farmerschildrenन सियासत का सलीका, न बोलने की समझ, न नेतृत्व वाले गुण और न ही नमकहलाली की नियत! यही निचोड़ है बुंदेलखंड के सियासतदानों की. चुनावों में तो ये बहु-रूप धारण कर जनता को लुभाते हैं, लूटते हैं और उन्हें रोने, बिलखने को छोड़ कर निकल लेते हैं. बुंदेलखंड की राजनीतिक ज़मीन ऐसे ही तमाम लहू-चूसक नेताओं से भरी पड़ी है. झांसी से लेकर चित्रकूट तक और सत्ता से लेकर विपक्ष तक हर जगह और कमोवेश हर दल में ऐसे चेहरों की भरमार है, जो मुखौटे बदल-बदल कर वर्षों से यहां की भोली-भाली जनता को छलते आए और आज मरणासन्न बुंदेलखंड में उन्हें लोगों की फिक्र नहीं. उन्हें चिंता है तो बस अपनी राजनीति को किसी तरह जिंदा करने का जुगाड़ करने की.

बुंदेलखंड की बदहाली के वैसे तो अनगिनत कारण हैं, लेकिन जो वजह सबसे अहम और बड़ी है, वह है यहां की कमजोर राजनीति और गैर जिम्मेवार नेता. सूबे के अन्दर वन एवं खनिज में अव्वल स्थान रखने के बाद भी आज यह क्षेत्र व्यापारिक तरक्की के मामले में शून्य पर है. आज यहां न कोई बड़ा उद्योग है और न ही कोई ऐसे श्रोत जिनको रोजगार के लिहाज से पर्याप्त कहा जा सके. आजादी से लेकर अब तक यहां जो तरक्की हुई उसका स्तरहीन प्रतिशत बुंदेलखंड की कमजोर राजनीति को उजागर करता है. हालत यह हो गई कि राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान रखने वाला बुंदेलखंड आज अपनी बदहाली और विद्रूप के लिए जाना जा रहा है. वाकई बुंदेलखंड की राजनीति ही यहां के लिए अभिशाप बन गई. चुनावी मेलों में जनता के सामने शेर की तरह गरजने वाले नेता सदन में पहुंचकर भीगी बिल्ली बन जाते हैं.

आजादी से अब तक इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले नेताओं में से कुछ एक को यदि अलग कर दें तो रिकॉर्ड इस बात के गवाह हैं कि ज्यादातर ने अपने समूचे कार्यकाल में सदन के अंदर क्षेत्र के कल्याण के लिए मुंह तक नहीं खोला. विधानसभा हो या विधान परिषद, राज्य सभा हो या फिर देश का सर्वोच्च सदन कमोबेश हर जगह पर बुंदेलों की नुमाइंदगी करने वाले नेताओं की भूमिका शून्य ही रही है. यदि किसी अन्य माध्यमों से बुंदेलखंड को लेकर सदनों में कोई मुद्दा गर्म भी हुआ तो इन उदासीन माननीयों के ठंडे रवैये के कारण वह ठंडे बस्ते में ही दफ्न होकर रह गया.

बुंदेलखंड के इन कथित माननीयों की योग्यता को आइना दिखाते ऐसे तमाम उदाहरण मौजूद हैं जो उनकी नीयत और नीतियों पर सवाल खड़े करते हैं. झांसी से वर्तमान सांसद और केंद्र सरकार में बुंदेलखंड का प्रतिनिधित्व करने वाली जल संसाधन विकास मंत्री उमा भारती हों या फिर पूर्व की केंद्र सरकार में मंत्री रह चुके प्रदीप जैन आदित्य या फिर गंगाचरन राजपूत, अशोक सिंह चंदेल, शिवकुमार पटेल, चन्द्रपाल यादव, भैरोप्रसाद मिश्रा, राजनारायण बुधौलिया और पुष्पेन्द्र सिंह सरीखे सांसद, कमोबेश ये सभी नेता इस क्षेत्र की बदहाली के लिए जिम्मेवार हैं. समय-समय पर इस क्षेत्र से निर्वाचित होते आए केंद्र की राजनीति में सक्रिय इन सभी जन प्रतिनिधियों की जाति, ज़हनियत और शरीरिक बनावट में भले फर्क रहा हो पर इनकी नीयत एक जैसी ही रही है. आजादी से लेकर अब तक हुई इस क्षेत्र की भयंकर उपेक्षा केंद्रीय राजनीति के इन मठाधीशों की नीयत उजागर करने के लिए काफी है.

भाजपा की फायर ब्रांड नेता उमा भारती और कांग्रेस नेता प्रदीप जैन को अलग कर दें तो बाकी सारे सांसद लोकसभा की शोभा तो बढ़ाते रहे पर किसी में कुछ बोलने का माद्दा नहीं दिखा. राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो कुछ बुंदेली सांसद जहां अपने आपराधिक इतिहास को छिपाने के लिए समूचे कार्यकाल में चुप्पी साधे रहे, तो वहीं कुछ को पांच साल तक यही नहीं मालूम चला कि सदन में कैसे और कब बोला जाता है. जनता को विकास का लॉलीपाप देकर लोकसभा में पहुंचने वाले यह सांसद सदन में भले ही कुछ न कर पाए हों पर उन्होंने अपने क्षेत्र में जनता को पलीता लगाने में खूब कीर्तिमान स्थापित किया. कहीं लोगों की जमीनें हड़पीं तो कहीं गरीब जनता के विकास के लिए मिली निधि ही डकार ली.

सदन में अपनी बात न रखने और क्षेत्र के विकास को लेकर निष्क्रियता बरतने जैसे मामले में सांसदों के साथ-साथ विधायक भी पीछे नहीं रहे हैं. पिछले तीन दशक का इतिहास खंगाल कर देखें तो यहां से निर्वाचित विधायकों की असलियत स्वतः खुल जाएगी. इस समयावधि में विधायक बने अधिकांश जनप्रतिनिधियों का बस एक ही प्रयास रहा, खुद के विकास का. जिस प्रकार इनके द्वारा पेट्रोेल पम्प और बड़ी-बड़ी एजेंसियां हथियाई गईं तथा जिस तरह बेशकीमती जमीनों पर कब्जा कर एवं अवैध खनन के सहारे तरक्की हासिल की गई, वह जनता के प्रति इनकी नमकहलाली साबित करने के लिए काफी है. सूबे में कांग्रेस शासन जाने के बाद तो यह लूट अपने चरम पर पहुंच गई. आंकड़े बताते हैं कि जब-जब प्रदेश में सपा और बसपा सत्ता पर काबिज हुई, इनके स्थानीय नुमाइंदों ने दिल खोलकर जनता को लूटा. उसी जनता का लहू पीया जिसने इन्हें विधानसभा तक पहुंचाया.

बांदा में बसपा शासनकाल की सुर्खियां बन चुका भगवानदीन यादव भूमि विवाद रहा हो या फिर सपा के जमाने में चर्चा बटोरते झांसी जनपद के वे दो भूमाफिया माननीय जो मुख्यमंत्री के स्वजातीय भी हैं और बेहद कृपापात्र भी! बताते हैं कि यहां सपा के राज्यसभा सदस्य चंद्रपाल यादव और गरोठा के सपा विधायक दीपनारायण को बुंदेलखंड के खनन माफिया की महिमामंडित पहचान मिली हुई है. बीते दिनों सोशल मीडिया में वायरल हुआ वह ऑडियो इस कथन की पुष्टि करता है जिसमें राज्यसभा सांसद चंद्रपाल यादव गुलाब सिंह नामक अधिकारी को बालू से भरा ट्रक छोड़ देने के लिए किस तरह धमका रहे थे.

जनता के प्रति जवाबदेही से बचते और खुद की तिजोरियां भरने में यहां कोई नेता किसी से पीछे नहीं रहा है. महोबा की राजनीति में सक्रिय और कभी सपा सरकार में मंत्री पद से नवाजे गए सिद्धगोपाल साहू के बेशुमार क्रशर्स और शानदार शोरूम तथा दल बदलने के लिए प्रसिद्ध गंगाचरन राजपूत की ढेर सारी एजेंसियां इनकी नीयत को ही उजागर करती हैं. बुंदेलखंड की जनता को लूटने का जिक्र हो और नसीमुद्दीन सिद्दीकी, बादशाह सिंह, दद्दू प्रसाद तथा बाबू सिंह कुशवाहा का नाम न आए यह संभव नहीं. कभी आर्थिक लिहाज से बेहद साधारण दिखने वाले इन नेताओं ने जिस तेजी से कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ीं उसे शब्दों में बयान कर पाना मुमकिन नहीं है.

हालांकि जिस बुंदेली जनता को छलकर ये राजनीति के शिखर पर पहुंचे उसी जनता ने इनमें से कई को हाशिए पर भी ला दिया. कभी बुंदेलखंड की राजनीति के अहम किरदार रहे कुछ नेता अब उस राजनीतिक जमीन को हासिल करने के लिए फिर नित नए ढोंग कर रहे हैं जो उन्होंने अपनी करतूतों के चलते खो दी है. ऐसे नेताओं की लिस्ट तो बहुत लम्बी है पर जो सुर्खियों में बने हैं, उनमें पूर्व सांसद गंगाचरण राजपूत, आशोक सिंह चंदेल पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा, दद्दू प्रसाद और बादशाह सिंह प्रमुख हैं. हालांकि बाबू सिंह कुशवाहा के पास कुछ जनाधार अभी भी शेष बताया जाता है लेकिन अन्य सभी का जनाधार पोपला हो चुका है.

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