आज तकरीबन हर भारतीय किसी न किसी रूप में इलेक्ट्रॉनिक उपकरण का इस्तेमाल कर रहा है. एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण खराब होने के बाद जब हम दूसरा उपकरण खरीदते हैं, तो पहले वाले का निपटान हम कैसे करते है? उसे या तो घर में रखते हैं या कबाड़ी के हाथों बेच देते हैं. कम्प्यूटर, मोबाईल फोन, प्रिंटर्स, फोटोकॉपी मशीन, इन्वर्टर, यूपीएस, एलसीडी, टेलीविजन, रेडियो, डिजिटल कैमरा आदि. इससे विश्व में लगभग 200 से 500 लाख मीट्रिक टन ई-वेस्ट पैदा होता है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, नई दिल्ली द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, वर्ष 2005 में भारत में जनित ई-वेस्ट की कुल मात्रा 1.47 लाख मीट्रिक टन थी, जो 2012 में बढ़कर लगभग 8 लाख मीट्रिक टन हो गई और इसमें लगातार वृद्धि हो रही है.

संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित ग्लोबल

मॉनीटर 2017 में कहा गया है कि भारत सालाना लगभग 2 मिलियन टन ई-कचरा पैदा करता है और अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी के बाद ई-कचरा उत्पादक देशों में इसका पांचवां स्थान है. एसोचैम और एनईसी (नेशनल इकोनॉमिक काउंसिल) द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में ई-कचरे में सर्वाधिक योगदान महाराष्ट्र (19.8 प्रतिशत) का है. वह सिर्फ 47,810 टन कचरे को सालाना रिसाइकिल कर दोबारा प्रयोग के लायक बनाता है. ई-कचरे में तमिलनाडु का योगदान 13 प्रतिशत है, जो 52,427 टन कचरे को रिसाइकिल करता है. इसी प्रकार उत्तर प्रदेश (10.1 प्रतिशत) 86,130 टन कचरा रिसाइकिल करता है. देश के ई-कचरे में पश्चिम बंगाल का 9.8 प्रतिशत, दिल्ली का 9.5 प्रतिशत, कर्नाटक का 8.9 प्रतिशत, गुजरात का 8.8 प्रतिशत और मध्य प्रदेश का 7.6 प्रतिशत योगदान है.

अक्टूबर 2016 में जारी ई-कचरा प्रबंधन नियमों के अनुसार, बिजली और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण निर्माताओं को कलेक्शन (संग्रह) सुविधा प्रदान करना है. इसके बाद, उसे कचरा जमा कर अधिकृत रिसाइक्लर्स को वापस करना है. कानून पारित होने के डेढ़ साल बाद भी इसका कोई सबूत नहीं है कि क्या सचमुच इस कानून को लागू किया जा रहा है. कानून कहता है कि इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं के उत्पादकों को वेबसाइट और बुकलेट के जरिए अपने ग्राहकों को डाक पता, ई-मेल और संग्रह केंद्रों के टोल-फ्री नंबर देने चाहिए, ताकि उपभोक्ता ई-कचरे की वापसी कर सकें. कानून ई-कचरा एकत्र करने और रिसाइकिल करने के लिए विभिन्न उपायों का विवरण देता है. कानून कहता है कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड उन रिसाइक्लर्स की जांच करेगा, जिन्हें ई-कचरा निपटान की अनुमति दी गई है.

कानून यह भी कहता है कि उत्पादकों की ज़िम्मेदारी सिर्फ कचरे के संग्रह तक ही सीमित नहीं है, बल्कि उसे यह सुनिश्चित करना है कि कचरा अधिकृत रिसाइक्लर तक पहुंच जाए. लेकिन इसे लेकर कोई निगरानी प्रणाली नहीं है, जिसके जरिए पता किया जा सके कि उत्पादकों द्वारा एकत्रित कचरा अनाधिकृत रिसाइक्लिगं में जाता है या नहीं जाता है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, भारत में 214 अधिकृत रिसाइक्लर हैं. 2016-17 में, उन्होंने भारत के 2 मिलियन टन ई-कचरे में से केवल 0.036 मिलियन टन कचरे को ही उपचारित किया.

भारत में ई-कचरे का लगभग 95 प्रतिशत पुनर्नवीनीकरण अनौपचारिक क्षेत्र में गलत तरीके से किया जाता है. जैसे, प्लास्टिक को हटाने के लिए ई-कचरे को जलाया जाता है. इससे हवा, पानी और मिट्‌टी गंभीर रूप से प्रदूषित होते हैं. कुछ लोग पैसे के लालच में बड़े शहरों में पैदा होने वाले ई-कचरे को अवैध रूप से लाकर, टुकड़ों में अलग किए जाने का कार्य एवं अवैज्ञानिक तरीके से खुले में अवैध रूप से जलाकर धातु एकत्र करने का कार्य करते हैं.

इससे शहर के पर्यावरण एवं आम जनता के स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है. ई-कचरे की राख में विभिन्न प्रकार की विषैली धातुएं होती हैं, जो पानी के साथ मिलकर नदी के जल को भी विषाक्त कर देती है. भारत में अवैध रूप से ई-कचरा भी आयात किया जाता है. एक अनुमान के मुताबिक, 2007 में देश में लगभग 50,000 टन ई-कचरा दूसरे देशों से आयात हो कर आया. संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की 2015 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि एशिया में चीन, भारत मलेशिया और पाकिस्तान ई-कचरा डंप करने के लिए सबसे माकूल स्थल बन गए है. जबकि भारत में ई-कचरा आयात करने पर प्रतिबंध है.

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