िलाफ़ अपनी ताकत दिखाई है. पीडीएफ विधायक सरवर करीम अंसारी से संबंधित मुख्यमंत्री को संबोधित पत्र की प्रति प्रदेश प्रभारी अंबिका सोनी को सौंपी गई. पत्र में बहुगुणा समर्थकों के अलावा कुछ अन्य विधायकों के भी हस्ताक्षर हैं. उक्त पत्र में विधायक अंसारी के ख़िलाफ़ मीडिया में आए स्टिंग ऑपरेशन की चर्चा की गई है, जिसमें उन्हें रिश्‍वत लेते हुए दिखाया गया. पत्र में इसी का हवाला देते हुए कहा गया है कि इससे कांग्रेस की छवि धूमिल हो रही है. यह पत्र वरिष्ठ विधायक हीरा सिंह बिष्ट ने अंबिका सोनी तक पहुंचाया.

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