यह किसने सोचा था कि सरकारी व्यवस्था से अछूते रह गए लोगों तक ज्ञान की रौशनी पहुंचाने के उद्देश्य से किया गया शिक्षा का निजीकरण फर्ज़ीवाड़े का आधार बन जाएगा. यह रिपोर्ट, निजी विश्वविद्यालयों के नाम पर कुकुरमुत्ते की तरह उगे हुए शिक्षा की दुकानों में से एक की करतूतों की पड़ताल है, जिसकी धन लोलुपता ने देश के हजारों युवक-युवतियों के भविष्य को गर्त में धकेल दिया…
उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद, एक लड़की शिक्षक बनने के अपने सपने को पूरा करने के लिए बीएड करना चाहती है. इसके लिए किसी संस्थान की तलाश की कोशिश में उसका सामना कुछ ऐसे लोगों से होता है, जो उसे घर बैठे बीएड करने का तरीका बताते हैं. दूरवर्ती शिक्षा को अपने लिए मुफीद मानकर वो लड़की अपना नामांकन कराती है और पढ़ाई शुरू करती है. पूरे कोर्स के दौरान उससे करीब एक लाख रुपए बतौर फीस वसूले जाते हैं. इसे अपनी अध्यापक की नौकरी के लिए जरूरी मानकर वो लड़की किसी भी तरह से फीस का भुगतान करती है.
खुद से पढ़कर परीक्षा देने और पास होने के बाद उसे डिग्री मिल जाती है. इसी बीच उसकी शादी होती है और लड़की पति के साथ दूसरे राज्य में सेटल हो जाती है. कुछ समय बाद वहां अध्यापक के पद के लिए वेकेंसी निकलती है, जिसके लिए अपनी बीएड की डिग्री के साथ वो लड़की भी अप्लाई करती है. उसके बाद, डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन के दौरान उसे बताया जाता है कि जिस बीएड की डिग्री के सहारे वो नौकरी पाना चाहती है, वो फर्जी है. उस लड़की के पांव तले जमीन खिसक जाती है, जब उसे पता चलता है कि जिस डिग्री के सहारे वो अपने सपने के करीब पहुंच रही थी, वो दरअसल रद्दी का एक टुकड़ा मात्र है.
यह न तो एक कहानी है, न ही इसके पात्र काल्पनिक हैं और न ही यह किसी एक लड़की की व्यथा कथा है. नाम सार्वजनिक होने पर खुद भी फंसने के डर के कारण गुमनाम होकर अपने साथ हुए धोखे की कहानी बताने वाले ऐसे अनेकों लड़के-लड़कियां हैं, जो फर्जी डिग्री के खेल का शिकार हुए और अब अपने भविष्य पर आंसू बहाने को मजबूर हैं. ऐसा भी नहीं है कि यह फर्जीवाड़ा किसी मामूली संस्थान ने किया है, लाखों युवक-युवतियों के भविष्य को गर्त में धकेलने की यह करतूत उस विश्वविद्यालय की है, जिसका नाम देश के महान वैज्ञानिक सीबी रमन के साथ जुड़ा है. लेकिन अफसोस कि इसके कर्म नीच से भी नीचे हैं. पिछले कई साल से चल रहा फर्जीवाड़े का यह मामला अब पुलिस तक पहुंच चुका है. उच्च शिक्षा विभाग के जानकारों से रायशुमारी के बाद बिलासपुर पुलिस ने 14 जून को कुलपति संतोष चौबे, तत्कालीन कुलसचिव शैलेश पांडेय, कुलसचिव गौरव शुक्ला और उप कुलसचिव नीरज कश्यप के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत अपराध दर्ज किया है.
यूं हुआ खुलासा
फर्जीवाड़े का हब बने सीबी रमन विश्वविद्यालय में भले ही अब एफआईआर दर्ज हुआ है, लेकिन इसका पता 2013 में ही चल गया था कि शिक्षा के नाम पर किस तरह से यह संस्थान धंधा कर कर है. 2013 में जिला पंचायत बिलासपुर द्वारा बिलासुपर और मंगोली में शिक्षक पंचायत ग्रंथपाल की नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी किया गया था. इस पद के लिए बड़ी संख्या में आए आवेदनों में से 40 आवेदनों में सीवी रमन विश्वविद्यालय की बी.लीब. की अंकसूची लगाई गई थी. निजी विश्वविद्यालय की इस अंकसूची पर जब अन्य आवेदकों ने आपत्ति जताई, तो 27 अप्रैल को बिलासपुर पंचायत ने इन 40 अंकसूची के सत्यापन के लिए सीवी रमन विश्वविद्यायल को पत्र लिखा.
जवाब में विश्वविद्यालय ने स्वीकार किया कि ये अंकसूची उन्हीं के यहां से जारी हुई हैं. विश्वविद्यालय की यह स्वीकारोक्ति ही एक तरह से फर्जीवाड़े के खुलासे का आधार बनी, क्योंकि ये सभी अंकसूची उस शैक्षिक वर्ष में जारी हुई थीं, जब विश्वविद्यालय को मान्यता भी नहीं मिली थी. इस विश्वविद्यालय की मान्यता की तहकीकात करें, तो छत्तीसगढ़ के राजपत्र के अनुसार, ऑर्डीनेंस क्रम-68 के पेज क्रमांक-876 में 10 जून 2011 को इस विश्वविद्यालय को बी.लीब. पाठयक्रम की अनुमति दी गई. राजपत्र में इसका भी स्पष्ट उल्लेख है कि यह अनुमति शैक्षिक वर्ष 2011-12 के लिए थी.
लेकिन इससे पूर्व ही शैक्षिक वर्ष 2010-11 के लिए विश्वविद्यालय ने बी.लीब. की अंकसूची बांट दी थी. दूरवर्ती शिक्षा के मामले में भी इस विश्वविद्यालय का फर्जीवाड़ा सामने आया. दूरवर्ती शिक्षा के लिए मान्यता मिलने से पहले ही इस विश्वविद्यालय ने छात्रों को अंधेरे में रखकर उन्हें अपने यहां प्रवेश दिया और फर्जी डिग्रियां बांट दी. फर्जीवाड़े का यह सारा खेल दरअसल होलोग्राम का है. विश्वविद्यालय द्वारा जारी की जाने वाली असली अंकसूची पर होलोग्राम लगा होता है, जो फर्जी अंकसूची पर नहीं होता. इस पूरे फर्जीवाड़े में विश्वविद्यालय के शीर्षस्तर की भूमिका सामने आई आईएएस बाबूलाल से हुई पूछताछ में. एक अन्य अनियमितता के मामले में गिरफ्तार हुए छत्तीसगढ़ के पूर्व प्रधान सचिव बाबूलाल ने पूछताछ में यह बात कबूली थी कि विश्वविद्यालय के इस फर्जीवाड़े में पूर्व रजिस्ट्रार शैलेश पांडेय की भी भूमिका है.
फर्ज़ीवाड़े से बनाई अकूत संपत्ति
कोई शिक्षण संस्थान अनियमितताओं के जरिए किस तरह से शिक्षा को बाजार का उत्पाद बना देता है, इसका उदाहरण है सीबी रमन विश्वविद्यालय. वर्तमान समय में यह विश्वविद्यालय एक तरह से फर्जी अंकसूची और डिग्री का गढ़ बना हुआ है. देशभर के करीब 20 हजार सूचना केंद्रों के जरिए यह विश्वविद्यालय फर्जी अंकसूची बेचने का करोड़ों का कारोबार कर रहा है. एक अनुमान के मुताबिक इसका सालाना 600 करोड़ का कारोबार है. अब तक इस विश्वविद्यालय के फर्जीवाड़े पर पर्दा था, इसका एक बड़ा कराण लोग यह बताते हैं कि यह विश्वविद्यालय स्थानीय अखबारों को करोड़ों का विज्ञापन देता है.
यही कारण है कि ज्यादातर अखबार इसके खिलाफ खबर नहीं छापते थे. लेकिन जब इसकी गूंज विधानसभा तक पहुंची तब मामला छुप नहीं सका और अंतत: मामले में एफआईआर दर्ज हुआ. अब तक की जांच और खुलासों में जो सामने आया है, उसके अनुसार इस विश्वविद्यालय का सबसे बड़ा फर्जीवाड़ा दूरवर्ती शिक्षा को लेकर है. देशभर में फैले अपने 20 हजार सूचना केंद्रों के जरिए यह दूरवर्ती शिक्षा की मान्यता मिलने से पहले ही डिग्रियां बेच रहा है. जून 2008 में इस विश्वविद्यालय को मान्यता मिली और उसके बाद से ही इसने बीएड, बीएससी, एमएससी, बीलीब, एमबीए और एमएसडब्ल्यू जैसे 31 पाठ्यक्रमों के जरिए दूरवर्ती शिक्षा शुरू कर दी.
विश्वविद्यालय की इस अनियमितता ने किस तरह से छात्रों का भविष्य बर्बाद किया यह ऊपर के उदाहरणों से समझा जा सकता है. विश्वविद्यालय के फर्जीवाड़े का आलम यह है कि पहले तो इसने बिना मान्यता के डिग्रियां बांटी और मान्यता मिलने के बाद भी उन विषयों की डिग्रियां बेचना जारी रखा, जिनके लिए मान्यता नहीं मिली थी. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के पत्र क्रमांक- 1317-1321 यूजीसी/डीईबी/ सीएचएच/सीबी रमन 2013, दिनांक 27 अगस्त 2013 में सीबी रमन विश्वविद्यालय को दूरवर्ती शिक्षा के तहत 2013-14 और 2014-15 के लिए 31 पाठ्यक्रमों की मान्यता मिली. जिन 16 पाठ्यक्रमों के लिए विश्वविद्यालय को मान्यता नहीं दी गई, उनमें एमएससी केमेस्ट्री भी शामिल है. लेकिन इसके बावजूद विश्वविद्यालय द्वारा एमएससी केमेस्ट्री की डिग्री बांटी गई है.
शिकायत के बाद भी नहीं हुई कार्रवाई
फर्जीवाड़े वाले इस विश्वविद्यालय की करतूतोें की कहानी राज्य की सीमा भी पार कर गई और आधिकारिक रूप से शिकायत मिलने के बाद भी इसपर कोई कार्रवाई नहीं की गई. अधिकारी कान में तेल डालकर सोते रहे और विश्वविद्यालय को छात्रों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ करने का मौका उपलब्ध कराते रहे. जब इस विश्वविद्यालय के फर्जीवाड़े की डिग्री गुजरात में पहुंची, तो गुजरात सरकार ने न सिर्फ सीबी रमन विश्वविद्यालय बल्कि छत्तीसगढ़ सरकार को भी इससे अवगत कराया.
छत्तीसगढ़ सरकार के जिस कानून के तहत सीवी रमन विश्वविद्यालय की स्थापना हुई है, वो विश्वविद्यालय को राज्य से बाहर सेंटर खोलने की अनुमति नहीं देता, जबकि सीबी रमन विश्वविद्यालय के सेंटर के रूप में अहमदाबाद के शांति बिजनेस स्कूल में बैचलर ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन कोर्स चलाया जा रहा था. जब इसका खुलासा हुआ, तो स्थानीय प्रशासन ने एक कमेटी बनाकर इसकी जांच कराई. कमेटी ने अपनी जांच में शांति बिजनेस स्कूल की मान्यता को फर्जी पाया.
इसके बाद, गुजरात सरकार ने छत्तीसगढ़ सरकार से सीवी रमन यूनिवर्सिटी के खिलाफ कार्रवाई करने की गुजारिश की. इसे लेकर गुजरात सरकार के उच्च शिक्षा विभाग के तत्कालीन प्रमुख सचिव पंकज जोशी ने 10 मई 2016 को छत्तीसगढ़ सरकार के उच्च शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव बीएल अग्रवाल को विभागीय पत्र लिखा. इस पत्र में उन्होंने सीबी रमन विश्वविद्यालय के अंकसूची फर्जीवाड़े की जांच कराने की बात कही थी. लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार के अफसरों ने इस पत्र और इसकी गंभीरता को नजरअंदाज कर दिया. इस मामले में पीड़ित छात्रों ने राज्यपाल से लेकर मुख्यमंत्री तक का दरवाजा खटखटाया, लेकिन उन्हें अब तक इंसाफ नहीं मिला. प्रधानमंत्री को भी इस मामले से अवगत कराया गया है.
मामले ने लिया सियासी रूप
पिछले साल जब छत्तीसगढ़ विधानसभा में सीवी रमन विश्वविद्यालय के इस फर्जीवाड़े पर हंगामा हुआ, तभी से लग रहा था कि यह मामला सियासी रूप से तूल पकड़ेगा. इसके सियासी रूप लेने का एक मुख्य कारण यह भी है कि वर्तमान समय में भाजपा सत्ता में है और इस मामले में मुख्य आरोपी कांग्रेस नेता शैलेश पांडेय हैं. जिन दो विधायकों ने इस मामले को लेकर सदन में सवाल किया था, वे भी भाजपाई थे. हाल में इस मामले में एफआईआर दर्ज होने के बाद इसे लेकर सियासत और तेज हो गई है. गौर करने वाली बात यह है कि अब कांग्रेस नेता भी अपने नेता शैलेश पांडेय से कन्नी काटने लगे हैं और उनके विरोध में खड़े हो रहे हैं. पिछले दिनों युवा कांग्रेस के पदाधिकारियों ने रैली निकालकर विरोध प्रदर्शन किया.
कोटा ब्लॉक के युवक कांग्रेस अध्यक्ष एवं पूर्व पार्षद के नेतृत्व में निकाली गई इस रैली में युवा कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने हाथ में तख्तियां थाम रखी थीं, जिनमें सीवी रमन यूनिवर्सिटी में चल रहे फर्जीवाड़े को बंद करने और छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ न करने से संबंधित नारे लिखे हुए थे. इस रैली में शामिल लोगों के अलावा अन्य स्थानीय कांग्रेसी अंदरखाने शैलेश पांडेय के खिलाफ एकजुट होने लगे हैं. कांग्रेसी कार्यकर्ता यह बात भलीभांति समझ रहे हैं कि विश्वविद्यालय के फर्जीवाड़े से शैलेश पांडेय का नाम जुड़ा होना कांग्रेस की सेहत पर भी बुरा असर डाल सकता है.
यही कारण भी है कि अभी से मांग होने लगी है कि कोटा से शैलेश पांडे को कांग्रेस की टिकट न दी जाए. इधर, एफआईआर दर्ज होने के बाद शैलेश पांडेय इसे विरोधियों की साजिश बता रहे हैं. 20 जून को प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए उन्होंने अपना पक्ष रखा, जिसमें उन्होंने कहा कि ‘शैलेश पांडेय गलत काम किया होगा, तो जेल जाने से नहीं डरेगा, किसी के इशारे पर दर्ज एफआईआर से शैलेश पांडेय डरने वाला नहीं है, सीबीआई बुला लीजिए, जांच कराइए, किसी जांच या एफआईआर से मैं डरने वाला नहीं हूं, गलत काम वाले अपनी जमीन हिलते देख झूठी एफआईआर के जरिए मुझे फंसाने का प्रयास कर रहे हैं.’