gope-with-akhileshसपाई हलचल से बेअसर काम में जुटे शख्स पर नेतृत्व को भरोसा : गोप से होप-अस्थिरता के बीच स्थिर हितैषी के रूप में उभरी अरविंद सिंह गोप की छवि

समाजवादी पार्टी अशांत है. पार्टी की अंदरूनी कलह कौमी एकता दल के सपा में विलय प्रसंग के बाद उभर कर सतह पर आ गई. इस कलह का शमन हो भी जाए, पर जो नुकसान होना था, वह तो हो ही गया. सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद से अखिलेश यादव को हटा कर शिवपाल यादव को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया, तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी अपने चाचा शिवपाल यादव के मंत्रिमंडलीय विभागों में कटौती कर डाली. उसके पहले अखिलेश यादव शिवपाल के चहेते मुख्य सचिव दीपक सिंघल को हटा कर अपनी ताकत दिखा चुके थे. समाजवादी पार्टी में लखनऊ से दिल्ली तक सरगर्मी मची है. कभी लखनऊ में बैठकें हो रही हैं तो कभी मुलायम और शिवपाल के बीच दिल्ली में गुफ्तगू हो रही है. शिवपाल से सारे महत्वपूर्ण विभाग छीन कर अखिलेश ने दिखाया कि वे मुख्यमंत्री हैं. फिर शिवपाल ने मंत्रिमंडल से भी इस्तीफा दे दिया और प्रदेश अध्यक्ष का पद भी त्याग दिया. शिवपाल ने सरकार में अपमानजनक स्थितियों के कारण पहले भी इस्तीफे की पेशकश की थी, लेकिन मुलायम के कहने पर मान जा रहे थे. इस बार स्थितियां विकट हैं. विडंबना यह भी है कि शिवपाल यादव को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने का आधिकारिक पत्र सपा के राष्ट्रीय महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव के हस्ताक्षर से जारी हुआ, जबकि रामगोपाल मुलायम के इस फैसले से सार्वजनिक असहमति जाहिर कर चुके हैं. रामगोपाल इस मामले में अमर सिंह की साजिश करार देने पर तुले हैं.

पार्टी की इस अस्थिरता के बीच अधिकांश नेता भी अस्थिर हैं. इधर-उधर झांक रहे हैं, बगलें ताक रहे हैं कि वे खुद को किस खेमे का साबित करें कि फायदा हो. सपा ऐसे ही अवसरवादी नेताओं की भीड़ से आक्रांत है. अभी से चर्चा होने लगी है कि पार्टी टूटी तो कौन अखिलेश के साथ रहेगा तो कौन शिवपाल के साथ. मीडिया वाले भी अभी से समाजवादी पार्टी को तोड़ कर किस खेमे का किस दल के साथ गठबंधन होगा, इसकी भविष्यवाणी परोसने में लगे हैं. ऐसे में समाजवादी पार्टी के लखनऊ मुख्यालय में एक नेता आम जनता के झुंड के बीच बैठा उनकी शिकायतें निपटाता हुआ और पार्टी के लिए चुनावी रणनीतियों पर चर्चा में मशगूल दिखता है तो आश्‍चर्य भी होता है और संतोष भी. अस्थिरता में भी पार्टी के स्थिर हितैषी की भूमिका अदा करते हुए नजर आ रहे हैं उत्तर प्रदेश सरकार के काबीना मंत्री और पार्टी के महासचिव अरविंद सिंह गोप. गोप कहते हैं, ‘मैं तो सपा का सिपाही हूं. शीर्ष नेतृत्व के जो विचारधारात्मक मसले हैं, उन्हें निपटाना शीर्ष नेतृत्व का काम है. मुझे तो सपा के अभिभावक मुलायम सिंह यादव और सरकार के अभिभावक अखिलेश यादव ने जो जिम्मेदारी सौंपी है, उस जिम्मेदारी को मैं निभा रहा हूं और पार्टी हित के लिए काम करते रहने के लिए प्रतिबद्ध हूं. मैं तो इस बात से ही गौरवान्वित रहता हूं कि देश के सबसे बड़े किसान नेता मुलायम सिंह यादव मुझे राजनीतिक गुरु के रूप में प्राप्त हुए. उन्होंने सिखाया, गरीब-किसान-कमजोर की मदद करना, जुल्म-अत्याचार के खिलाफ संघर्ष करना और हृदय को विशाल रखना. नेताजी की यह सीख मेरे जीवन का मूल मंत्र है. उत्तर प्रदेश का विकास मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का मूल लक्ष्य है. इस लक्ष्य को ध्यान में रख कर मैंने अपने ग्राम्य विकास विभाग के जरिए ग्राम विकास की विभिन्न योजनाओं पर ऐतिहासिक काम कराए. इसे देखते हुए मुख्यमंत्री ने विकास योजनाओं में अपनी तरफ से कई अतिरिक्त सुविधाएं भी संलग्न कीं. देश के सबसे युवा मुख्यमंत्री ने जिस तरह केवल काम को प्राथमिकता दी है, उससे यह स्पष्ट है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में भी समाजवादी पार्टी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनेगी.’

मंत्री, विधायक और पार्टी महासचिव के तीन रूपों में बंटी भूमिका का समन्वय और एक दूसरे के साथ ईमानदारी बरतने का प्रसंग आने पर गोप ने कहा, ‘देखिए मैं तो एक विधायक ही था, लेकिन आपकी ईमानदारी और प्रतिबद्धता को नेतृत्व के स्तर से कोई देख भी रहा होता है. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मुझे राज्य मंत्री के बतौर ग्राम्य विकास जैसे महत्वपूर्ण विभाग की जिम्मेदारी दी और काम को देखते हुए उन्होंने मुझे अपने कैबिनेट में शरीक करने का गौरव प्रदान किया. शायद इसी प्रतिबद्धता का पुरस्कार है कि सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने मुझे पार्टी का प्रदेश महासचिव बना दिया. मुख्यमंत्री ने मुझे मंत्री के रूप में परफॉर्म करने का सुअवसर दिया तो नेताजी ने मुझे सांगठनिक क्षमता दिखाने का सुअवसर दिया. मंत्रिमंडल में महत्वपूर्ण दायित्व और पार्टी संगठन में महासचिव की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मुझे शासनिक, राजनीतिक और जन-प्रतिनिधिक संतुलन और समन्वय स्थापित करने में काफी मदद करती है. मैं मंत्री, महासचिव और विधायक तीनों दायित्वों को निभाने के लिए समय देता हूं और तीनों दायित्वों के साथ न्याय करने के लिए हमेशा प्रयासरत रहता हूं. अब चुनाव आने वाला है तो सांगठनिक स्तर की बैठकों का सिलसिला चल रहा है. यूथ विंग की बैठकें हो रही हैं. बूथ वाइज बैठकें हो रही हैं. साइकिल यात्राएं चल रही हैं, वृक्षारोपण अभियान चल रहे हैं. प्रत्येक दिन दो विधानसभा क्षेत्रों का दौरा चल रहा है. सांगठनिक तौर पर पूरा मैराथन चल रहा है, सरकारी योजनाएं कार्यान्वयन के स्तर पर अलग परवान पर हैं, लेकिन कहीं से भी मंत्री के दायित्व, महासचिव के दायित्व और जन प्रतिनिधि के दायित्व की उपेक्षा नहीं हो रही है.’

बातचीत के बीच में यह भी प्रसंग आया कि लखनऊ विश्‍वविद्यालय के छात्र नेता अरविंद सिंह गोप समाजवादी पार्टी से आखिर कैसे जुड़ गए, तो गोप फ्लैशबैक में चले जाते हैं. कहते हैं, ‘मैं अपने सारे अच्छे-बुरे संघर्ष के दिनों को याद रखता हूं. यह बात मुझे बहुत सुकून देती है कि मैं उन कुछ सौभाग्यशाली लोगों में शामिल हूं जिस पर सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव और प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव इतना भरोसा करते हैं. मैं लखनऊ विश्‍वविद्यालय का एक सामान्य छात्र ही तो था. बाद में छात्र राजनीति से जुड़ा और ऐसा पहला छात्र संघ अध्यक्ष बना जिसे समाजवादी पार्टी का सीधा समर्थन प्राप्त हुआ था. नेताजी मुलायम सिंह यादव ने जैसे मुझे गोद ले लिया. उन्होंने मुझे तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह के खिलाफ हैदरगढ़ से चुनाव लड़वा दिया. मतगणना में एक दौर ऐसा भी आया, जब राजनाथ सिंह मुझसे पिछड़ रहे थे. देशभर में खलबली मच गई थी. हालांकि मैं चुनाव हार गया, लेकिन इस चुनाव ने मुझे पार्टी में स्थापित कर दिया. सालभर बाद ही वर्ष 2003 में राजनाथ सिंह राज्यसभा चले गए और मैं फिर हैदरगढ़ सीट से मैदान में आ डटा. मेरा पर्चा दाखिला अखिलेश यादव जी की अगुवाई में ही हुआ था. इस उप चुनाव में मेरी जीत हुई. उप चुनाव तो कई जगह हुए थे लेकिन हैदरगढ़ अकेली सीट थी, जहां से सपा जीती थी. इस जीत से तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती इतना बौखला गई थीं कि उन्होंने कुछ ही घंटे के भीतर बाराबंकी जिला प्रशासन के सभी अफसरों का तबादला कर दिया. एक साल बाद सपा की सरकार बनने पर नेताजी ने मुझे लोक निर्माण राज्यमंत्री बनाया था. यह नेताजी का ही आशीर्वाद था कि मैंने 2007 का चुनाव भी जीता. फिर अखिलेश यादव के नेतृत्व में प्रदेश में मायावती सरकार के खिलाफ प्रबल संघर्ष में शरीक होने का अवसर मिला, वह संघर्ष इस चरम परिणति पर पहुंचा कि बसपा की चिंदियां बिखर गईं. 2012 के चुनाव में सपा ने ऐतिहासिक जीत हासिल की, उस जीत में अरविंद सिंह गोप नाम का सपा का सिपाही भी शरीक था. बाराबंकी की छहों विधानसभा सीट समाजवादी पार्टी ने ही जीती. मुझे तो हैदरगढ़ सीट आरक्षित हो जाने के कारण नये चुनाव क्षेत्र रामनगर की चुनौती भी मिली थी. पर, संघर्ष तो समाजवादियों के संस्कार में है. सपा जूझारू जन-संघर्षों से ही पैदा हुई पार्टी है. हम सब अपने को भाग्यशाली मानते हैं कि आदरणीय मुलायम सिंह यादव जैसे मार्गदर्शक और ऊर्जा से भरे हुए नौजवान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव हम सबका नेतृत्व कर रहे हैं. नेताजी के मार्गदर्शन और मुख्यमंत्री के जूझारू नेतृत्व के कारण हमने 2012 का चुनाव जीता था और हमें पूरा यकीन है कि 2017 में भी फिर बहुमत की सरकार बनाएंगे.’

2017 में विधानसभा चुनाव जीतने का दावा किस सूत्र वाक्य पर आधारित है? इस पर अरविंद सिंह गोप कहते हैं, ‘अनुभवी मुलायम का निर्देशन और अभिभावकत्व, विकासोन्मुखी अखिलेश यादव का बेदाग चेहरा और इनके आह्वान पर जूझ पड़ने वाले कार्यकर्ता, हमारी जीत के दावे का सूत्र वाक्य है. आप प्रदेशभर में सर्वे करा लीजिए. प्रदेश का युवा भारी संख्या में अखिलेश यादव के साथ है. समझदार जनता हमारे साथ है. हमारा घोषणा पत्र और इस पर हमारा किया गया काम हमारे इस दावे का सबूत है. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने प्रदेश के युवकों को लैपटॉप देकर आधुनिक विज्ञान की जरूरत से उन्हें जोड़ा. तब लोगों ने खिल्लियां उड़ाई थीं और बाद में तमाम राज्यों ने उसकी नकल की. अब मुख्यमंत्री ने स्मार्ट फोन देने की घोषणा कर दी है. अब हर व्यक्ति विकास योजनाओं के काम पर नजर रखेगा और मुख्यमंत्री तक को सीधे स्मार्ट फोन से सूचित कर पाएगा. लखनऊ समेत कई जिलों में मेट्रो परियोजना शुरू हुई. लखनऊ में तो जल्दी ही मेट्रो रेल चलने भी लगेगी. उत्तर प्रदेश एक मुकम्मल देश की तरह प्रगति कर रहा है.’

लेकिन किसानों और बेरोजगारों की हालत और प्रदेश में कानून व्यवस्था की बदहाली? सवाल पूरा भी नहीं हुआ था कि गोप कहने लगते हैं, ‘किसानों की खुशहाली मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सर्वोच्च प्राथमिकता है. यह सीख उन्हें विरासत में भी मिली है. अखिलेश यादव ने कृषि क्षेत्र में महिलाओं की आर्थिक भागीदारी सुनिश्‍चित करने के लिए भी कई योजनाएं लागू की हैं. उत्तर प्रदेश में खेती में अहम योगदान दे रही महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए समाजवादी पार्टी सरकार लगातार प्रयासरत है. किसानों के हितों को ध्यान में रखकर सरकार कई योजनाएं ला चुकी है. अब न कहीं खाद की किल्लत होती है और न बीज की. गन्ना किसानों के बकाये के भुगतान के लिए भी सरकार लगातार चीनी मिलों पर दबाव बनाए हुई है. कई मिलों के खिलाफ रिकवरी सर्टिफिकेट तक जारी कर दिए गए हैं. जहां तक शिक्षित युवकों की बेरोजगारी का प्रश्‍न है, मेट्रो रेल परियोजना से लेकर साइबर सिटी और स्मार्ट सिटी की योजना रोजगार के रास्ते ही तो खोलेगी. लेकिन इसमें थोड़ा वक्त तो लगेगा. बेरोजगारी भत्ता, कन्या विद्याधन जैसी योजनाएं इन्हीं चिंताओं के कारण तो शुरू की गईं. कानून व्यवस्था के मोर्चे पर वास्तविकता से अधिक बदनामी है. इसमें मीडिया की भूमिका अतिरंजित है. जबकि यूपी में अन्य राज्यों की तुलना में अपराध कम हैं. यूपी में पुलिस का जिस तरह आधुनिकीकरण हुआ, उसका भी तो ईमानदार विश्‍लेषण होना चाहिए. पुलिस के सारे खटारा वाहन बदल डाले गए. पुराने जर्जर हथियार बदल दिए गए. चौबीस घंटे ड्यूटी करने वाले पुलिसकर्मियों के एक दिन का साप्ताहिक अवकाश का नियम बना दिया गया. आज उत्तर प्रदेश की 100 डायल योजना की दुनियाभर में चर्चा है और कई देश इसे देखने-समझने यूपी आ रहे हैं, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को इसका श्रेय मीडिया वाले क्यों नहीं देते!’ ‘हम फिर जीत कर आ रहे हैं…’ यह कहते हुए अरविंद सिंह गोप ग्रामीण क्षेत्र में होने वाली किसी मीटिंग के लिए गंवई साफा बांध कर निकल पड़ते हैं.

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