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सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को छात्रवृत्ति दी जाती है, ताकि ऐसे छात्र, जिनके परिवार की माली हालत अच्छी नहीं है, उनकी पढ़ाई-लिखाई में कोई दिक्कत न आए. इसके लिए बाक़ायदा नियम-क़ानून भी बनाए गए हैं कि कौन इस छात्रवृत्ति का हक़दार होगा और कौन नहीं. इसके बावजूद, कई बार ऐसी ख़बरें भी आती हैं कि ज़रूरतमंदों और असली हक़दारों को छात्रवृत्ति नहीं दी जाती या बच्चों के अभिभावकों से हस्ताक्षर कराकर इस मद का पैसा अंतत: हड़प लिया गया. ज़ाहिर है, इस काम में स्कूल प्रशासन से लेकर अधिकारियों तक की मिलीभगत होती है. दरअसल, इस समस्या के पीछे कई कारण हैं, मसलन आम आदमी का जागरूक न होना, उसे अपने अधिकारों की जानकारी न होना या अपने अधिकारों के प्रति लापरवाह होना. वैसे, एक और वजह है और वह है भ्रष्ट पंचायती व्यवस्था. यदि पंचायती राज व्यवस्था में भ्रष्टाचार है, तो यह व्यवस्था अन्य किस्म के भ्रष्टाचार को भी बढ़ाती है. ग्रामसभा नामक संवैधानिक संस्था, जिस पर गांवों से जुड़े शासन-प्रशासन को नियंत्रित और देखरेख करने की ज़िम्मेदारी है, को भी पंगु बना दिया गया है. यदि ग्रामसभा में इन मुद्दों पर ईमानदारी से बहस की जाए, तो ऐसी सरकारी योजनाओं का लाभ निश्‍चित तौर पर उन्हीं लोगों को मिलेगा, जो वास्तव में इनके हक़दार हैं या जिन्हें इनकी ज़रूरत है. इस अंक में हम छात्रवृत्ति के मुद्दे पर बात कर रहे हैं और यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि कैसे आप अपने बच्चों को मिलने वाली छात्रवृत्ति की राशि का ग़बन होने से रोक सकते हैं. इस अंक में एक आवेदन का प्रारूप प्रकाशित किया जा रहा है, जिसके इस्तेमाल से आप छात्रवृत्ति की राशि के बारे में सही और सटीक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं.

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