स्थायी नौकरी के बदले अनुबंध पर काम कराने का चलन दिन-ब-दिन बढ़ता ही जा रहा है. इसीलिए ठेकेदारी प्रथा को बंद कर पक्की नौकरी देने की मांग भी उठ रही है, लेकिन सरकार को इससे कोई मतलब ही नहीं है. पिछले दिनों राजधानी दिल्ली में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन में कार्यरत स्वास्थ्यकर्मियों ने वेतन से संबंधित विसंगतियों को दूर करने और स्थायी नौकरी समेत कई मांगों को लेकर हड़ताल की थी. क्या है पूरे मामले की सच्चाई, पढ़िए इस रिपोर्ट में…
केंद्र सरकार की ओर से आम आदमी को बेहतर स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराने के मक़सद से शुरू की गई राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन योजना से आम जनता को भले ही लाभ मिल रहा हो, लेकिन सच यही है कि मिशन में विभिन्न पदों पर कार्यरत अनुबंधित स्वास्थ्यकर्मियों की हालत सही नहीं है. नतीजतन, पिछले दिनों सरकारी उपेक्षा से आजिज हज़ारों स्वास्थ्यकर्मियों ने हड़ताल की. हालांकि, सरकार ने आंदोलनकारियों को यकीन दिलाया कि वह उनकी मांगों पर गंभीरतापूर्वक विचार करेगी. सरकार के आश्वासन के बाद स्वास्थ्यकमियों ने हड़ताल ज़रूर ख़त्म कर दी, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि सरकार के उन वादों पर कैसे भरोसा किया जाए, जो वह आंदोलन या हड़ताल ख़त्म कराने के लिए करती है, लेकिन हक़ीक़त में उन्हें कभी पूरा नहीं करती.
उल्लेखनीय है कि आज देश में अनुबंध पर काम कराने का चलन बढ़ गया है और यहीं से शुरू होती है कर्मियों के शोषण की अंतहीन कहानी, जो आगे चलकर आंदोलन और हड़ताल का रूप ले लेती है. आख़िर सरकार जानबूझ कर स्थायी नौकरी देने के बदले ठेकेदारी प्रथा को बढ़ावा क्यों दे रही है? बात अगर राजधानी दिल्ली की करें, तो हम पाएंगे कि ग़रीब आदमी को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने में यहां की स्थिति अत्यंत दयनीय है. भले ही दिल्ली में न केवल केंद्र सरकार, बल्कि राज्य सरकार और एमसीडी द्वारा संचालित स्वास्थ्य सेवाएं, जिनमें अस्पताल, डिस्पेंसरी, मैटरनिटी होम (प्रसूति गृह), मातृ एवं शिशु कल्याण गृह उपलब्ध हैं, बावजूद इसके आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली की बड़ी आबादी के समक्ष यहां के सभी स्वास्थ्य संसाधन नाका़फी साबित हो रहे हैं. निश्चित रूप से इसका ़फायदा निजी अस्पताल और नर्सिंग होम उठा रहे हैं.
ग़ौरतलब है कि दिल्ली को वर्ष 2007 में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत लाकर यहां के स्वास्थ्य स्तर में सुधार की एक सकारात्मक पहल की गई. दरअसल, इसी वजह से दिल्ली में रहने वाले ग़रीब आदमी तक स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ पहुंचने लगा. मौजूदा समय में दिल्ली में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन से संबंधित सरकारी सेवाओं का लाभ उठाने वाले क़रीब 99 ़फीसदी लोग निम्न आय वर्ग के होते हैं, जो दवा और इलाज़ के लिए ख़र्च करने की स्थिति में होते ही नहीं. कुछ ऐसा ही हाल उन हज़ारों स्वास्थ्यकर्मियों का भी है, जो लोगों को सेहतमंद बनाने में रात-दिन मेहनत करते हैं, लेकिन उसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. एनआरएचएम के स्वास्थ्यकर्मी बढ़ती महंगाई में दो साल पुरानी तनख्वाह पर काम करने को मज़बूर हैं. उन्होंने इस बाबत सरकार से कई बार मांग भी की, लेकिन उसने इसे कभी गंभीरता से नहीं लिया. इसी के विरोध में पिछले दिनों दिल्ली में क़रीब 4,000 स्वास्थ्यकर्मियों ने हड़ताल की.
अगर एनआरएचएम में कार्यरत स्वास्थ्यकर्मियों की दलील सुनें, तो उनका कहना का़फी हद तक सही है. यहां कई ऐसे मुद्दे हैं, जो स्वास्थ्यकर्मियों के पक्ष में गवाही देते हैं. दिल्ली सरकार राज्य की सभी स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े स्वास्थ्यकर्मियों (एनआरएचएम और आरसीएच) के स्थायी अनुमोदित और सृजित पद होेने के बावजूद न जाने क्यों संविदाकर्मियों के जरिए इन पदों पर लोगों को बहाल कर उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के आदेशों का उल्लंघन कर रही है? हैरानी की बात तो यह है कि सृजित स्थायी पदों पर संविदा पर नियुक्ति कर इन संविदाकर्मियों के साथ भी सरकार भेदभाव कर रही है. सरकार के इस रवैये से स्वास्थ्यकर्मियों में रोष है. यहां यह बताना ज़रूरी है कि उच्चतम न्यायालय के आदेशानुसार, सभी संविदाकर्मियों को समान कार्य और समान वेतन के सिद्धांत के मुताबिक़, वेतन और भत्ते दिए जाने चाहिए, लेकिन दिल्ली सरकार एनआरएचएम और आरसीएच के तहत कार्यरत सभी संविदाकमिर्र्यों को समान वेतन, समान पद सिद्धांत के अनुपालन के मुताबिक़, वेतन और भत्ते नहीं दे रही है. इस बारे में दिल्ली स्टेट हेल्थ मिशन में अनुबंध पर कार्यरत धर्मेंद्र बताते हैं कि संविदाकर्मियों के बार-बार अनुरोध के बावजूद उनकी जायज़ मांगों को सरकार पूरा नहीं करती. उनके अनुसार, संविदाकर्मियों को मजबूर होकर हड़ताल पर जाना पड़ा, क्योंकि सरकार से फरियाद करते-करते हम लोग थक चुके थे. धर्मेंद्र के अनुसार, स्वास्थ्यकर्मियों की हड़ताल पूरी तरह सफल रही. यह पूछे जाने पर कि अगर सरकार उनकी मांगें समय पर पूरा नहीं करती है, तो उनका अगला क़दम क्या होगा, इस सवाल पर उन्होंने कहा कि सरकार अगर धोखा देती है, तो ऐसे में स्वास्थ्यकर्मी दोबारा हड़ताल करेंगे.
उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों एनआरएचएम और आरसीएच के संविदाकर्मियों के हड़ताल पर चले जाने के कारण पूरी स्वास्थ्य व्यवस्था ठप पड़ गई थी. इस हड़ताल का सबसे बुरा असर गर्भवती महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य पर पड़ा. वैसे स्वास्थ्यकर्मियों की यह हड़ताल ऐसे समय पर हुई, जब विश्व स्वास्थ्य संगठन भारत को पोलियो से मुक्त होने का प्रमाणपत्र देने वाला है. ऐसे में स्वास्थ्यकर्मियों की हड़ताल से पोलियो के ख़िला़फ जारी लड़ाई पर नकारात्मक असर पड़ा है. बहरहाल, अनुबंध पर काम करने वाले स्वास्थ्यकर्मियों ने सरकार पर भरोसा कर अपनी हड़ताल वापस ज़रूर ले ली है, क्योंकि सरकार ने आंदोलनरत स्वास्थ्यकर्मियों को यकीन दिलाया है कि जल्द ही उनकी मांगों पर विचार किया जाएगा. हालांकि, दिल्ली सरकार जिस तरह अपने द्वारा किए गए वादों से मुकरती है, उसे देखकर यह ज़रूर कहा जा सकता है कि वह अनुबंध पर काम करने वाले स्वास्थ्यकर्मियों की मांग इतनी आसानी से मान लेगी, इसमें संदेह है.
4000 स्वास्थ्यकर्मियों का विरोध-प्रदर्शन – ठेकेदारी प्रथा को बढ़ावा क्यों दे रही है सरकार
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