सरकार ने बदल दी ऊर्जा नीति

भूमि अधिग्रहण क़ानून में संशोधन

गंगा से जलदोहन के लिए हरी झंडी

सलाना 294 करोड़ का नुक़सान

adaniअडानी पावर लिमिटेड ने 26 अक्टूबर 2015 को प्रस्ताव देकर 800 मेगावाट की दो यूनिट पावर प्लांट झारखंड में लगाने की इच्छा जाहिर की. इसमें कहा गया था कि प्रधानमंत्री मोदी की बांग्लादेश यात्रा के दौरान करार हुआ था कि उसे 1600 मेगावाट बिजली दी जाएगी. उस करार के आलोक में अडानी समूह ने पहली बार ऊर्जा नीति में छूट की मांग की और कुल उत्पादन का 25 प्रतिशत, यानि 400 मेगावाट बिजली राज्य को दूसरे स्रोत से देने की बात कही, क्योंकि बांग्लादेश के साथ हुए एमओयू के अनुसार, पूरी बिजली उसे ही दी जानी है. राज्य सरकार ने अडानी के इस अनुरोध को स्वीकार करते हुए 17 फरवरी, 2016 को एमओयू स्टेज किया.

इसमें उसे प्रस्तावित प्लांट के बदले किसी दूसरे प्लांट से 25 फीसदी बिजली राज्य विद्युत नियामक आयोग द्वारा निर्धारित दर पर राज्य को देने का प्रावधान कर दिया गया. लेकिन राज्य विद्युत नियामक आयोग ने स्टेज-1 में किए गए इस प्रावधान पर आपत्ति जताई और कहा कि ऊर्जा नीति 2012 में 25 प्रतिशत बिजली में से 13 प्रतिशत फिक्स्ड कॉस्ट एवं वैरिएबल कॉस्ट एवं 12 प्रतिशत बिजली वैरिएबल कॉस्ट पर लेने का प्रावधान है.

अन्य बिजली उत्पादन संस्थानों जैसे आधुनिक पावर लिमिटेड, इनलैंड पावर लिमिटेड के साथ इसी प्रावधान के अनुसार एमओयू हुआ है. सभी एमओयू में समानता होनी चाहिए. लेकिन राज्य सरकार ने आयोग की बातों को दरकिनार करने के लिए पूरी नीति में ही संशोधन कर दिया. न सिर्फ ऊर्जा नीति बदली गई, बल्कि भूमि अधिग्रहण कानून में भी संशोधन हुआ. इसके अलावा पावर प्लांट को पानी उपलब्ध कराने के लिए गंगा की जलधारा से भी खिलवाड़ करने की अनुमति दे दी गई.

सीएम ने सचिव की भी नहीं सुनी

इस प्रस्तावित पावर प्लांट को लेकर मई, 2016 में सरकार के भीतर भी विवाद हुआ था. पावर प्लांट के लिए पानी की स्वीकृति मिलने के बाद कंपनी ने सेंकेंड स्टेज एमओयू का प्रस्ताव सरकार को दिया था और पर्यावरण सेस और राज्य को सस्ती बिजली देने की शर्त से छूट मांग रहा था. ऊर्जा विभाग इस पर सहमत नहीं था. विभाग का कहना था कि लीक से हटकर अडानी ग्रुप को यह छूट दी गई, तो राज्य को आने वाले दिनों में हर साल लगभग 2000 करोड़ रुपए राजस्व का नुकसान होगा.

जब सरकार के भीतर इस मामले को लेकर विवाद बढ़ा, तब तत्कालीन ऊर्जा विभाग के प्रधान सचिव एस.के.जी. रहाटे लंबी अवकाश पर चले गए. अवकाश पर जाने से पूर्व उन्होंने अडानी ग्रुप की पेशकश पर गंभीर आपत्ति जताते हुए मुख्यमंत्री को इस मामले में एक कमेटी बनाने का प्रस्ताव दिया. उन्होंने लिखा था कि मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली हाईपावर कमेटी ही निर्णय ले कि ऊर्जा विभाग द्वारा तैयार एमओयू ऊर्जा नीति के तर्ज पर है या नहीं और इस नीति में संशोधन करने की आवश्यकता है.

बाद में विवाद बढ़ता देख मुख्यमंत्री सचिवालय में 16 अगस्त 2016 को खान, ऊर्जा एवं उद्योग विभाग के वरीय अधिकारियों की बैठक हुई, जिसमें निर्णय लिया गया कि झारखंड में जो 1600 मेगावाट बिजली का उत्पादन होगा, वो बिजली बांग्लादेश को भेजी जायेगी और अडानी दूसरे स्रोतों से 25 प्रतिशत बिजली की आपूर्ति झारखंड सरकार को करेगा. दरअसल, केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय ने 2014 में बांग्लादेश को बिजली आपूर्ति करने के लिए बांग्लादेश के साथ एक समझौता किया था. इसके तहत ही अडानी ग्रुप को संथाल परगना में 800 मेगावाट क्षमता का दो पावर प्लांट लगाने का काम मिला.

महालेखाकार की आपत्ति

राज्य सरकार ने 19 सितम्बर, 2016 को मंत्रिमंडल की बैठक में ऊर्जा नीति में संशोधन के प्रस्ताव को मंजूरी दिलायी थी. संशोधन के मुताबिक राज्य को उपलब्ध करायी जाने वाली 25 फीसदी बिजली की दर कई खंडों में बंटी होगी. 12 प्रतिशत बिजली राज्य सरकार वेरिएबल कॉस्ट और 13 प्रतिशत बिजली स्थिर कॉस्ट पर खरीदेगी, यह तब होगा, जब राज्य में अडानी को कोयले का लिंकेज मिल जाएगा. अगर अडानी समूह को कोयला ब्लॉक झारखंड में नहीं मिलता है, तो यह पूरे 25 प्रतिशत बिजली की आपूर्ति राज्य विद्युत नियामक आयोग द्वारा निर्धारित दर से ही करेगा. इस नीति में ही संशोधन कर राज्य सरकार ने अडानी को भारी फायदा पहुंचा दिया. इससे सरकार को प्रतिवर्ष 294 करोड़ का नुकसान होगा, जो 25 वर्षों में 74 सौ करोड़ रुपए हो जाएगा.

महालेखाकार ने भी इस पर आपत्ति दर्ज कराई है और कहा है कि यह अडानी पावर को तरजीह देने वाली कार्यवाही है. उसने जब इस मामले में राज्य सरकार का पक्ष जानना चाहा, तो कहा गया कि अडानी के साथ हुए एमओयू से सरकार को कोई नुकसान नहीं होगा, जबकि यह स्पष्ट है कि अडानी के साथ हुआ करार पूरी तरह से सरकार के राजस्व पर असर डालेगा. महालेखाकार ने पूरी प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहा है कि नीतियों में सेशाधन ही इसीलिए हुआ, ताकि अडानी को विवादों में न पड़ना पड़े.

अवधि विस्तार की अनुमति

अडानी ग्रुप को फायदा पहुंचाने के झारखंड सरकार के इन प्रयासों के सार्वजनिक होने के बाद अब यह चर्चा होने लगी है कि मोमेंटम झारखंड का आयोजन ही अडानी को झारखंड लाने के लिए हुआ था. उस अयोजन में देशी-विदेशी निवेशकों के साथ एक लाख हजार करोड़ के एमओयू तो हुए थे, पर अभी तक एक भी उद्योग की स्थापना झारखंड में नहीं हो सकी है. उसी मोमेंटम झारखंड में पावर प्लांट की स्थापना के लिए राज्य सरकार ने अडानी ग्रुप के साथ एमओयू किया था. अडानी पावर गोड्‌डा में 1600 मेगावाट का पावर प्लांट स्थापित करना चाहता था और इसके लिए उसे 950 एकड़ जमीन की जरूरत थी, साथ ही रिजवॉयर बनाने के लिए साहेबगंज में 130 एकड़ जमीन चाहिए थी.

अडानी को जमीन उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने भूमि अधिग्रहण कानून में ही संशोधन कर दिया और उसे कौड़ियों के भाव जमीन मुहैया कराई गई. बाद में जब गोड्‌डा के उपायुक्त ने ही इस दर का विरोध करते हुए राजस्व पर्षद को पत्र लिखा, तो प्रति एकड़ भूमि अधिग्रहण का दर बढ़ाया गया. अडानी के लिए सरकार द्वारा 500 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया जा चुका है. शेष जमीन के लिए गोड्‌डा एवं साहेबगंज के उपायुक्त को पत्र लिखा गया है कि इस पावर प्लांट के लिए जल्द से जल्द भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही कंपनी के साथ मिलकर पूरी की जाय. इस पावर प्लांट के लिए साहेबगंज के रिजवॉयर में गंगा नदी से पानी लाया जाएगा.

फिर इस रिजवॉयर से गंगा के पानी की आपूर्ति पावर प्लांट को किया जाएगा. एक तरफ जहां गंगा की अविरल एवं निर्मल धारा बनाए रखने के लिए कई संगठन आंदोलनरत हैं, वहीं रघुवर सरकार गंगा से लाखों गैलन पानी अडानी को देने पर सहमत हो गई है. गौर करने वाली बात यह भी है कि अडानी के एमओयू की अवधि समाप्त होने के बाद इसे लेकर मुख्य सचिव सुधीर त्रिपाठी की अध्यक्षता में एक बैठक हुई, जिसमें इस कंपनी को दो वर्षों का अवधि विस्तार दे दिया गया.

संभवत: अडानी को ही फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से भारत सरकार ने मार्च 2015 में सभी कैप्टिव कोल ब्लॉक के आवंटन को रद्द कर दिया था. अडानी पावर ने एमओयू स्टेज-1 में कोयले का मुद्दा नहीं उठाया था. इस तर्क के आधार पर भी अडानी ने राज्य सरकार से लाभ लिया कि उसे दूसरे राज्यों से कोयले की आपूर्ति लेनी है. अडानी को लाभ पहुंचाने के बाद अब राज्य सरकार दूसरी ऊर्जा नीति इस वर्ष लाई है. इस ऊर्जा नीति में कई प्रावधान किए गए हैं.

इसके तहत किसी भी निजी एवं स्वतंत्र कंपनी को झारखंड में पावर प्लांट लगाने के बाद कुल बिजली उत्पादन का 35 प्रतिशत राज्य सरकार को देना होगा और इसके लिए बिजली की दर विद्युत नियामक आयोग द्वारा तय की जाएगी. इस ऊर्जा नीति में इस बात का ध्यान रखा गया है कि राज्य के औद्योगिक एवं कोल एरिया में कोल वेस्ट से अधिक से अधिक बिजली का उत्पादन किया जाय.


विपक्षी विरोध की आवाज़ दबाने की कोशिश

झारखंड विकास मोर्चा के विधायक प्रदीप यादव ने जब अडानी समूह के लिए किए जा रहे भूमि अधिग्रहण का विरोध किया, तो सरकार ने पहले तो प्रदीप उन्हें इस तरह का विरोध नहीं करने को कहा, पर जब झाविमो विधायक ने सरकार की बात नहीं मानी तो उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया. बाद में उच्च न्यायालय से उन्हें राहत मिली.

एक तरह से कहा जाय, तो भाजपा सरकार अडानी के खिलाफ कुछ भी सुनने को तैयार नहीं है. लेकिन विपक्षी दल भी एकजुट हेकर इसका विरोध कर रहे हैं. गोड्‌डा में पावर प्लांट के लिए जमीन अधिग्रहण के विरोध में विपक्षी दल एकजुट हैं. इसे लेकर कई बार जिला बंद तो कई बार पूरे प्रमंडल में ही बंद का आह्‌वान किया गया है. मुख्य विपक्षी दल झामुमो का आरोप है कि सरकार विकास के नाम पर जमीन लूट के लिए कहानी गढ़ रही है.

पार्टी ने आरोप लगाया है कि गोड्‌डा में अडानी कंपनी और केंद्र सरकार के दबाव में रैयतों से जबरन जमीन ली जा रही है. इससे यहां के रैयतों में आक्रोश है. झामुमो के महासचिव सुप्रीयो भट्‌टाचार्य ने कहा कि हमारी पार्टी इस तरह के जमीन अधिग्रहण के विरोध में है. पार्टी इसके खिलाफ सड़क पर उतरेगी और जरूरत पड़ी तो इसके खिलाफ उग्र आंदोलन चलाया जाएगा.

पूर्व मुख्यमंत्री एवं प्रतिपक्ष के नेता हेमंत सोरेन ने राज्य सरकार पर हमला बोलते हुए कहा है कि भाजपा सरकार उद्योगपतियों द्वारा बनाई गई सरकार है और औद्योगिक घरानों को लाभ पहुंचाने के लिए गरीब लोगों की जमीन का जबरन अधिग्रहण कर रही है. इससे लोग भूमिहीन हो रहे हैं और रोजी-रोटी की तलाश में उन्हें दूसरे राज्यों की ओर पलायन करना पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि गोड्‌डा में किसी भी हालत में रैयतों की जमीन नहीं लेने दी जाएगी, इसके लिए सड़क से लेकर सदन तक आंदोलन किया जाएगा. कांग्रेस द्वारा भी इस पावर प्लांट के विरोध में धरना एवं प्रदर्शन किया जा रहा है.


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