Arun-jaitleyअरुण जेटली का पहला बजट बहुत हद तक निराशाजनक रहा. जनता को इस बजट से बहुत आशाएं थीं, क्योंकि चुनाव प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी ने बड़े-बड़े वादे किए थे. मोदी सरकार के सत्ता में आते ही उसके कामों को लेकर समाचार-पत्रों में कई तरह की अटकलें लगाई जा रही थीं. हालांकि, यह भी सच्चाई है कि पिछले कुछ हफ्तों में सरकार की तरफ़ से ऐसी कोशिशें की गईं, जिनसे लोगों द्वारा सरकार से की जाने वाली अपेक्षाओं में कमी लाई जा सके. बजट में 38 हज़ार किलोमीटर लंबे हाइवे के निर्माण की घोषणा एकमात्र ऐसी घोषणा है, जो प्रधानमंत्री की आधारभूत संरचना के विकास के लिए प्रतिबद्धता को सुनिश्‍चित करती है. हालांकि, कराधान (टैक्सेशन) की दर, कराधान की प्रक्रिया और कांग्रेस की गलतियों में सुधार के लिहाज से यह बेहद निराशाजनक बजट है, ऐसा होने की बिल्कुल भी आशा नहीं थी.
पहला मुद्दा पूर्वव्यापी कराधान (रेट्रोस्पेक्टिव टैक्सेशन) का है. इस संबंध में अरुण जेटली ने वही घोषणा की है, जो पी चिदंबरम ने की थी कि वह इसके लिए एक उच्चस्तरीय कमेटी गठित करेंगे, जो व्यक्तिगत मामलों की जांच करेगी और सुधारात्मक क़दम उठाएगी. भाजपा (राजग) सरकार से यह आशा नहीं थी. उसे पूर्ववर्ती सरकार द्वारा घोषित रेट्रोस्पेक्टिव टैक्सेशन की नीति बदल देनी चाहिए थी और इस बात के लिए प्रतिबद्धता दर्शानी चाहिए थी कि जनता के ख़िलाफ़ कोई रेट्रोस्पेक्टिव क़ानून नहीं बनाया जाएगा. यदि ऐसा कोई क़ानून बनाया भी जाता है, तो किसी भी स्थिति में उसे जनता या करदाता के पक्ष में होना चाहिए. सभी संभ्रांत देशों में यही परंपरा है. रेट्रोस्पेक्टिव टैक्सेशन के जरिये करदाता को परेशान करने की परंपरा पश्‍चिमी देशों अथवा किसी सभ्य समाज में नहीं देखी गई है.
मेरे जैसा स्तंभकार यह सोचता है कि भारतीय जनता पार्टी को बजट से पहले ही एक बड़े नीतिगत निर्णय के रूप में रेट्रोस्पेक्टिव टैक्सेशन में बदलाव की घोषणा करनी चाहिए थी, लेकिन बजट में भी पिछली सरकार की लीक पर चलते हुए इसके लिए कमेटी आदि की घोषणा की गई. इसका मतलब यह कि एक बार फिर नौकरशाही का मकसद पूरा हो गया. नौकरशाहों ने वित्त मंत्री को लीक से हटकर कुछ भी अलग नहीं करने दिया, यह ठीक नहीं है. नौकरशाह हमेशा से अपने हाथों में सत्ता बनाए रखने के लिए काम करते रहे हैं. वे लोगों के हित के लिए किसी नीति या क़ानून में ढील दिया जाना पसंद नहीं करते. यह भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली पहली सरकार है. इससे पहले भाजपा की जो सरकार बनी, वह गठबंधन की सरकार थी. इस बार उससे यह आशा थी कि वह बहुत सारी व्यापार हित वाली नीतियां (प्रो-बिजनेस पॉलिसी) लेकर आएगी, लेकिन उसने रेट्रोस्पेक्टिव टैक्सेशन भी ख़त्म नहीं किया, यह बहुत निराशाजनक बात है.
इसी तरह कर में छूट की बात है. एक महीने पहले तक यह बात चल रही थी कि इसे दो लाख से बढ़ाकर पांच लाख रुपये कर दिया जाएगा, लेकिन बाद में इसमें उसने कटौती कर दी और छूट की सीमा बढ़ाकर 2 लाख से 2.5 लाख रुपये कर दी गई, जो कि बेमानी है. नौकरशाही हमेशा कहती है कि छूट की वजह से राजस्व घाटा होगा, लेकिन वित्त मंत्री को यह पूछना चाहिए था कि राजस्व घाटा कितना हो रहा है? ताकि इसकी भरपाई दूसरे करों के जरिये कर ली जाए. जब आप करोड़ों लोगों या करोड़ों करदाताओं को राहत देंगे, तो इससे न केवल सरकार की छवि सुधरेगी, बल्कि करदाताओं के पास पैसा भी बचेगा. इस पैसे को वे शेयर बाज़ार, म्यूचुअल फंड या अर्थव्यवस्था में निवेश करेंगे. पहले से ही महंगाई की मार झेल रहे करदाताओं पर अतिरिक्त टैक्स लगाना ठीक नहीं है. बजट में उन्हें कोई बड़ी राहत नहीं है और न उन्हें कराधान में कोई बड़ी छूट दी गई है, यह अंतर यहां दिखाई पड़ रहा है.
यह बजट एक तरह से पी चिदंबरम की प्रशंसा है. आज चिदंबरम आसानी से कह सकते हैं कि चुनाव में भाषण देना एक अलग बात है और वास्तविकता का सामना करना दूसरी बात है. चिदंबरम आज इस बात पर खुशी महसूस कर रहे होंगे कि नए वित्त मंत्री उनकी राह पर ही चलते दिखाई पड़ रहे हैं, जिस तरह वह पारंपरिक तरीके से यहां-वहां थोड़ा-बहुत परिवर्तन करके काम कर रहे थे. बजट में कोई बड़ी पहल नहीं की गई है. इससे वे लोग बेहद निराश हैं, जिन्होंने भाजपा को वोट दिया था. यह हम जैसे सामाजिक प्रजातंत्रवादी (सोशल डेमोक्रेट) के लिए निराशाजनक नहीं हो सकता, क्योंकि यह पिछले 15-20 सालों से चली आ रही परिपाटी है. लेकिन, यदि यहां व्यापार के लिए फ़ायदे वाली (प्रो-बिजनेस फ्रेंडली) सरकार है, तो इस संबंध में व्यापक पैमाने पर निर्णय लेने की आवश्यकता है. उनके पास ऐसा करने के लिए चार और मा़ैके हैं, क्योंकि भाजपा ने पांच साल तक सरकार चलाने का अवसर अर्जित किया है.
हालांकि, पहला मौक़ा अपना कौशल दिखाने का सबसे बेहतरीन मौक़ा होता है, जिसे सरकार ने खो दिया. छूट की सीमा में कोई खास बढ़ोतरी नहीं की गई. अन्य घोषणाओं में निवेश में छूट की सीमा बढ़ाकर एक लाख से 1.5 लाख रुपये कर दी गई है. ये सभी बहुत छोटे बदलाव हैं, इनका अर्थव्यवस्था और लोगों के मिजाज पर कोई फ़़र्क नहीं पड़ेगा. इसे सतर्कता से तैयार किया गया बजट कहा जा सकता है, जिसमें लोगों के लिए कुछ खास नहीं है. कई निर्णय डरते हुए लिए गए हैं. यह बजट न घर का है, न घाट का. 1985 में वित्त मंत्री वी पी सिंह ने नौकरशाही की सलाह के विपरीत टैक्स की दर में कमी की थी. परिणाम स्वरूप राजस्व में इज़ाफा हुआ था, न कि कमी. वित्त मंत्री को मुखर होकर नौकरशाही की अवहेलना करनी होगी. कुल मिलाकर बजट भाजपा का कम और कांग्रेस का ज़्यादा दिखाई पड़ रहा है.

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