राजनीति क्या क्या तय करती है । जब देश की सत्ता अहंकार के नशे में धुत्त होती है तो एक अंधकार पनपता है । समाज के मानदंड बिगड़ते हैं । राजनीति अपने टुच्चेपन के शिखर पर आ जाती है । विपक्ष मातम मनाने की स्थिति में दिखने लगता है । जरा कल्पना कीजिए आज देश में समाज और राजनीति का जो आलम है क्या वह इससे भिन्न है । आज की सत्ता का अहंकार हर चीज को धराशायी कर देना चाहता है । बड़े पैमाने पर खेल होता दिख रहा है । सत्ता में बैठे लोग विपक्ष की मजबूती की बात करते हैं । राजा विपक्ष को नेस्तनाबूद कर देना चाहता है । इंसान चक्करघिन्नी की तरह अपनी ही धुरी पर नाचने को मजबूर हैं । काला सफेद भी है और सफेद काला सा भी नजर आता है पर देखें तो सब मटमैला है।
आप कह सकते हैं कि हम एक अकल्पनीय युग में प्रवेश कर रहे हैं जो अंधा है । इसमें से क्या निकलेगा कुछ नहीं कहा जा सकता । राजनीति , मीडिया, सिनेमा सब तरफ एक भीषण संग्राम है । न कभी हमने ऐसी राजनीति देखी, उसकी कल्पना की और न मनोरंजन के नाम पर ऐसा ओटीटी प्लेटफार्म देखा । राजनीति नंगी है तो ओटीटी पर दिखाया जाने वाला भी सब कुछ नंगा है । कौन जानता था कि एक दिन ऐसा भी आएगा जहां सड़क का मलबा हमारे ड्राईंगरूम में फैल जाएगा । हम समझ नहीं पाएंगे कि इस मलबे को खुला छोड़ दें या इस पर तिरपाल डाल दें । मेरा आशय ओटीटी पर दिखाई जाने वाली तरह तरह की वेबसीरीज है । सिनेमा में सेंसर है । ओटीटी की भाषा और कंटेंट पर कोई न सेंसर है , न बंदिश है । आप जो चाहें जैसा चाहें परोसें । हर हाथ में ओटीटी है । ओटीटी पर आने वाली वेबसीरीज बताती हैं कि कलियुग अपने चरम पर है । एक सत्य को नंगा करके प्रस्तुत करना होता है चाहे वह कितना ही फूहड़ क्यों न हो जाए । दूसरा सत्य को परछाईं के साथ प्रस्तुत करना होता है जिसमें यथार्थ जिंदा रहता है । एक ओर पंचायत, गुल्लक, कोटा फैक्टरी, असुर, ये मेरी फैमिली जैसी वेबसीरीज हैं और दूसरी तरफ सैक्रेड गेम्स, शी, आश्रम, मिर्जापुर, फैमिली मैन, पाताल लोक, दिल्ली क्राइम, स्पेशल आपरेशन और अपहरण जैसी वेब सीरिज हैं जहां सेक्स की ‘नंगई’ और मां बहन के साथ किसी वीभत्स गाली का पर्याय शेष नहीं रह जाता जो प्रस्तुत न किया गया हो । एक धारणा शायद मजबूत होकर चलती है कि जिसमें जितनी गालियां और नंगई वह उतना ही ज्यादा लोकप्रिय । क्या नहीं कहा जाना चाहिए कि राजनीति और समाज अंधे कुएं की मुंडेर पर बैठे हैं । कोई दस बारह साल पहले ‘सैक्रेड गेम्स’ की भाषा ने अवाक कर दिया था हर किसी को । हम फिल्मों और टेलीविजन सीरियल्स को जानते थे । न जाने कहां से एक कीचड़ की भांति ओटीटी प्लेटफार्म आया । जहां जितना अच्छा है, यकीनन अच्छा भी है , पर उससे कहीं ज्यादा फैलाव लिए वह है जो अच्छा कम और वीभत्स ज्यादा है । कहानी में इस कदर गुंथा कि जिसे न निगला जाए और न उगला जाए । इसे एक घोर षड़यंत्र का नाम क्यों न दिया जाए । अंतरराष्ट्रीय षड़यंत्र भी कह सकते हैं । समाज में जो कुछ श्लील है, सत्य है, सभ्य है , चेतन है हर किसी को मदहोश बना देने के लिए । यह हमारी आज की राजनीतिक सत्ता को ‘सूट’ करता है । समाज सत्य और यथार्थ से जितना दूर और भ्रमित रहेगा मौजूदा सत्ता या सरकार उतनी ही मजबूती से अपना एजेंडा लागू करने में सफल रहेगी । सो कहानी में थ्रिल भी हो, रोमांच और कौतूहल भी हो और सेक्स व गालियों का जबरदस्त तड़का भी हो । पुरुष हो या स्त्री, नामी गिरामी नायक – नायिका हों या खलनायक , पुलिस हो या सीबीआई के अधिकारी हर किसी को गंदी से गंदी गाली सहजता के साथ देते हुए आप देखेंगे । सेक्रेड गेम्स में नवाजुद्दीन सिद्दीकी, सैफ अली खान या फैमिली मैन में मनोज वाजपेई । अब किसी को किसी तरह का परहेज नहीं रहा । कहानी की मांग है । हर हाथ में मोबाइल का मतलब है कि हर झुग्गी झोपड़ी या गंदी कहीं जाने वाली बस्तियों में भी रात के अंधेरों में हर कोई किसी भी उम्र का कोई भी – बच्चा, युवा और बुजुर्ग मस्त है। क्या समाज में बढ़ते अपराधों से इस बीमारी को आप अलग कर सकते हैं । शुरू में ही यह भी बताया गया है कि ऐसी वेब सीरिज भी हैं जो स्वस्थ तरीकों से हमें गुदगुदाती भी हैं । हम परिवारों के साथ बैठ कर उन्हें देख सकते हैं , मिसाल के तौर पर ‘पंचायत’ । लेकिन इनकी संख्या तो बेहद कम है । ‘अपहरण’ को ही देखिए जहां शुरू से ही बाप अपनी बेटी बहुओं के सामने ही घिनौनी गालियों से शुभारंभ करता है यह सिलसिला आद्यंत अंत तक चलता है । वह ‘बालाजी ALT’ की पेशकश है । पहली सीरीज के दो एपीसोड भी बड़ी मुश्किल से देखें । तौबा !! नब्बे के दशक में टाइम्स आफ इंडिया ने अखबारों में ‘सेनिटरी नेपकिन’ की सप्लाई करके हर किसी को चौंका दिया था ।
कल का ‘अभय दुबे शो’ स्मरणीय रहा । मुसलमानों को लेकर इस सरकार की जो अंतरराष्ट्रीय छवि बन रही है उसने इस सरकार को भीतर ही भीतर कहीं परेशान किया है । इसलिए आज पूरे योजनाबद्ध तरीकों से मुसलमानों को साथ लाने की कोशिशें सरकार द्वारा की जा रही हैं । योजनाबद्ध इसलिए कि एक ओर मुसलमानों पर बेखौफ अत्याचार और दूसरी ओर आरएसएस प्रमुख का मुसलमानों की भावनाओं पर मरहम लगाते रहना , बराबर चल रहा था । जो संदेश अपनों के बीच और मुसलमानों के बीच दिया जाना था , वह लगातार दिया गया । अपने भी समझें और मुसलमान भी । मोदी ने 2014 से पहले से जिस तरह ‘इंडिया’ को छोड़ ‘भारत’ के गरीब वर्ग को टारगेट किया अब ठीक उसी तरह मुसलमानों में एकदम रसातल में जी रहे मुसलमानों यानी ‘पसमांदा’ मुसलमानों साथ लेने की मशक्कत शुरू की है । इसी संदर्भ में कल का ‘अभय दुबे शो’ था। संतोष भारतीय और अभय दुबे के अलावा पसमांदा मुसलमानों पर बेहद शिद्दत के साथ काम करने वाले और यहां तक कि पसमांदा शब्द ईजाद करने वाले अनवर अली के साथ संतोष भारतीय और दुबे की बातचीत थी । बहुत सार्थक, बहुत स्मरणीय और पसमांदाओं को समझने वाली । अभय दुबे ने दो बातें बहुत साफ रखीं कि यह सरकार मुसलमानों के बिना भी बहुमत प्राप्त कर सकती है । निश्चित रूप से उसे मुसलमानों के वोट नहीं चाहिए । लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मोदी सरकार का इकबाल गिरा है इसलिए और अपनी जीत को और विस्तार देने के लिए मुसलमानों के वोट उसे चाहिए । दूसरा, उन्होंने पसमांदा मुसलमानों के नेतृत्व का सवाल भी उठाया । कल का यह कार्यक्रम पसमांदा मुसलमानों को समझने की दृष्टि से बहुत उपयोगी रहा । संतोष जी का आभार ।
देश के मुख्य न्यायाधीश ने आज की मेन स्ट्रीम मीडिया को ‘कंगारू कोर्ट’ की संज्ञा से नवाजा है । इस पर ‘सत्य हिंदी’ पर दो तीन बहसें हुईं लेकिन गौर करने वाली बहस रात नौ बजे मुकेश कुमार की रही । विनोद शर्मा ने सत्य कहा सर्वोच्च न्यायालय के पास भरपूर अधिकार हैं । आशुतोष ने दूसरी बहस में पूछा मेन स्ट्रीम मीडिया का रवैया या जो कुछ उस पर दिखाया जा रहा है वह बंद कैसे होगा । कोई बताए न बताएं हमारा तो कहना यही है कि महाराज आप इन चैनलों में जाना बंद कर दीजिए और सार्वजनिक अपील दूसरों से भी कीजिए कि जब तक यह मीडिया ‘कंगारू कोर्ट’ की छवि से बाहर नहीं आ जाता तब तक हर समझदार व्यक्ति यहां जाने से परहेज करें । पर आशुतोष ऐसा नहीं करेंगे । क्यों नहीं करेंगे ,समझा जा सकता है । जब तक मेन स्ट्रीम मीडिया और बीजेपी के आईटी सेल पर पर अंकुश नहीं लगता तब हमारा भारतीय समाज इसी तरह बरबाद होता रहेगा । कारवां पत्रिका ने यूं ट्यूब पर बातचीत का सिलसिला शुरू किया है । ताजे चौथे एपीसोड में विष्णु शर्मा के साथ वहीं की आतिरा कानिक्करा की कंगना रनौत की प्रोफाइल पर रोचक बातचीत है । पहले एपिसोड में हरतोष बल के साथ बातचीत है । सत्य हिंदी पर इस बार सवाल जवाब में मुकेश और अंबरीष थे । बढ़िया लगा ।
रवीश कुमार के शो में पेश किये जा रहे व्यंग्यात्मक लहजे को कुछ लोग समझ नहीं पा रहे । बड़ी समस्या है । रवीश भाई से अनुरोध है कि थोड़ा हौले हौले बोलें । उनकी रफ्तार कुछ तेज लगती है ।

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