अपना जीवन बसर करने एक टपरी और पेट भरने के लिए छोटी सी परचूनी दुकान चलाने वाली विधवा पर कहर बरसाते उन चार दरिंदों को तरस नहीं आया…! हवस के साथ पनपी हैवानियत ने यह सोचने के लायक भी नहीं छोड़ा कि जिस को वे अपना शिकार बना रहे हैं, उसकी उम्र वहशियों में से किसी की मां जैसी है तो किसी के लिए वह बेटी की तरह रही होगी…!

चीखती, बिलबिलाती, हाथ जोड़ती, पैर रगड़ती और अपनी आबरू की भीख मांगती इस विधवा से हवस पूरी करने के बाद भी दरिंदगी इस हद तक पहुंची कि उसके साथ वह व्यवहार किया गया, जो किसी जानवर के साथ करने से भी इंसान दस बार खौफ से भर जाए…! उफ्फ… शब्दों में इस दरिंदगी का क्या बयान किया जा सकता है… वह जानवर भी इंसानों की इन करतूतों पर कभी शर्म महसूस करते नजर आते होंगे, जो किसी दूसरे जानवर के साथ ऐसी क्रूरता की कल्पना भी न करते होंगे…!

पुलिस, गिरफ्तारी, जांच, सुनवाई, गवाही, दलीलें और फैसला आने तक अब ये पीड़ित हर उस पल दर्द से भरी रहने वाली है, जब-जब उसके लिए इंसाफ की कोई गुहार उठेगी…! सियासी लोगों का मुखरंजन शुरू हो ही चुका है…! सत्ता आश्वसनों के हिंडोले पर सवार कर हर सख्त कदम उठाने की बात कहेगा…!

विपक्ष इस दिल दहलाने वाले मामले को लेकर अपनी सियासी अदावत निकालने की कोशिश करेगा…! पुलिस, अदालत, वकील, गवाह अपने-अपने मफाद तलाशेंगे…! मीडिया को कई दिनों की सुर्खियां नसीब हो ही गई है…! जन ने फिर आवाज उठाई है कि वहशियों को सजा-ए-मौत से कम न दिया जाए…! समाज के ऐसे नासूरों के लिए वाकई इससे भी भयानक कोई सजा हो तो वही दी जाना चाहिए…!

पराए मुल्क के किसी प्रावधान पर नजर गड़ाने की बजाए ऐसी तजवीज खोजी जाना चाहिए, जिसको जहन में रखकर अगला वहशी अपने अंजाम को लेकर दस बार सोचने पर मजबूर हो…! दिल्ली से लेकर देशभर के हर छोटे-बड़े शहर में होने वाली ऐसी किसी घटना के बाद कुछ दिनों तक आवाजें गूंजती रहती हैं, फिर सब कुछ शांत, हर तरफ खामोशी, सबके शब्द तरकश खाली…! जुबानी जमाखर्च करने की बजाए हर सियासी दल, हर धर्म, हर समाज और सभी वर्गों को एकसाथ, एक सुर, एक विचारधारा के तार में बंधकर किसी ठोस सजा को तजवीज करना ही होगा, वर्ना जानवरों और इंसानों के बीच का फर्क पल-पल कम होता रहेगा…!

पुछल्ला
शिव सही दिशा में ,मिसाल गलत

लड़कों के लिए 21 और लड़कियों के लिए 18 की शादी उम्र क्यों। शिव बोले दोनों की मानसिक अवस्था एक जैसी होने का इंतजार करना चाहिए। इस बात को यह कहकर कहा जाता कि इस सूबे में लड़का-लड़की में कोई फर्क नहीं किया जाता। फैसले सबके लिए एक जैसे होंगे, चाहे लड़का हो या लड़की।

जब महिला आरक्षण और अन्य योजनाओं में दोनों के बीच किसी बात का फर्क नहीं, तो शादी की उम्र में यह विरोधाभास क्यों! कायदा अच्छा है, चर्चा की सलाह भी दुरुस्त है, इसमें दोनों को समान माने जाने की बात को भी जोड़ा जाए तो देखने, सुनने, करने और व्यवहार में लाना और ज्यादा अच्छा लगता।

खान अशु

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