सितम्बर के पहले सप्ताह में भाजपा को शहाबुद्दीन की जमानत पर जेल से रिहाई का मामला हाथ लगा. शहाबुद्दीन न सिर्फ भाजपा के लिए अपराध पर राज्य सरकार को घेरने का मुद्दा साबित हुआ, बल्कि उसने इस मुद्दे को संप्रदाय आधारित वैचारिक लड़ाई का हथियार बनाने की कोशिश भी शुरू कर दी. मतलब स्पष्ट था, ‘शहाबुद्दीन’ जैसे शब्द ने भाजपा के अंदर जीवंत ऊर्जा का संचार कर दिया क्योंकि शहाबुद्दीन भाजपा के लिए अपराध, हिंसा, कानून व्यवस्था और वैचारिक लड़ाई का प्रतीक दिखने लगा. नतीजा यह हुआ कि भाजपा इस मुद्दे पर जबर्दस्त तरीके से आक्रामक हो गई और उसने इसे बड़े पैमाने पर भुनाने की कोशिश शुरू कर दी. वैसे तो इस मुद्दे पर प्रदेश भाजपा की पूरी इकाई ही मैदान में आ गई, लेकिन व्यावहारिक तौर पर इस मुद्दे को राजनीतिक रंग देने के लिए सुशील मोदी ने मोर्चा संभाल लिया. हालांकि इस मुद्दे पर उसके पक्ष में कितना जनमत तैयार हुआ इसका सर्वेक्षण आधारित कोई परिणाम तो सामने नहीं आया, लेकिन इतना तो तय है कि ‘शहाबुद्दीन’ मुद्दे ने भाजपा में उत्साह का संचार जरूर कर दिया है. बीते चार-पांच सप्ताह में सुशील मोदी ने नियमित रूप से अखबारों में भेजे जाने वाले बयान में से 90 प्रतिशत बयान शहाबुद्दीन मुद्दे पर जारी किए. इस मामले में उनके तेवर इतने सख्त थे कि उन्हें काफी आलोचना भी सहनी पड़ी. एक बयान से तो हालत यह हो गयी कि जद यू के दो प्रवक्ताओं- नीरज कुमार और अजय आलोक ने प्रेस कांफ्रेंस कर मोदी के खिलाफ मानहानि का मुकदमा ठोकने की धमकी तक दे डाली. दरअसल सुशील मोदी ने आरोप लगाया था कि ‘जब भाजपा-जद यू गठबंधन में साथ थे तो नीतीश कुमार ने शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब को चुनाव मैदान में उतारने के लिए अपनी पार्टी से टिकट देने का निश्चय कर लिया था. लेकिन भाजपा के दबाव में नीतीश को अपना कदम पीछे हटाना पड़ा था’. मोदी के इस बयान से जद यू तमतमा गया और उसके प्रवक्ता ने मोदी से कहा कि ‘या तो वे इस झूठ के लिए माफी मांगें या फिर मानहानि का मुकदमा फेस करने को तैयार रहें’. हालांकि जद यू के इस तेवर के बाद दोनों तरफ से खामोशी छा गयी और यह मुद्दा ज्यादा आगे नहीं बढ़ा. इसके पहले शहाबुद्दीन को लेकर भाजपा ने लालू प्रसाद के बेटे व स्वास्थ्य मंत्री तेज प्रताप पर भी हमला बोल दिया. वजह यह थी कि तेजप्रताप यादव के साथ एक कथित अपराधी मोहम्मद कैफ की तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो गई थी. मोहम्मद कैफ वही कथित अपराधी है जिसके साथ कुछ दिन पहले शहाबुद्दीन के साथ फोटो देखे जाने पर हंगामा मचा था. बताया जाता है कि कैफ की तलाश पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या के मामले में थी. हालांकि मोहम्मद कैफ का नाम राजदेव रंजन हत्या की चार्जशीट में नहीं था. फोटो वायरल होने और भाजपा के दबाव के बाद पुलिस की दबिश बढ़ी और नतीजे में कैफ को अदालत में सरेंडर करना पड़ा. यहां ध्यान देने की बात है कि कैफ ने पत्रकार हत्या मामले में सरेंडर नहीं किया, बल्कि एक अन्य विवाद में कैफ ने आत्मसमर्पण किया. तेजप्रताप यादव के साथ कैफ की तस्वीर वायरल होने के बाद सुशील मोदी ने सवाल दागा कि ‘एक अपराधी के साथ फोटो सार्वजनिक होने के बाद यह जाहिर हो गया है कि लालू प्रसाद का परिवार अपराधियों को संरक्षण देता है ऐसे में क्या तेजप्रताप यादव इस्तीफा देंगे’? इस बयान के दूसरे दिन ही सुशील मोदी के लिए उनका बयान गले की हड्डी बन गया. दूसरे दिन तेजप्रताप यादव ने अपने फेसबुक अकाउंट से अनेक तस्वीरें जारी कर दीं. इन तस्वीरों में कई अपराधियों के साथ सुशील मोदी, विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष नंदकिशोर यादव, केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद व मुख्तार अब्बास नकवी की तस्वीरें थीं. इनमें से कुछ तस्वीरों में उस मोहम्मद कैफ की भी तस्वीर थी जिसके साथ शहाबुद्दीन व तेजप्रताप यादव की तस्वीर थी.
शहाबुद्दीन मामले में सियासी पार्टियों के शह-मात का खेल कई पहलुओं के साथ सामने आता रहा. कई मामलों में भाजपा आक्रामक हुई जिसके परिणामस्वरूप कभी सरकार को तो कभी राजद-जदयू को बैकफुट पर आना पड़ा या फिर भाजपा के कड़े तेवर के कारण सरकार को अपना फैसला बदलना पड़ा.
पटना हाई कोर्ट से राजीव रौशन हत्या मामले में जमानत मिलने के बाद सरकार एक हफ्ते तक खामोश रही. जैसे ही राजीव रौशन के पिता चंदा बाबू की तरफ से वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने जमानत को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, उसके तुरंत बाद राज्य सरकार ने भी इसी मामले में शहाबुद्दीन की जमानत रद्द कराने के लिए उच्च अदालत में चुनौती दे डाली. गौरतलब है कि भाजपा ने इसके लिए कई बार सरकार को घेरने की कोशिश की थी. लेकिन इस मामले में अदालत में जाने के बावजूद राज्य सरकार को सुशील मोदी ने चैन से नहीं रहने दिया. दूसरे ही दिन मोदी फिर हमलावर हुए और कहा कि बिहार सरकार अपनी इज्जत बचाने के लिए अदालत गई क्योंकि अगर वह अदालत नहीं जाती तो सुप्रीम कोर्ट खुद ब खुद उसे पार्टी बना देती. इतना ही नहीं, जब राज्य सरकार अदालत पहुंच गई तो मोदी ने दूसरा आक्रमण शुरू कर दिया. इस बीच खबर आई कि प्रशांत भूषण के खिलाफ शहाबुद्दीन की पैरवी राम जेठमलानी करेंगे. वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी चूंकि राष्ट्रीय जनता दल के राज्यसभा सांसद भी हैं, इसलिए फिर इस मामले को सुशील मोदी ने राजनीतिक रंग देते हुए सरकार पर प्रहार किया और कहा कि क्या राज्य सरकार जेठमलानी का मजबूत जवाब देने के लिए अपने कमजोर वकील को बदलेगी? मोदी के इस सवालिया लहजे के बयान के दूसरे दिन खबर आई कि राज्य सरकार ने अपना वकील बदल दिया है. हालांकि सरकार ने अपना वकील बदलने के पीछे के तर्कों को उजागर नहीं किया, लेकिन भाजपा ने इसे भी अपनी कामयाबी के रूप में लिया.
ऐसा नहीं है कि शहाबुद्दीन के नाम की सियासत में भाजपा का हर दांव सत्तारूढ़ गठबंधन पर बीस ही पड़ा. अनेक बार सुशील मोदी के अति उत्साह ने उन्हें भी बैकफुट पर ला दिया या फिर उन्हें सख्त आलोचना का शिकार होना पड़ा. मोदी ने एक सख्त बयान देते हुए पूरे लालू परिवार को घेरने की कोशिश की. उन्होंने कहा कि लालू के नक्शे कदम पर ही उनके दोनों बेटे (तेज और तेजस्वी) चल रहे हैं और लालू का परिवार कभी सुधर नहीं सकता. मोदी ने यह भी कहा कि राजद ने आज तक शहाबुद्दीन के खिलाफ एक शब्द नहीं बोला है. मोदी के इस बयान के बाद तेज और तेजस्वी ने तो प्रत्यक्ष रूप से कुछ नहीं कहा, लेकिन राजद ने अपने प्रवक्ता प्रगति मेहता से कहलवाया कि मोदी अब इतने बौखला गये हैं कि वे अपने अनुभव से कम उम्र के लालू प्रसाद के बेटों को भी टारगेट करने लगे हैं. राजद इस बयान से इतना आहत हुआ कि उसने मोदी को ‘अफवाह मियां’ नाम दे डाला. दूसरी तरफ मोदी के इस बयान पर जद यू के प्रवक्ता संजय सिंह ने भी पलटवार करते हुए कुछ तस्वीरें जारी कर दीं. इन तस्वीरों में सुशील मोदी मोहम्मद बिलाल नामक हत्यारोपी के साथ दिख रहे हैं. बिलाल पर फोटो जर्नलिस्ट इंद्रजीत डे के बेटे पर गोली चलाने का आरोप है. स्वाभाविक है इन तस्वीरों के सार्वजनिक होने के बाद सुशील मोदी कुछ जवाब देने की स्थिति में नहीं थे, सो चुप रहे और शहाबुद्दीन से जुड़े अन्य मुद्दों की तरफ बढ़ चले.