बिहार में इन दिनों नीतीश कुमार के सात निश्चयों और विकास मिशन की धूम है. महा-गठबंधन के मंत्री एवं नेता हर काम को सात नीतीश निश्चयों के साथ जोड़कर देख रहे हैं, तो वहीं नौकरशाह हर उस काम को अब बिहार विकास मिशन के हवाले छोड़ रहे हैं, जिस पर तत्काल वे कुछ कहना-करना नहीं चाहते. बिहार विकास मिशन के गठन की घोषणा पिछले दिनों मुख्यमंत्री ने की और उसे ज़मीन पर उतारने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई है. मुख्यमंत्री के सचिव अतीश चंद्रा को मिशन का कार्यकारी निदेशक नियुक्त किया गया है. मिशन की वित्तीय नियमावली बनाने और अन्य औपचारिक ज़रूरतें पूरी करने की ज़िम्मेदारी मुख्य सचिव अंजनी कुमार सिंह को सौंपी गई है. मिशन के शासी निकाय की पहली बैठक में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कई बातें सा़फ कीं. मिशन के गठन का औपचारिक ़फैसला बीती 25 जनवरी को कैबिनेट की बैठक में लिया गया. कैबिनेट के संकल्प के अनुसार, मुख्यमंत्री मिशन के अध्यक्ष होंगे. मिशन में राज्य के सभी मंत्री, मुख्य सचिव, गृह सचिव, विकास आयुक्त एवं पुलिस महानिदेशक के अलावा सभी विभागों के प्रधान सचिव भी शामिल किए गए हैं.
मिशन में मुख्यमंत्री के सलाहकार प्रशांत किशोर को खास तौर पर शामिल किया गया है, उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया है और उनकी ज़िम्मेदारी नीति निर्धारण एवं उसके कार्यान्वयन को लेकर मुख्यमंत्री को परामर्श देना है. मिशन के सात उपमिशन होंगे, जो नीतीश कुमार के विभिन्न निश्चयों से जुड़े हैं. बिहार विकास मिशन की बैठक हर दो महीने पर होगी, लेकिन अध्यक्ष जब ज़रूरत समझेंगे, उसकी बैठक आहूत की जाएगी. इसी तरह उपमिशनों की बैठक हर महीने आहूत करने का प्रावधान है. उपमिशन सूबे के विकास आयुक्त की देखरेख में काम करेंगे. उक्त मिशन विकास कार्यक्रमों को पूरा करने के लिए संबंधित विभागों से बेहतर समन्वय एवं कार्यक्रम प्रबंधन सुनिश्चित करेंगे, साथ ही विकास कार्य लागू करने के लिए तकनीकी सहायता, मॉनिटरिंग तंत्र एवं कार्यान्वयन संबंधी समस्याओं के समाधान भी खोजेंगे. इसके मद्देनज़र विभागों को विशेषज्ञ उपलब्ध कराने के लिए प्रदेश से लेकर ज़िला स्तर तक इकाइयां गठित की जाएंगी, जिनके ज़रिये पेशेवर विशेषज्ञों की सेवाएं हासिल की जाएंगी. बिहार विकास मिशन एवं उसके सातों उपमिशनों को प्रभावशाली और सक्षम बनाने के लिए सरकार ने उन्हें निदेशक, सहायक निदेशक एवं पेशेवर विशेषज्ञ उपलब्ध कराने का फैसला भी लिया है.
Read Also : समाजवादी सरकार ने पूरे किए चार साल : सपा को सर्वे से मलाल
ग़ौरतलब है कि नीतीश कुमार ने विधानसभा चुनाव के दौरान अपने सात निश्चयों की घोषणा की थी और ऐतिहासिक जनादेश के ज़रिये सत्ता में आने के बाद वह उन्हें लागू करने को आतुर हैं. उक्त सातों निश्चयों के ज़रिये वह सूबे के छात्र, युवा एवं महिला मतदाताओं के साथ-साथ ग्रामीण बिहार को व्यापक तौर पर अपने साथ जोड़ने को बेताब हैं. उनकी राजनीतिक चाहत है कि अगले संसदीय चुनाव के पहले तक उक्त कार्यक्रमों के ज़रिये सूबे में अपना एक ठोस (जाति एवं धर्मविहीन) मतदाता समूह संगठित किया जाए. इसी के मद्देनज़र बिहार विकास मिशन का गठन किया गया है. लेकिन, मिशन के गठन के पहले से ही उक्त सात निश्चयों को लेकर वह काफी सक्रिय रहे. नीतीश कुमार की सारी चिंता किसी भी क़ीमत पर महिलाओं, युवाओं एवं छात्रों से जुड़े अपने निश्चय बिना विलंब लागू करने की है. उक्त सात निश्चयों में से एक यानी सरकारी नौकरियों की सीधी नियुक्तियों में महिलाओं को आरक्षण देने के बारे में निर्णय लिया जा चुका है. अब बिहार सरकार की सभी सीधी नियुक्तियों में महिलाओं के लिए पैंतीस प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था लागू की जा रही है.
अगले वित्तीय वर्ष की शुरुआत के साथ सूबे में स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना लागू होनी है, जिसके तहत 12वीं उत्तीर्ण प्रत्येक ज़रूरतमंद युवा को उच्च शिक्षा जारी रखने के लिए बैंकों से चार लाख रुपये तक की क्रेडिट लिमिट उपलब्ध कराई जाएगी. रा़ेजगार की तलाश में सूबे से बाहर जाने वाले युवाओं को प्रतिमाह एक-एक हज़ार रुपये की आर्थिक सहायता देने की भी योजना है. ज़िलों में रा़ेजगार परामर्श केंद्र शुरू करने की तैयारी चल रही है. युवाओं एवं छात्रों से संबंधित निश्चयों के तहत कॉलेज-विश्वविद्यालय परिसरों में मुफ्त वाई-फाई की सुविधा देने और स्व-रा़ेजगार एवं उद्यमिता विकास के लिए पांच सौ करोड़ रुपये का वेंचर कैपिटल फंड बनाने पर काम चल रहा है. उद्यमिता विकास के संदर्भ में मेडिकल-इंजीनियरिंग कॉलेज, नर्सिंग कॉलेज-स्कूल, पॉलिटेक्निक आदि संस्थाओं को लेकर भी तैयारी चल रही है.
सरकार ने तय किया है कि अगले दो वर्षों के दौरान उन सभी बसावटों तक बिजली पहुंचा दी जाएगी, जो अभी तक वंचित हैं. साथ ही सूबे के सभी विद्युतविहीन घरों को मुफ्त बिजली कनेक्शन दिया जाएगा. मुख्यमंत्री के निश्चयों को ज़मीन पर उतारने के लिए अगले बजट में विशेष तौर पर धन की व्यवस्था की जा रही है. मुख्यमंत्री ने अपने स्तर पर समीक्षा कर उक्त सात निश्चयों से जुड़े कुछ विभागों के योजना बजट को मंजूरी दे दी है. नीतीश निश्चय लागू करने के लिए अगले पांच वर्षों में 2.39 लाख करोड़ से लेकर 2.70 लाख करोड़ रुपये तक के व्यय का अनुमान है. सरकार ने इन निश्चयों के लिए अब तक 5,581 करोड़ रुपये की योजना अंतिम तौर पर स्वीकार कर ली है. लेकिन, यह तो चंद विभागों के खर्च का आकलन है. सभी निश्चयों से जुड़े विभागों को 60 हज़ार करोड़ रुपये से अधिक रकम आवंटित करनी होगी. एक अधिकारी के अनुसार, राज्य के अधिकांश कल्याण कार्यक्रम इन निश्चयों के दायरे में आते हैं, लिहाजा धन की कोई समस्या आड़े नहीं आएगी.
यह सही है कि नीतीश कुमार के उक्त सात निश्चय लागू करने में पैसा बाधक नहीं बनेगा और सरकार की इच्छाशक्ति पर भी किसी को अविश्वास नहीं है. नीतीश अगर कोई काम ठान लेते हैं, तो उसे पूरा करके ही दम लेते हैं, उनकी राजनीतिक इच्छाशक्ति से बिहार भलीभांति परिचित है. उनके उक्त निश्चयों को लेकर सत्तारूढ़ महा-गठबंधन के घटक दलों में भी कोई मतभिन्नता नहीं है, बल्कि सर्व-सहमति है. स्वच्छता एवं पेयजल जैसे कार्यक्रमों के लिए केंद्र ने भी खजाना खोल रखा है. उद्यमिता विकास से जुड़े नीतीश के निश्चयों को केंद्रीय उद्यमिता विकास कार्यक्रमों से एक बड़ी मदद मिलेगी. केंद्रीय करों में राज्य का हिस्सा बढ़ने से केंद्र से पैसा भी भरपूर आ रहा है. सो, विविध कल्याण कार्यक्रमों के साथ-साथ उक्त निश्चयों को पूरा करना आसान हो जाएगा.
यह तय है कि राज्य को अपने आंतरिक स्रोतों से भी धन की व्यवस्था करनी होगी. ऐसे में जहां बैंकों पर निर्भरता अधिक है, वहां परेशानी हो सकती है. इस लिहाज से स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड के साथ-साथ युवा-छात्र कल्याण संबंधी अनेक कार्यक्रम लागू करने में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. नीतीश स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना इस साल नए शैक्षणिक सत्र के साथ शुरू करने को कृत संकल्प हैं, लेकिन अभी तक बैंकों का रुख बहुत सहज नहीं दिख रहा. इस क्रेडिट कार्ड के ऋण की ब्याज दर को लेकर भी अब तक सहमति नहीं बन सकी है. इसी तरह ग्रामीण सड़क योजना के मद में केंद्रीय सहायता में कमी आने से गांव-गांव सड़क कार्यक्रम की गति भी धीमी पड़ सकती है. उद्यमिता विकास कार्यक्रमों के लिए पेशेवर विशेषज्ञों की कमी भी बिहार के आड़े आ सकती है. निश्चित तौर पर उक्त सारी बाधाएं दूर करने के ठोस उपाय करने होंगे.
बिहार विकास मिशन का संकट आर्थिक से ज़्यादा दूसरा है. सबसे बड़ी दिक्कत तो प्रशासन की कछुआ चाल को लेकर है. उपलब्धियां पेश करने का सरकारी तरीका पूरी तरह प्रचारमूलक है. नौकरशाह (और उनके फीडबैक पर राजनेता भी) धन आवंटन को ही उपलब्धि मान लेते हैं. आवंटन और कार्यान्वयन के बीच की दूरी बातों से पाट देने की कुटिल परंपरा चल रही है, जिसे शिक्षा, स्वास्थ्य, उद्योग, कल्याण, श्रम एवं रा़ेजगार सहित विभिन्न विभागों में देखा जा सकता है. इससे सत्ता के राजनीतिक नेतृत्व के प्रति जनता का भरोसा कम होता है. और, बिहार में यही हो रहा है. मुख्यमंत्री के जनता दरबार सहित अनेक कार्यक्रमों में इसकी झलक देखी जा सकती है.
Read Also : समाजवादी सरकार ने पूरे किए चार साल : सपा को सर्वे से मलाल
मुख्यमंत्री के सातों निश्चयों को लेकर राजनीतिक एवं प्रशासनिक स्तर पर सतत जागरूकता की ज़रूरत है. ग़लत फीडबैक से नौकरशाही को नहीं, राजनीतिक नेतृत्व को ऩुकसान हो सकता है, जिसकी विश्वसनीयता दांव पर है. योजना के कार्यान्वयन एवं धन के इस्तेमाल के लिए बेहतर रोडमैप और उसका अनुपालन ज़रूरी है. बिहार में प्रत्येक वित्तीय वर्ष में एक बड़ी रकम सरेंडर हो जाती है या फिर उसे रख लिया जाता है. इस बार भी हालत सुखद नहीं है. वित्तीय वर्ष समाप्त होने को है और अब भी विभिन्न विभागों को आवंटित धन में से 25 हज़ार करोड़ रुपये खर्च होने बाकी हैं. इससे मार्च-लूट के ज़रिये वित्तीय हेराफेरी की गुंजाइश बढ़ जाती है. ऐसा क्यों होता है, यह बताने की ज़रूरत नहीं है. उम्मीद है कि नीतीश कुमार के सात निश्चयों के कार्यान्वयन पर लापरवाह और ग़ैर जवाबदेह नौकरशाही की छाया नहीं पड़ेगी.
बिहार की मौजूदा सत्ता राजनीति में प्रशांत किशोर ताकतवर नाम बन गए हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के वह सबसे विश्वस्त सहयोगी माने जाने लगे हैं. दशकों पुराने अति विश्वस्त राजनीतिक सहकर्मी-सखा और प्रिय नौकरशाहों की भी नीतीश कुमार से दूरी बढ़ रही है. महा-गठबंधन सरकार के अधिकांश मंत्रियों को लगता है कि मुख्यमंत्री के सलाहकार के तौर पर प्रशांत किशोर सुपर मंत्री बन गए हैं. चूंकि नीतियों और उनके कार्यान्वयन के बारे में मुख्यमंत्री को सलाह देने की ज़िम्मेदारी उनकी है, लिहाजा मान लिया गया है कि उन्हें संतुष्ट किए बगैर किसी भी मसले पर मुख्यमंत्री की सहमति कठिन है. इसी तरह शीर्ष नौकरशाही के एक तबके को लगता है कि उनके और मुख्यमंत्री के बीच अब तक केवल मुख्य सचिव होते थे, लेकिन अब सलाहकार भी आ गए हैं.
इस तबके को लगता है कि प्रशांत किशोर की रिपोर्टिंग उनके भविष्य के लिए बहुत अहम है. हालांकि, प्रशांत किशोर को लेकर अब तक कोई ग़लत रिपोर्ट कहीं से नहीं सुनी गई है, लेकिन सचिवालय के गलियारों में यह चर्चा का विषय रहा है. यही नहीं, विकास मिशन की पहली बैठक में ही दबे स्वरों में इस आशय की राय सामने आई. हालांकि, मुख्यमंत्री ने अपने और अधिकारियों के बीच किसी तीसरे के आ जाने की आशंका सिरे से खारिज कर दी. इन तमाम हालात के चलते विकास मिशन को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. वहीं समय की भी खासी कमी है. नीतीश कुमार अगले संसदीय चुनाव तक अपने निश्चयों की उपलब्धियां पेश करने में खुद को समर्थ देखना चाहते हैं. उनकी राजनीतिक ज़रूरत और वक्त की कमी जैसे दो पाटों को मिशन आ़िखर कैसे साधता है, यह देखना दिलचस्प होगा.