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एक समय था, जब साइकिल की सवारी सभी को पसंद आती थी, लेकिन बदलते परिवेश में साइकिलें तो बड़े शहरों से बिल्कुल ही ग़ायब हो गईं, लेकिन एक बार फिर सड़कों पर साइकिलें अपने अलग अंदाज में रफ्तार भरती नज़र आएंगी. जी हां, साइकिलों में वक्त और ज़रूरतों के अनुसार, कुछ ख़ास बदलाव की गई हैं. जहां पहले की साइकिलें सिर्फ एक सीधे डंडे और पारंपरिक स्टील की हैंडल के साथ होती थीं, वहीं आज की साइकिलों में मोटरसाइकिलों से भी अधिक गियर दिए गए हैं. हैंडल को पहले से ज़्यादा ख़ूबसूरती दी गई है. इसके साथ ही इसे काफ़ी आरामदायक भी बनाया गया है. आज भी लोग साइकिल की सवारी काफ़ी पसंद करते हैं, अगर सुबह-सवेरे दिल्ली में राजघाट या फिर इंडिया गेट पर जाकर देखें, तो पता चलेगा कि साइकिलों की दीवानगी किस क़दर लोगों में है. आइए जानते हैं कि आज की साइकिलों में क्या ख़ास बदलाव किए गए हैं.
साइकिल का अस्तित्व 19वीं सदी में आया है. इसे बाईसिकिल, बाइक, पुश बाइक, पैडल बाइक, पैडल साइकिल के नाम से भी जाना जाता है. अभी भी दुनिया में साइकिल कई जगहों पर ट्रांसपोर्टेशन का मुख्य माध्यम है. सबसे पहली साइकिल को जर्मनी के बैरोन वान ड्रेस ने तैयार की थी. यह साइकिल लक़डी से बनाई गई. साइकिल में रबर का टायर 1842 में लगा. भारत की बात करें, तो सबसे पहली साइकिल 1890 में देखी गई और भारत में इसका आयात 1905 में शुरू हुआ और यह अनवरत 50 सालों तक जारी रहा, लेकिन भारत सरकार ने साइकिलों के आयात पर 1953 में पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया और इसके बाद देश में साइकिलें बननी शुरू हुईं. भारत में 1890 में आयातित साइकिलों की क़ीमत 45 रुपये थी, जो 1917 में प्रथम विश्‍व युद्ध के बाद काफ़ी ब़ढ गई.
चलन क्यों बढ़ा
ज़िंदगी के आरामदायक होते जाने से जब लोगों की फिजिकल एक्टीविटी कम होने लगी, तो उनकी ज़िंदगी में तरह-तरह की बीमारियों ने घर करना शुरू कर दिया. इन बीमारियों से दूर रहने के लिए जब लोगों ने विकल्प ढूंढना शुरू किया, तो उन्हें साइकिल सबसे बेहतरीन टूल लगा, जिससे उनके ट्रैवलिंग का मकसद भी पूरा हो रहा था और व्यायाम भी. छोटे शहरों में जहां यह इसे ज़रूरत के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है, वहीं ब़डे शहरों में एडवेंचर के तौर पर अत्याधुनिक साइकिलों का इन दिनों ख़ूब इस्तेमाल हो रहा है.
वर्तमान में साइकिलों के कई मॉडल देखने को मिलेंगे, जिनमें ख़ास है फुल सस्पेंशन, हार्ड ट्रेल, रोड, हाइब्रिड, क्रूजर, बीएमएक्स, किड्स, ट्रैक्स, गैरी फिशर और टर्न. ये साइकिलें काफ़ी मशहूर हैं. इन कैटेगरी में कई तरह की साइकिलें हैं, जिनमें बच्चों के लिए अलग और बड़ों के लिए अलग साइकिलें हैं. गति को बेहतरीन रखने के लिए इसमें कंपनियां बहुत सारे गियर देती हैं, जिसे आप सुविधानुसार बदल सकते हैं. ये बेहद हल्की होती हैं. पावर टू वेट रेशियो बेहतरीन होने से ये चलने में सहज रहती हैं.
क्या कहते हैं साइकिल निर्माता
फायर फॉक्स के डिप्टी जनरल मैनेजर मार्केटिंग अजीत गांधी कहते हैं कि पिछले कुछ सालों में भारत के साइकिल बाज़ार में अप्रत्याशित ब़ढोत्तरी हुई है. इसके पीछे सबसे ब़डी वजह है, लोगों का हेल्थ कॉन्शस होना. हर कोई आजकल हेल्दी रहना चाहता है और साइकिल के रूप में उसे व्यायाम का बेहतरीन जरिया मिल गया है. यह रोमांचक भी है और शरीर की कैलोरीज बर्न करके मोटापे को दूर भी करता है.
 
 

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