समीक्षा

बिल्ली नहीं दीवार :एक पुनरावलोकन

(हरि भटनागर के कहानी संग्रह पर एक दीर्घ टिप्पणी)

ब्रज श्रीवास्तव

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“संगीर और बस्ती के लोग और नाम में क्या रखा है के बाद समकालीन भारतीय समाज की कुछ और कैफि़यतों को प्रस्तुत करता हुआ हरि भटनागर का नवागत कहानी संग्रह है बिल्ली नहीं दीवार। जिन विषयों दृश्यों और यथार्थों को सामने लाने की मौलिक और प्रभावी पहल कहानीकार ने अपनी आरंभिक रचनाओं में की थी लगभग वे ही विषय,दृश्य और यथार्थ अपने विस्तृत आकार के साथ इस संग्रह में मौजूद हो सके हैं.

कहानी का जो परिष्कृत रूप इस दौर के पाठकों को पढ़ने के लिए मिल रहा है।वस्तुतः इसने अपनी यात्रा में गांवो के अलावों की किस्सागोई की रसिकता और दादी नानी की कथाओं की कौतुकता के पड़ावों को भी पार किया है

कहानी की आधुनिक पहचान बनी प्रेमचंद की कहानियों से जब मूल्यों की परख और हर तरह के शोषण की बात उन्होंने अपनी रचनाओं में की तब ये कहानियां हमारी धरोहर बनीं।फिर यही कहानी, शोषण,असहिष्णुता, सामाजिक अन्याय
और स्त्री-पुरुष संबंधों को अपने केन्द्र में रखते हुए अज्ञेय ,यशपाल, जैनेन्द्र कुमार आदि कथाकारों के रास्ते यह हमारे दौर के महत्वपूर्ण कथाकार हरिभटनागर की कलम के सहारे यहाँ आ रही है.

हरि भटनागर की संवेदना प्राय: निम्न मध्यम और मेहनतकश वर्ग के इंसानी चरित्रों के पास आकर ज्यादा पिघलती है। उनकी कहानी के पात्र उनके हिस्से में आए जीवन संघर्ष को उसी स्थिति में ढोते हैं। उन पात्रों का सौंदर्य बोध अलग होता है और उनका अपना स्वप्निल संसार होता है।
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उनके यहाँ जहाँ सामाजिक परंपराओं को ढोने की व्यथा का करूण दृश्य दिखाई देता है । व्यक्ति के द्वंद अंतर्द्वंद्व, सामाजिक अन्याय और यथार्थ चेतना के भी दर्शन होते हैं। हरि की कहानियों के शरीर की संरचना में स्वाभाविकता के जिज्ञासा के, घटना की जीवंतता के, पात्रों के मनोविश्लेषण के, और संवाद के अवयव उचित अनुपात में पाए जाते हैं जिनके प्रभाव से कहानियों में कथारस का प्रादुर्भाव हो जाता है। वे जिन पात्रों को लेकर जाते हैं. उन पात्रों की मनोविज्ञान से वे भलीभांति वाकिफ़ हुआ करते हैं। कई बार वे कुछ बिंबों और भाषिक बुनावट से कहानी में काव्य संवेदना भी उपस्थित करते हैं।

इस संग्रह की पहली कहानी है हुलिया- जो मोटर गैराज में काम करने वाले एक किशोर के संघर्ष और सपनों पर केन्द्रित है। इस किशोर के अंतरंग को कहानी में खोलना ही कहानीकार का टास्क रहा जो कहानी का प्राणतत्व भी बन जाता है।

कस्बों में मध्यम वर्ग के जीवन यापन का हूबहू चित्रण करती कहानी सामूहिक नरसंहार” दरअस्ल भिन्न मानसिकता के लोगों का भी मजेदार चित्रण करती है। इसमें कहानी कार का कौशल ज्यादा परिलक्षित होता है।जब वह लड़ाकू औरत के पति को अनोखे अंदाज में से सामने लेकर आते हैं।

भारतीय समाज का विद्रूप है भिखारी वर्ग ‘खोट कहानी में भिखमंगी को प्रवृति के रूप में स्थापित होने की चिंता है. इस में एक भिखारिन लड़की सब कुछ दिये जाने के आश्वासन के बावजूद अपना रिरियाना नहीं छोड़ती।

तमाम संघर्षों और कठिनाइयों का सामना करते हुए आदमी अपने जीवन में कोमलता और सौन्दर्य से ही ऊर्जा पाया करता है। निम्न तबके के एक दंपति के प्रेम में रंगी कहानी फाख़्ता मन को छू जाती हैं,।

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कुछेक मनोवगो और मानव स्वभाव के प्रकार को कुशलता से व्यक्त करती कहानी है”जंग” बहुत कुछ प्रतीकों के मार गय से कहते हुए चिरोटे और चिरैया इस कहानी में मानतीय आग्रहों की अपने तरह से कलई खोलते हैं,

“बजरंग पांडे के पाड़े” कहानी में गांव में मानव जीवन में जिस महत्व से पशु पक्षी मौजूद होते हैं उसे बेहतर ढंग से चित्रित किया गया है। आर्थिक परिस्थितियों में डोलते बजरंग पांडे अपने प्रिय पाड़े को भारी मन से बेच देते हैं तो बाद में दूसरे पाड़े को संयोग से मिलता है जहां उसे बेतरह सताया जा रहा है। इस कहानी में फिर कथाकार पाड़ों के बीच के संवादों के प्रभावी तरीके से व्यक्त करते हैं ।

‘बदबू’ कहानी में शहर के मोहल्ले में रहते हुए आदमी की प्रवृत्तियों के बारे में और उनके आत्मकेन्द्रित जीवन की बानगी है।

शीर्षक कहानी बिल्ली नहीं दीवार में दो परिवारों की लड़ाई में संप्रदाय में लाकर एक स्थिति दर्शाई गई है। जहां एक बिल्ली का बच्चा और छोटी बच्ची अपनी मासूमियत से स्थिति को बदल देती है।

मजदूर महिलाओं के जीवन में सदैव गुजर-बसर तक का आर्थिक संकट फलकता रहता है जिसे पाटने के लिए वे उच्च मध्यवर्ग के परिवारों में बर्तन साफ करने का काम किया

करती हैं। नशा हिरन कहानी में ऐसे ही परिवार के मालिक की पुरुष प्रवृति का सहज जिक्र है जो कामवाली बाई के सौन्दर्य से आकर्षित होकर उसे रिझाने के लिए कई उपाय करता है वह उसके हृदय में स्थान बनाकर उसके संपर्क में आना चाहता है। लेकिन वह तब निराश होता है जब वह महिला उसके सामने समर्पित तो हो जाती है लेकिन रूपयों का हिसाब चुकता करने के लिए बिल्कुल संवेदनहीन तरीके से।यह स्थिति देखकर मालिक का नशा हिरन हो जाता है

कहना चाहता हूं कि हरि भटनागर की कहानियां हमारी स्मृति में जगह बनाती है क्योंकि उनमें अछूते विषयों को मार्मिकता के डील किया जाता है। उनमें मजदूर वर्ग के शोषण का खालिस नारा नहीं है बल्कि उनमें उनकी जीवन शैली को सामने लाया जाता है। उनकी कहानियों में कोई महानायक नहीं होता जो किसी आदर्श की हिमायत कर रहा हो बल्कि उनमें जो मुख्य पात्र होता है। उसका ही संघर्ष और स्वभाव हमारे सामने एक सचाई को लाकर पेश करते हैं। उनकी कहानियों में घटनाओं का शोर पैदा करता हुआ ज़िक्र नहीं संयत आवाज़ में आगे बढ़ती हुई एक कथागीतिका होती है। कहानी के अन्य तत्वों की तुलना में हरि शिल्प पर और भाषा पर ज्यादा ध्यान देते हैं इसीलिए उनकी कहानियों की तकनीक भी हमें लुभाती है। ऐसी तकनीक जो इस समय की तमाने जटिलताओं को कहन के अंदाज़ में अभिव्यक्ति देने में सफल होती है।

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पुस्तक:बिल्ली नहीं दीवार
कथाकार:हरि भटनागर
प्रकाशक:आधार प्रकाशन

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