OB-UV009_imus10_G_20121002220. सच्चर कमेटी ने अपनी 40वीं अनुशंसा में कहा था कि वक्फ़ संपत्ति के उचित प्रयोग से सरकार मुस्लिम समुदाय और प्राइवेट सेक्टर के बीच साझेदारी के अवसर पैदा करने में सहयोग मिलेगा. सरकार का कहना है कि वह राष्ट्रीय वक़्ङ्ग प्राधिकरण निगम स्थापित करने पर विचार कर रही है जिससे वक़्ङ्ग संपत्ति को पब्लिक-प्राइवेट साझेदारी के द्वारा उचित ढंग से प्रयोग किया जा सकेगा और इससे मुस्लिम समुदाय को अपने विकास ढांचे को बेहतर बनाने में सहायता मिलेगी. यह सब कब होगा, यह किसी को नहीं मालूम. यूपीए सरकार का दूसरा कार्यकाल भी अब ख़त्म होने जा रहा है. सरकार से जब यह काम पिछले सात वर्षों में, यानी सच्चर कमेटी की रिपोर्ट प्रस्तुत होने के बाद से लेकर अब तक नहीं हो सका तो क्या गारंटी है कि इस देश में अगली सरकार जिसकी बनेगी, वह मुसलमानों की समस्याएं हल करेगा?
21. सच्चर कमेटी ने अपनी अनुशंसा नंबर 41 में कहा था कि अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों की स्वीकृति के अमल को आसान बनाया जाए. यूपीए सरकार का दावा है कि अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को सरकार की ओर से स्वीकृति दिलाने के लिए संसद में एक क़ानून पारित करके अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों का राष्ट्रीय आयोग (एनसीएमईआई) स्थापित किया गया, जिसके तहत इस बात को सुनिश्‍चित किया गया गया कि मुसलमानों सहित देश के सभी अल्पसंख्यकों को संविधान की धारा 30(1) में दर्ज सभी आवश्यक अधिकार महुैया कराए जाएं. यूपीए सरकार का यह भी दावा है कि एनसीएमईआई के द्वारा अब तक ऐसे 5830 शिक्षण संस्थानों को अल्पसंख्यक दर्जा दिया जा चुका है, जबकि यह कड़वी सच्चाई सामने आ चुकी है कि इन अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों में मुस्लिमों के शिक्षण संस्थान बेहद कम हैं और जिन संंस्थानों को अल्पसंख्यक दर्जा दिया भी गया है, तो वह काग़ज़ी है और व्यवहारिक रूप से वे संस्थाएं अब भी इस दर्जे से वंचित हैं. उदाहरणस्वरूप दरभंगा (बिहार) का 1957 में मुस्लिमों के द्वारा स्थापित किया गया ‘मिल्लत कॉलेज’, जो 1976 में इस अधिकार से वंचित हो गया था और लगभग 5 वर्षों से एनसीएमईआई के द्वारा अल्पसंख्यक भूमिका की पुष्टि के बावजूद यह अभी तक इससे वंचित है. सरकार के पास मामला अभी खटाई में पड़ा हुआ है. इस कॉलेज के मूल संगठन ‘अंजुमन मुस्लिम तालीम’ के अध्यक्ष डॉ. अब्दुल वहाब कहते हैं कि मिल्लत कॉलेज के मामले से सरकार के दावे की सच्चाई समझी जा सकती है.
22. सच्चर कमेटी ने अपनी अनुशंसा नंबर 45 में कहा है कि मुलसमान पिछड़ेपन की दोहरी मार इसलिए झेल रहे हैं, क्योंकि एक तो उनमें शिक्षा की कमी है और दूसरे उन्हें जो शिक्षा मिल भी रही है, वह मानकों पर खरी नहीं उतरती. इसीलिए सरकार को चाहिए कि वह शिक्षा के मैदान में मौजूद इन ख़ामियों को दूर करे और मुसलमानों की शिक्षा को निश्‍चित बनाते समय इस बात का भी ख़्याल रखे कि उन्हें मानक शिक्षा प्राप्त हो रही है या नहीं. यूपीए सरकार सच्चर कमेटी की इस 45वीं अनुशंसा पर ख़ामोश है. उसने इस सिलसिले में कोई भी दावा नहीं किया है. इसका मतलब तो यही निकलता है कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने सच्चर कमेटी की इस 45वीं अनुशंसा को लागू नहीं किया गया है, वरना वह इस पर अपनी ओर से कोई न कोई दावा ज़रूर पेश करती.
23. सच्चर कमेटी ने अपनी 46वीं अनुशंसा में कहा था कि उच्च शिक्षा के लिए देश में जितने भी लोग योग्य हैं, उनमें मुसलमानों की तुलना के मुक़ाबले एससी/एसटी से जुड़े विद्यार्थियों की संख्या में तेज़ी से बढ़ोतरी हो रही है. सरकार को चाहिए कि वह इसके कारणों का पता लगाकर हल निकाले. यूपीए सरकार का दावा है कि इस सिलसिले में नेशनल यूनिवर्सिटी फॉर एजूकेशनल प्लानिंग एंड एडमिनिस्ट्रेशन (एनयूईपीए) के द्वारा एक स्टडी कराई गई थी. एनयूईपीए ने अपनी रिपोर्ट पेश कर दी है, जिस पर मानव संसाधन विकास मंत्रालय विचार कर रहा है.
बड़े अफसोस की बात की है कि यह सब जानते हुए कि मुसलमानों की सभी समस्याओं का मूल कारण उनका शैक्षणिक पिछड़ापन है, यूपीए सरकार उनकी इस कमी को दूर करने के लिए गंभीरता नहीं दिखा रही है. शायद कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार जानबूझ कर मुसलमानों को पिछड़ा ही देखना चाहती है. सरकार को कम से कम अब तो यह बता देना चाहिए कि उसे किसी रिपोर्ट को पढ़़ने और फिर उसपर कोई फैसला सुनाने में पचास साल चाहिए या 100 साल?
24. सच्चर कमेटी ने अपनी 47वीं अनुशंसा में कहा था कि मदरसों के नवीनीकरण को लेकर किसी योजना पर सरकार को विचार करना चाहिए. यूपीए सरकार का दावा है कि सच्चर कमेटी की इस अनुशंसा के तहत दो काम किए जा रहे हैं. पहला काम तो यह है कि मदरसों में मानक शिक्षा उपलब्ध करने की योजना शुरू की जा चुकी है और दूसरा काम यह है कि सहायता प्राप्त और गैर सहायता प्राप्त निजी अल्पसंख्यक संस्थानों (मूल, सेकेंडरी, सीनियर सेकेंडरी स्कूलों) में बुनियादी ढांचे को दुरूस्त करने की योजना चल रही है. इसके उलट सच्चाई यह है कि यूपीए सरकार की ये दोनों योजनाएं स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं दे रही हैं. मदरसों में शिक्षा का हाल और वहां का पाठ्यक्रम अब भी वही है, जो सदियों पहले था और अल्पसंख्यक के द्वारा चलाए जा रहे स्कूलों में बुनियादी ढांचे अब भी वैसे ही हैं, जैसे पहले थे. इन स्कूलों में अगर कोई निर्माण कार्य हो रहा है, तो वह सरकार की सहायता से नहीं, बल्कि मुसलमानों के अपने प्रयासों से हो रहा है. इसलिए यूपीए सरकार का यह कहना कि मदरसों में मानक शिक्षा के लिए वह कुछ कर रही है या फिर अल्पसंख्यकों के द्वारा चलाए जा रहे स्कूलों में वह कोई मदद कर रही है, सरासर झूठ है.
25. सच्चर कमेटी ने अपनी 48वीं अनुशंसा में कहा था कि सरकार को कोई ऐसी नीति तैयार करनी चाहिए, जिससे मुसलमानों और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों का शैक्षणिक पिछड़ापन दूर हो सके. इसके लिए सरकार को प्राइवेट सेक्टर और स्वयंसेवक संगठनों के साथ मिलकर काम करना चाहिए. इस पर यूपीए सरकार पूरी तरह ख़ामोश है. ज़ाहिर है कि उसने इस सिलसिले में कोई काम नहीं किया है, इसलिए उसके पास दावा करने के लिए भी कुछ भी नहीं है. इस प्रकार देखा जाए तो यूपीए सरकार ने सच्चर कमेटी की 48वीं अनुशंसा को भी लागू नहीं किया है.
26. सच्चर कमेटी ने अपनी 49वीं अनुशंसा में कहा था कि मुसलमानों के लिए उच्च स्तर पर रोज़गार के पैदा करने के लिए सरकार को कपड़ा व्यापार, ऑटो रिपयेरिंग, इलेक्ट्रॉनिक मशीनरी आदि के उत्पादन क्षेत्र पर ध्यान देना चाहिए. यूपीए सरकार ने इस महत्वपूर्ण अनुशंसा को भी लागू नहीं किया है.
27. सच्चर कमेटी ने अपनी अनुशंसा नंबर 50 में कहा था कि ऐसे मुसलमानों की संख्या देश में अधिक है, जो स्वयं छोटे-मोटे कारोबार में लगे हुए हैं. सरकार को चाहिए कि वह इन मुस्लिम कामगारों के लिए हाई ग्रोथ वाले क्षेत्रों की तलाश करे और उन्हें कम विकास वाले क्षेत्रों से अधिक विकास वाले क्षेत्रों की ओर ले जाए, ताकि वह अपने पैरों पर खड़े हो सकें और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो सकें. यूपीए सरकार ने इस अनुशंसा को भी लागू नहीं किया है, इसीलिए वह इस पर ख़ामोश है.
28. सच्चर कमेटी ने अपनी अनुशंसा नंबर 51 में कहा था कि मुसलमानों को सीधे तौर पर सरकारी फंड पर मुहैया कराया जाना चाहिए और साथ ही इन प्रोग्रामों का प्रचार किया जाना चाहिए और मुसलमानों को इस बात के लिए जागरूक किया जाना चाहिए कि वे सरकारी सहायता से अपना स्वयं का कारोबार करने की की ओर बढ़ें, लेकिन यूपीए सरकार ने इस स़िङ्गारिश पर भी अमल नहीं किया है.
29. सच्चर कमेटी की 52वीं अनुशंसा के अनुसार, मुसलमानों की ग़रीबी में किस हद तक कमी आई है, इसका हर वर्ष संगठित तरीके से पता लगाया जाना चाहिए. यूपीए सरकार ने इस काम को योजना आयोग के सुपुर्द किया था, जिसने इस सिलसिले में तीन वर्किंग गु्रप क़ायम किए थे, जिनमें से एक वर्किंग गु्रप ने तो अपनी रिपोर्ट सरकार को पेश कर दी थी, लेकिन शेष दो की रिपोर्ट अब तक जमा नहीं हुई है.
30. मज़ेदार बात तो यह है कि यूपीए सरकार ने अपने अपने दावों की इस सूची में सच्चर कमेटी की अनुशंसा नंबर 56, 57 और 58 को ‘गोल कर दिया है, यानी इन तीन अनुशंसाओं का कहीं कोई उल्लेख ही नहीं हैं. लिहाज़ा, इसका पता लगाना बहुत मुश्किल है कि सच्चर कमेटी ने अपनी इन तीनों ‘गुमशुदा’ अनुशंसाओं में क्या कुछ करने के लिए कहा था और सरकार ने इन पर क्या अमल किया?
31. अनुशंसा नंबर 57 लागू ही नहीं हुई है.
31. अनुशंसा नंबर 58 का उल्लेख भी यूपीए सरकार के दावों की सूची से ग़ायब हैं.
33. सच्चर कमेटी ने अपनी अनुशंसा नंबर 60 में कहा था कि राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर वक़्ङ्ग संपत्तियों के विकास के लिए तकनीकी सलाहकार अमला तैयार करने की आवश्यकता है. यूपीए सरकार का दावा है कि नेशनल वक़्ङ्ग डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन स्थापित करने के लिए अलग से एक प्रस्ताव मौजूद है और अन्तर मंत्रालय सुझावों के लिए मंत्रिमंडल की ओर से एक मसौदा जारी किया जा चुका है, लेकिन जैसा कि हमने चौथी दुनिया के पिछले अंक में देखा कि यूपीए सरकार ने नेशनल वक़़्ङ्ग डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन की स्थापना के लिए अब तक कोई गंभीर प्रयास नहीं किया है और चूंकि अब मनमोहन सिंह सरकार का दूसरा कार्यकाल भी ख़त्म होने वाला है, इसलिए इसकी उम्मीद कम ही है कि इस प्रस्ताव पर सरकार कोई अमल कर पाएगी. इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है कि अगली सरकार वक़्ङ्ग संपत्ति के विकास के संबंध से यह कॉर्पोरेशन बना ही देगी.
34. सच्चर कमेटी ने अपनी अनुशंसा नंबर 61 में कहा था कि सेन्ट्रल वक़्ङ्ग काउंसिल (सीडब्ल्यूसी) और प्रत्येक राज्य के वक़्ङ्ग बोर्ड में कम से कम एक महिला को नामज़द किया जाना चाहिए. यूपीए सरकार कह रही है कि वह वक़्ङ्ग संशोधन बिल के पास होने के बाद इस पर अमल किया जाएगा. वक़्ङ्ग संशोधन बिल अब पास हो चुका है, लेकिन राष्ट्रीय या राज्य वक़्ङ्ग बोर्ड में महिलाओं की नामज़दगी को लेकर अब तक यूपीए सरकार की ओर से कोई निर्णय नहीं लिया गया है.
35. सच्चर कमेटी ने अपनी अनुशंसा नंबर 62 में कहा था कि केन्द्रीय वक़्ङ्ग काउंसिल में एक फुल टाइम अध्यक्ष होना चाहिए, जिसका चुनाव महत्वपूर्ण व्यक्तियों द्वारा तय होना चाहिए, मसलन हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज, विश्‍वविद्यालयों के कुलपति आदि, जबकि सेंट्रल वक़्ङ्ग काउंसिल के अन्य सदस्यों का चुनाव विभिन्न पेशों से जुड़े महत्वपूर्ण मुस्लिम व्यक्तियों के बीच से होना चाहिए. इसी प्रकार सेंट्रल वक़्ङ्ग काउंसिल का सचिव भारत सरकार में कार्यरत संयुक्त सचिव स्तर का अधिकारी होना चाहिए. यूपीए सरकार कहती है कि यह सारे काम वक़्ङ्ग एक्ट में संशोधन से संबंधित हैं. सवाल एक बार फिर वही उठता है कि वक़़्ङ्ग एक्ट में जब संशोधन का अमल पूरा हो चुका है, तो फिर सरकार इस पर आख़िर कब अमल करेगी?
36. सच्चर कमेटी ने अपनी अनुशंसा नंबर 63 में राज्य वक़्ङ्ग बोर्डों का विन्यास कैसे हो, इस पर बात की है. यूपीए सरकार ने इसमें भी वही पुरानी बात दोहराई है कि इसका संबंध वक़्ङ्ग एक्ट में संशोधन से है.
37. यूपीए सरकार ने सच्चर कमेटी की 64वीं अनुशंसा का कोई उल्लेख नहीं किया है, बल्कि इसे ‘गोल’ कर दिया है. इसका मतलब तो यही निकाला जा सकता है कि उसने इस अनुशंसा को लागू नहीं किया है और न ही इसके बारे में कुछ बताने का कष्ट नहीं किया है.
38. सच्चर कमेटी ने अपनी 67 वीं अनुशंसा में कहा
था कि तमाम वक़्ङ्ग संपत्तियों की अनिवार्य रूप से ऑडिटिंग होनी चाहिए. यूपीए सरकार कह रही है कि इस पर अमल राष्ट्रीय वक़्ङ्ग विकास निगम की स्थापना के बाद होगा क्योंकि इसे भी अभी लागू होना है.
39. सच्चर कमेटी ने अपनी 66वीं अनुशंसा में कहा था कि नेशनल वक़्ङ्ग डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन की स्थापना 500 करोड़ रुपये की लागत से अमल में आना चाहिए. यूपीए सरकार ने अभी तक इस अनुशंसा को लागू नहीं किया है.
40. सच्चर कमेटी ने अपनी अनुशंसा नंबर 67 में कहा था कि अजमेर दरगाह एक्ट में संशोधन की आवश्यकता है. यूपीए सरकार का दावा है कि मंत्रालय के अन्दर इस पर अभी विचार किया जा रहा है.
41. सच्चर कमेटी की अनुशंसा नंबर 68 में वक़्ङ्ग संपत्तियां क़ानूनी और प्रशासनिक समीतियों से संबंधित हैं, इन्हें सरकारी प्रभाव से बाहर किया जाना चाहिए. इस पर यूपीए सरकार ने अभी तक कोई अमल नहीं किया है.
42. सच्चर कमेटी ने अपनी अनुशंसा नंबर 69 में कहा था कि जहां-जहां वक़्ङ्ग संपत्ति का प्रयोग रजिस्टर्ड चैरिटेबिल सोसाइटीज़ या ट्रस्ट के द्वारा किया जा रहा है, वहां इन संपत्तियों की लीज़ की अवधि को 3 वर्ष से बढ़ाकर 30 साल कर देना चाहिए. यूपीए सरकार ने वक़्ङ्ग संशोधन बिल के पास होने के बाद इस पर कोई अमल नहीं किया है.
43. सच्चर कमेटी ने अपनी 70वीं अनुशंसा में कहा था कि अवैध क़ब्ज़ा करने को लेकर व्याख्या करने की आवश्यकता है. इसके बारे में भी यूपीए सरकार का यही कहना है कि वह वक़्ङ्ग संशोधन बिल के पास होने के बाद इस पर अमल करेगी.
44. सच्चर कमेटी ने अपनी अनुशंसा नंबर 75 में कहा था कि वक़्ङ्ग संपत्ति से संबंधित नियम बनाए जा सकते हैं. यूपीए सरकार कहती है कि इसका संबंध भी वक़्ङ्ग संशोधन बिल से ही है, जिस पर अमल इस बिल के पास होने के बाद होगा. सवाल अब भी वही है कि वक़्ङ्ग संशोधन बिल तो पास हो चुका है, तो इस पर अमल कब होगा?
45. सच्चर कमेटी ने अपनी अनुशंसा नंबर 76 में कहा था कि वक़्ङ्ग बोर्डों के प्रभावी ढंग से काम काज के लिए लीगल
प्रोवीज़न की आवश्यकता है, जो वक़्ङ्ग एक्ट, 1995 में संशोधन के बाद ही हो सकेगा. यूपीए सरकार भी अब तक वक़्ङ्ग संशोधन बिल पास होने का इंतेज़ार कर रही थी. अब, जबकि यह बिल पास हो चुका है, वह अभी तक हरकत में नहीं आई है और सरकार का कार्याकाल भी ख़त्म होने वाला है, इसलिए कुछ नहीं कहा जा सकता है कि वक़्ङ्ग संपत्तियों का भविष्य क्या होगा?
इस प्रकार हमने देखा कि यूपीए सरकार ने कैसे सच्चर कमेटी की 45वीं अनुशंसा को बिल्कुल लागू नहीं किया है और किस प्रकार सरकार के प्रधानमंत्री और स्वयं प्रधानमंत्री झूठ बोल रहे हैं कि इन्होंने सच्चर कमेटी की 76 में से 72 अनुशंसाओं को लागू कर दिया है. इसे बेशर्मी नहीं तो और क्या कहेंगे. क्या कांग्रेस अब भी इस भ्रम शिकार है कि वह झूठ बोलकर मुसलमानों को मूर्ख बनाने में इस बार भी सफल हो जाएगी? हमने पिछले दिनों देखा कि कैसे चार राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा था. दिल्ली में तो केवल मुसलमानों ने कांग्रेस की इज्जत को नीलाम होने से बचा लिया था, लेकिन 2014 के चुनावों में भी कांग्रेस को बचा लेंगे, इस बात की गारंटी नहीं दी जा सकती.

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