भारतीय सीमा में घुसपैठ करके बीस दिनों तक वहां क़ब्ज़ा जमाए रखने के बाद चीनी सेना वापस ज़रूर चली गई, लेकिन उसकी वापसी की स्थितियों ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं. राजनीतिक विश्लेषक इसे भारत की पराजय के रूप में देख रहे हैं. ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या सचमुच तनाव टल गया है?
लद्दा़ख के दौलतबेग ओल्डी सेक्टर में चीनी सेना ने क़ब्ज़ा तो खत्म कर लिया है, लेकिन वापस जाने से पहले उसने बग़ैर लड़े ही भारतीय सेना को उसकी ही भूमि पर पीछे धकेलने में सफलता प्राप्त कर ली. हालांकि सेक्टर में चीनी सेना की घुसपैठ औरकब्ज़ा जमाने के 20 दिनों के बाद भारत सरकार ने घोषणा कर दी कि दोनों देशों के बीच तनाव अब टल गया और दोनों देशों की सेनाएं लद्दा़ख के दौलतबेग सेक्टर से वापस चली गईं. इससे पहले भारत सरकार ने यह कहा था कि 15 एवं 16 अप्रैल की मध्य रात्रि में चीनी सेना ने भारतीय सीमा के 19 किलोमीटर अंदर तक आने के बाद डेरा जमा लिया है. ग़ौरतलब है कि 30-35 चीनी सैनिक जीपों में सवार होकर आए थे. पहले एक-दो दिन के लिए वे अपना राशन साथ लेकर आए थे और कुछ दिनों बाद उनकी राशन सप्लाई चीनी सेना के ट्रकों के माध्यम से आने लगी. 19 किलोमीटर लद्दा़ख के अंदर प्रवेश करने के बाद सेना ने दरअसल 750 वर्ग किलोमीटर भूमि को अपने क़ब्ज़े में ले लिया. उन्होंने लद्दा़ख के दौलतबेग सेक्टर में एक बैनर भी लगा दिया, जिसमें अंग्रेजी में लिखा था कि आप चीनी सीमा में हैं. भारतीय सेना इस ज़्यादती को भूखे-प्यासे 20 दिनों तक बर्दाश्त करती रही, जबकि सरकार यह दिखाने का प्रयास करती रही कि मामला ज़्यादा पेचीदा नहीं है. बीते 5 मई को भारत सरकार ने दोनों सेनाओं के अपने-अपने स्थान पर वापस जाने की बात कही.
लद्दा़ख के दमचौक क्षेत्र के सरपंच रगजंग टंगे ने कहा कि चीन ने सीमा विवाद के बहाने बार-बार लद्दा़ख में घुसपैठ करते हुए वहां तैनात भारतीय सेना पर आज भी दबाव बना रखा है. मैं आश्चर्यचकित हूं कि मेरी क़ौम जश्न क्यों मना रही है?
हालांकि विश्लेषकों ने इस घोषणा को भारत की हार की संज्ञा देते हुए प्रश्न उठाया है कि अगर चीन का वाक़ई भारत के अंदर 750 वर्ग किलोमीटर तक क़ब्ज़ा हो गया था, तो वापस जाने से पहले उसने भारतीय सेना को अपने ही क्षेत्र में पीछे हटने पर मजबूर क्यों किया. लेह में भाजपा के जिलाध्यक्ष नज़ीर अहमद ने कहा कि ऐसा लगता है कि चीनी सेना बिना लड़े ही भारतीय सेना को उसकी ही भूमि पर पीछे ले जाने में सफल हो गई और भारतीय सेना ने इस मामले में समझौता कर लिया है. एक स्थानीय वरिष्ठ पत्रकार ने चीन को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि उसका सदैव यही प्रयास रहा है कि भारतीय सेना को उसके ही क्षेत्र में पीछे धकेल दिया जाए. उन्होंने याद दिलाते हुए कहा कि तीन वर्ष पहले भी लद्दा़ख में 14 चीनी सैनिकों ने हेलिकॉप्टर में आकर चमूर गांव में भारतीय सेना की एक चौकी तहस-नहस कर दी थी. इसी प्रकार चीनी सेना ने एक-दो वर्ष पहले दमचौक गांव में एक सामुदायिक भवन का निर्माण कार्य रुकवा दिया था. उन्होंने कहा कि चीन
समय-समय पर भारतीय सीमा में घुसपैठ करके भारतीय सेना को पीछे धकेलने में सफल हो जाता है. इसी तरह सिबत मोहम्मद हसन, जो ईरान के नेशनल टीवी और रेडियो के ब्यूरो चीफ हैं, का कहना है कि चीन और भारत के दरम्यान पिछले दिनों लद्दाख की सरहद पर जो तनाव था, वह लगता है कि अब टल गया है, लेकिन फिर भी यकीन के साथ कुछ भी नहीं कहा जा सकता कि सरहद पर अमन कायम रहेगा या नहीं. दरअसल, भारत और चीन के दरम्यान सरहद की लाइन 1962 की जंग के बाद शुरू हुई. ऐसे में इस तनाव को हमेशा के लिए ़खत्म करना ज़रूरी है, इसलिए सरहद पर एक लाइन खींची जाए. अगर इस बारे में ज़रूरत पड़े, तो भारत को सेना की मदद भी लेनी चाहिए. अगर ऐसा नहीं हुआ, तो इस तरह के वाकयात भविष्य में भी होते रहेंगे, जैसा कि अभी लद्दाख में हुआ. दरअसल, यह भारत के लिए एक सबक है. अब देखना है कि भारत कूटनीतिक और सियासी तरीका अपनाकर चीन को यह मसला हल करने के लिए राजी कर पाता है या नहीं!
भारतीय सेना द्वारा अपनी ही भूमि पर पीछे हटने पर जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी इसकी खूब आलोचना की थी. बीते 5 मई को श्रीनगर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए उन्होंने भारतीय रक्षा मंत्रालय की आलोचना की. उमर ने कहा कि रक्षा मंत्री इस बात का मतलब समझा दें कि भारतीय सैनिकों द्वारा पीछे हटने का उद्देश्य क्या है? आखिर भारत वास्तविक नियंत्रण रेखा से पीछे क्यों हट गया? लद्दा़ख के राजनीतिक गलियारे में इस बात पर नाराज़गी भी व्यक्त की जा रही है कि कैसे चीनी सेना ने वापस जाने से पहले भारतीय सेना को ही उसकी ही भूमि पर पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया. उन्होंने तर्क दिया कि इस तरह भारत भविष्य में यह भी नहीं कह सकता कि लद्दा़ख में वाक़ई दौलतबेग ओल्डी सेक्टर एक भारतीय क्षेत्र है.
लद्दा़ख के दमचौक क्षेत्र के सरपंच रगजंग टंगे ने कहा कि चीन ने सीमा विवाद के बहाने बार-बार लद्दा़ख में घुसपैठ करते हुए वहां तैनात भारतीय सेना पर आज भी दबाव बना रखा है. मैं आश्चर्यचकित हूं कि मेरी क़ौम जश्न क्यों मना रही है? चीनी सेना दौलतबेग सेक्टर से वापस तो चली गई, क्योंकि उसे जाना ही था, उसने हमारी भूमि पर क़ब्ज़ा कर लिया था, लेकिन जाने से पहले उसने हमें अपनी ही भूमि से बेद़खल कर दिया. यह हमारी जीत है या हार? उन्होंने विदेश मंत्री सलमान ़खुर्शीद के इस बयान पर भी टिप्पणी की कि हमारे सख्त रवैये ने चीन को वापस जाने पर मजबूर कर दिया है. उनका कहना था कि हमारे सख्त रवैये ने तो उसे वापस जाने पर मजबूर किया या नहीं, यह अलग बात है, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि सरकार के नरम रवैये ने हमें अपनी ही भूमि छोड़ने पर ज़रूर मजबूर कर दिया. उल्लेखनीय है कि रगजंग लेह के एक सक्रिय राजनीतिक कार्यकर्ता हैं. उन्होंने हमेशा लद्दा़ख में चीनी सेना द्वारा समय-समय पर घुसपैठ का विरोध किया है. उनकी इसी देशभक्ति को देखकर भारतीय सेना ने कई बार उन्हें गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस के कार्यक्रम में सलामी दी. उनका मानना है कि चीन दरअसल, रुक-रुककर और धीमी गति से हमारी भूमि हथिया रहा है. उन्होंने कहा कि चीन अब तक यही करता आया है.
लद्दा़ख में चीनी सेना की घुसपैठ की हाल की घटना के बारे में एक विश्वसनीय सूत्र ने बताया कि चीन की इस हरकत का मुख्य कारण लद्दा़ख में तैनात भारतीय सेना के पास चीनी सैनिकों की तुलना में आधुनिक हथियारों और बुनियादी ढांचे का अभाव है. भारतीय सेना के मुक़ाबले चीनी सेना के पास हर तरह की सुविधाएं उपलब्ध हैं. यही नहीं, चीनी सेना की भौगोलिक स्थिति भी भारतीय सैनिकों की तुलना में अधिक स्थायी है. चीन ने भारत के साथ लगने वाली सीमा के समीप लीपीलेख में सभी मौसमों के लिए लाभकारी हाईवे का निर्माण किया है, जिसके चलते चीनी सेना भीषण सर्दी और भारी ब़र्फबारी में भी सीमा तक पहुंच सकती है. चीन ने दमचौक सेक्टर में एक सड़क का निर्माण किया है. इसके अलावा, चीनी सेना के पास बेहतर संचार व्यवस्था है, जबकि सच्चाई यह है कि लद्दा़ख में भारतीय क्षेत्र में मोबाइल भी नहीं चलता है. उन्होंने यह भी कहा कि चोशोल सेक्टर स्थित एक बड़ी झील पींगांग का 70 प्रतिशत भाग चीन का है, जबकि केवल 30 प्रतिशत भारत का है, लेकिन चीनी सेना अक्सर झील में भारतीय भाग में नाव चलाती नज़र आती है. इस झील के समीप दोनों सेनाओं के बीच सुविधाओं के असंतुलन का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि झील का जो भाग चीन के क्षेत्र में आता है, वह रोशनी से जगमगाता रहता है, जबकि भारतीय क्षेत्र में केवल सोलर लाइट सिस्टम से काम चलाया जा रहा है.
ग़ौरतलब है कि लद्दा़ख में सेना के लिए बेहतर ढांचा तैयार करने के उद्देश्य से जून 2012 में केंद्र सरकार ने 1934 करोड़ रुपये का आवंटन करते हुए इंडो-तिब्बतन सीमा पर 894 किलोमीटर लंबी सड़क बनाने की स्वीकृति दी थी, लेकिन चीन इस सड़क के निर्माण में रोड़े अटका रहा है. सूत्रों का कहना है कि जब भी सड़क निर्माण कार्य शुरू किया जाता है, चीनी सेना भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ करके उसे रोक देती है. भारत अब तक लद्दा़ख में चीनी सेना के प्रवेश की कार्रवाई को प्रत्यक्ष रूप से बहुत कम महत्व देता है. चीनी घुसपैठ और दौलतबेग सेक्टर में क़ब्ज़ा जमाने की हाल की घटना के बारे में भी केंद्र सरकार ने केवल यही दर्शाने का प्रयास किया कि यह अलग प्रकार का एक मामूली मसला है, जिसे बहुत जल्द हल किया जाएगा. उल्लेखनीय है कि चीन-भारत सीमा विवाद 50 वर्ष पुराना है. भारत जिसे वास्तविक नियंत्रण रेखा मानता है, चीन उसे कोई महत्व ही नहीं दे रहा है, बल्कि वह भारत के राज्यों अरुणाचल प्रदेश एवं सिक्किम के क्षेत्रों पर भी अपना दावा जताता है. चीन ने तीन वर्ष पहले, यानी 2010 में भारतीय सेना की उत्तरी कमान के अध्यक्ष लेफ्टिनेंट जनरल बी एस जसवाल को बीजिंग जाने के लिए यह कहकर वीजा देने से इंकार कर दिया था कि वह जम्मू-कश्मीर में तैनात हैं, जहां सेना मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रही है. चीन ने 2011 में भी भारतीय वायुसेना के कैप्टन एम पांकिंग को वीजा देने से इंकार कर दिया था, क्योंकि वह अरुणाचल प्रदेश के थे, जिस पर चीन अपना क्षेत्र होने का दावा करता है. चीन की इन सारी हरकतों के बावजूद सच्चाई यही है कि दोनों देशों के बीच शक्ति के मामले में बहुत अधिक अंतर होने के कारण चीन के साथ कोई भी बातचीत भारत के हक़ में नहीं हो सकती.वर्तमान परिस्थितियां इस बात का प्रमाण हैं कि भारत पिछले 51 वर्षों के दौरान चीन के साथ सीमा विवाद राजनयिक तरीक़े से हल करने में नाकाम रहा है. समय की मांग है कि भारत अब और समय बर्बाद किए बिना चीन के साथ अपने विवादों का समाधान करने के लिए तुरंत क़दम उठाए.