Santosh-Sir20 अक्टूबर को अचानक लखनऊ जाने का कार्यक्रम बन गया. मैं लखनऊ पहुंचा और शिष्टाचार मुलाकात करने शिवपाल सिंह यादव के यहां चला गया. शिवपाल सिंह जी से उत्तर प्रदेश के विकास के सवालों के ऊपर बातचीत हो रही थी और मैं उनसे पूछ रहा था कि उत्तर प्रदेश सरकार विकास की आख़िर क्या प्राथमिकताएं तय कर रही है कि अचानक उन्होंने कहा, चलिए मुख्यमंत्री से मिलकर आते हैं. मैं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से कभी मिला नहीं था और मैंने इसे एक अवसर माना कि कम से कम आमने-सामने की मुलाकात उस मुख्यमंत्री से होगी, जो देश में संभवत: इस समय सबसे कम उम्र का मुख्यमंत्री है. दूसरे शब्दों में कहें कि देश में मुख्यमंत्री के रूप में जो युवा वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है.
अखिलेश यादव के यहां जब मैं शिवपाल सिंह जी के साथ पहुंचा, तो वह कुछ लोगों से मुलाकात कर रहे थे. हम एक कमरे में बैठ गए. अचानक अखिलेश यादव अपनी चिर-परिचित मुस्कान के साथ कमरे में दाखिल हुए. शिवपाल सिंह ने उनसे मेरा परिचय कराया. अखिलेश यादव ने कहा, मैं चौथी दुनिया के बाकी सारे लोगों से मिलता रहता हूं, पर मैं कभी संतोष जी से नहीं मिला. बहरहाल, यह शुरुआत के पांच मिनट की औपचारिकताओं और चाय के आदेश के बाद वही मुद्दा उठ खड़ा हुआ कि उत्तर प्रदेश के विकास का एजेंडा आख़िर है क्या? अखिलेश ने अपनी कल्पना बताई. विकास के तरीके को बताया. अखिलेश ने अपनी कल्पना की विकास गति और उत्तर प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी की गति के बीच के अंतर्विरोध को भी स्वीकार किया. उन्होंने यह भी स्वीकारा कि वह जिन-जिन क्षेत्रों में तेजी से चलना चाहते हैं, संयोग की बात कि उसके इंचार्ज अधिकारी उतनी ही धीमी गति से चल रहे हैं. उत्तर प्रदेश पुलिस को लेकर भी अखिलेश यादव ने अपनी नाराज़गी जाहिर की. इस बातचीत को सुनकर मुझे लगा कि देश में व्याप्त यह धारणा पूरी तौर पर सही नहीं है कि अखिलेश यादव विकास की अवधारणा को समझते नहीं हैं. अखिलेश यादव की चिंताओं में भी मुझे कमी नहीं दिखाई दी.
अखिलेश यादव और शिवपाल यादव से बातचीत चल रही थी और मैं अपनी घड़ी देख रहा था, क्योंकि मुझे इस बात का एहसास था कि मैं अपने स्थानीय नेतृत्व से मिलने आया हूं और मैं उन्हें अभी तक बता भी नहीं पाया हूं कि मैं लखनऊ में हूं. दूसरी तरफ़ मुझे इस बात का भी एहसास था कि शायद मुख्यमंत्री को और काम होंगे, काम होने भी चाहिए और वह शिष्टाचार वश कहीं मेरे साथ न बैठे हों. अचानक अखिलेश यादव ने लोहिया ग्राम की चर्चा की. लोहिया ग्राम भूमिहीन लोगों के लिए बनाए गए आवास और उनके लिए किए जा रहे कामों की फेहरिस्त का नमूना बन रहे हैं. अखिलेश यादव ने साथ बैठे शिवपाल सिंह यादव से कहा, चाचा, चलिए कुछ लोहिया ग्राम देख आएं और फौरन मुझे कहा कि भारतीय जी, आप चलिए, मैं आपको लोहिया ग्राम दिखाता हूं. शिवपाल सिंह ने कहा भी, क्या अचानक चलना है? अखिलेश यादव ने कहा, अचानक नहीं चलना है, अभी चलना है. अभी भारतीय जी को लेकर लोहिया ग्राम में देखते हैं कि क्या हुआ है? वहां पर कुछ लोगों ने लैपटॅाप सीखे हैं क्या, घर कैसे बने हैं, वहां पर हमने सोलर सिस्टम से रोशनी और पंखे की व्यवस्था की है. देखा जाए कि यह सब काम ठीक से हो भी रहा है कि नहीं. मुझे लगा कि अखिलेश यादव के इस अचानक दौरे का अनुभव लेना चाहिए. मैंने कहा कि मैं ज़रूर आपके साथ चलूंगा.

मैं अखिलेश यादव का यह सारा ऑब्जर्वेशन देख रहा था. और मुझे लग रहा था कि सीएम को वक्त तो कम मिलता है, लेकिन फिर भी अगर सीएम अचानक ऐसे दौरे करने लगें, तो शायद अधिकारियों में काम को लेकर  थोड़ी ज़्यादा ज़िम्मेदारी का एहसास हो. इससे उन मंत्रियों में भी ज़िम्मेदारी का एहसास होगा, जिनके ऊपर इन अधिकारियों को नियंत्रित करने की ज़िम्मेदारी है. मुझे ऐसा लगा कि जिस तरह के प्रोजेक्ट ये अधिकारी उनके सामने रखते हैं, अखिलेश यादव उन्हें पूरा करने में क्या रणनीति अपनाई जाए, इसे लेकर चिंतित तो हैं ही, लेकिन इससे ज़्यादा उनकी चिंता उत्तर प्रदेश में बिजली की स्थिति को लेकर है.

अखिलेश यादव ने फौरन अपने एक वरिष्ठ साथी और मंत्री, प्रख्यात समाजवादी नेता राजेंद्र चौधरी को बुलवा लिया. साथ ही उन्होंने स्थानीय ज़िलाधीश को भी बुलवाया और 20 मिनट के भीतर ही हम कारों में बैठ गए तथा हम लखनऊ के नज़दीक मोहनलाल गंज ब्लॉक के भसंडा गांव में पहुंच गए. व्यवस्था अपना काम करती है, शायद 20 मिनट या 25 मिनट का अंतराल रहा होगा, स्थानीय अधिकारी जो भी उपस्थित हो सकते थे, हमारे गांव पहुंचने तक गांव में पहुंच गए थे. गांव की शुरुआत में ही अखिलेश यादव ने गाड़ी रुकवाई और हम एक घर में चले गए. वह घर एक भूमिहीन का घर था, जिसे उत्तर प्रदेश शासन ने दो या ढाई कमरे बनवा कर दिए थे. अखिलेश यादव एक कमरे में घुसे. मैं भी उनके साथ था. शिवपाल जी और राजेंद्र चौधरी जी भी साथ में थे और कमरे की लंबाई-चौड़ाई देखकर अखिलेश यादव ने सवाल करने शुरू किए, बिजली को लेकर सवाल किए. घर में रहने वाले दंपत्ति को बुलाकर उन्होंने पूछा कि यह घर कैसा है, आपको कितना पैसा मिला बनाने के लिए? उसने ईमानदारी से बताया कि मुझे एक लाख 30 हज़ार रुपये मिले हैं. जिसमें हमने दो कमरें और एक छोटी-सी रसोई बनाई है. अखिलेश यादव हर कमरे में गए और फिर उन्होंने उस महिला से पूछा, तुमने खुला तार क्यों रखा है? जहां बिजली का प्लग होता है, वहां एक खुला तार था. उसने कहा कि गर्म होकर स्विच जल गया है, इसलिए हमने यह तार निकाल कर डायरेक्ट कर दिया है. अखिलेश यादव फौरन उसके पास आए. उन्होंने देखकर कहा कि तारों को लगाने में गड़बड़ियां हुई हैं.
उनके साथ गए अधिकारी ने कागज पर यह नोट कर लिया. अखिलेश यादव बाहर निकले. उन्होंने बच्चों को बुलाया और पूछा, किताबें मिली हैं? बच्चे दौड़कर अपनी किताबों का पूरा बंच अखिलेश यादव को दिखाने के लिए ले आए. फिर अखिलेश यादव ने पूछा, क्या यहां पर किसी के पास लैपटॉप है? एक लड़की लैपटॉप लेकर आई. लैपटॉप के ऊपरी हिस्से पर धूल जमी हुई थी. अखिलेश यादव ने उससे पूछा, क्या तुमको लैपटॉप चलाना आता है. उसने लैपटॉप चलाने की बात कही, तो अखिलेश यादव ने कहा, अच्छा, तुम दिखाओ कि तुम इसमें क्या सीखी हो. वह लड़की मुख्यमंत्री को सामने देखकर हड़बड़ा गई और वह आधा-अधूरा ही अखिलेश यादव को बता पाई. मैं समझ गया कि यह मुख्यमंत्री को अचानक अपने बीच में पाने के बाद जिस तरीके का माहौल पैदा होता है और जिस तरह से भीड़ वहां इकट्ठी हो गई थी, उसका दबाव सामने था, जिसमें वह लड़की आधा-अधूरा ही बता पाई. अखिलेश यादव ने ग्राम प्रधान को बुलाया. वहां गांव के और लोग भी आ गए, जिनमें मुस्लिम समुदाय के लोग ज़्यादा थे. उन्होंने अखिलेश यादव से कहा कि यहां बिल्डर हमारी ज़मीन जबरदस्ती हड़पने की कोशिश कर रहे हैं. यहां हम शिकायत करते हैं, लेकिन डीएम साहब हमारी शिकायत के ऊपर काम नहीं कर पाते. अखिलेश यादव ने बिल्डरों के नाम पूछे और उसके बाद वह आगे बढ़ गए.
अखिलेश यादव बच्चों के स्कूल में रुक गए, जो उसी गांव में क़रीब दो सौ मीटर दूर था. वहां अखिलेश यादव कक्षा पांच में गए और उन्होंने छात्रों को किताब में से पढ़ने के लिए कहा. बच्चे ड्रेस पहने हुए थे, जिनमें कुछ को फिट थी, कुछ को नहीं थी. अखिलेश यादव ने इसे भी नोट किया. इसके बाद वह कक्षा एक में गए और वहां उन्होंने बच्चों से कुछ कविताएं सुनने की और कुछ बात करने की कोशिश की, पर बच्चे पूर्णत: जवाब नहीं दे पाए. अचानक अखिलेश यादव ने शिक्षिका से पूछा कि आपका वेतन कितना है? वह हड़बड़ाहट में नहीं बता पाई. कहने लगी, मुझे उनतीस हज़ार रुपये मिलते हैं. तो अखिलेश ने कहा, पर बच्चों को थोड़ा पढ़ाइए. एक साधारण-सी टिप्पणी. फिर अखिलेश यादव ने पूछा कि क्या यहां पर कुछ खाने को मिलता है? बच्चों के लिए दोपहर का भोजन बना हुआ था. एक थाली में सब्जी और रोटी आ गई. अखिलेश यादव ने खुद भी उसमें से एक टुकड़ा खाया और राजेंद्र चौधरी से कहा, इस रोटी और सब्जी को हम लोग अपने साथ ले चलेंगे. शायद वह उसकी गुणवत्ता की जांच कराना चाहते होंगे. वह बाहर निकले, प्रेस वालों से बात की और वापस चल दिए. रास्ते में अखिलेश यादव संभवत: इस क्षेत्र के एडमिनिस्ट्रेटिव सेंटर पर पहुंचे और वहां उन्होंने इंजीनियर को बुलाया. इंजीनियर से पूछा, यहां पर सड़कें टूटी हुई क्यों हैं? उन्होंने कहा, यहां कोई पार्क हो तो दिखाइए. कालिंदी पार्क के नाम से एक अच्छा विकसित किया हुआ पार्क था. अखिलेश उसमें गए और उन्होंने वहां पर पेड़ों के नाम इंजीनियर से पूछे. वहां जो व्यक्ति देखभाल करता था, उससे जानकारी ली. मजे की बात यह कि पार्क जनता के लिए बंद था, जिसके उपर अखिलेश यादव का ध्यान गया.
अब तक तीन घंटे बीत चुके थे. हम वापस मुख्यमंत्री निवास पर आए. मुख्यमंत्री निवास के बाहर खड़े होकर अखिलेश यादव ने अपने सचिव को बुलाया, अफसरों को बुलाया और कहा, मैं जितनी चीजें देखकर आया हूं, आप लोग फौरन जाएं और वहां उनकी जांच करें, क्योंकि मुझे ऐसा लगता है कि वह कमरा छोटा है, कमरे बड़े होने चाहिए, जिससे कम से कम उसमें दो चारपाइयां तो लग सकें. किसने इस नक्शे को पास किया? स्वाभाविक था अफसरों में थोड़ी-सी चिंता पैदा हुई. अखिलेश यादव ने कहा, कमरे का कारपेट एरिया बढ़ाया जाए. उन्होंने इस पर विशेष आदेश दिया कि यह जो शिक्षिका थीं, शायद कांट्रैक्ट टीचर थीं. मतलब, टीचर कोई है और उसने अपनी जगह पढ़ाने के लिए किसी और को भेज दिया है, क्योंकि उन्हें कुछ आता नहीं था. वह हड़बड़ा गई थीं. खाने की क्वालिटी पर उन्होंने संतुष्टि जाहिर की, पर सड़कों की स्थिति, पार्क की स्थिति, स्कूल की स्थिति पर वह नाखुश दिखे. उन्होंने आदेश दिया अधिकारियों को कि जिसने भी तारों को वहां पास किया है, उसकी जांच हो, क्योंकि वह सब गुणवत्ता के पैमाने पर कम उतर रहे हैं. अखिलेश यादव ने बिल्डरों द्वारा गांववालों की जमीन कब्जा करने की शिकायतों की गंभीरता से जांच करने की बात भी कही.
मैं अखिलेश यादव का यह सारा ऑब्जर्वेशन देख रहा था. और मुझे लग रहा था कि सीएम को वक्त तो कम मिलता है, लेकिन फिर भी अगर सीएम अचानक ऐसे दौरे करने लगें, तो शायद अधिकारियों में काम को लेकर थोड़ी ज़्यादा ज़िम्मेदारी का एहसास हो. इससे उन मंत्रियों में भी ज़िम्मेदारी का एहसास होगा, जिनके ऊपर इन अधिकारियों को नियंत्रित करने की ज़िम्मेदारी है. मुझे ऐसा लगा कि जिस तरह के प्रोजेक्ट ये अधिकारी उनके सामने रखते हैं, अखिलेश यादव उन्हें पूरा करने में क्या रणनीति अपनाई जाए, इसे लेकर चिंतित तो हैं ही, लेकिन इससे ज़्यादा उनकी चिंता उत्तर प्रदेश में बिजली की स्थिति को लेकर है. और शायद वह अपनी प्राथमिकताएं बिजली को लेकर तय कर रहे हैं. कैसे विद्युत उत्पादन बढ़े और कैसे वह अपने प्रदेश में विद्युत उपलब्ध करा पाएं, तो विकास का पहिया कैसा चलेगा, इसका एहसास उन्हें हो गया है.
सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण है, उत्तर प्रदेश को लेकर सारे देश में पड़ी हुई छाप और उत्तर प्रदेश में इस छाप को बदलने का कोई सिलसिला मुझे नज़र नहीं आया. मैं जब लखनऊ में कुछ मित्रों से मिला और उन्हें बताया कि आज मैंने मुख्यमंत्री को अचानक दौरा करते हुए और इन-इन चीजों पर बात करते हुए पाया, तो उनमें से एक ने कहा, आप थे, तो अखिलेश यादव इतने सावधान थे और उन्होंने इतनी सारी चीजों पर अपनी नज़र रखी. अगर आप न होते, तो शायद यह नहीं होता. मुझे उस मित्र की बात पूर्वाग्रह से ग्रसित लगी, क्योंकि मुझे कहीं भी नाटक समझ में नहीं आया. पत्रकारिता के अपने अनुभव में मैं समझने की कोशिश करता हूं कि कौन नाटक कर रहा है और कौन नाटक नहीं कर रहा है. मैंने अपने मित्र से कहा भी कि यह शायद नाटक नहीं है. पर हां, चूंकि इतने तरह के नाटक देश में होते हैं, तो हो सकता है कि आपको अच्छी बात भी नाटक लगे. मैंने अपने स्थानीय साथी एवं चौथी दुनिया के संपादक मंडल के वरिष्ठ सदस्य प्रभात रंजन दीन से कहा कि उत्तर प्रदेश के उन हिस्सों पर नज़र रखी जाए, जो सचमुच बहुत वंचित हैं और कम से कम उन चीजों की रिपोर्ट की जाए, जिनके बारे में रिपोर्ट होनी चाहिए, लेकिन रिपोर्ट नहीं हो रही है. फील्ड रिपोर्ट उत्तर प्रदेश की बढ़नी चाहिए और यह पता चलना चाहिए कि बिजली, पानी एवं सड़कों को लेकर उत्तर प्रदेश की कोशिशों की दिशा क्या है? लेकिन, मैं इतना ज़रूर कह सकता हूं कि मुझे अखिलेश यादव के उस दौरे में ईमानदारी दिखाई दी, कोई राजनीति नहीं दिखाई दी. और, अगर मैं ग़लत नहीं हूं, तो मुझे अखिलेश यादव में एक ईमानदारी भी दिखाई दी.

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