मोदी सरकार के गठन के बाद अच्छे दिनों की आस लगाए बैठे लोगों ने सोचा था कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनते ही उनके दिन बहुर जाएंगे. सरकारी महकमों, खासकर रेलवे की हालत सुधर जाएगी. लोगों को रेल के जनरल डिब्बे के बाथरूम में बैठकर सफर नहीं करना पड़ेगा. रेल के जनरल डिब्बों में जानवरों से भी बदतर हालत में सफर करने वालों के लिए मोदी सरकार के रेल बजट में कोई जगह नहीं है. आकर्षक घोषणाओं से लबरेज रेल बजट में देश की आम जनता को बुलेट ट्रेन का सपना दिखाना उसकी ग़रीबी का मज़ाक उड़ाना है. भारतीय रेल दुनिया के सबसे बड़े रेल नेटवर्क में से एक है. रोजाना लगभग 2.3 करोड़ लोग रेल यात्रा करते हैं, जिनमें से महज पांच प्रतिशत लोग एसी डिब्बों में यात्रा करते हैं, बाकी बचे हुए 95 प्रतिशत लोग सामान्य अथवा शयनयान श्रेणी में. रेल मंत्री सदानंद गौड़ा ने मोदी सरकार का पहला रेल बजट पेश करते हुए रेलवे में एफडीआई, बुलेट ट्रेन, हाई स्पीड ट्रेन, यात्रियों के लिए ब्रांडेड पैकेज्ड फूड, ट्रेन एवं स्टेशनों में आरओ वाला पानी, वाई-फाई, ट्रेन में काम करने की व्यवस्था जैसी कई आकर्षक घोषणाएं की हैं.
यहां सबसे अहम सवाल यह है कि आख़िर भारतीय रेल महकमा किसके लिए काम कर रहा है, देश के चंद अमीरों के लिए या रोजमर्रा की परेशानियों से दो-चार होने वाले मध्यम वर्ग के लिए या ग़रीबों के लिए? एनडीए सरकार ने जो रेल बजट पेश किया है, वह प्रो-मार्केट और प्रो-एलीट क्लास दिखाई पड़ रहा है. इस बजट में देश के ग़रीब तबके के हाथ कुछ नहीं लगा. नरेंद्र मोदी अच्छे दिन आने वाले हैं और बहुत हुई महंगाई की मार, अबकी बार मोदी सरकार जैसे नारों के साथ सत्ता पर क़ाबिज हुए, लेकिन बजट से पहले ही रेलवे की खराब माली हालत का हवाला देकर यात्री किराये में 14.2 प्रतिशत की वृद्धि कर दी. पूरे देश में इसका विरोध हुआ, लेकिन सरकार ने इसे रेलवे के स्वास्थ्य में सुधार के लिए कड़वी गोली बताया. इसके बाद लोग रेल बजट की प्रतीक्षा कर रहे थे और जानना चाहते थे कि मोदी सरकार भारतीय रेल को पटरी पर किस तरह लेकर आएगी.
सरकार ने रेल बजट तो पेश कर दिया, लेकिन उसने कुछ आधारभूत समस्याओं के बारे में कोई बड़ा निर्णय नहीं लिया गया, जिनसे लोगों को अक्सर रेल में यात्रा की प्लानिंग से लेकर सफर करने तक दो-चार होना पड़ता है. सवाल यह है कि क्या रेल आरक्षण हर वक्तउपलब्ध रहेगा, क्या दो महीने पहले आरक्षण कराने के झंझट से मुक्ति मिलेगी, क्या यात्रियों को टिकट दलालों से छुटकारा मिलेगा, क्या ट्रेनें समय पर चलेंगी, क्या स्टेशनों पर यात्रियों को कुलियों एवं सामान ढोने वाले लोगों की दादागिरी से मुक्ति मिलेगी, क्या रेल हादसे रोकने के लिए कोई ठोस रणनीति बनाई जाएगी और ऐसा कोई हादसा होने पर उसकी ज़िम्मेदारी ली जाएगी?
रेल मंत्री ने बजट भाषण में बताया कि रेलवे 100 पैसे की आमदनी में से केवल 6 पैसे बचा पाता है, जो उसके विस्तार के लिए नाकाफी है. यदि सरकार के पास पैसे की कमी है, तो इसका यह मतलब नहीं है कि वह यात्री किराया बढ़ाकर लोगों की मेहनत की कमाई लेकर अपनी तिजोरी भरती रहे और जनता को उसके बदले मूलभूत सुविधाएं भी न मिलें. किराया या टैक्स बढ़ा देना सबसे आसान नीति है, ऐसा करने के लिए कोई दिमाग लगाने की ज़रूरत नहीं पड़ती. देश की जनता ने मोदी को ऐसी आसान नीतियां लागू करने के लिए वोट नहीं दिया था, बल्कि उसने अपने जीवन को आसान बनाने के लिए वोट दिया था. लेकिन, मोदी मेल भी मनमोहन सिंह की आर्थिक पटरियों पर चलती दिखाई पड़ रही है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बुलेट ट्रेन परियोजना को रेल बजट में जगह दी गई है. मुंबई और अहमदाबाद के बीच भारत की पहली बुलेट ट्रेन चलेगी. सरकार इसके लिए 60,000 करोड़ रुपये खर्च करने जा रही है. वर्तमान में जो एसी ट्रेनें भारत में चल रही हैं, उनसे 500 किमी या इससे ज़्यादा का सफर तय करने के लिए लगभग 1,000 रुपये खर्च करने पड़ते हैं. रंगराजन समिति ने ग़रीबी को लेकर जो आंकड़े पेश किए हैं, उनके अनुसार शहरी क्षेत्र में 47 रुपये प्रतिदिन एवं 1407 रुपये मासिक और ग्रामीण क्षेत्र में 32 रुपये प्रतिदिन एवं 972 रुपये मासिक खर्च करने वाले लोग ग़रीब हैं. ऐसे तीस प्रतिशत लोग स्वत: ही इन सुविधाओं से कोसों दूर हो जाते हैं. इसका मतलब यह कि 10 में से तीन लोगों की पहुंच से रेलवे का एसी डिब्बा कोसों दूर है और बुलेट ट्रेन तो उनके लिए राजा के उस राजमहल की तरह है, जिसे वे दूर से देखकर कोसते हैं. वे यह बात अच्छी तरह जानते हैं कि हम इस जन्म में कभी बुलेट ट्रेन में नहीं बैठ पाएंगे.
रेलवे स्टेशनों को एयरपोर्ट की तरह विकसित करने का क्या मतलब है? क्या एयरपोर्ट की तर्ज पर विकसित किए जाने वाले स्टेशनों में एयरपोर्ट जैसी कई तरह की पाबंदियां होंगी? क्या वहां लोगों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध होगा या उन्हें वहां बोतल बंद पानी खरीद कर पीना होगा? क्या लोगों को वहां घर का खाना ले जाने और खाने की आज़ादी होगी या फिर उन्हें पैकेज्ड फूड खरीद कर खाना होगा? मोदी ने चुनाव के दौरान अपने भाषणों में खुद को ट्रेन में चाय बेचने वाला बताया, लेकिन सरकार जिस तरह से ब्रांडेड पैकेज्ड फूड को बढ़ावा देने की बात कर रही है, उससे तो चाय और दूसरी खाद्य वस्तुएं बेचकर जीवन बसर करने वाले हज़ारों लोगों के बेरा़ेजगार होने की आशंका है. सरकार ने साफ़-सफ़ाई की ज़िम्मेदारी इस काम से जुड़ी व्यवसायिक संस्थाओं को देने की घोषणा की है. सरकार भले ही खाने-पीने की चीजें आपूर्ति करने वाले रेपोटेड ब्रांड की थर्ड पार्टी ऑडिट करने की बात कह रही हो, लेकिन रेलवे में अपना सामान आपूर्ति करने के लिए बड़ी कंपनियां पुरजोर कोशिश करेंगी, इससे भ्रष्टाचार का एक और रास्ता खुल जाएगा. आपूर्ति किए जाने वाले खाने की क़ीमत का निर्धारण कंपनियां करेंगी या रेलवे, कहीं सरकार क्वालिटी फूड के नाम पर लोगों की जेब और ज़्यादा हल्की न कर दे, ये भी बड़े अहम सवाल हैं.
रेल बजट पेश होने के बाद कई टीवी चैनलों पर बहस चल रही थी कि सरकार लोक-लुभावन योजनाओं की राह से हट रही है. क्या वाकई में ऐसा हो रहा है. लोक-लुभावन योजनाओं से दूर हटने का मतलब देश के अमीर तबके के लिए काम करना या उनके लिए योजना बनाना हो गया है. आम लोग डिब्बों के फर्श पर बैठकर यात्रा कर रहे हैं और सरकार अमीर तबके के कम्फर्ट लेबल में इज़ाफा करने की बात कर रही है. रेलवे पब्लिक ट्रांसपोर्ट का सबसे सस्ता एवं प्रमुख माध्यम है. यहां भी अब पब्लिक का मतलब चंद फ़ीसद लोग हो गया है. मोदी सरकार ने रेलवे के लोक हितकारी (पब्लिक वेलफेयर) स्वरूप को बदलने की कवायद शुरू कर दी है. दुनिया में कोई भी ऐसा देश नहीं है, जहां सरकारी पब्लिक ट्रांसपोर्ट को फ़ायदा कमाने वाले संस्थान के रूप में देखा जाता हो, लेकिन भारत सरकार ने बजट में रेलवे को फ़ायदा कमाने वाले संस्थान के रूप में परिवर्तित करने की कोशिश की है. आम जनता, खासकर देश की ग़रीब जनता को इसका कोई लाभ नहीं मिलने वाला है.
रेल बजट से यह जाहिर होता है कि मोदी सरकार भी असफलता की ओर क़दम बढ़ा रही है, उसने रेल बजट में मनमोहन सिंह की आर्थिक नीतियां आगे ले जाने का काम किया है. यह नई हांडी में पुरानी खिचड़ी की तरह है. सरकार का काम लोगों के हित सुरक्षित रखना है, मुनाफ़ा कमाना नहीं. जनता अपेक्षा करती है कि सरकार उसके हित में काम करेगी. सरकार का पहला काम लोगों को मूलभूत सुविधाएंं उपलब्ध कराना है. रेलवे का जनता से सीधा रिश्ता है, लेकिन सरकार बदहाली के नाम पर उसे सीधे तौर पर दुधारू गाय या मुनाफ़ा कमाने वाले संस्थान में बदलने की कोशिश में जुटी है. सरकार अच्छी सुविधाएं देने के नाम पर सब कुछ निजी कंपनियों को सौैंप रही है. क्या यही मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नेंस का मोदी मॉडल है? सरकार हर मर्ज की दवा एफडीआई में तलाश रही है, लेकिन यह देश के लिए सही संकेत नहीं है. मोदी सरकार को अपना प्रत्येक नीतिगत निर्णय सबसे पहले गांधी जी की उस कसौटी पर कसना चाहिए, जिसमें समाज के सबसे कमजोर आदमी को फ़ायदा पहुंचाने की बात कही गई है. अन्यथा, मोदी सरकार के लिए अच्छे दिन लंबे समय तक नहीं बने रहेंगे.
रेल बजट मुख्य बिंदु
1. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश(एफडीआई) के जरिए रेलवे व्यवस्था में सुधार.
2. पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) के ज़रिए पैसा जुटाया जाएगा.
3. साल 2014-15 में पांच नई प्रीमियम रेल गाड़ियां चलाई जाएंगी.
4. छह एसी एक्सप्रेस रेलगाड़ियां, 27 एक्सप्रेस और 8 पैसेंजर गाड़ियां चलाई जाएंगी.
5. अगले पांच सालों में रेलवे के कामकाज को कागज रहित बनाया जाएगा.
6. सभी प्रमुख स्टेशनों को अंतरराष्ट्रीय स्तर का बनाया जाएगा.
7. मुंबई-अहमदाबाद रेलमार्ग पर बुलेट ट्रेन चलाई जाएगी. इसके लिए सभी ज़रूरी अध्ययन कर लिए गए हैं.
8. रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) में 17 हज़ार पुरुष जवानों की भर्ती की जाएगी.
9. महिला यात्रियों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए आरपीएफ में चार हज़ार महिला कांस्टेबलों की भर्ती की जाएगी.
10. ट्रेन में चलने वाली आरपीएफ़ की टीम को मोबाइल फ़ोन दिए जाएंगे.
11. नौ रूटों पर 160-200 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ़्तार वाली सेमी-हाई स्पीड ट्रेनें चलाई जाएंगी.
12. ए-1 और ए श्रेणी के रेलवे स्टेशनों पर वाई-फ़ाई की सुविधा उपलब्ध कराने का प्रावधान.
13. इंटरनेट के जरिए प्लेटफ़ार्म टिकट और अनारक्षित टिकट लेने की सुविधा शुरू की जाएगी.
14. कामकाजी लोगों के लिए ट्रेन में वर्क स्टेशन की सुविधा जाएगी. इसके लिए यात्रियों से शुल्क लिया जाएगा.
15. रेलवे के सभी विश्रामालयों की अब ऑनलाइन बुकिंग की सुविधा शुरू की जाएगी.
16. रेलवे स्टेशन पर सफ़ाई की ज़िम्मेदारी को आउटसोर्स किया जाएगा और पहले यह 50 रेलवे स्टेशनों पर किया जाएगा.
17. कामकाजी लोगों के लिए ट्रेन में वर्क स्टेशन की सुविधा दी जाएगी. इसके लिए यात्रियों से शुल्क लिया जाएगा.
18. रेलवे के सभी विश्रामालयों की अब ऑनलाइन बुकिंग की सुविधा शुरू की जाएगी.