वसीन्द्र मिश्र

अफ्रीका महाद्वीप का एक छोटा सा देश है कैमरून .. पूरे अफ्रीका में कैमरून सबसे ज्यादा साक्षरता दर के लिए जाना जाता है लेकिन आर्थिक विकास के मुद्दे पर ये पिछड़ा हुआ है और इसकी वजह है यहां की सत्ता पर पिछले तीन दशकों से एक ही शख्स का काबिज होना.. ये शख्स हैं पॉल बिया… पॉल बिया अफ्रीका में सबसे लम्बे समय तक शासन करने वाले गैर-शाही शासक हैं.. देश में बेरोजगारी, गरीबी, भ्रष्टाचार, सरकारी संस्थानों का दुरुपयोग जैसी तमाम दिक्कतें मौजूद हैं … लेकिन पॉल बिया लगातार कुर्सी पर काबिज हैं … देश में लगातार प्रदर्शन होते रहते हैं लेकिन 87 साल के पॉल बिया की सियासत पर पकड़ कमजोर नहीं हुई है …
पॉल बिया साल 2018 में आठवीं बार चुनाव में खड़े हुए थे… ये ऐसा चुनाव था जिसके नतीजे की जानकारी लोगों को पहले से ही थी .. 8 उम्मीदवारों न चुनौती देने की कोशिश की थी लेकिन कोई चमत्कार होना नहीं था…. क्योंकि पॉल बिया ने बहुदलीय व्यवस्था होने के बावजूद पिछले सभी सातों चुनाव जीते थे … और तख्तापलट की दो कोशिशें नाकाम कर दी थीं …. लिहाजा 37 बीत चुके हैं और पॉल बिया कैमरून की सत्ता पर काबिज हैं …
अफ्रीका के कई देशों ने एक से बढकर एक तानाशाह देखे हैं … कैमरून भी ऐसे ही देशों में शामिल है जहां 80 के दशक से एक ही नेता हर बार चुनाव जीतता आ रहा है … 37 साल में देश की जनता ने कई बार पॉल बिया की सत्ता के खिलाफ आवाज उठाई है .. खासकर पिछले कुछ साल में कैमरून में लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहे है … लेकिन इससे ना तो देश में होने वाले चुनावों के परिणाम पर कोई फर्क पड़ता है ना हीं कैमरून के राष्ट्रपति पॉल बिया पर ..
पॉल बिया 1982 में पहली बार कैमरून के राष्ट्रपति बने थे लेकिन इससे पहले 1975 से लेकर 1982 तक पॉल बिया देश के प्रधानमंत्री भी रहे हैं … कैमरून की सरकार को फ्रांस का समर्थन मिला हुआ है .. देश में तेल से लेकर इंश्योरेंस सेक्टर तक 10 से ज्यादा फ्रेंच कंपनियां मौजूद हैं … देश में फ्रांस के इस दखल का जिक्र करना इसीलिए ज़रूरी है क्योंकि कैमरून का एक जटिल इतिहास है जो आज भी देश में कई तरह की परेशानियां खड़ी करता है …
1884 में जर्मनी ने कैमरून को अपनी कॉलोनी बनाया था लेकिन 1916 में ब्रिटिश और फ्रांस की सेना ने जर्मनी को कैमरून से खदेड़ दिया .. लगभग तीन साल बाद कैमरून का बंटवारा हुआ जिसमें 80 फीसदी हिस्सा फ्रांस और 20 फीसदी हिस्सा ब्रिटेन के कब्जे में आया … बाद में 1960 में जब कैमरून स्वतंत्र हुआ तो देश में इंग्लिश और फ्रेंच दोनों ही आधिकारिक भाषाएं बनाईं गई … लेकिन फ्रेंच बोलने वालों की तादाद कहीं ज्यादा है … ऐसे में अब तक देश में भाषाई आधार पर गुट बने हुए हैं … जो कई बार विरोध प्रदर्शन की वजह बनते हैं … जिसे पॉल बिया की सरकार पूरी ताकत से मानवाधिकारों का उल्लंघन करते हुए दबाती है … खुद पॉल बिया फ्रेंच बोलते हैं ऐसे में देश में अंग्रेजी बोलने वाले अक्सर भेदभाव की शिकायत करते रहते हैं …
पॉल बिया का जन्म 1933 में कैमरून के दक्षिणी हिस्से एक छोटे से गांव में हुआ था … हालांकि इनकी पढ़ाई लिखाई देश की राजधानी योन्डे में हुई थी.. बाद में हायर एजुकेशन के लिए पॉल बिया फ्रांस चले गए … पॉल बिया ने पेरिस से पब्लिक लॉ में ग्रेजुएशन किया … दरअसल उस वक्त तक कैमरून का 80 फीसदी हिस्सा फ्रांस के कब्जे में था.. देश के इस हिस्से को 1960 में आज़ादी मिली थी …
देश के आज़ाद होने के बाद पहले राष्ट्रति अहमदौ अहिदजो के शासन काल में ही पॉल बिया काफी प्रभावशाली हो चुके थे … कई अहम पदों पर रहते हुए 30 जून 1975 को पॉल बिया देश के प्रधानमंत्री बन गए … 1979 में कैमरून में एक नया कानून आया जिसकी बदौलत पॉल बिया के अगले राष्ट्रपति बनने का रास्ता साफ हो गया था …. इस कानून के मुताबिक प्रधानमंत्री को राष्ट्रपति का उत्तराधिकारी बना दिया गया था … ऐसे में जब साल 1982 में अहमदौ अहिदजो ने अचानक इस्तीफा दिया तो पॉल बिया कैमरून के राष्ट्रपति बन गए …
पॉल बिया ने बतौर राष्ट्रपति कैमरून की कमान संभाल ली थी ….लेकिन सत्तारूढ पार्टी कैमरून नेशनल यूनियन के प्रेसीडेंट उनके पूर्ववर्ती अहिदजो ही थे … पॉल बिया को बहुत जल्द पार्टी की सेंट्रल कमिटी और पॉलिटिकल ब्यूरो में शामिल कर लिया गया और वो पार्टी के वाइस प्रेसीडेंट भी बना दिए गए … शुरुआती दिनों में पॉल बिया ने अहिदजो के साथ मिलकर काम किया ..लेकिन कुछ ही महीनों के अंदर ही दोनों के बीच कभी ना भरने वाली दरार पैदा हो गई .. कहा जाता है कि ऐसा पॉल बिया के अति महात्वाकांक्षी होने की वजह से हुआ था …
दरअसल अहिदजो के पॉल बिया को अपना उत्तराधिकारी बनाने पर ही सियासी गुटों ने हैरानी जताई थी …. पॉल बिया कैमरून के दक्षिणी इलाके से आने वाले क्रिश्चियन नेता हैं वहीं अहिदजो कैमरून के उत्तरी इलाके से आने वाले मुस्लिम नेता थे… कहते हैं कि अहिदजो के फ्रेंच डॉक्टर ने उनके हेल्थ को लेकर कुछ चिंता जाहिर की थी जिसकी वजह से अहिदजो ने रिजाइन किया था और ठीक होने के बाद दोबारा राष्ट्रपति बनना चाहते थे लेकिन पॉल बिया ने ऐसा नहीं होने दिया … पहले अहिदजो ने खुद पॉल बिया के राष्ट्रपति बनने का विरोध करने वालों को पार्टी से निकाल दिया था बाद में अहिदजो के समर्थकों के सारे अधिकार पॉल बिया ने छीन लिए… अहिदजो निर्वासन में चले गए पार्टी प्रेसीडेंट के पद से इस्तीफा दे दिया … इसके बाद पॉल बिया ने कैमरून को आज़ादी दिलाने के नायक रहे अहिदजो की सारी निशानियों को खत्म करना शुरू किया जिसमें देश के नेशनल एंथम से उनका नाम हटाना भी शामिल था … पॉल बिया की तानाशाही विचारधारा तभी से दिखनी शुरू हो गई थी …
अहिदजो ने निर्वासन में रहते हुए बिया की नीतियों की आलोचना शुरू कर दी .. उन्हें देश की एकता के लिए खतरा करार दिया… कहते हैं कि इसके बाद 1983 में अहिदजो ने पॉल बिया के तख्तापलट की भी कोशिश की … 1984 की फरवरी में इसके लिए अदालत ने अहिदजो को मौत की सज़ा सुनाई.. जिसे पॉल बिया ने उम्रकैद में तब्दील कर दिया… हालांकि इसी साल अप्रैल में एक और तख्तापलट की कोशिश हुई … ये ऐसी कोशिश थी जो हमेशा के लिए कैमरून के इतिहास में दर्ज हो गई …
दरअसल अप्रैल 1984 में पॉल बिया ने राष्ट्रपति भवन के सभी गार्ड्स को हटाने के निर्देश दे दिए थे .. ऐसा इसीलिए किया गया था क्योंकि ये सारे गार्ड्स कैमरून के उत्तरी इलाके से आने वाले मुस्लिम थे ..ऐसे मे पॉल बिया को दूसरे तख्तापलट की कोशिश का शक था … कहते हैं कि पॉल बिया को इसकी भनक लग गई थी … उस वक्त देश की एयरफोर्स पॉल बिया के लिए पूरी तरह लॉय़ल थी .. पॉल के गार्ड्स को राजधानी यॉन्डे से हटा देने के आदेश की वजह से तख्तापलट की ये दूसरी कोशिश भी नाकाम रही हालांकि विद्रोही मान लिए गए गार्ड्स और सुरक्षा बलों के बीच कई दिनों तक मुठभेड़ चलती रही … जो इन गार्ड्स के मारे जाने के बाद ही खत्म हो पाई …. आधिकारिक आंकड़े के मुताबिक 70 लोग मारे गए थे हालांकि एक रिपोर्ट कहती है कि इसमें लगभग 1000 लोगों की मौत हुई थी …… वहीं बाद में हुई कार्रवाई में करीब एक हज़ार लोगों को गिरफ्तार किया गया जिनमें से 35 लोगों को देशद्रोह के आरोप में मौत की सज़ा दी गई … कहते हैं इस तख्तापलट के मास्टरमाइंड अहमदौ अहिदजो ही थे .. हालांकि ये आरोप कभी साबित नहीं हुए… लेकिन इस घटना के बाद पॉल बिया ने सारी शक्तियां राष्ट्रपति पद के इर्द गिर्द समेट लीं और अगले ही साल पार्टी को कैमरून पीपुल्स डेमोक्रैटिक मूवमेंट के नाम से रिलॉन्च कर दिया |

पॉल बिया कैमरून पीपुल्स डेमोक्रैटिक मूवमेंट के प्रेसीडेंट बन गए और 1988 में देश में हुए राष्ट्रपति चुनाव में दोबारा चुन भी लिए गए … कहते हैं इसके बाद कुछ वक्त तक पॉल बिया ने पूरे देश में शांति बहाल करने के लिए काम किया … देश में 1990 आते-आते उन्होंने मल्टी पार्टी सिस्टम लागू करा दिया … लेकिन क्या इससे कैमरून को फायदा होने वाला था |

कहने को देश में बहुदलीय व्यवस्था थी .. लेकिन संविधान के तहत कार्यपालिका और विधायिका से लेकर न्यायपालिका तक की सारी शक्तियां राष्ट्रपति पॉल बिया के पास थीं … नेशनल असेंबली की भूमिका पॉल बिया की नीतियों पर मुहर लगाने की रह गई थी … इसके बाद देश में चुनाव होते रहे .. 1992, 1997 और फिर 2004 .. हर चुनाव में पॉल बिया को शानदार जीत हासिल होती रही … विपक्षी पार्टियां हर बार चुनाव में बड़े पैमाने पर धांधली के आरोप लगाती रहीं.. उन्होंने चुनाव का बायकॉट भी किया लेकिन इससे पॉल बिया को फायदा ही मिला … हालांकि इसके बाद संविधान के मुताबिक 2011 में होने वाले राष्ट्रपति पद का चुनाव पॉल बिया नहीं लड़ सकते थे लिहाजा उन्होंने 2008 में संविधान में संशोधन कर दिया … पॉल बिया ने नए साल पर शुभकामनाएं देते हुए कहा कि लोगों के पसंदीदा शख्स के लिए टर्म लिमिट रखना लोकतंत्र के खिलाफ होगा … इसके बाद 2011 में भी पॉल बिया के राष्ट्रपति चुना जाना तय हो चुका था … हालांकि कैमरून की जनता को ये बात पसंद नहीं आई थी .. जिसका नतीजा बड़े पैमांने पर हुई हिंसा के रूप में सामने आया…. सरकार ने इसे दबाने के लिए सेना भेजी … कई लोग मारे गए … पॉल बिया की सरकार ने इसके बाद कई लोकलुभावन फैसले लिए … तेल की कीमतें घटा दी गईं … सिविल सर्वेंट्स और सैनिकों की सैलरी बढ़ा दी गई … खाने-पीने की चीजों पर से टैक्स कम कर दिया गया .. हालांकि सरकार ने इसके साथ ही कई मीडिया संस्थानों, पत्रकारों के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी … एक रिपोर्ट के मुताबिक तीन मीडिया संस्थानों को बंद कर दिया गया और पत्रकारों के साथ मारपीट भी की गई … और सरकार ने ऐसा देश में शांति व्यवस्था को बनाए रखने के नाम पर किया|

नीतियों पर सवाल उठाने वाली और विरोध में उठने वाली हर आवाज को दबाया जाने लगा .. जिसके बाद से देश में विरोध प्रदर्शनों की बाढ़ आने लगी … अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी कैमरून सरकार पर सवाल खड़े होने लगे … देश में चुनाव में होने वाली धांधली, मनमाने तरीके से होने वाली गिरफ्तारियों ने दुनिया भर में मानवाधिकार के लिए काम करने वाली एजेंसियों को ध्यान खींचा …

2008 से बाद से अब तक कैमरून में प्रेस फ्रीडम पर सवाल उठते रहे हैं …. .पत्रकारों को संवेदनशील माने जाने वाले विषय़ों की रिपोर्टिंग करने पर गिरफ्तारी का डर रहता है… विपक्षी पार्टियां भी इससे अछूती नहीं है .., 2014 में एक विपक्षी नेता को कैमरून की नीतियों की आलोचना करने पर 25 साल की जेल की सज़ा सुनाई गई |

2016-17 में देश में एक बार फिर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए थे .. कई महीनों तक चलने वाले इस प्रदर्शन को कॉफिन रिवॉल्यूशन का नाम दिया गया… ये प्रदर्शन अंग्रेजी भाषा बोलने वाले इलाकों में फ्रेंच भाषा थोपने की सरकार की नीतियों की वजह से हुआ था … देश के उत्तर-पश्चिमी और दक्षिण-पश्चिमी इलाक़े अंग्रेज़ी बोलने वालों का गढ़ माने जाते हैं.. इन इलाकों में अब अलगाववादियों के एक दर्जन से ज्यादा गुट सक्रिय हो चुके हैं .. सरकार की फेल हो चुकी नीतियों की वजह से इन इलाकों में अलग राष्ट्र बनाने की मांग तेज होती जा रही है … अलगाववादी इस इलाके में अलग देश अंबाजोनिया की स्थापना करना चाहते हैं… इन अलगाववादियों को लगता है कि फ्रेंच बोलने वाली सरकार उन्हें हाशिए पर धकेल रही है … सरकार और इनके बीच जारी संघर्ष में अब तक 3000 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है … और एक रिपोर्ट के मुताबिक 10 लाख लोग विस्थापित हुए हैं … इस इलाके में होने वाली मौतों को नरसंहार के तौर पर भी देखा जाता है … कहते हैं विरोध को दबाने के नाम पर यहां छोटे बच्चों को भी मौत के घाट उतार दिया जाता है …
2009 में एक मैगजीन ने दुनिया के 20 सबसे क्रूर तानाशाहों की लिस्ट में पॉल बिया को शामिल किय़ा था …
पॉल बिया को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एबसेंटी प्रेसीडेंट कहा जाता है क्योंकि वो ज्यादातर वक्त विदेशों में ट्रैवल करते हुए बिताते हैं … जिनमें लाखों डॉलर खर्च होते हैं ..
हालांकि इसके बावजूद पॉल बिया को 2018 में हुए चुनावों में जीतने से कोई रोक नहीं पाया है … पॉल बिया 2025 तक के लिए राष्ट्रपति चुने जा चुके हैं …

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