क्या आप जानते हैं हमारे मुल्क में 90%डाक्टर लुटेरे हत्यारे संवेदनहीन हैं।
भारी भरकम फ़ीस के अलावा सर्दी ज़ुकाम में भी ग़ैर ज़रूरी टेस्ट कराते हैं वो भी जहां कमीशन बंधा हो वहीं से कराने होते हैं। और टेस्ट रिपोर्ट में और स्कैन में कैंसर इंफ़ेक्शन जैसी बड़ी बीमारी दिखाकर मरीज़ को लूट लेते हैं। बुख़ार के कारण बढ़ी शुगर में भी परमानेंट शुगर मरीज़ बना देते हैं।
90%अधिकारी चोर रिश्वतखोर हैं।
सीधेसादे काम को उलझा कर बड़ा बनाते हैं फ़ाइलें रोक लेते हैं और बड़ी रक़म हड़प कर जाते हैं।
इन्ही के लालच के चलते पुल सड़क नाले सरकारी इमारतें घटिया मटेरियल में बनाये जाते हैं और फिर टूट कर ख़राब होते हैं जिसमें लोग भी मारे जाते हैं।
90%व्यापारी कालाबाज़ारी मुनाफ़ाख़ोर हैं।
नक़ली माल बाज़ार में खपा देते हैं ज़रूरी चीजों की कालाबाज़ारी करते हैं मार्केट से ग़ायब कर देते हैं ज़रूरत बढ़ने पर मुँहमाँगे दाम में बेचते हैं नेताओं को चुनाव में चंदा देकर जनता से मनमानी क़ीमत वसूलते हैं।
90%नेता भ्रष्ट डाकू चोर झूठे हैं मक्कार अहसान फ़रामोश हैं।
अगर देश को सबसे ज़ियादा नुक़सान है तो इन भ्रष्ट नेताओं से है। इनमें संवेदनाएँ नहीं होती जज़्बात से ख़ाली होते हैं मानवता मर जाती है तब एक सफल नेता की नींव तैयार होती है। कोई भूख से मरे। किसान नुक़सान से मरे। बेरोज़गार फाँसी लगा लें। सिपाही नौकरी में मर जाये जनता हाहाकार करे शिक्षा सड़कों पर आयें ये किसी की नहीं सुनते बस चुनाव में जनता के पाँव पकड़ते हैं फिर पाँच बरस जनता से पाँव पड़वाते हैं।
90% पुलिस वाले भ्रष्ट निकृष्ट रिश्वतख़ोर ज़ालिम हैं।
ये अपराध ख़त्म नहीं होने देते बल्कि बढ़ावा देते हैं जिससे इनकी जेब भरती रहे।
बग़ैर रिश्वत फ़रियाद नहीं सुनते।
इनकी रिपोर्ट और जानकार ढीली विवेचना से भ्रष्ट अधिकारी नेता व्यापारी बलात्कारी ख़ूनी रिश्वतखोर रिहा हो जाते हैं।
90% जनता इसी लायक़ है ये सारे लोग आलसी स्वार्थी मौक़ापरस् तहैं। ये सब जो हमने ऊपर दर्शाए हैं ऊपर दरसाये लोग जनता के साथ सही इंसाफ़ करते हैं। हर बात के लिए जनता ख़ुद दोषी है। क्यों ग़लत लोगों को पार्लियामेंट में पहुँचाती है क्यों ज़ुल्म देखकर ख़ामोश रहती है। क्यों अपने हक़ के लिए कभी सड़कों पर नहीं आती। क्यों अच्छा बुरा न देखकर ज़ात देखकर वोट करती है। क्यों नेताओं अधिकारियों व्यापारियों कालाबाज़ारियों के ख़िलाफ़ आवाज़ नहीं उठाती। क्यों कभी कोई जन आंदोलन नहीं करती। क्यों ऊपर दर्शाये लोगों से सवाल नहीं करती। क्यों उनके सितम पर मनमानी पर जनता को ग़ुस्सा नहीं आता।
जी हाँ हमारे यहाँ जनता कोई जन आंदोलन नहीं कर सकती।ग़ुस्सा नहीं आता इन्हें। सबके ज़हन बटें हुए हैं!अलग अलग राजनीतिक दलों में।झूठ के ख़िलाफ़ नहीं बोल सकते!ख़ून में ज़रा उबाल नहीं है।
ठंडे इंजेक्शन हैं सब!
मज़हबी और जातीय धार्मिक लड़ाई कर सकते हैं मगर सबके हक़ के लिये एक साथ नहीं हो सकते हैं। सड़कों पर आकर सरकार नहीं गिरा सकते ये ज़मीर से गिरे हुये लोग।
हाँ कोई पिट रहा हो तो या तो बहती गंगा में हाथ धो लेंगे या विडीओ बनाएँगे।
कोई मर रहा हो तो अस्पताल नहीं ले के जाएँगे पर्स चैन अँगूठी निकाल लेंगे।
तेल का टेंकर सब्ज़ी की ट्राली जैसा कुछ सड़क पर पलटा दिखे तो सीधा नहीं करेंगे लूट लूट के चलते बनेंगे। ढूँढते रहते हैं लंगर भंडारे माले मुफ़्त दिले बेरहम उफ़्फ़!!यक़ीनन नेता अधिकारी डाक्टर व्यापारी पुलिस!जनता के साथ बिल्कुल सही कर रहे हैं हाँ ये जनता इसी लायक़ है।
मानते रहो बुरा! कर कुछ नहीं सकते तुम गूँगे बहरे अंधे तमाशाई फ़ेसबुकी बयान वीर! तुम लोग सिर्फ़ अपना मतलब के लिये किसी को भी थमा सकते हो सत्ता!
किसी को भी बना सकते हो हाकिम !किसी को भी बेच सकते हो मुल्क!!
आपको मालूम है क्या हो रहा है आदमी।
जागने का वक़्त है और सो रहा है आदमी।
मुल्क के सौदागरों जो जी में आये वो करो।
हर गली में भांग खाकर सो रहा है आदमी।
विजय तिवारी’विजय’