आम आदमी पार्टी का तर्क है कि प्रशांत भूषण एवं योगेंद्र यादव के खिलाफ कार्यवाही इसलिए की गई, क्योंकि वे पार्टी को चुनाव में हराना चाहते थे और उन्होंने शांति भूषण के साथ मिलकर पार्टी को हराने का हरसंभव प्रयास किया. ठीक है, अगर उनके खिलाफ पुख्ता सुबूत थे, तो उन पर कार्यवाही होनी ही चाहिए थी. लेकिन, इसी तर्क के आधार पर फिर अरविंद केजरीवाल के खिलाफ कार्यवाही क्यों नहीं होनी चाहिए, जबकि उन्होंने डंके की चोट पर एक स्टिंग में यह कहा कि वह पार्टी तोड़कर अपने 67 विधायकों के साथ मिलकर एक नई पार्टी बना लेंगे.

rah-m-bhatak-gai-aapपूरे मार्च महीने के दौरान और उसके बाद आम आदमी पार्टी के भीतर जो कुछ भी हुआ और हो रहा है, वह इस पार्टी के स्वराज, पारदर्शिता और अलग राजनीति के दावे को खोखला साबित करता है. मौजूदा घटनाक्रम से यह संदेश गया कि आम आदमी पार्टी एक व्यक्ति-केंद्रित पार्टी है. आम आदमी पार्टी का तर्क है कि प्रशांत भूषण एवं योगेंद्र यादव के ़िखला़फ कार्यवाही इसलिए की गई, क्योंकि वे पार्टी को चुनाव में हराना चाहते थे और उन्होंने शांति भूषण के साथ मिलकर पार्टी को हराने का हरसंभव प्रयास किया. ठीक है, अगर उनके खिलाफ पुख्ता सुबूत थे, तो उन पर कार्यवाही होनी ही चाहिए थी. लेकिन, इसी तर्क के आधार पर फिर अरविंद केजरीवाल के खिलाफ कार्यवाही क्यों नहीं होनी चाहिए, जबकि उन्होंने डंके की चोट पर एक स्टिंग में यह कहा कि वह पार्टी तोड़कर अपने 67 विधायकों के साथ मिलकर एक नई पार्टी बना लेंगे. पूरे घटनाक्रम के दौरान केजरीवाल ने यह संदेश दिया कि पार्टी में क्या होता है, उससे उन्हें कोई मतलब नहीं है. इसलिए राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक ( चार मार्च) के दौरान वह इलाज कराने बंगलुरू चले गए. दूसरी बैठक यानी राष्ट्रीय परिषद के दौरान वह अपनी बात कहकर चले गए.
इसके अलावा, प्रशांत भूषण एवं योगेंद्र यादव को जिस तरीके से निकाला गया, वह भी ठीक नहीं था. निश्चित तौर पर उससे पार्टी की छवि खराब हुई है. कुछ और असहज सवाल हैं, जिनका जवाब पार्टी को देना होगा. गुटबंदी हर पार्टी में होती है, लेकिन अनुशासनात्मक कार्यवाही उनके खिलाफ होनी चाहिए, जिन्होंने अनुशासनहीनता की हो या जनता के बीच पार्टी के निर्णय के ़िखला़फ कुछ कहा हो. प्रोफेसर आनंद कुमार के ़िखला़फ कार्यवाही क्यों की गई, यह नहीं बताया गया. मारलीना की प्रवक्ता पद से क्यों छुट्टी हुई, इसके लिए भी एक लुंजपुंज सा बहाना पेश किया गया. आम आदमी पार्टी में चल रही अंदरूनी लड़ाई का सबसे कुरूप चेहरा राष्ट्रीय परिषद की बैठक में दिखा, जब प्रशांत भूषण एवं योगेंद्र यादव को पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी से बाहर कर दिया गया. भारी हंगामे और नाटकीय घटनाक्रम के बीच आनंद कुमार एवं अजीत झा को भी राष्ट्रीय कार्यकारिणी से हटाने के लिए राष्ट्रीय परिषद में प्रस्ताव पारित किया गया और आरोप-प्रत्यारोप लगाए गए. केजरीवाल समर्थकों के मुताबिक, प्रशांत-योगेंद्र को बहुमत की मर्जी से राष्ट्रीय कार्यकारिणी से बाहर किया गया. जबकि योगेंद्र यादव एवं प्रशांत भूषण ने आरोप लगाया कि बैठक के दौरान उनके समर्थकों के साथ मारपीट की गई. अनुशासन समिति और राष्ट्रीय कार्यकारिणी से हटाने के बाद पार्टी ने असंतुष्ट नेताओं (योगेंद्र यादव एवं प्रशांत भूषण) को प्रवक्ता पद से भी हटा दिया.
कापसहेड़ा में राष्ट्रीय परिषद की बैठक शुरू से ही हंगामेदार रही. बैठक शुरू होते ही हंगामा शुरू हो गया. वहां पर योगेंद्र यादव के पहुंचते ही केजरीवाल समर्थकों ने नारेबाजी शुरू कर दी. सदस्यों को अंदर प्रवेश दिए जाने को लेकर भी सवाल उठे. योगेंद्र यादव ने इस सबको लोकतंत्र की हत्या तक बताया. इस बैठक में आप के आंतरिक लोकपाल रामदास को भी आने से मना किया गया. लोकपाल की मांग को लेकर देश भर में बड़ा आंदोलन करने और इसी मुद्दे पर पहली बार दिल्ली के मुख्यमंत्री की गद्दी छोड़ने वाले केजरीवाल ने अपनी ही पार्टी के आंतरिक लोकपाल को हटा दिया. वह भी स़िर्फ इसलिए, क्योंकि रामदास ने पार्टी के नीतिगत मुद्दों पर सवाल उठाए थे. अरविंद केजरीवाल पर स्टिंग में कांग्रेस के विधायकों को तोड़ने और साथी नेताओं को गाली देने के आरोप भी सामने आए. इस सबके बाद आप नेता मेधा पाटकर ने मुंबई में संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया और पार्टी से अपने इस्ती़फे का ऐलान किया. उन्होंने दावा किया कि योगेंद्र और भूषण कभी भी पार्टी के ़िखलाफ काम नहीं कर सकते.
जाहिर है, इस पूरे घटनाक्रम के बाद से आम आदमी पार्टी की झाड़ू के एकजुट तिनके बिखरने लगे हैं. देश में लोकपाल की मांग करने वाली पार्टी ने अपने लोकपाल को ही बिना कारण बताए निकाल दिया. आंतरिक लोकतंत्र का नारा स़िर्फ नारा भर रह गया है. सवाल उठाने वाले हर एक आदमी को पार्टी से बाहर निकाला जा रहा है. नवनियुक्त तीन सदसयीय लोकपाल के एक अहम सदस्य राकेश सिन्हा को नियुक्ति के कुछ ही दिनों बाद बाहर का रास्ता दिखा दिया गया, स़िर्फ इस वजह से कि उन्होंने रामदास को निकालने के मुद्दे पर सवाल उठाए थे. आप लोकपाल जनांदोलन से निकली पार्टी थी, जिसने आंतरिक लोकतंत्र और पारदर्शिता पर आधारित वैकल्पिक राजनीति का वादा किया था. लेकिन, आम आदमी पार्टी के आंतरिक घमासान में सिद्धांतों पर व्यक्तिगत मतभेद भारी पड़ रहे हैं. तो क्या वैकल्पिक राजनीति के सपने का अंत हो गया?प

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