मैं यहां सांसदों को भी बताना चाहता हूं कि सर्वोच्च न्यायालय ने यह फैसला किया है कि आधार कार्ड अनिवार्य नहीं किया जाएगा. सर्वोच्च न्यायालय इस बारे में दो-दो, तीन-तीन बार अपनी बात कह चुका है, लेकिन यह सरकार हर जगह आधार कार्ड को अनिवार्य बना रही है. इसका मतलब यह कि कहीं न कहीं कोई निहित स्वार्थ रहा है. और, सरकार ने अघोषित आदेश दिया है कि जो शख्स आधार कार्ड न दे, उसका कोई भी काम कोई विभाग न करे. क्या सर्वोच्च न्यायालय को अपने ़फैसले के उल्लंघन की चिंता नहीं है? क्या सर्वोच्च न्यायालय के तमाम सम्मानीय जज आधार कार्ड की सच्चाई से अपरिचित हैं?
हमारी संसद में बैठे लोगों के ऊपर अगर हम कुछ कहें, तो उनकी नाक-भौंह चढ़ जाती है. उन्हें लगता है कि वे देश के सर्वशक्तिमान लोग हैं और उनके ऊपर कुछ भी कहना देशद्रोह है. यह मनोविज्ञान तानाशाही का मनोविज्ञान है. और, यह तानाशाही का मनोविज्ञान उस देश में पनप रहा है, जो दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है. हम अगर सर्वोच्च न्यायालय के ऊपर कुछ कहें, तो सर्वोच्च न्यायालय उसे अपनी अवमानना मान लेता है. लेकिन, आज हम विनम्रतापूर्वक संसद से भी कुछ कहना चाहते हैं और सर्वोच्च न्यायालय से भी निवेदन करना चाहते हैं.
संसद में, जिनमें लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदन शामिल हैं, बैठे लोगों को क्यों के पीछे का देशद्रोह नज़र नहीं आता? आधार कार्ड बनाने का फैसला क्यों हुआ? आधार कार्ड किसके कहने पर बनाए जा रहे हैं? आधार कार्ड में क्या-क्या जानकारियां ली जा रही हैं और उन जानकारियों का नियंत्रण किसके पास है और वे कहां एकत्रित की जा रही हैं? क्या इस बारे में हमारे संसद सदस्य जानकारी रखना नहीं चाहते या जानकारी करना नहीं चाहते हैं? आ़िखर ऐसा क्यों? देश के संसद सदस्यों की यह ज़िम्मेदारी है कि वे देश के ख़िला़फ होने वाली किसी भी गतिविधि को, किसी भी घटनाक्रम को, किसी भी अनियमितता को रोकें और सवाल उठाएं. देश के सांसद स़िर्फ अपने चुनाव क्षेत्र के प्रति ज़िम्मेदार नहीं हैं. वह तो विधायक का काम है. देश के सांसद देश के प्रति ज़िम्मेदार हैं और जब देश के सांसद उस ज़िम्मेदारी का निर्वहन न करें, तो इसका मतलब है कि वे न केवल ग़ैर-ज़िम्मेदार हो रहे हैं, बल्कि ग़ैर-ज़िम्मेदार की परिभाषा से ज़्यादा कुछ और हो रहे हैं.
देश का मीडिया, देश की ब्यूरोक्रेसी और देश के सांसद आधार कार्ड के बारे में अपने-अपने निहित स्वार्थों की वजह से ख़ामोश हैं और यह ख़ामोशी देश को पूर्णतया आर्थिक और राजनीतिक ग़ुलामी की ओर धकेल रही है. अगले बीस सालों में कौैन देश का धारदार नेता हो सकता है, कौन ब्यूरोक्रेट महत्वपूर्ण पदों पर जा सकता है, कौन-कौन अफसर सेनाध्यक्ष हो सकते हैं, किन-किन खुफिया एजेंसियों में किसकी प्रोन्नति कब होगी और किससे कब क्या काम लिया जा सकता है, जैसी जानकारियां आधार कार्ड के ज़रिये हम आज विदेशियों के हाथों में भेज रहे हैं और हम विदेशियों को अपनी नियति सौंप रहे हैं, ताकि वे उस हिसाब से बिना अपनी सेना भेजे, स़िर्फ पैसा और सुविधाएं उन लोगों को मुहैया कराएं, जो भविष्य में देश की सत्ता का संचालन करेंगे. वे (विदेशी) हमारे देश के मीडिया का संचालन करेंगे और हमारे देश की न्याय व्यवस्था का संचालन करेंगे. अब इसके लिए किसी और तरह की एजेंसी की ज़रूरत नहीं है. अब इसके लिए कुछ भी आवश्यक नहीं है.
यह सारा काम आधार कार्ड कर रहा है, जिसे मनमोहन सिंह सरकार ने नंदन नीलेकणी की लीडरशिप में शुरू कराया था. इस अंक में हमने आधार कार्ड को लेकर सारी जानकारी मुहैया कराई है और हम सरकार को चुनौती देते हैं कि वह इस जानकारी को ग़लत साबित करे. इसमें निकाले गए तथ्यों को ग़लत साबित करे. और, यह चुनौती हम स़िर्फ इसलिए दे रहे हैं, क्योंकि हम इसे अपना कर्तव्य मानते हैं कि हमें देश की गिरवी रखी जाने वाली आज़ादी की हिफाजत में सार्थक योगदान करना चाहिए. हम नहीं चाहते कि यह आज़ादी कोई भी सरकार गिरवी रखे.
हम अपने देश के सांसदों को क्या कहें, ग़ैर-ज़िम्मेदार से आगे भी क्या कोई शब्द हो सकता है? क्या हम उन्हें राजनीतिक रूप से अनपढ़ कह सकते हैं? हम उन्हें देशद्रोही तो नहीं कहना चाहते, लेकिन काम देशद्रोह का हो रहा है. पूरा देश विदेशी कंपनियों के हाथों में गिरवी रखा जा रहा है, हमारी सारी जानकारियां उनके पास जा रही हैं और हमारे सांसद चुप हैं. संसद में इसके ऊपर सवाल उठाए नहीं जा रहे, संसद में इसके ऊपर बहस नहीं हो रही है.
क्यों इस बात से अनजान हैं दोनों सरकारें, मनमोहन सिंह की सरकार भी और नरेंद्र मोदी की सरकार भी कि देश की सारी जानकारियां विदेशियों को आ़िखर किस वजह से दी जा रही हैं? इसमें मनमोहन सिंह सरकार के किस मंत्री का निहित स्वार्थ है? कौन अमेरिका के एजेंट की तरह काम कर रहा है या स्वयं नरेंद्र मोदी इस मुहिम की अगुवाई कर रहे हैं? मुझे बहुत आश्चर्य है, क्योंकि जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नहीं बने थे, तब उन्होंने कहा था कि अगर वह सत्ता में आए, तो भारतीय जनता पार्टी की सरकार आधार कार्ड को बैन (प्रतिबंधित) कर देगी. आधार कार्ड के ़िखला़फ संसद में सुषमा स्वराज के बयान हैं और वे बयान नेता विरोधी दल के नाते हैं. लेकिन नई सरकार बनने के बाद, नंदन नीलेकणी और अरुण जेटली की एक घंटे की मुलाक़ात के बाद पूरी सरकार हिंदुस्तान की तमाम जानकारियां आधार कार्ड के ज़रिये विदेशों को भेजने में लग गई है. मनमोहन सिंह सरकार से भी ज़्यादा तेजी से नरेंद्र मोदी सरकार आधार कार्ड का लक्ष्य पूरा करने में लगी हुई है. क्या इस सरकार को कुछ भी ग़लत नज़र नहीं आता? और, यही सवाल हम सांसदों से कर रहे हैं तथा उनसे कहना चाहते हैं कि अगर आप देशद्रोही की परिभाषा में नहीं आना चाहते और इतिहास में अपने नाम के आगे यह काला शब्द नहीं दर्ज कराना चाहते, तो आज आपको इस आधार कार्ड को लेकर संसद में बहस की मांग करनी चाहिए और सरकार से सारी जानकारी हासिल करनी चाहिए. क्यों संसद में बिल सरकार पास नहीं करा रही है, वह लंबित क्यों पड़ा हुआ है? भूमि अधिग्रहण बिल को पास कराने के लिए तो आप एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं, पर आधार कार्ड का बिल क्यों लंबित पड़ा हुआ है? किसके कहने से साठ हज़ार करोड़ रुपये किस फंड से निकाल कर आपने ख़र्च कर दिए? और, इसका नियंत्रण विदेशी कंपनियों को किसके कहने से सौंपा गया है?
मैं सांसदों से एक पत्रकार होने के नाते यह निवेदन करना चाहता हूं कि यह देश के हित में है कि आप सारी सच्चाई जनता के सामने लाने के लिए सरकार पर न केवल दबाव डालें, बल्कि सरकार को इसके लिए विवश भी करें. अन्यथा यह माना जाएगा कि आप जिस भी पार्टी के साथ जुड़े हुए हैं, वह पार्टी इस देश के लोगों की तो है ही नहीं, इस देश की भी नहीं है. और, जो इस देश के नहीं होते हैं, उन्हें ही देशद्रोही कहते हैं.
क्या हम सर्वोच्च न्यायालय से भी यह आशा करें. मैं यहां सांसदों को भी बताना चाहता हूं कि सर्वोच्च न्यायालय ने यह ़फैसला किया है कि आधार कार्ड अनिवार्य नहीं किया जाएगा. सर्वोच्च न्यायालय इस बारे में दो-दो, तीन-तीन बार अपनी बात कह चुका है, लेकिन यह सरकार हर जगह आधार कार्ड को अनिवार्य बना रही है. इसका मतलब यह कि कहीं न कहीं कोई निहित स्वार्थ रहा है. और, सरकार ने अघोषित आदेश दिया है कि जो शख्स आधार कार्ड न दे, उसका कोई भी काम कोई विभाग न करे. क्या सर्वोच्च न्यायालय को अपने ़फैसले के उल्लंघन की चिंता नहीं है? क्या सर्वोच्च न्यायालय के तमाम सम्मानीय जज आधार कार्ड की सच्चाई से अपरिचित हैं? क्या सर्वोच्च न्यायालय के सम्मानीय जज अपनी ही अदालत में चल रही सुनवाई में आए तथ्यों को अनदेखा करना चाहते हैं? क्या वे सरकार को अपने ही द्वारा दिए गए ऑब्जर्वेशन के ़िखला़फ जाते हुए देखकर सख्ती से यह नहीं कह सकते कि सरकार ऐसा न करे. मैं सर्वोच्च न्यायालय से इसलिए यह अनुरोध कर रहा हूं, क्योंकि लोकतंत्र में बहुत सारी जगहों पर उसने एक आशा पैदा की है. इसलिए सर्वोच्च न्यायालय से यह अनुरोध है कि सरकार द्वारा उसके ऑब्जर्वेशन या उसके ़फैसले की अनदेखी करने के मामले में, जो देश के हितों के साथ जुड़ा हुआ है, हस्तक्षेप करे.
ये बातें मैं बहुत ज़िम्मेदारी के साथ कह रहा हूं, क्योंकि ये सारे तथ्य देश की जनता के सामने नहीं हैं. जनता देश को बंधुआ बनाने के रास्ते पर ले जाने वाले क़दमों का बारीकी से विश्लेषण नहीं करती. पर अ़फसोस यह है कि न राजनेता इस काम को कर रहे हैं और न हमारे मीडिया के दोस्त. सबका कहीं न कहीं कोई हित है. इसलिए हमारा यह आग्रह है सांसदों से भी और सर्वोच्च न्यायालय से भी कि वे आधार कार्ड से जुड़े उन तमाम तथ्यों, जिनका हमने इशारा किया है इसी अंक में अपने आमुख में, के बारे में देश को फौरन जानकारी दें. वरना यह देश सांसदों और सर्वोच्च न्यायालय को कम से कम इस अक्षम्य अपराध के लिए क्षमा नहीं करेगा.