बिजली और पानी के मुद्दे पर आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने पिछले दिनों दिल्ली के सुंदरनगरी इला़के में अनिश्‍चितकालीन अनशन किया. उन्होंने यकीन दिलाया कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आती है, तो वह बिजली और पानी की दरों में कटौती करके जनता को राहत देंगे. केजरीवाल के इस आंदोलन का असर कितना रहा और इस मुद्दे पर जनता क्या सोचती है, प्रस्तुत है चौथी दुनिया की यह ख़ास रिपोर्ट…
b6ea4b32b09f0e71245f3662dd4आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में बिजली एवं पानी के दोषपूर्ण बिलों और उनकी बढ़ी क़ीमतों को लेकर अपना आंदोलन जंतर-मंतर या रामलीला मैदान की बजाय सुंदरनगरी इला़के में किया. यह उत्तर-पूर्वी दिल्ली का एक पिछड़ा इलाक़ा है. अरविंद केजरीवाल जिस मुद्दे को लेकर संघर्ष कर रहे हैं, असल में वह आम आदमी से जुड़ा हुआ एक अहम मुद्दा है. बिजली या पानी के दामों में बेतहाशा वृद्धि होने या ग़लत बिल आने से आम आदमी को ज़्यादा मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. सुंदरनगरी में जहां अरविंद असहयोग आंदोलन कर रहे थे, वहां मेरी मुलाक़ात भरतलाल से हुई, जो दिल्ली के नंदनगरी इला़के से अरविंद का समर्थन करने पहुंचे थे. बुजुर्ग भरतलाल के मुताबिक़, अरविंद केजरीवाल आम जनता की लड़ाई लड़ रहे हैं, इसीलिए बड़ी संख्या में लोग उनके आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं. भरतलाल के हाथों में बिजली और पानी के तमाम पुराने बिल थे. यह पूछे जाने पर कि इसका वह क्या करेंगे, उन्होंने बताया कि आम आदमी पार्टी जनता के घरों से जुड़े सवालों को लेकर आंदोलन कर रही है. नंदनगरी से ही आए किशन प्रसाद बताते हैं कि दिल्ली सरकार ने बिजली कंपनियों को लूटने की खुली छूट दे रखी है. ऐसे में आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल जिस मुद्दे को लेकर अनशन कर रहे हैं, उसका समर्थन हम लोग करते हैं. यह पूछे जाने पर कि आगामी दिल्ली विधानसभा चुनावों में क्या वे लोग आम आदमी पार्टी का समर्थन करेंगे, तो उन्होंने बताया कि दिल्ली की जनता कांग्रेस और भाजपा को ख़ारिज़ कर अरविंद केजरीवाल की नीतियों का समर्थन करेगी. बहरहाल, सुंदरनगरी में जिस तरह अरविंद केजरीवाल ने बिजली और पानी के मुद्दे पर अपना अनशन किया, उसे पूरी तरह सफल कहा जा सकता है. समाज के हर वर्ग के लोगों ने अरविंद केजरीवाल के असहयोग आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. दिल्ली में बिजली और पानी की बढ़ी क़ीमतों के ख़िलाफ़ जनता को एकजुट करने के मुद्दे पर अरविंद केजरीवाल ने कहा कि एक तरफ़ मुख्यमंत्री शीला दीक्षित बिजली कंपनियों पर मेहरबान हैं, वहीं दूसरी तरफ़ भारतीय जनता पार्टी भी इस पूरे मामले पर ख़ामोश है.

आज़ादी के बाद देश में राजनीतिक पार्टियों की संख्या और उनका विस्तार होता गया, लेकिन जनता को इसका कहीं कोई लाभ नहीं हुआ. आज भी देश के हर कोने में बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा और रोज़गार के लिए जनता त्राहिमाम कर रही है. जन कल्याण की तमाम योजनाएं बनती हैं देश में, बावजूद इसके जनता की परेशानियां कम नहीं होतीं आख़िर क्या कारण है कि अरविंद केजरीवाल, अन्ना हज़ारे और उन लोगों से राजनीतिक पार्टियां डरती हैं, जो समाज और देश को अप्रतिम योगदान दे रहे हैं.

उनके अनुसार, वर्ष 2010 में डीईआरसी के तत्कालीन अध्यक्ष बरजिंदर सिंह ने बिजली के दाम कम करने का आदेश तैयार किया था, लेकिन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने उसे ठंडे बस्ते में रख दिया था. उस आदेश की प्रति दो वर्षों से दिल्ली के भाजपा नेताओं के पास थी, लेकिन उसके विधायकों ने उसे विधानसभा में नहीं उठाया. असल में दोनों पार्टियां बिजली कंपनियों से मिली हुई हैं. अरविंद केजरीवाल के अनुसार, असहयोग आंदोलन में पांच लाख लोगों ने शिरकत की. उनमें ज़्यादातर लोगों ने बिजली और पानी से जुड़ी समस्याओं की जानकारी उन्हें लिखित रूप में दी है. उन्होंने बताया कि वह देश को बदलने की राजनीति कर रहे हैं. यही वजह है कि अब जनता जाग रही है और वह भ्रष्ट राजनेताओं से हिसाब मांग रही है. निश्‍चित रूप से अरविंद केजरीवाल और अन्ना हज़ारे जैसे लोग देश में अलख जगाने का प्रयास कर रहे हैं. देश में काफ़ी वर्षों के बाद जनता और उसकी समस्याओं की चर्चा हो रही है. महात्मा गांधी, जयप्रकाश नारायण और डॉक्टर राम मनोहर लोहिया जब भी जनहित के किसी मुद्दे पर आंदोलन करते थे, तो बग़ैर किसी आमंत्रण के जनता स्वयं उनके साथ हो जाती थी. मौजूदा राजनीति और राजनेताओं में ऐसा प्रभाव प्राय: देखने को नहीं मिलता. देश के राजनीतिक दलों में पिछले कुछ वर्षों से रैली और महारैली करने का चलन बढ़ गया है. रैलियां करने वाली पार्टियां ज़्यादातर वे होती हैं, जो या तो विपक्ष में हैं या किसी तरह सत्ता में आना चाहती हैं, यानी रैलियों का चरित्र पूरी तरह सत्ता और विपक्ष का हो गया है. किसानों, मज़दूरों, नौजवानों, महिलाओं एवं अल्पसंख्यकों की बुनियादी समस्याओं पर आज देश में कोई भी दल आवाज़ नहीं उठा रहा है. राजनेताओं को जनता के सवालों से कोई सरोकार नहीं रह गया है. आज रैलियों में भीड़ जुटाने के लिए राजनीतिक पार्टियां बड़े पैमाने पर गाड़ियों की व्यवस्था करती हैं, लोगों को रैलियों में आने के लिए नाच-नौटंकी और खाने-पीने का प्रलोभन दिया जाता है, उन्हें पैसे भी दिए जाते हैं. आख़िर ज़्यादातर राजनीतिक पार्टियों को इसका सहारा क्यों लेना पड़ता है, जबकि वे दंभ भरती हैं कि उन्हें अपार जनसमर्थन हासिल है. इसी झूठ और फरेब की बुनियाद पर जनता को ठगा जा रहा है.
आज़ादी के बाद देश में राजनीतिक पार्टियों की संख्या और उनका विस्तार होता गया, लेकिन जनता को इसका कहीं कोई लाभ नहीं हुआ. आज भी देश के हर कोने में बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा और रोज़गार के लिए जनता त्राहिमाम कर रही है. जन कल्याण की तमाम योजनाएं बनती हैं देश में, बावजूद इसके जनता की परेशानियां कम नहीं होतीं आख़िर क्या कारण है कि अरविंद केजरीवाल, अन्ना हज़ारे और उन लोगों से राजनीतिक पार्टियां डरती हैं, जो समाज और देश को अप्रतिम योगदान दे रहे हैं. कांग्रेस और भाजपा अन्ना हज़ारे और अरविंद केजरीवाल से कुछ ज़्यादा ही डरी हुई हैं. वह इसीलिए कि उन्होंने जनहित के मुद्दे पर जनता को जागरूक करने का काम किया है. अन्ना और अरविंद ने उन मुद्दों को छुआ है, जिनकी उपेक्षा कई दशकों से की जा रही है. उनकी इस पहल ने राजनीतिक दलों और उनके नेताओं को बेचैन कर रखा है. ऐसा लगता है, जैसे अन्ना और केजरीवाल ने उनकी दुखती रग पर हाथ रख दिया हो. दरअसल, जनता को अब तक सब्ज़बाग़ दिखा रहे राजनेताओं को लगता है कि अगर अन्ना और केजरीवाल की यह मुहिम चलती रही, तो उनका आधार ख़त्म हो जाएगा. वैसे देर-सबेर ऐसा होना ही है, क्योंकि राजनीति को व्यवसायिक प्रतिष्ठान बनाने और वंशवाद की जड़ें मज़बूत करने वाली राजनीतिक पार्टियों को जनता अब और बर्दाश्त नहीं करेगी. राजनीति का असल मक़सद है जनता की भलाई, लेकिन इसके मायने ज़्यादातर राजनेता और राजनीतिक दल भूल चुके हैं.
 अन्ना भी आए आशीर्वाद देने
बिजली और पानी की दरों में बेतहाशा वृद्धि से परेशान राजधानी वासियों को इससे निजात दिलाने के लिए अनशन कर रहे आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल और उनके समर्थकों में उस समय नया ज़ोश भर गया, जब समाजसेवी अन्ना हज़ारे भी सुंदरनगरी पहुंचे.
उन्होंने अरविंद के आंदोलन को पूरी तरह जायज बताते हुए उन्हें अपना आशीर्वाद दिया. इस मौ़के पर अन्ना ने कहा कि जब सरकार जनविरोधी हो जाए, तो उसे सत्ता में बने रहने का कोई अधिकार नहीं है. अन्ना हज़ारे के मुताबिक़, देश की जनता भ्रष्टाचार की वजह से परेशान है. ऐसे में अरविंद केजरीवाल की ओर से जनहित के मुद्दे को लेकर संघर्ष करना एक नई उम्मीद की ओर इशारा करता है.

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