बिहार की धरती प्रतिभाओं की जननी रही है, लेकिन यहां की सरकार के लिए इन प्रतिभाओं का कोई मतलब नहीं है. दुनिया भले ही यहां की प्रतिभाओं का लोहा मानती है, लेकिन ख़ुद अपने ही राज्य में इन्हें कोई पूछने वाला तक नहीं है, फिर चाहे विकास एवं सुशासन का नारा लगाने वाले नीतीश कुमार ही क्यों न हों? आखिर क्या वजह है कि अंतरराष्ट्रीय पेटेंट हासिल कर चुके इन आविष्कारकों के बारे में मुख्यमंत्री एक शब्द तक नहीं बोलते, मदद की बात तो अलग है?
कहा जाता है कि आवश्यकता ही आविष्कार की जननी होती है और जब जैसा समय आता है, तब आविष्कारक ज़रूरत के अनुसार कुछ नई वस्तुओं और यंत्रों का आविष्कार करके समाज एवं देश में एक मिसाल क़ायम करते हैं. उनके द्वारा किए गए आविष्कारों की सराहना चारों तरफ होती है. अ़खबारों में खबरें प्रकाशित होने के बाद सरकार एवं उसके मंत्रियों द्वारा बड़ी-बड़ी घोषणाएं तो की जाती हैं, किंतु उन पर अंतत: अमल नहीं होता. दरअसल, बिहार के आविष्कारकों के साथ लगातार ऐसा ही होता आ रहा है. सुशासन की सरकार हो या पूर्ववर्ती लालू-राबड़ी की सरकार, आविष्कारकों के लिए केवल बड़ी-बड़ी घोषणाएं की गईं, जो केवल हवा-हवाई ही साबित हुईं. नए-नए यंत्रों का आविष्कार कर अपनी काबिलियत का लोहा राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनवाने वाले बिहार के क़रीब पांच हज़ार आविष्कारक इन दिनों दो जून की रोटी के लिए मोहताज हैं और इसीलिए गुमनामी का जीवन जीने के लिए मजबूर हो गए हैं. और आश्चर्य की बात यह है कि जब भी इनके लिए किसी फंड या योजना की मांग की जाती है, तो सरकार अपने हाथ खड़े कर लेती है. बिहार के विभिन्न ज़िलों में रहने वाले इन आविष्कारकों ने आविष्कार के चक्कर में न केवल अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया है, बल्कि अपनी पुश्तैनी ज़मीन तक बेच डाली, लेकिन अफसोस! कुछ हासिल नहीं हुआ. परिणामस्वरूप आज ये या तो किसी गैरेज में काम कर रहे हैं या सड़क के किनारे दुकान लगाकर किसी तरह अपना और परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं. दु:ख की बात तो यह है कि शासन-प्रशासन द्वारा विभिन्न कार्यक्रमों-समारोहों में नाच-गाने के नाम पर लाखों रुपये पानी की तरह बहा दिए जाते हैं, लेकिन देश के लिए काम करने वाले इन आविष्कारकों के लिए कुछ सोचना या करना कोई भी मुनासिब नहीं समझता.
मोतिहारी के बेलबनवा निवासी 64 वर्षीय वीरेंद्र कुमार सिन्हा, मठिया डीह निवासी 70 वर्षीय मोहम्मद सईदुल्लाह, मोहम्मद रोजाउद्दीन, नवादा के नवल किशोर सिंह, जमला के भोला मस्तान, बेतिया के परशुराम दास, मोहम्मद मेराज, मुजफ्फरपुर के धर्मेंद्र कुमार, खगड़िया के निशांत कुमार राय, नवगछिया के अभिषेक भगत, सीवान के रामाशंकर शर्मा, मोतिहारी मीना बाज़ार के अशोक ठाकुर, प्रमोद स्टीफन, चिरैया के छात्र कुंदन कुमार, मुजफ्फरपुर के संदीप कुमार समेत क़रीब 4 दर्जन आविष्कारकों को राष्ट्रीय नव प्रवर्तन प्रतिष्ठान के क्षेत्रीय सहयोगी अज़हर हुसैन अंसारी के माध्यम से गुमनामी की ज़िंदगी से बाहर निकाल तो लिया गया और उनकी हौसला अफजाई करते हुए राष्ट्रपति के हाथों उन्हें सम्मानित भी किया गया, किंतु सरकारी स्तर पर कोई सहयोग न मिलने के कारण उनकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ.
आविष्कारक सईदुल्लाह आज जहां साइकिल पर शहद बेच रहे हैं, वहीं वीरेंद्र कुमार सिन्हा ग्रिल गेट का काम कर रहे हैं. मोहम्मद रोजाउद्दीन गैस बेल्डिंग और अशोक ठाकुर मीनाबार के नाम से दुकान चला रहे हैं. और वहीं दूसरी ओर खगड़िया के निशांत कुमार राय काम की तलाश में भटक रहे हैं. अशोक ठाकुर ने धान के भूसे से जलने वाला आधुनिक चूल्हा बनाया है. इससे महंगाई के इस दौर में मात्र एक रुपया ख़र्च करके एक समय का खाना आसानी से बन सकता है. मोहम्मद सईदुल्लाह द्वारा तैयार रिक्शा एवं साइकिल निराले आविष्कार हैं. दरअसल, इन्हें सड़क एवं पानी में समान रूप से चलाया जा सकता है. वीरेंद्र कुमार सिन्हा द्वारा आविष्कृत काजल प्रदूषण रोगी यंत्र अपने आप में अनूठा है. रांची स्थित बीआईटी मेसरा कालेज द्वारा की गई जांच में स्पष्ट हो चुका है कि इस यंत्र के सहारे प्रदूषण से निजात पाई जा सकती है. इसी तरह संदीप कुमार ने फोल्डिंग साइकिल का निर्माण करके सभी को चौंका दिया था, जिसे आप मोड़कर झोले में रखकर कहीं भी ले जा सकते हैं. नवादा के नवल किशोर सिंह ने पशुओं में पाए जाने वाले अड़हइया रोग से निजात के लिए दवा की खोज की है. मुजफ्फरपुर के धर्मेंद्र कुमार ने पानी की टंकी से बैट्री चार्ज करने वाला यंत्र बनाया है.
नवगछिया के अभिषेक भगत ने खाना बनाने वाली मशीन, तुरकौलिया प्रखंड के सेमरा टोला निवासी स्वर्गीय डॉ. यूसुफ ने माइनस पैथी का आविष्कार किया था. उक्त पैथी बीमारों के लिए लुकमान है और कम खर्च में बिना कोई साइड इफेक्ट, बेहतर इलाज होता है. डॉ. यूसुफ तो पटना से लेकर दिल्ली तक चक्कर लगाते-लगाते थक गए और गुमनामी की ज़िंदगी गुजार कर इस दुनिया से चले भी गए, किंतु फिर भी सरकार की आंख नहीं खुली. इस तरह सभी ने एक से बढ़कर एक यंत्रों का आविष्कार किया, जिन्हें अ़खबारों के प्रथम पृष्ठ पर जगह मिली, लेकिन सरकार ने इन आविष्कारकों के सपने चकनाचूर कर दिए. सरकारी उदासीनता के कारण इनके द्वारा आविष्कृत यंत्रों एवं वस्तुओं को बाज़ार में नहीं उतारा जा सका. ऐसी बात नहीं है कि इनके द्वारा तैयार यंत्र महंगे हैं और बाज़ार के अनुरूप नहीं हैं, बल्कि सच तो यह है कि उक्त सभी अविष्कृत यंत्र सस्ते हैं और बाज़ार में आने के बाद जनता को काफी राहत दे सकते हैं. शासन की ओर से मशीनरी एवं यंंत्रों का मेला तो लगाया जाता है, लेकिन ग़ौरतलब है कि उन्हीं कंपनियों को आमंत्रित किया जाता है, जो कमीशन अधिक देती हैं. सामान जनता के लिए फायदेमंद है या नहीं, इससे शासन को कुछ भी लेना-देना नहीं है. बिहार राज्य परिषद विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के परियोजना निदेशक डॉ. अमिताभ घोष को पत्र लिखकर भी इन आविष्कारकों द्वारा किए गए आविष्कार और इनकी आर्थिक-सामाजिक स्थिति से अवगत कराते हुए सहयोग करने का अनुरोध किया गया था, लेकिन विभाग ने अपना पल्ला झाड़ लिया. इन आविष्कारकों में क़रीब एक सौ टेक्निकल हैं, जबकि बाकी लोगों ने विभिन्न तरह की जटिल बीमारियों के इलाज के लिए औषधीय पौधों से दवाइयों की खोज की है. हालांकि बिहार सरकार ने एनआइएफ की तर्ज पर बिहार राज्य नवाचार परिषद नामक एक प्रतिष्ठान की स्थापना की है, किंतु उसकी गतिविधियां आम जनता एवं आविष्कारकों से दूर हैं. एनआइएफ के क्षेत्रीय सहयोगी अज़हर हुसैन अंसारी तर्क देते हुए बताते हैं कि सरकार इन आविष्कारकों के मानवाधिकार का हनन कर रही है. यही आविष्कारक अगर बिहार के न होकर, दूसरे राज्य गुजरात के होते, तो काफी आगे होते और इनका मनोबल भी सातवें आसमान पर होता! उन्होंने सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि आविष्कारकों की खोज एवं उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए एनआइएफ जिस तरह कार्य कर रही है, अगर सरकार भी उसी स्तर पर कोशिश करती, तो आज यह दिन न देखना पड़ता और ये आविष्कारक इस तरह मुफलिसी में जीने के लिए मजबूर न होते.
इस प्रदूषण नियंत्रक यंत्र का इस्तेमाल क्यों नहीं होता ?
बिहार के पूर्वी चंपारण ज़िले के वीरेंद्र कुमार सिन्हा ने एक ऐसे प्रदूषण निरोधी यंत्र का आविष्कार किया है, जो जेनरेटर या किसी भी इंजन से निकलने वाले धुएं (कार्बनडाई ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड) और ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करता है. बीआईटी मेसरा ने सघन जांच के बाद कहा है कि यह यंत्र इंजन से निकलने वाले कार्बन कण को अपने अंदर संग्रहित कर वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाता है और ध्वनि प्रदूषण को 70 फीसद तक कम कर देता है. इस यंत्र को छोटे-बड़े, सभी तरह के जेनरेटर सेट या धुआं उगलने वाले किसी भी इंजन सेट के साथ इस्तेमाल किया जा सकता है. राष्ट्रपति भवन दिल्ली में नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन द्वारा आयोजित प्रदर्शनी में वीरेंद्र सिन्हा ने अपने इस प्रदूषण निरोधी यंत्र का प्रदर्शन किया. फाउंडेशन के उपाध्यक्ष एवं आईआईएम अहमदाबाद के प्रोफेसर पद्मश्री अनिल कुमार गुप्ता के अनुसार, वीरेंद्र सिन्हा का यह यंत्र वायुमंडल को प्रदूषित होने से बचाता है. इस यंत्र में जमा कार्बन कणों का बाद में जूता पॉलिश, पेंट बनाने जैसे व्यवसायिक कार्यों में भी इस्तेमाल किया जा सकता है, यानी आम के आम, गुठलियों के दाम. नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन गुजरात ने सिन्हा के इस आविष्कार का पेटेंट भी कराया है. एपीजे अब्दुल कलाम आज़ाद ने सिन्हा के इस प्रयास की सराहना की और तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने उन्हें सम्मानित किया. लेकिन अफसोस! बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और स्थानीय प्रशासन की तऱफ से अब तक सिन्हा को न तो कोई सहायता मिली है और न ही सराहना! हैरत की बात तो यह है कि जब नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन ने नीतीश कुमार को इस आविष्कार के बारे में सूचित किया और सिन्हा को सहायता देने की बात कही तब जवाब मिला कि सरकार के पास इस तरह की सहायता के लिए कोई प्रावधान ही नहीं है, जबकि मुख्यमंत्री यदि चाहें, तो अपने कोष से ही मदद देकर सिन्हा के इस आविष्कार को कम से कम बिहार में प्रचारित-प्रसारित तो करा ही सकते हैं. दरअसल, बिहार की धरती ही कुछ ऐसी है, जहां की सरकार अपनी प्रतिभा को समय रहते पहचान पाने में हमेशा नाकाम रही है, चाहे वह विश्व के प्रख्यात गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह हों या तथागत अवतार तुलसी!
दो जून की रोटी के लिए मोहताज़ है आविष्कारक – खामोश क्यों है नीतीश कुमार
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