आज हमारे ज़माने की सुपर स्टार लेखिका अमृता प्रीतम का जन्मदिवस है । साहिर लुधियानवी के इश्क़ में गिरफ़्तार रहीं अमृता ने जब रसीदी टिकट में प्रेम की बेबाक बयानी की तो उन दिनों अदबी जमात में भूकंप आ गया था । प्रेम मिला नहीं,पति का साथ छूट गया और पल पल का साथी मिला इमरोज़……

अमृता प्रीतम अपनी आत्मकथा ‘रसीदी टिकिट’ मे लिखती हैं – ‘मेरी सारी रचनाएं, क्या कविता, क्या कहानी, क्या उपन्यास, सब एक नाजायज बच्चे की तरह हैं. मेरी दुनिया की हकीकत ने मेरे मन के सपने से इश्क किया और उसके वर्जित मेल से ये रचनाएं पैदा हुईं. एक नाजायज बच्चे की किस्मत इनकी किस्मत है और इन्होंने सारी उम्र साहित्यिक समाज के माथे के बल भुगते हैं.’

एक कविता में वे इमरोज़ के लिए लिखती हैं, ‘अजनबी तुम मुझे जिंदगी की शाम में क्यों मिले, मिलना था तो दोपहर में मिलते’

‘एक बार तुम पूरी दुनिया घूम आओ, फिर भी तुम मुझे अगर चुनोगे तो मुझे कोई उज्र नहीं…मैं तुम्हें यहीं इंतजार करती मिलूंगी…ये उन्होने इनरोज़ से कहा, तब इमरोज ने उस कमरे के सात चक्कर लगाए और कहा, ‘हो गया अब तो…’

उनकी अंतिम नज्म ‘मैं तुम्हें फिर मिलूंगी’ इमरोज के नाम थी|

प्यार अगर शब्दों था तो अमृता ने उसे अपनी क़लम मे उतार दिया था

पेश हैं उनकी और साहिर की कुछ नज़्में !

 

 

 

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