हरियाणा प्रदेश पौराणिक और ऐतिहासिक दृष्टि से बेहद गौरवमयी एवं उल्लेखनीय जगह है। हर जगह के नाम के पीछे कुछ न कुछ कहानी जरुर होती है जिसे बहुत ही कम लोग जानते है ऐसी ही एक जगह है “काला अंब” जहा पानीपत का तीसरा युद्ध लड़ा गया था। इस जगह का नाम एक ऐसे आम के पेड़ के कारण पड़ा है जिसको काटने पर खून निकलता था। ऐतिहासिक नजरिए से देखा जाए तो पानीपत के मैदान पर ऐसी तीन ऐतिहासिक लड़ाइयां लड़ीं गईं, जिन्होंने पूरे देश की तकदीर और तस्वीर बदलकर रख दी थी, ये युद्ध सन् 1526, सन् 1556 और सन् 1761 में लड़े गए थे. पानीपत का तीसरा युद्ध मराठों और मुगलों के बीच लड़ा गया था। मराठों की तरफ से सदाशिवराव भाऊ और मुगलों की ओर से अहमदशाह अब्दाली ने नेतृत्व किया था।
इस युद्ध को भारत में मराठा साम्राज्य के अंत के रूप में भी देखा जाता है। इस युद्ध में अहमदशाह अब्दाली की जीत हुई थी। यहां पर आज ‘काला अंब’ नाम का स्मारक है। अंब पंजाबी का शब्द है। इसका मतलब होता है आम (फल)। ‘काला अंब’ के साथ एक अनोखी बात जुड़ी है। कहा जाता है कि पानीपत के तीसरे युद्ध के दौरान इस जगह पर एक काफी बड़ा आम का पेड़ हुआ करता था।
लड़ाई के बाद सैनिक इसके नीचे आराम किया करते थे। कहा जाता है कि भीषण युद्ध के कारण हुए रक्तपात से इस जगह की मिट्टी लाल हो गई थी, जिसका असर इस आम के पेड़ पर भी पड़ा. रक्त के कारण आम के पेड़ का रंग काला हो गया और तभी से इस जगह को ‘काला अंब’ यानी काला आम के नाम से जाना जाने लगा। कई वर्षों बाद इस पेड़ के सूखने पर इसे कवि पंडित सुगन चंद रईस ने खरीद लिया। सुगन चंद ने इस पेड़ की लकड़ी से एक खूबसूरत दरवाजे को बनवाया, यह दरवाजा अब पानीपत म्यूजियम में रखा गया है।