समाज हो, संगठन हो अथवा फिर सरकार, वरिष्ठ नागरिकों के प्रति किसी का भी रवैया संवेदनशील नज़र नहीं आता. उनके प्रति उपेक्षा का यह भाव संवेदना को उद्वेलित करने वाला है. जीवन के अंतिम पड़ाव पर पहुंचे लोगों के संबंध में हम अपना दायित्व क्यों भूल जाते हैं?
सरकार वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल के लिए नीतियां और कार्यक्रम बनाने के क्रम में 80 वर्ष की अवस्था पार कर चुके बुज़ुर्गों को पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर देती है. वह सभी बुज़ुर्गों को एक समान समूह में रखकर ही उनकी समस्याओं को देखती है. जबकि उम्र के आठवें दशक के पार ज़िंदगी जी रहे लोगों की सामाजिक, आर्थिक, भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भिन्न होती हैं. सरकार ने उनकी विशिष्ट ज़रूरतों और बाधाओं को ध्यान में रखकर कोई भी कार्यक्रम कार्यान्वित नहीं कर रखा है. जबकि वियना इंटरनेशनल प्लान ऑफ एक्शन 1982 में इस तथ्य का स्पष्ट उल्लेख है कि बुज़ुर्गों के लिए, ख़ासकर वे बुज़ुर्ग जो एक निश्चित उम्र सीमा को पार कर चुके हैं, नीतियां और कार्यक्रम बनाने में उनकी ज़रूरतों का अलग से ध्यान रखा जाएगा. जबकि बुज़ुर्गों के लिए मैड्रिड इंटरनेशनल प्लान ऑफ एक्शन 2002 अस्सी से ऊपर के बुज़ुर्गों की ज़रूरतों की परवाह नहीं करता. बावजूद इसके कि उनकी ज़रूरतें 60 से 79 वर्ष उम्र समूह की ज़रूरतों से का़फी अलग होती हैं. बुजुर्गो का यह समूह आर्थिक ज़रूरतों के लिए दूसरों पर ज़्यादा निर्भर है. सामाजिक रूप से ज़्यादा कटा हुआ है, मनोवैज्ञानिक रूप से ज़्यादा दमित है और इन्हें सेहत संबंधी एवं व्यक्तिगत देखभाल की ज़रूरत दूसरों से कहीं ज़्यादा होती है. ये अकेलापन महसूस करते हैं और चाहते हैं कि उनकी देखरेख करने वाले एवं अन्य दूसरे लोग उनके पास बैठें तथा ज़्यादा से ज़्यादा व़क्त व्यतीत करें. उन्हें दूसरों से अलग कुछ ख़ास तरह के भोजन की ज़रूरत होती है. जबकि गृहिणियां इनके लिए अलग से खाना बनाने का व़क्त न होने का रोना रोती हैं. इस परिदृश्य में उनकी जो विशेष ज़रूरतें समझ में आती हैं, वे सामान्य बुज़ुर्गों जिन्हें हम 60 वर्ष से ज़्यादा और 80 वर्ष से कम उम्र का मानते हैं, के लिए तैयार नीतियों और कार्यक्रमों के पैमाने पर सही नहीं बैठती हैं. जराविज्ञान अध्ययन केंद्र (सेंटर फॉर जेरेंटोलोजिकल स्टडीज) त्रिवेंद्रम के अध्यक्ष डॉ. पी के बी नायर कहते हैं कि बुज़ुर्गों के लिए बनी कई योजनाएं जिनमें उनके सक्रिय व उत्पादक ज़िंदगी जीने, रोज़गार व नियोजन के कार्यक्रम बनाए गए हैं, की नीतियां 60 से ज़्यादा व 70 से कम उम्र के युवा बुज़ुर्गों और 70 से ज़्यादा व 80 वर्ष से कम उम्र के बुज़ुर्गो की तुलना में बुज़ुर्गों में भी बुज़ुर्ग लोगों के लिए बहुत मायने नहीं रखती हैं. बुज़ुर्गों में भी जो अति बुज़ुर्ग हैं यानी 80 वर्ष की उम्र पार कर चुके हैं, वे कई लाइलाज बीमारियों से ग्रस्त होते हैं. उन्हें दिखाई कम देता है, उन्हें सुनाई भी कम देता है. उनके जोड़ों में हमेशा दर्द होता रहता है, उनके हृदय में तक़ली़फ रहती है. उनकी याददाश्त कमज़ोर होती जाती है, उनके दांत टूट चुके होते हैं. उन्हें मधुमेह और रक्तचाप उच्च रहने की शिकायत रहती है. जैसे-जैसे उनकी उम्र बढ़ती जाती है, उनका चलना-फिरना तक़ली़फदेह होता जाता है. कई तो बिस्तर से उतर भी नहीं पाते हैं. वे जानलेवा बीमारियों से ग्रसित हो जाते हैं और शारीरिक रूप से अपंग भी होते चले जाते हैं. यहां तक कि बिना छड़ी के सहारे चलने पर वे अक्सर गिर जाते हैं या किसी दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं. अकेलापन, अवसाद, अलग-थलग रहने की मजबूरी, समाज से कट जाना, समुचित देखरेख का अभाव, दुर्व्यवहार और उपेक्षा आदि कुछ ऐसे कष्टदायी कारक हैं, जिनसे वे अवसादग्रस्त रहते हैं और स्वयं को अपमानित महसूस करते हैं.
अस्पतालों में बुज़ुर्गों और ज़्यादा बुज़ुर्गों के इलाज के लिए अलग वार्ड की ज़रूरत है. परिवार द्वारा उनके गहन देखरेख की ज़रूरत बढ़ती ही जा रही है. परिवार के लोगों को चाहिए कि वे बुज़ुर्गों की सही देखरेख के लिए समर्पित केयर टेकर को रखें. अमूमन 60 वर्ष से ज़्यादा, लेकिन 80 वर्ष से कम उम्र के बुज़ुर्ग तो अपनी देखभाल कर लेते हैं, लेकिन 80 वर्ष से ज़्यादा उम्र के बुज़ुर्ग अपनी सामान्य देखभाल भी नहीं कर पाते हैं. 80 वर्ष से ज़्यादा उम्र के बुज़ुर्गों में महिलाओं की संख्या ज़्यादा है. उनमें से क़रीब तीन चौथाई बुज़ुर्ग वैधव्य की ज़िंदगी जी रही होती हैं.
आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि दुनिया में 80 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की तादाद बढ़ती ही जा रही है. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, वर्ष 2006 में 80 वर्ष से ज़्यादा उम्र के बुज़ुर्गों की संख्या जहां 89.4 मिलियन थी, वर्ष 2050 तक इसके 394 मिलियन हो जाने की उम्मीद है. वरिष्ठ नागरिकों के लिए काम करने वाले सरकारी संगठनों और सरकार को चाहिए कि वे संवेदनशील युवाओं को बुज़ुर्गों की समुचित देखभाल के लिए प्रशिक्षित करें, ताकि वे कोई बहाना न बना सकें. इससे पहले कि कोई बुज़ुर्ग इस दुनिया को अलविदा कहे, समाज उसे उचित सम्मान तो दे. यह उसका हक़ है और हमारा दायित्व.