अजय बोकिल 

जैसे कि ‘उसने कहा था’ कहानी ने चंद्रधर शर्मा गुलेरी को हिंदी साहित्य में अमर कर दिया, कुछ उसी तरह एक प्रार्थना गीत ‘इतनी शक्ति हमे देना दाता’ ने गीतकार अभिलाष को न केवल फिल्मी गीतों के इतिहास में अटल स्थान दे दिया, बल्कि ‍प्रार्थना गीतों के रूप में फिल्मी गीतों की हमारे जीवन में घुसपैठ को नया आयाम भी दिया। हाल में दिवंगत सिने गीतकार अभिलाष के इस स्मृति क्षण में जानना दिलचस्प है कि बीते सात दशकों में हिंदी सिनेमा के ऐसे श्रेष्ठ पांच फिल्मी प्रार्थना गीत कौन से हैं, जो हमारे कई स्कूलों की प्रार्थना सभाओ और विभिन्न संस्थाओ के थीम सांग बन गए हैं। फिल्मी से इल्मी गीतों का सफर तय करने वाले ये प्रार्थना गीत, उन फिल्मी भक्ति गीतों से अलग हैं, जिनमें केवल ईश्वर की स्तुति है। इन प्रार्थना गीतों में केवल ईश्वर के स्तुति गान से हटकर मनुष्य के संपूर्ण मानव बनने की प्रार्थना है। अपने भीतर छिपे देवत्व को जगाने के लिए प्रेरणा और ऊर्जा प्रदान करने का आह्वान है।

सिने गीतकार अभिलाष की फिल्म जगत में बतौर गीत लेखक सीमित सफलताओ और आर्थिक कड़की की कई कहानियां अब सामने आ रही हैं। यूं फिल्मों में श्रेष्ठ लिखने और गीत लेखन के माध्यम से यश और धन कमाने के बीच कोई सीधा रिश्ता नहीं है। शैलेन्द्र, साहिर, गुलजार जैसे महान फिल्मी गीतकारों ने प्रसिद्धी, पैसा तो कमाया ही साथ ही कलात्मक ऊंचाइयों के मानंदड भी कायम किए। वो आम जन के दुख-दर्द को भी गीतो में ढालते रहे। आनंद बख्शी, समीर जैसे गीतकारों ने खूब लिखा और कमाया भी लेकिन उनकी रचनाओ में अपेक्षित साहित्यिक बुलंदी या काव्यात्मक तत्व सीमित रहा। बहुत से लोग साहित्यिक गीतो के मुकाबले फिल्मी गीतों को दोयम दर्जे का मानते हैं, क्योंकि उनमें रचनात्मक स्वतंत्रता नहीं होती। बावजूद इसके कई गीतकारों ने इस विधा में भी ऐसा कौशल अर्जित किया कि फिल्मी गीतों ने अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित कर ली। समंदर में मोतियों की तरह ये फिल्मी गीत अब हमारी सांस्कृतिक विरासत का अटूट हिस्सा हैं। करोड़ों लोगों के प्रेरणा स्रोत हैं। ये वो गीत हैं, जो हमारी उम्र के हर मोड़ के साझीदार हैं। बदलते जज्बात और अरमानों के साक्षी हैं। और ये सिलसिला निरंतर है।

यूं तो ये फिल्मी गीत कई प्रकार के हैं, अलग- अलग ‍चरित्रों और सिचुएशन के हिसाब से ‍रचे गए हैं। विभिन्न रसों में पगे हैं। मसलन प्रेम गीत, शोक गीत, विरह गीत, शांत गीत, हास्य गीत, श्रृंगार गीत, बाल गीत, युद्ध गीत, भक्ति गीत, नृत्य गीत, लोक गीत आदि। लेकिन इन सबमें ‘प्रार्थना गीतों’ का अलग मुकाम है। क्योंकि ये पूरे मानव समाज को एक सामूहिक रूप से नैतिक शक्ति देने का आहवान करते हैं। मेरी दृष्टि में ( इस पर मतभेद संभव है और स्वागतेय है) अब तक के सर्वश्रेष्ठ पांच फिल्मी प्रार्थना गीत इस क्रम में हो सकते हैं- 1. इतनी शक्ति हमे देना दाता, मन का विश्वास कमजोर हो ना, 2. हम को मन की शक्ति देना, मन‍ विजय करें, 3. तुम आशा, विश्वास हमारे, तुम धरती आकाश हमारे, 4. ऐ, मालिक तेरे बंदे हम तथा 5. अल्ला तेरो नाम, ईश्वर तेरो नाम, सबको सन्मति दे भगवान। ये पांचों प्रार्थना गीत 1957 से 1986 के बीच रचे, गाए, संगीतबद्ध किए गए और रिलीज हुए। कालक्रम के हिसाब से इन गीतों की शुरूआत ‘ऐ मालिक तेरे बंदे हम’ ( फिल्म दो आंखें बारह हाथ, 1957 गीतकार भरत व्यास) से होती है, जब देश में गांधी दर्शन हावी था। भारतीय दंड संहिता से इंसानियत को बड़ा मानने का सामाजिक आग्रह था। फिर आता है ‘ अल्ला तेरो नाम, ईश्वर तेरो नाम, सबको सन्मति दे भगवान ( फिल्म ‘हम दोनो’ 1962 गीतकार साहिर लुधियानवी)। इसमे मानवता के शिथिल पड़ते आग्रहों को फिर से सुदृढ़ करने की ईश्वर से विनती है। इसके बाद है ‘हम को मन की शक्ति देना, मन विजय करें, दूसरों की जय से पहले खुद को जय करें (फिल्म गुड्डी, 1971 गीतकार गुलजार )। इस प्रार्थना गीत में आत्मशुद्धि की बात है। विजेता की बजाए आत्मजेता बनने का आग्रह है। इसके बाद नंबर है’ तुम आशा विश्वास हमारे, तुम धरती आकाश हमारे ( फिल्म ‘सुबह’ 1982 गीतकार पं.नरेन्द्र शर्मा) का। यह मनुष्य की नैतिक फिसलन को रोकने के लिए ईश्वर को आशा और विश्वास दोनो के रूप में स्वीकार करने का हलफनामा है। यहां ईश्वर सगुण न होकर प्रकृति रूप में है। गीत में एक इच्छा के पूरा होने का सकारात्मक आग्रह है। इसके बाद आता है वो प्रार्थना गीत, जिसे इस लेख की थीम का आधार मान सकते हैं, यानी ‘ इतनी शक्ति हमे देना दाता, मन का विश्वास कमजोर हो ना, हम चले ऐसे रस्ते पे हमसे, भूलकर भी कोई भी कोई भूल हो ना ( फिल्म अंकुश’ 1986 गीतकार अभिलाष)।

इसका व्यापक अर्थ यह है कि फिल्मों में प्रार्थना गीतों की यात्रा जो मोटे तौर पर खुद को ‘मालिक का बंदा’ मानने से शुरू हुई थी, वो मन के विश्वास को अडिग रखने की व्याकुल अरज पर आकर टिक जाती है। यह बात अलग है कि इसके आगे के कालक्रम में इतिहास बिल्कुल दूसरा मोड़ लेता है। प्रार्थना गीत मानो नारे या युद्ध जैसी घोषणाओ में बदलते प्रतीत होता है। आत्मार्चन ,अहंकार का स्वरूप ग्रहण करता-सा लगता है। इन प्रार्थना गीतों में कोई पैटर्न पढ़ा जाए तो इसमें आजादी के बाद फिसलते नैतिक मूल्यों और बदलते सामाजिक मूल्यों के बीच मनुष्य की जिजीविषा को बचाए रखने की जी तोड़ कोशिश परिलक्षित होती है। ‘ऐ मालिक तेरे बंदे हम’ का निर्मल उदारवाद व कर्म शुचिता का आचमन मानव मन की क्षरित होती शक्ति को बरकरार रखने की अरदास में भावांतरित होता दिखता है।

ये वो चु‍निंदा फिल्मी प्रार्थना गीत हैं, जो हमारे अनेक स्कूलों की प्रार्थना सभा का हिस्सा बने या अभी भी बने हुए हैं। बच्चे इनसे कितनी प्रेरणा ग्रहण करते हैं, यह कहना मुश्किल है, लेकिन इन गीतों के प्रतिदिन पारायण से किसी वैदिक मंत्रोच्चार से अर्जित ताकत और पर्यावरणीय पवित्रता का अहसास जरूर होता है। ध्यान रहे कि ये प्रार्थना गीत भी दिग्गज गीतकारों भरत व्यास, साहिर लुधियानवी, गुलजार, पंडित नरेन्द्र शर्मा और अभिलाष ने लिखे हैं। अभिलाष के अलावा बाकी के खाते में और भी बहुत से श्रेष्ठ और लोकप्रिय गीत हैं। जबकि अभिलाष के गीत फोल्डर में बेस्ट प्रार्थना गीत है। गायक की दृष्टि से देखें तो पांच में से तीन श्रेष्ठ प्रार्थना गीत गान सरस्वती लता मंगेशकर ने ही गाए हैं और उनमें भी दो का संगीत वसंत देसाई के नाम है। एक गीत वाणी जयराम ने गाया है। जबकि अभिलाष लिखित प्रार्थना गीत सुषमा श्रेष्ठ, पुष्पा पागधरे ने गाया है और संगीत कम ज्ञात लेकिन प्रतिभाशाली संगीतकार कुलदीपसिंह ने दिया है।

कवि अभिलाष के इस प्रार्थना गीत की सबसे बड़ी ताकत इसके सरल शब्द और ईश्वर से निश्छल अरज है कि तू कुछ भी कर, लेकिन हमारे अंतर्मन का विश्वास टूटने न दे। हमारी सकारात्मकता का नेटवर्क फेल नहीं होना चाहिए, क्योंकि विश्वास पर ही दुनिया कायम है। विश्वास से ही आशा की धूप खिलती है। इस गीत की सबसे बड़ी खासियत अपने आप से यह सवाल है कि ये न पूछें कि हमे दुनिया ने क्या दिया है बल्कि ये जांचें कि हमने दुनिया को क्या दिया है ? केवल अपने स्वार्थ की फाइल न खोलें, बल्कि समाज को हमारे योगदान का फोल्डर भी चेक करें। दरअसल इसी अंतरे से यह प्रार्थना गीत ऊपर वाले से याचना की दीन कक्षा से बाहर निकल कर आत्म परीक्षण के अपूर्व लोक में चक्कर लगाने लगता है। पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी ‘उसने कहा था’ का मूल भाव भी यही निस्वार्थता है। अभिलाष के इस प्रार्थना गीत में भी समूचे मानव समाज की निस्वार्थता का गरिमामय गान है और यह भाव शाश्वत रखने की शक्ति देने परमपिता से विनती है। यह विनती किसी भी मन की हो सकती है। ज्यादातर प्रार्थना गीतों में सामूहिक कल्याण, दुष्टता का नाश, सब पर कृपा बरसाने की गुहार तो होती है, लेकिन स्वयं पर प्रश्नवाचक चिन्ह लगाने वाला यह शायद अनोखा प्रार्थना गीत है। कहते हैं कि अभिलाष ने यह गीत भी कई पुराने मुखड़ों को डायरेक्टर द्वारा‍ रिजेक्ट किए जाने के बाद कुछ झुंझलाहट में ही लिखा था। लेकिन इस गीत के बोलो में मानो मनुष्य की आत्मा ही बोल पड़ी। एक फिल्मी प्रार्थना गीत,मनुष्यता का ‘प्रार्थना गीत’ बन गया।

वरिेष्ठ संपादक
‘सुबह सवेरे’

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