oxfamअापको यह जानकर हैरानी होगी कि दुनिया के 62 अमीर लोगों के पास जितनी संपत्ति है, उतनी ही दुनिया के आधे लोगों (3.6 अरब) के पास है. अंतरराष्ट्रीय संस्था ऑक्सफैम की रिपोर्ट के मुताबिक, 2010 से लेकर अब तक अमीर और अमीर होते गए, जबकि ग़रीब बेहद ग़रीब हो गए. अमीरों और ग़रीबों के बीच की खाई इतनी तेजी से बढ़ रही है, जिसका अंदाज़ा शायद ही किसी को रहा हो. इस रिपोर्ट के तथ्यों पर ग़ौर करें, तो दुनिया के आधे संसाधनों और दौलत पर स़िर्फ 62 लोगों का कब्जा है. ऑक्सफैम ने एन इकोनॉमी फॉर द 17 नाम से यह रिपोर्ट पेश की है.

रिपोर्ट के मुताबिक, जिन 62 लोगों के पास दुनिया की आधी दौलत है, उनमें 53 पुरुष और नौ महिलाएं हैं. जो लोग सबसे अमीर हैं, उनमें से केवल एक प्रतिशत के पास ही बाकी 99 प्रतिशत लोगों के बराबर दौलत है. 2014 में 80, 2013 में 92, 2012 में 159, 2011 में 177 और 2010 में 388 अमीर लोगों के पास दुनिया की आधी आबादी के बराबर दौलत हुआ करती थी. लेकिन, अब स़िर्फ 62 लोगों के पास इतनी दौलत आ गई है. इन अमीर लोगों के पास एक खरब डॉलर यानी क़रीब 65 खरब रुपये की संपत्तियां हैं.

सही मायने में देखा जाए, तो ऑक्सफैम की यह रिपोर्ट दौलत के मामले में बड़ी असमानता ज़ाहिर करती है. संस्था के मुताबिक, दुनिया के सबसे अमीर लोगों में से आधे अमेरिका, 17 यूरोप और बाकी अन्य देशों के हैं. रिपोर्ट कहती है कि भारत में बड़ी आईटी कंपनियों में सीईओ का वेतन उसी कंपनी में काम करने वाले एक आम कर्मचारी के वेतन का 416 गुना है. हालांकि, एक अन्य सर्वे के मुताबिक, दुनिया में सबसे कम वेतन देने वाले टॉप 10 देशों में भारतीय आईटी कंपनियां भी शामिल हैं.

सर्वे कहता है कि भारत में काम करने वाले एक मध्यम दर्जे के आईटी मैनेजर को प्रतिवर्ष औसतन 41 हज़ार डॉलर बतौर वेतन मिलते हैं, वहीं अन्य देशों में इस काम के लिए इसका चार गुना वेतन दिया जाता है. यह सर्वे रिक्रूटमेंट प्लेटफॉर्म, माई हायरिंग क्लब डॉट कॉम द्वारा 2015 में विश्व स्तर पर आईटी सेक्टर में मिलने वाले वेतन पर आधारित है. इस सर्वे में पिछले वर्ष सबसे घटिया वेतन देने वाले देशों में भारत सातवें नंबर पर रहा.

बुल्गारिया 25,680 डॉलर के साथ पहली पायदान पर है, वहीं वियतनाम (30,983 डॉलर) एवं थाईलैंड (34,423 डॉलर) क्रमश: दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे. माई हायरिंग क्लब डॉट कॉम के सीईओ राजेश कुमार कहते हैं कि उत्तरी अमेरिका एवं पश्चिमी यूरोप में आउटसोर्सिंग और आउटशोरिंग की वजह से दुनिया भर में वेतन पर असर पड़ा है. सर्वे बताता है कि स्विटजरलैंड दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है, जो आईटी प्रोफेशनल्स को सबसे अधिक यानी प्रतिवर्ष लगभग एक करोड़ 13 लाख रुपये वेतन देता है.

रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के जिन अमीर लोगों के पास 7.6 खरब डॉलर की संपत्ति है, उन्होंने अपना ज़्यादातर धन कर की बचत करने वाली संस्था के ज़रिये बचाया. रिपोर्ट कहती है कि कर अदा न करने की यही सोच समाज में ग़रीबी और असमानता बढ़ाती है, क्योंकि इससे सरकारों का कामकाज प्रभावित होता है. अगर इस धन पर कर लगाया जाए, तो सरकारों को प्रतिवर्ष 190 अरब डॉलर मिल सकते हैं.

इस धनराशि से दुनिया भर की स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर की जा सकती हैं. यहां तक कि 40 लाख बच्चे, जो कुपोषण के शिकार हो जाते हैं, उन्हें भी बचाया जा सकता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि विदेशी कंपनियों और सर्वाधिक अमीर लोगों द्वारा अलग-अलग नियम बनाकर उनकी आड़ में टैक्स छूट का फायदा उठाया जाता है. कर बचाने का सुबूत देते हुए रिपोर्ट कहती है कि जिन देशों में कर संबंधी भारी छूट है या कर व्यवस्था नहीं है, उन देशों से 188 कंपनियां जुड़ी हुई हैं.

अगर 2030 तक दुनिया से ग़रीबी दूर करनी है, तो सरकारों को इन कंपनियों से कर वसूलने की व्यवस्था सुदृढ़ करनी होगी. कर आरोपण की व्यवस्था में बदलाव करके ही चीन आज अपनी अर्थव्यवस्था मजबूत बनाने में कामयाब हुआ है, जबकि कुछ दशक पहले तक वहां क़रीब 50 करोड़ लोग अत्यंत निर्धनता में जीवन व्यतीत कर रहे थे. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत जैसे मध्यम आय श्रेणी वाले देश में लोग तुलनात्मक रूप से ज़्यादा जीते हैं, वहीं ग़रीब देशों में रहने वाले लोगों की ज़िंदगी लंबी नहीं होती.

रिपोर्ट कहती है कि ग़रीबी बढ़ने के प्रमुख कारण अ हैं. इन तमाम तथ्यों से पता चलता है कि अमीरों और ग़रीबों के बीच की खाई लगातार बढ़ती जा रही है.ग़रीब ज़िंदगी के जद्दोजहद में और भी ग़रीब होता जा रहा है, जबकि दुनिया की संपत्ति चंद लोगों में सिमटती जा रही है. यह पूरे विश्व के लिए अच्छा संकेत नहीं है. इससे पूंजीवादी व्यवस्था, शोषण और दासता को ही बढ़ावा मिलेगा. 

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