हिंदी में एक अलंकार है श्लेष अलंकार। ‘नारी बिच सारी है कि सारी बिच नारी है कि नारी ही की सारी है कि सारी ही की नारी है’ । कल लाउड इंडिया टीवी पर अभय दुबे शो का विषय था – ‘क्यों देश का मज़ाक उड़ाया जा रहा है ‘ । श्लेष अलंकार और इस शीर्षक को मिलाइए तो आप पाएंगे कि जो देश में हो रहा है और जो हम देख रहे हैं सब कुछ समझ से परे है। इसे नया भारत भी नहीं कह सकते। इसे राजनीति का बिगाड़ भारत कहिए।कांग्रेस यात्रा का समापन अब हो चुका है । लगता है राहुल गांधी दुविधा में हैं । दाढ़ी काटें या न कांटें? दाढ़ी में नये राहुल हैं दाढ़ी काटते ही पुराने राहुल की छवि में कहीं न आ जाएं। खतरा यही है । यह मोदी बहुत चालाक है। जब दाढ़ी वाले कार्ल मार्क्स जैसे दिखते राहुल को संसद में उनकी पुरानी हैसियत में लौटा सा दिया गया है तो अब क्या हो । राहुल गांधी बेबस से नजर आते हैं। श्लेष अलंकार को याद कीजिए और वर्तमान की राजनीति को । तो आप देखेंगे कि सारी बहसें इस बात पर जाकर ज्यादा टिक गयी हैं कि राहुल या कांग्रेस मोदी के ‘कवच’ को भेद पाएंगे या नहीं। बहुत मुश्किल है, बहुत ही मुश्किल है। लोग राहुल गांधी में ही खोट देख रहे हैं कि राष्ट्रपति के अभिभाषण पर राहुल गांधी क्या बोले – अडानी, अडानी और सिर्फ अडानी। कोई यह नहीं पूछता कि मोदी राष्ट्रपति के अभिभाषण पर क्या बोले ।‌ जरूर इस बात पर चर्चा होती है कि क्यों मोदी हमेशा पिछले साठ साल और नेहरू और इंदिरा के अलावा 2014 से पहले के दस सालों तक ही सिमट कर रह जाते हैं । दरअसल मोदी अपनी रणनीति में इतने आगे निकल चुके हैं कि विपक्ष उनकी चाल को कभी समझ ही नहीं सका । यह तो सच है कि मोदी राज्यसभा के इस बार के हालात से तिलमिलाएं हैं पर यह भी देश ने देखा कि लोकसभा हो या राज्यसभा मोदी ने बड़ी मजबूती से अपना कवच बता दिया है । केवल अस्सी करोड़ जनता ही नहीं, जिसे मोदी फ्री राशन बांट रहे हैं, बल्कि सुप्रीम कोर्ट को छोड़ कर कोई ऐसी संस्था या वर्ग नहीं बचा जिस पर मोदी का सीधे सीधे कब्जा न हो । यह सब छिप कर नहीं हुआ हमारे और हमारे देश के विपक्ष और प्रबुद्ध वर्ग की खुली आंखों के सामने हुआ । महाभारत के प्रसंगों को दोहराया जा रहा है। चीरहरण केवल लोकतंत्र का ही नहीं, किस चीज का नहीं किया जा रहा सवाल यही है ।
‘लाउड इंडिया टीवी’ पर अभय दुबे ने कल अपने शो में बहुत कुछ बातें बड़ी सटीक और रोचक कहीं। उन्होंने हमारे शासक को हिटलर और मुसोलिनी से अलग बताया (कई बार मैं भी यह बात लिख चुका हूं) । उन्होंने कहा बड़ी चतुराई से मोदी ने लोकतंत्र की छाया में ही वह सब किया । आप मोदी पर राज्य सरकारों को उस तरह से गिराने के आरोप नहीं लगा सकते जैसे कांग्रेस किया करती थी । यानी मोदी ने कभी 370 का इस्तेमाल नहीं किया। लेकिन राज्यपालों के जरिए वे वही सब करा देते हैं जिससे राज्यों के मुख्यमंत्रियों की नाक में दम हो जाए । एक बात बड़ी मार्के की अभय दुबे ने कही कि अगर मोदी चुनाव हार गये तो चुपचाप सत्ता छोड़ देंगे जैसा इंदिरा गांधी ने भी किया था । इस बात में दरअसल लोकतंत्र की छाया छिपी हुई है। मोदी की शैली में हमेशा बीजेपी प्लस प्लस है । इसी बात ने मोदी को न केवल मजबूत बनाया बल्कि आरएसएस की सिर आंखों पर भी बैठाया। और आज हम देख रहे हैं कि मोदी निर्विवादित रूप से इस देश पर एक छत्र छाए हुए हैं । राहुल गांधी, कांग्रेस और समूचा विपक्ष मोदी की छवि के सामने बौने से नजर आते हैं । कांग्रेस की सफल यात्रा के बाद भी अगर राहुल गांधी सवालों के घेरे में हैं तो इसके मायने बड़े गहरे हैं । बेशक इस वर्ष होने वाले चुनावों में चाहे बीजेपी सारी जगह से हार जाए पर असली लड़ाई तो 2024 की है जिसमें मोदी को प्रधानमंत्री बने रहना है । इस बात पर फिलहाल तो किसी को शक नहीं है। सारी बहसों और चर्चाओं का निष्कर्ष अंततः यही निकल कर आया है । कांग्रेस और राहुल गांधी के लिए दिल्ली अभी दूर ही नहीं, बहुत दूर है । राहुल गांधी की सबसे बड़ी पीड़ा यह है और होनी चाहिए कि उनका कोई राजनीतिक गुरु नहीं है । दरअसल इंदिरा गांधी को छोड़ कर राजीव, सोनिया और राहुल तीनों के लिए यह बात कही जा सकती है। काश राहुल गांधी को राजनीति के शातिर खिलाड़ी शरद पवार जैसों का सानिध्य मिला होता। राहुल गांधी में जो आत्मविश्वास इन दिनों हम संसद में देख रहे हैं वह जनसभाओं में कम ही है नजर आता है, क्योंकि वहां उनके पास सीमित मुद्दे और सीमित बातें पिटे पिटाए अंदाज में होती हैं। यह गौरतलब है कि इस साल होने वाले चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन कई एक राज्यों में बेहतर रहे पर इसका श्रेय राहुल गांधी की यात्रा से ज्यादा लोगों की बीजेपी से हो रही ऊब को दीजिएगा। क्योंकि राहुल समेत पूरे विपक्ष का असली इम्तेहान 2024 के आम चुनाव ही हैं।
जब जब मैं मोदी के कवच के बारे में सोचता हूं तो मेरा ध्यान सोशल मीडिया पर चल रही चर्चाओं या बहसों पर जाता है । निस्संदेह ये चर्चाएं लोगों की समझ को विस्तार देने के लिहाज से बहुत उपयोगी होती हैं पर आज की चर्चाएं ‘समझे’ हुए लोगों को ही समझा रही हैं। एक उदाहरण दूं। अडानी पर आधे पौन घंटे की चर्चा के बाद ‘सत्य हिंदी’ के आलोक जोशी ने कहा कि चर्चा पसंद आई हो तो कमेंट करें । हमारा कहना था कि पसंद तो बहुत आयी लेकिन समझ नहीं आयी । यह तो आर्थिक चर्चा थी राजनीतिक चर्चाओं में भी कुछ ऐसा ही होता है। वहां एक ही बात अलग अलग लोग अलग अलग तरीकों से कहते मिल जाएंगे। इसीलिए ये बहसें और चर्चाएं मोदी के कवच को भेदने में नाकाम हैं । पटरी पर जीवन बिताने वाला क्या जाने अडानी कौन है और उसने क्या किया। पर मोदी का वोटर तो वही है । इसलिए हर रोज आशुतोष जो अपनी चर्चा की महत्ता का बखान करते हैं उस पर हंसी के सिवाय कुछ नहीं आता। दरअसल हमारा प्रबुद्ध वर्ग अभी भी राजनीति को अधिकतर उसी पारंपरिक चश्मे से देख रहा है। जबकि मोदी ने समाज और राजनीति को छीज दिया है। अब न समाज वैसा रह गया है और न राजनीति। कौन समझे और कौन समझाए। पर हर किसी को अपनी दुकान तो चलानी है।
रवीश कुमार के वीडियो इससे कुछ भिन्न कह सकते हैं क्योंकि उनकी ‘रीच’ कुछ अलग और ज्यादा है। आजकल वे धड़ाधड़ अपने वीडियो दे रहे हैं। अडानी अब उनका प्रिय विषय बन चुका है।
‘सिनेमा संवाद’ में फिल्मों से गायब होते प्रेम पर बात हुई। समय और समाज बदल रहा है तो प्रेम का स्वरूप भी बदलेगा ही । आज उदात्त प्रेम है ही कहां। फिर भी मुगले आजम और देवदास आदि पर बात हुई तो ‘सैराट’ जैसी फिल्मों पर भी बात हो सकती थी। यह प्रेम का नया स्वरूप है । फिर भी अच्छा स्वाद होता है इस चर्चा में का । चर्चा में सौम्या कई बार आती हैं और अच्छा बोलती हैं ।
अंत में कहूंगा कि बदलती राजनीति, सांसदों का बदलता स्वरूप और बदलती संसद पर ‘लाउड इंडिया टीवी ‘ में अभय दुबे को जरूर सुनिए । अभय जी के हिंदी उच्चारण में एक शब्द बहुत गलत उच्चारित किया जाता है – क्षमता जिसे अभय जी हमेशा छमता उच्चारित करते हैं । यह वैसे ही हुआ जैसे मैंने बनारस के एक स्कूल में टीचर को कक्षा की बजाय कच्छा बोलते सुना । या जैसे आशुतोष और पूर्वी उत्तरप्रदेश का हर व्यक्ति छियासठ को छाछठ बोलता मिलता है । दरअसल यह खड़ी बोली का मसला है जिसे शुद्ध दिल्ली और मेरठ के आसपास की माना गया है। पूरब का अंदाज अलग ही है जहां ‘क्ष’ की ‘छ’ और ‘श’ की ‘स’ से पहचान है । कुछ दिग्गज हैं जो इस सबसे पार पा लेते हैं। शीतल पी सिंह का उच्चारण बहुत स्पष्ट है। और भी हैं ।
हमारे बौद्धिकों को ध्यान रखना चाहिए कि मोदी ने 2047 तक का खांका तैयार किया हुआ है । मोदी के लिए 75 साल की उम्र कुछ मायने नहीं रखती, यह भी ध्यान रखें।

 

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