आज ब्रज श्रीवास्तव की एक कविता प्रस्तुत है।जो खेल और युद्ध के अंतर पर लिखी गई है।इस कविता पर अनेक महत्वपूर्ण साहित्यिक हस्तियों की टिप्पणियों ने इसे चर्चा योग्य निरूपित किया है।

*कितना अच्छा लग रहा है*

🔷🔷🔷

कितना अच्छा लग रहा है

लोग नाच रहे हैं

ढो़ल बज रहे हैं

बधाई दे रहे हैं लोग और

एक दूसरे को मिठाई खिला रहे हैं

 

आम आदमी घर बैठे बैठे

भरा जा रहा है उमंग में

कितना अच्छा

लग रहा है

 

हुआ क्या है आखिर

जी हां जीत हुई है

विजय हुई है

विजेता हो गया है अपना कोई

कितना अच्छा लग रहा है।

 

किसी का कोई नुकसान नहीं हुआ है

हारी टीम भी बधाई दे रही है

जीती हुई टीम को

कितना अच्छा लग रहा है।

 

यहां विजय शब्द भी 

उत्साह में है

कि वह वहां नहीं है आज 

जहां युद्ध होता है

जहां कुछ लोग मर जाते हैं

एक ही टुकड़ा हारता है जमीन का

मगर पूरी धरती सिसकती है।

 

कितना अच्छा लग रहा है

पराजय यहाँ बस

अगली प्रतियोगिता की तैयारी

का सोचने लगी है।

 

खेल यहांं युद्ध के

बरक्स बने हुए हैं

एक मिसाल.

कितना अच्छा लग रहा है।

 

*ब्रज श्रीवास्तव *

🌻🙏🏻

 

*हीरालाल नागर*

कविता की आखिरी पंक्तयों ने यह कहने को विवश किया है कि खेलों ने दुनिया के देशों के बीच युद्ध की सम्भावनाओं को बहुत कम कर दिया है।

ओलम्पिक गेम हो रहे हैं। जिसे जीत मिलती है, जिस देश को जीत मिलती है, उसके लोग नाच रहे हैं। खुशी से उछल रहे हैं। मिठाइयां बांट रहे हैं। कवि कहता है यह सब देख बहुत अच्छा लग रहा है, लेकिन यही युयुत्सा मनुष्य को आक्रामक बनाती है। युद्ध के लिए उकसाती है। यह बहुत खतरनाक स्थिति है। एक छोटे से भूभाग पर विजय की खुशी अपने पीछे सैकड़ों और हजारों लोगों को रोने को छोड़ जाती है। 

 देशों में खेलों को युद्ध के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई के रूप में सामने आना चाहिए। खेलों की सच्ची खुशी इसी में है।

यह कविता युद्ध के विरुद्ध एक जरूरी हस्तक्षेप करती है। कवि को बधाई। 

कविता की आखिरी पंक्तयों ने यह कहने को विवश किया है कि खेलों ने दुनिया के देशों के बीच युद्ध की सम्भावनाओं को बहुत कम कर दिया है।

ओलम्पिक गेम हो रहे हैं। जिसे जीत मिलती है, जिस देश को जीत मिलती है, उसके लोग नाच रहे हैं। खुशी से उछल रहे हैं। मिठाइयां बांट रहे हैं। कवि कहता है यह सब देख बहुत अच्छा लग रहा है, लेकिन यही युयुत्सा मनुष्य को आक्रामक बनाती है। युद्ध के लिए उकसाती है। यह बहुत खतरनाक स्थिति है। एक छोटे से भूभाग पर विजय की खुशी अपने पीछे सैकड़ों और हजारों लोगों को रोने को छोड़ जाती है। 

 देशों में खेलों को युद्ध के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई के रूप में सामने आना चाहिए। खेलों की सच्ची खुशी इसी में है।

यह कविता युद्ध के विरुद्ध एक जरूरी हस्तक्षेप करती है। कवि को बधाई।

शैलेंद्र शैली,भोपाल.

 

कितना अच्छा लग रहा है ,

भारत की अभावग्रस्त जनता की मानसिक स्थिति ,तथाकथित राष्ट्रवाद के उन्माद पर व्यंग्य करती एक मार्मिक कविता है ।

यह कविता कई सवाल भी खड़े करती है ।राष्ट्रवाद के उन्माद में संकटग्रस्त जनता अपने शोषण के कारण जानने की कोशिश और संघर्ष के पथ से विमुख हो जाती है ।इतना ही नहीं जन शत्रु ,प्रतिगामी , फासीवादी ताकतों की पिछलग्गू हो जाती है ।

संकुचित राष्ट्रवाद को सवालों के कठघरे खड़ी करती इस चिन्ता से युक्त कविता के लिए श्री ब्रज श्रीवास्तव जी को बधाई ।

शैलेन्द्र शैली ।

 

खुदेज़ा खान,जगदलपुर.

 

‘कितना अच्छा लग रहा है’

खिलाड़ियों का विजेता होना।

 

प्रतियोगिता में भाग लेना महत्वपूर्ण है।

हार-जीत बाद की बात।

यहां हारे हुओं को भी अपनी मेहनत पर भरोसा है ,,,, अगली प्रतियोगिता का।

 

खिलाड़ी भावना से खेलना,जीत से अधिक महत्व रखता है।

 

युद्ध एकतरफा होता है, यहां भावनाएं नहीं होतीं केवल कर्तव्य पालन होता है।

 

बहुत सटीक कविता,देश के खिलाड़ी की विजय हमारी विजय है।

यही वो जज़्बा है जो हमें देशभक्ति से भर देता है। 

अच्छा लगना स्वाभाविक है।

मधु सक्सेना, रायपुर. 

हार जीत से परे हार जीत की आत्मीय स्वीकारोक्ति को अभिव्यक्त करती बेहतरीन कविता …

विश्व मैत्री में खेल भावना उन्नति का प्रतीक है । विजय शर्मिंदा नही क्योंकि ये युद्ध नहीं जिसमे उसका नाम रक्त से लिखा गया हो … बल्कि विजय गर्व से भरा भरा आपसी प्रेम और सोहाद्र को 

विकसित कर रहा । सचमुच बहुत अच्छा लग रहा ।

देश ,जाति ,धर्म, की लड़ाई खत्म हो और एक नया विश्व बने ।

आमीन ….💐💐

अजय श्रीवास्तव, अजेय.

 

कितना अच्छा लग रहा है

एक दम समसामयिक कविता-

विजय पराजय के मायने कितने बदल जाते जब ये किसी खेल भावना के संदर्भ में हों वनिस्पत युद्ध के।

कितना अच्छा लगेगा जब सारे विजय पराजय कवि के भावना के समानांतर हों सही गति सही दिशा।

बहुत उम्दा कविता

पूनम सूद, फैजाबाद

कितना अच्छा लग रहा है 

ये भाव अनुभव कर के, 

काश विचार ऐसे रहें सम्पूर्ण विश्व के 

हौसला रहे बरकरार अपनी जीत का 

पर कामना न रहे किसी के हार की … 

  सहज भाव को सरल शब्दों में कहना सबसे कठिन होता है । ब्रज जी को ये कला आती है । इस कविता के लिए आपको साधुवाद ।

 

प्रदीप मिश्र,इंदौर.

 

पराजित मन की रुदन से भरे हमारे समय पर दस्तक देती यह कविता शतुर्मुर्ग मानसिकता को रेखांकित कर रही है। इस कविता को पढ़ते हुए भक्ति काल की सृजन प्रक्रिया का बोध होता है। जब आदमी को अपने उत्थान के लिए कोई आशा की किरण नहीं दिखाई देती है तो वह सबकुछ अपने गढ़े हुए ईश्वर से प्राप्त करता है। इसी तरह से यह कविता युद्ध के बरस्क खेल को रखकर एक ऐसे विजय का उत्सव मना रही जो कल्पना में अत्यंत सुखद है। यथार्थ से पलायन के मनोविज्ञान पर सुंदर कविता के लिए बधाई ।

 

ज्योति खरे,ओमान.

 

युद्ध और खेल में किसी एक देश की विजय तो पक्की हो होती है.

खेल की विजय कुछ दिन बाद दिमाग से नदारत हो जाती है,लेकिन युद्ध की विजय दोनों देशों को तबाह कर देती है.

हारे हुए देश की आत्मा हमेशा सिसकती है और जीते हुए देश की आंखें नम रहती हैं.

ब्रज श्रीवास्तव जी की यह कविता हार और जीत के मूल्यांकन का सजीव चित्रण है और ऐसा आंकलन भी है जिसे पढ़कर पाठक जीत हार के बीच घटित मानसिक आघात से परिचित होता है और उसके भीतर कई सवाल भी जन्म लेंगे.

हाल-फिलहाल लिखी जा रही कविताओं से इतर नए विषय पर लिखी प्रभावी और कमाल की कविता.

बहुत बहुत बधाई

अनिता दुबे.पुणे.

 

बेहतरीन कविता मानव जीवन को उन मूल्यों की अभिव्यक्ति है जो जीवन को गति और विशवास देते है। किसी खेल में हारने जीतने से ज्यादा जरूरी खेल भावना है पारस्परिक संबंध तभी सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते है जब जीतने वाला हारने वाले की तरफ हाथ बढ़ाता है और हारने वाला जीतने के लिए ताली बजाता है तभी यह देखना हमें अच्छा लगता हैं जो कविता कह रही है ।

 

श्रीकांत सक्सेना, दिल्ली.

 

बहुत सुंदर कविता।मानव की समस्त संभावनाओं और क्षमताओं के उत्कृष्ट प्रदर्शन और उनमें स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के माध्यम से उत्तरोत्तर विकास करने के लिए ही खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है।खेल भावना के साथ पारस्परिक भ्रातृत्व की भाव को बढ़ाना।ऐसे समय में जब अखिल विश्व में अविश्वास और असुरक्षा का वातावरण है, खेलभावना से बेहतर विश्व के निर्माण की संभावनाएं जीवित रहती हैं। कविता के माध्यम से युद्ध और टकराव की निरर्थकता और स्वस्थ प्रतियोगिता की सार्थकता को प्रभावी ढंग से रेखांकित किया गया है।मानव नकार के मार्ग को त्याग कर स्टार का स्वस्थ मार्ग अपनाए तो सर्वतोमुखी आनंद में वृद्धि हो सकती है। साधुवाद 

अरूण सातले.

 

जिस तरह से खेल में जीत या हार होती है, मगर वहाँ शत्रुता न होकर आपसदारी होती है, हारने वाला भी विजयी टीम को बधाई देकर बड़प्पन दिखाता है, और अगले दौर के लिए तैयारी करता है।इसीलिये खेल का मैदान युद्ध नहीं।

युद्ध में जीवन की हार होती है-विजेता की भी और हारने वाले की भी।दोनों जीवन से हारते हैं।

हमें जिंदगी को खेल के मैदान में होने वाले खेल की तरह समझना चाहिए।

 

गीता चौबे गूंज.

विजय तो विजय होती है चाहे खेल में हो या युद्ध में… परंतु विजय का संदर्भ कितना मायने रखता है। शब्द एक, अहसास भिन्न। इस विजय और उस विजय का परिणाम भी भिन्न!

 

आरती तिवारी, मंदसौर

 

बहुत प्यारी कविता है,इस उल्लास के उत्सव को बहुत सहजता से सुगम संप्रेषणीय बना दिया गया है,यहाँ शब्दों का कोई चमत्कार न होते भी कविता अपना प्रभाव छोड़ने में सफल रही है!

युद्ध की विजय एक उन्माद को जन्म देती है,उसके बरअक्स इस कविता में खेल की पराजय भी गौरवपूर्ण है कवि को साधुवाद!

टिप्पणियाँ। 

शाहिद अली शाहिद.

 

आपकी इस कविता पर साहिर लुधियानवी की नज़्म याद आती है ……. कहते हैं…

ख़ून अपना हो या पराया हो

नस्ल ए आदम का खून है आखिर

जंग मशरिक में हो या मग़रिब में

अम्न ए आलम का ख़ून हैआख़िर 

टेंक आगे बढ़े के पीछे हटें

कोख धरती की बांझ होती है

फतेह का जश्न हो या हार का सोग

जिंदगी मैयतों पे रोती है

जंग तो खुद ही मसअला है एक

जंग क्या मसअलों का हल होगी

इसलिए,

विजेता की खुशी पर

विजय खुश नहीं है

क्योंकि

विजय के लिए

पराजय का होना जरूरी है

और

पराजय खुश नहीं होती

विजय की खुशी पर

तो,

तमाम शोरगुल और

ढोल धमाकों के बीच

विजय को एहसास है

पराजय

की

पराजय का !!

          शाहिद अली शाहिद

 

डॉ.शैलेन्द्र भावसार, अतिथि विद्वान, विदिशा

 

खेल भावना को रेखांकित करती इस कविता को पढ़कर मुझे अतीत के एक क्रिकेट मैच का स्मरण हो आया।जो कि पारम्परिक प्रतिस्पर्धी भारत- पाकिस्तान के बीच चल रहा था।बाजार में एक दुकान पर मैं पहुंचा ही था की शाहिद अफरीदी के बल्ले से छक्का पड़ा और मेरे हाथों से ताली बजी। सभी दर्शक मैच न देखकर पीछे पलटकर मुझे देखने लगे।मैं कुछ पलों के लिए ठिठक गया।किसी ने हाथ में बंधी आंटी को देखा या मुझे पहचान लिया,पता नहीं।अपितु सब मुझे अपराधी की तरह घूरकर अवश्य देखने लगे।

   आपकी इस रचना ने वही खेल भावना का पुन:स्मरण करा दिया।अगर सभी देशों के आपसी रिश्ते इतने खुबसूरत हो जायें।कि कोई भी खेल हो वह जीते या हम। पार्टी करने का मौका मिले।सब धर्म,जाति के लोग मिलकर नाचें-गायें उत्सव मनायें।हर घर दिवाली,ईद,क्रिसमस सा माहौल हो।

    सचमुच ऐसा विहंगम दृश्य देख मानवता जाग उठेगी।प्रकृति के सानिध्य में पहुंच जाएंगे हम।पशु-पक्षी की भाषा भी मनुष्य का निश्छल मन जान पायेगा।सभी देशों की सीमाएं निश्चित होंगी।किसी की विस्तारवादी नियत नहीं होगी।हमारे मूलमंत्र”वसुदेव कुटुंबकम” को दुनिया मानेगी।तभी हम पुन:विश्वगुरू के सिंघासन को प्राप्त कर पायेंगे।सही अर्थों में तभी इंसानियत विजयी होगी।

    इस छोटी सी कविता ने काव्य को परिभाषित कर दिया,खेल भावना से आरम्भ कर आपने विश्व में बड़ती वैमनस्यता को सुन्दर ढंग से चित्रित ही नहीं किया,अपितु दिग्दर्शन भी किया है,इतनी सुन्दर रचना के लिए बहुत-बहुत बधाईं।

 

 मैत्रेयी कमिला.(ओड़िया लेखिका)

यहां जिंदगी हार और जीत के बीच रह जाता

कोई हार को हार नही मानता

कोई जीत को सीने लगाता

 

संजय श्रीवास्तव, समाचार वाचक.डीडी भोपाल

 

ब्रज भाई,आपकी इस रचना ने जय और पराजय के दृश्य का बहुत सुन्दर चित्र खींचा है। टोक्यो ओलंपिक में इतिहास रचती भारतीय हॉकी पुरुष टीम की ऊर्जा,उत्साह और हर्ष के पल, जिन्हें मानस पटल पर हर खेलप्रेमी अंकित रखने की चाहत रखेगा, वहीं शिकस्त के वक्त आंख को नम कर देने वाले आंसू और न जीत पाने की टीस भी सालती रहेगी,किन्तु ये पल फिर भी बहुत भा रहे हैं। खेलों का ये मेला वाकई अद्भुत है साहब।

रामशरण ताम्रकार.

 

समसामयिक कविता 

खेल भावना से ओत-प्रोत

परंतु आज खेल भी युद्ध की तरह हर हथकंडे को आजमा रहे हैं ।अपनी अस्मिता की रक्षार्थ खेलों के साथ-साथ युद्ध की महत्ता को भी ध्यान में रखना होगा

सुधीर देशपांडे,खंडवा

 

कितना अच्छा लग रहा है. एक संपूर्ण कविता. कभी किसी साहित्यकार ने कहा था कि खेल मनुष्य की श्रेष्ठता प्रदर्शित करने की आदिम इच्छा का नियमन हैं. युद्ध का आधुनिक रूप. पर नियमों के तहत. एक छोटी जीत भी कई लोगों के विश्वास का, आशा का केन्द्र होती है. हमारी आशा का केन्द्र हमारे खिलाड़ी हैं जो किसी बड़े आयोजन में भाग लेकर हमारी आशा का भार ढोते हैं. इनकी एक विजय हमारा गौरव होती है. ब्रजजी की यह कविता उभी आशा का फलित है. खेल भावना उसी भाव की परिणिती है. जब आप विजयी टीम को बधाई देते हो, हारी टीम से गले मिलते हों.

 

लीलाधर मंडलोई-

यह कविता अपने सीमित दायरे से बाहर के कथ्य को रूपाकार देती है।

कविता जय-पराजय से परे जाकर

मनुष्यता की ज़मीन को रेखांकित करती है।अच्छा लगना यहां जाति,रंग भेद और देश की सीमाओं

से ऊपर और हृदय की गहराईयों में

है।यह एक बड़ी कविता का विषय है।

 

 नरेश अग्रवाल. (जमशेदपुर)

 

यह सच है कि जीत हमेशा खुशी देती है लेकिन यह भी सच है की हार हमारी गलतियों की तरफ इशारा भी करती है।

 

 अगर हम हारते नहीं हैं तो अपने में सुधार भी नहीं करते, इसलिए जीत और हार दोनों जरूरी है। चाहे हम जीतें या हारे दोनों पक्षों को खुश रहना चाहिए और लड़ाई भी आपस की इस तरह की हो जिसमें कोई हिंसा न हो न ही किसी को सताए जाने का दुख, न ही जमीन हड़पने का दुख, तो फिर ऐसी लड़ाइयां भी हमेशा भाईचारे में तब्दील हो जाती है।

 

 बृज भाई ने इस कविता के माध्यम से यही महत्वपूर्ण संदेश दिया है। बहुत-बहुत बधाई उनको एक अच्छी कविता लिखने के लिए।

-नरेश अग्रवाल।

 

अशोक मिजाज़ बद्र,सागर

 

वाक़ई, टोकियो गेम्स के समय उसमें से पोसिटिव थिंकिंग को निचोड़ कर कविता में रस भर देने का काम किया है ब्रज जी ने इस कविता में।काश इस खेल भावना को आम जीवन में आम लोगों द्वारा भी प्रदर्शित किया जाने लगे तो कितना स्वस्थ माहौल निर्मित हो सकता है।ब्रज जी ने एक बार फिर एक अच्छा इशारा कविता के माध्यम से किया है।उम्दा।

 

गोविंद देवलिया, विदिशा.

 

खेल और युध्द को लेकर,एक नई दृष्टि के साथ इस कविता में ,विजय को लेकर ,जीत को लेकर नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया हैं।

खेल जगत में जीत या विजय , वैसी नही ,जैसी युध्द में होती हैं।यहाँ पराजय के बाद भी,गले मिल रहे ,बधाई दे रहे है।

 

प्रोफेसर वनिता वाजपेयी:

 

एक कवि ही इतनी खूबसूरती से सोच सकता है, हार और जीत को  

युद्ध और खेल के बीच किस तरह रेखांकित किया जा सकता है तथा दोनों की परिणिति में कितना अंतर होता है इसके महीन परंतु महत्वपूर्ण अंतर को उजागर करती है प्रस्तुत कविता ।

 

बबीता गुप्ता, बिलासपुर

 

  खेल को खेल भावना की तरह खेलना…हार-जीत के मायने सा सर्वोपरि आपसी भाईचारे की भावना.ना कि द्वेष भावना..गले मिलकर जीती हुई टीम को बधाई देना..जीवन के खेल में भी इस आदर्श भावना को आत्मसात करना अर्थात्  जीवन के उतार-चढ़ाव में हार-जीत के खेल में निराश ना होकर सकारात्मकता बनाये रखना और सामने वाली जीत को स्वीकार कर उसकी खुशियों में शामिल होना। एक हार पर जिन्दगी नहीं थमती बल्कि हार तो सफलता प्राप्त करने की सीढ़ी होती हैं…

कितना अच्छा लग रहा हैं 

पराजय यहाँ बस

अपनी प्रतियोगिता की तैयारी

का सोचने लगी हैं। 

संदेशपरक पंक्तियाँ..दिशाहीन जीवन को एक सटीक दिशा देती।

बहुत सुन्दर रचना।

🟣

 

बलराम गुमास्ता

 

बहुत बढियां, 

युद्ध की आदिम आत्मरक्षा की कबीलाई प्रवृत्तियां, युद्ध -रत पक्षों के खून- खराबे और विध्वंस के परिमाण से जीत और हार के नतीजे तय किए जाते रहे, ज्यादा बड़े हत्यारे की जीत को सत्य की जीत का नारा देकर न्याय पूर्ण ठहराया गया ,

मानवीय सभ्यता ने सबसे बड़ा मूल्य ‘अहिंसा’ का अर्जित किया, खेल -भावना से भी आपसी प्रेम भाव और सद्भावना जैसे बहुमूल्य गुणों का विकास हुआ,

आपकी कविता इस संबंध में सार्थक हस्तक्षेप करती है बहुत बधाई

 

अनिल श्रीवास्तव, विदिशा.

 

कितना अच्छा लग रहा है,

खेल को खेल भावना के साथ ही खेलना चाहिए, खेल कोई युद्ध का मैदान नहीं है, जहाँ हमें किसी का रक्त बहाना पड़े, यहाँ तो हमें खुद का पसीना बहाना पड़ता है और सामने वाली पारी से जीतने के लिए तैयारी भी युद्ध स्तर की ही करना पड़ती है, यह कविता अंदरूनी एवं बाहरी विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालती है।

कविता बहुत ही सटीक है और हमारे समाज में व्याप्त कुरीतियों पर कड़ा प्रहार करती है। आगे भी इसी प्रकार की कविताएँ लिखकर वो अपने पाठकों, श्रोताओ एवं हम सभी को अभिभूत करते रहेंगें। इस तरह की कविता लिखने के लिए आदरणीय श्री ब्रज श्रीवास्तवजी को बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ।

 

-अनिल श्रीवास्तव

 

डा.रश्मि दीक्षित.

 

कुछ दार्शनिक जिज्ञासा को काव्यरुप देने में सफल है कविवर।एक निर्लिप्त संन्यासी जैसे निडर होकर अपने बात रखें है। चरित्र और एक खास परिस्थिति को लेकर कविता लिखना आधुनिक प्रयोगवादी कविता क्षेत्र में एक मुख्य धारा है। कविवर के स्वत्रंतता कुछ दिशा में दिखाई देती है।

(एक ही टुकड़ा हारता है जमीन का

मगर पूरी धरती सिसकती है)

यह पंक्ति श्री ब्रज जी के मनोदशा को वर्णना करती है।

इस कविता में शब्दों के प्रयोग और भाव प्रवणता के प्रभाव स्वीकार किया जा सकता है ।यह कविता विफलता को धारण कर आगे बढ़ने के लिए पाठकों को प्रभावित करता है। अतीत और वर्तमान-दोनों काल के चेतना इन कविताओं में प्रतिफलित।

(पराजज यहाँ बस 

अगली प्रतियोगिता की तैयारी का सोचने लग है)

ये कहा जा सकता है कि जीत के बाद विजेता अपने लक्ष्य को हासिल कर लेता है मगर हारने वाले पुनः उठतें है…. कोशिश करते हैं… अपने लिए नई राह बनाते हैं….. और जीने के लिए फिर एक कारण ढूंढ लेतें है।

 

पारमिता षड़गीं

 

अशोक खरे,विदिशा
—-

युद्ध मे विजय और खेल में विजय का अंतर दर्शाती मार्मिक पंक्तियां उल्लेखनीय हैं, जिस जमीन के टुकड़े को जीतने के लिए युद्ध किया जाता है और बहुत सी मौतें भी हो जाती है, पर खेल के मैदान में उत्साह ही जीतता है उत्साह ही मरता है किसी की जान नही जाती है। जो जीतता है वो खुशियां मनाता है और हारने वाला आगे जीतने की तैयारी में लग जाता है ।बहुत सुन्दर भाव लिए कविता के लिए बहुत बहुत बधाई ।

*
आशीष मोहन

मानव जीवन के उच्चतम मानकों को स्थापित अपने आप में पूर्ण कविता है। एक हारी टीम के खिलाड़ी जीतने वालों को बधाई देते हैं और जीती टीम के खिलाड़ी उन्हें स्नेह से गले लगाते हैं। इंसान को समझना चाहिए जीवन भी ऐसा ही खेल है जहां हारे/ गिरे को उठाना चाहिए गले से लगाना चाहिए। उत्तम भावों को समेटती उम्दा कविता।

० आशीष मोहन

अर्चना श्रीवास्तव, दुर्ग

ब्रज जी की यह रचना ओलंपिक में भारत की विजय का सुन्दर शब्द-चित्र है । जय-पराजय का खेल तो युद्ध के मैदान मे होता है जहाँ रक्तपात और नरसंहार के बाद किसी की जीत बहुत कुछ हार कर होती है ।पर आज वास्तव मे विजय का उत्सव चहुंँओर हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है ।आज खेल के मैदान मे खेल भावना के साथ एक देश विजयी हुआ है जिसमें पराजय को अवसर मिला है एक बार फिर विजय की तैयारी करने का ।
ब्रज जी की यह समसामयिक रचना समूचे राष्ट्र के हर्ष और उत्सवधर्मिता का प्रतिनिधित्व करती है ।

मुकेश नेमा.व्यंग्य लेखक.

ब्रज श्रीवास्तव अनुपम कवि हैं हमारे समय के ! उनकी दृष्टि किसी भी घटनाक्रम के उन अछूते आयामों को स्पर्श करती है जिन पर सामान्यजन पहुँच नहीं पाते और विद्वजन उन पर टिप्पणी करने का साहस नहीं जुटा पाते !
खेल में हार जीत को लेकर उनकी यह ताज़ा कविता हमें एक बार फिर यह याद दिलाने की कोशिश है कि हम इंसान हैं और जय पराजय के इतर भी जीवन साँस लेता है ! यह इसलिये भी प्रासागिंक है क्योंकि पिछले कुछ सालो से व्यवस्था की तरफ़ से हमें लगातार युद्धोन्मादी बनाने के सुनियोजित प्रयास जारी है ! खेल भी युद्ध में तब्दील हो चुके ! नीति ,अनीति ,सदाशयता और मानवता जैसे मूल्य उपेक्षित और किनारे किये जा रहे हैं ! हमें बस ऐन केन प्रकारेण जीतना है बस ! ऐसे आपाधापी भरे ,घृणा का पाठ पढ़ाते युग में ब्रज हमें इंसान होने की याद दिला रहे है ,जो कि एक बड़ी बात है ! उन्हें मेरी शुभकामनाएँ !

अनिता मंडा.

खेल और युद्ध को तुलनात्मक दृष्टि से देखती कविता है। खेल एक सकारात्मक प्रक्रिया हैं युद्ध नकारात्मक। खेलों से स्वस्थ समाज व स्वस्थ सोच का निर्माण होता है। भाव दृष्टि से सुंदर कविता है। कला पक्ष पर विचार करें तो कोई बड़ी व्यंजना प्रकट होती दृष्टिगत नहीं हो रही।

बुद्धिलाल पाल.

कविता आपको क्या सिखा सकती है,वह आपको सौहाद्र सिखा सकती है भाईचारा सिखा सकती है आपको मनुष्य होने का अर्थ सिखा सकती है।इस ओलंपिक खेल भावना के समय ब्रिज श्रीवास्तव की यह कविता “बहुत अच्छा लग रहा है ” इस समय यही सब कुछ कहती हुई है जहाँ खेल के बीच हार जीत मानवीय है मनुष्य होने के अर्थ के रूप में है।पृथ्वी के टुकडों के लिये युद्ध में हार जीत के बीच पृथ्वी मनुष्यों के शव में तब्दील होने की तरह नही है जहाँ मनुष्यता और पृथ्वी दोनो सिसकती हुई होती है।अभी खेल जहाँ ओलंपिक ग्राउंड में चल रहा है वह वहाँ ब्रिज की कविता की तरह खेल भावना में हार जीत मनुष्यगत है हारी हुई टीम के लोग विजेता टीम को बधाई दे रहे हैं हाथ मिला रहे हैं गले मिल रहे हैं बेहतरीन कहन में है अभी हमने यह भी देखा भारत की पुरुष हॉकी टीम के ब्रांज मैडल जीत पर पाकिस्तान के हॉकी के आला दर्जे के लोगों ने पाकिस्तानियों ने भी भारत की हॉकी टीम को बधाई दिए एशिया में हॉकी के भविष्य के लिए खुश हुये।देशों की हार जीत के बीच खेल भावना एक बगीचा के सौंदर्य की तरह है जहाँ हार जीत दोनो बगीचा के फूलों की तरह खुशबूदार है। वहीं दूसरी तरफ अब प्रचलन में देखने मे आ रहा है ओलंपिक में हिस्सेदार देश के लोग अमनुष्यता का भी परिचय देते हुये पृथ्वी के बीच मनुष्य की तरह नही है हमारे देश भारत मे ही हमने देखे महिला हॉकी टीम के सेमीफाइनल में हारने पर महिला खिलाड़ी वंदना कटियार के घर के सामने फटाके फोड़े गये उस पर दलित अक्षम के आरोप लगाते उसके घर वालों को गाली गलौच की गई एक तरह से हमला कर वंदना कटियार के विरुद्ध हमला किया जाकर हंगामा किया गया वहीं हमने चीन के खिलाड़ियों के बारे भी पढ़े सुने चीन के जो खिलाड़ी गोल्ड नही जीते रजत या ब्रांज मैडल जीते उन्हें भी वहाँ के लोगों ने खूब ट्रोल किये अक्षम निकम्मे एक तरह से उनके साथ भी देश के गद्दार की तरह उन्हें ट्रोल किया गया।यह तो एक नमूना है और भी जगह देश के लोगों ने अपने खिलाड़ियों के साथ यही इसी तरह कुछ किये हों यह हुआ ही होगा।यह प्रत्येक देश के ऐसे लोग अपने को देशप्रेमी देशभक्त तो अपने को कहते ही होगें पर यह ऐसे उन्मादी अमनुष्य लोग इस कविता को पढ़ें तो शायद उनमे हार जीत के संबंध की सही समझ की कुछ मनुष्यता जागे और सरहद के खून खराबा के संबंध में भी कुछ प्रतिकार बन सके।ब्रिज की यह कविता इसी तरह अमनुष्यगत युद्ध वाली हार जीत का प्रतिकार करती है और खेल की मनुष्यगत मनुष्यता वाली हार जीत से गला मिलती हार जीत दोनो की मनुष्यता को रचती हुई है।ब्रिज को इस प्यारी सी कविता के लिये हार्दिक बधाई।

नवल शुक्ल, भोपाल.

पराजय यहां अगली प्रतियोगिता की तैयारी की सोच है।यह कथन समकालीनता की गहरी पकड़ रखने वाली पंक्ति है।सकारात्मक रूप में बदलते हुए लोगों की सोच को तरीके से कहा गया है।जीवन एक खेल है जो युद्ध को चुनौती देता हुआ है।बहुत बधाई।

 

मनोज कौशल

जब भी किसी की जीत होती है,तो किसी की हार भी होती है। जीत की खुशी कई बार दूसरे पक्ष की पीड़ा को देखने की क्षमता छीन लेती है। जीवन भी एक खेल ही है,जिसमे हार जीत अपना पक्ष बदलती रहती है।इसलिए जब भी जीत हो..हारने बाले के मानवीय पहलू को हमे नही भूलना चाहिए।
सफ़लशिक्षा..

दिव्या जोशी,इंदौर

जय और पराजय तो आदि काल या यूँ कहें कि पाषाण काल से ही अनवरत चली आ रही है।
जब मानव के पास भाषा भी नहीं थी, संसाधन नहीं थे तब भी और और अब भी।
किन्तु अंतर रत्ती मात्र भी नहीं है, है तो केवल इतना कि वही बात, वही चीज व्यक्ति नज़ाकत और mulamma चढ़ा के बोलने और करने लगा है।
परन्तु वर्तमान वातावरण मे अजीब ही चमत्कार हुआ . खेल भावना और आपसी समन्वय मे कमाल का क्रन्तिकारी परिवर्तन हुआ. जो कि अद्भुत है. अब कोई भी व्यक्ति, जय और पराजय का मोहताज नहीं. आम आदमी भी इससे ऊपर हो गया है.
सबसे सुन्दर बात यही तो है.
इससे कई तरह के मानसिक विकार जैसे ईर्ष्या, द्वेष, जलन, बैर इत्यादि का सदा के लिए पटाक्षेप हो गया है..
और व्यक्ति, समाज और देश मे नवीन विचारधारा का आविरभाव हो चुका है ..
ये ही देश कि उन्नति का द्योतक है.

 

ज्ञान भार्गव,प्राचार्य, गंज बासोदा

 

“” *जय पराजय पर केंद्रित रचना में वर्तमान सामयिक संदर्भ ( ओलंपिक में खिलाड़ियों की जीत) को रेखांकित कर,,मानव कल्याण के लिए जीत हार से ऊपर उठकर जन भावना, जन जीवन के आनंद से सरोकार की और ध्यान आकृषित किया है,,,अपनी बात को स्थापित करने के लिए उठाए गए प्रतीक और उपमान प्रभावी है* ।
“”जैसे कहीं किसी का नुकसान नहीं हुआ है”””
युद्ध की जीत हार की और इशारा है ।
“”एक ही टुकड़ा हारता है ज़मीन का
पूरी धरती सिसकती है””
विश्व में अपनी ताकत दिखाने और सीमा विस्तार से लेकर आज के समाज में होते ज़मीन के झगड़े जिनमें अपनो अपनों के बीच जय पराजय का खेल चलता है ।

अर्चना श्रीवास्तव, दुर्ग

ब्रज जी की यह रचना ओलंपिक में भारत की विजय का सुन्दर शब्द-चित्र है । जय-पराजय का खेल तो युद्ध के मैदान मे होता है जहाँ रक्तपात और नरसंहार के बाद किसी की जीत बहुत कुछ हार कर होती है ।पर आज वास्तव मे विजय का उत्सव चहुंँओर हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है ।आज खेल के मैदान मे खेल भावना के साथ एक देश विजयी हुआ है जिसमें पराजय को अवसर मिला है एक बार फिर विजय की तैयारी करने का ।
ब्रज जी की यह समसामयिक रचना समूचे राष्ट्र के हर्ष और उत्सवधर्मिता का प्रतिनिधित्व करती है ।

पंकज दुबे,विदिशा

आप बहुत ही सकारात्मक रचनाकार हैं..खेलों के महत्व और उद्देश्य को आपने रचना में पिरोया है ..और आईना भी दिखाया है..।
***
त्रिलोक महावर, कमिश्नर,रायपुर कहते हैं

युद्ध की जय पराजय एक अलग बात है खेल भावना से विजयी होना बिल्कुल ही अलग बात है क्योंकि हारा हुआ पक्ष अगली बार जीतने की तैयारी करता है और इसमें कोई रक्तपात नहीं होता बल्कि खेल भावना के कारण आपस में सद्भाव बढ़ता है आपकी कविता ओलंपिक की इस भावना को प्रदर्शित करती है बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

युद्ध और महामारी की त्रासदी झेल रहे आम आदमी के सुखद क्षणों का वर्णन, किसी अन्य के माध्यम से खेले गए खेल में अपने को देख उनकी जीत में अपनी जीत का जश्न मनाता आम आदमी,
आम आदमी की मनःस्थिति प्रस्तुत करती आपकी कविता ,उत्साह से भरी हुई।
आपको बहुत शुभकामनाएं 🙏

इति श्री भावसार

अभी हाल ही में टोक्यो में जो ओलंपिक खेल चल रहे हैं जिसमें विभिन्न देशों की भागीदारी अलग-अलग खेलों के माध्यम से हो रही है उसमें अपना भारत भी एक है जोकि अपना प्रदर्शन बड़े ऐतिहासिक तरीके से कर रहा है जिसमें लड़कियों की हॉकी टीम का बड़ा ही सराहनीय योगदान रहा है जिसे अपने देश के प्रधानमंत्री कि माननीय नरेंद्र मोदी जी द्वारा समस्त महिला टीम को जो सराहना प्रदान की है वह आपकी कविता में प्रदर्शित हो रही है वर्तमान परिपेक्ष हार में भी जीत का जो उत्साह वह बड़ा ही मार्मिक है आज के परिपेक्ष के लिए यह कविता बहुत ही सटीक एवं प्रशंसनीय है आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं आगे भी इसी प्रकार से आप अपने कलम से नए-नए विचार हम तक पहुंच जाएंगे

 

लक्ष्मीकांत मुकुल.

ब्रज श्रीवास्तव की कविता “कितना अच्छा लग रहा है” मानव – मन की आकांक्षाओं और उम्मीदों से लबरेज है और समकाल के सवालों, प्रसंगों , संदर्भों और जीवन संघर्षों की अनंत गाथाओं को बहुत ही सूक्ष्मता के साथ उद्घाटित करती है । कवि अपने समय, समाज, देश काल की परिस्थितियों के घनीभूत अंतर्द्वंदों को बहुत ही गहराई से महसूस करता है और लोकराग की संवेदनात्मक आवेग द्वारा उसे कविता में मूर्त रूप देता है। कवि का अंत:करण रागात्मकता से संपृक्त है। वह कविता की भाषा में कह उठता है_
जहां युद्ध होता है
जहां कुछ लोग मर जाते हैं
एक ही टुकड़ा हारता है जमीन का
मगर पूरी धरती सिसकती है।

_ लक्ष्मीकांत मुकुल, बक्सर।
kvimkul12111@gmail.com

अस्मुरारी नंदन मिश्र,विदिशा

संघर्ष और प्रतिस्पर्धा मनुष्य की आदिम प्रवृत्ति है। युद्ध उसका भयानक रूप है और खेल एक आदर्श स्थिति। खेल मनुष्य के इस भाव का विरेचन करने का काम करता है।
ब्रज श्रीवास्तव की प्रस्तुत कविता इसका साक्ष्य है। यहाँ जय और पराजय एक साथ सकारात्मक हैं। जय क्रूर उद्घोष नहीं है और पराजय बदले की आग नहीं पैदा कर रही। इसलिए *खेल यहाँ युद्ध के/बरक्स बने हुए हैं/ एक मिसाल।*
और तब किसे अच्छा नहीं लगेगा!

घटाओं का एप्रोन पहनकर
आया है सवेरा
एक चक्कर लगाने
पूछने के लिए हाल चाल

 

उसकी मुस्कान
आपकी मुस्कान को उगा रही है।
एक आश्वस्ति जगा जगा रही है।

ब्रज श्रीवास्तव.

 

घटाओं का एप्रोन पहनकर
आया है सवेरा
एक चक्कर लगाने के लिए
पूछने के लिए हाल चाल

 

उसकी मुस्कान
हम सबकी मुस्कान को उगा रही है।
एक आश्वस्ति जगा रही है।

ब्रज श्रीवास्तव.

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