jdसीतामढ़ी जिले में जद (यू) के मजबूती के सवाल पर दावे के साथ कुछ भी कहा नहीं जा सकता. पार्टी कार्यकर्ताओं को जनता के बीच सरकार प्रायोजित योजनाओं का पुलिंदा लेकर जाने का निर्देश दिया जाने लगा है. शराब बंदी, दहेज बंदी व बाल विवाह पर रोक जैसे नीतीश सरकार के निर्णय को समाज के लिए बेहतर बताया जा रहा है.

महिलाओं के विकास को लेकर चलाई जा रही योजनाओं की चर्चा कर वोटों की गोलबंदी का प्रयास किया जा रहा है. पार्टी संगठन को जिले में चुनावी नजरिए से मजबूत बनाने को लेकर एक ओर जहां पार्टी के पुराने कार्यकर्ता को जिलाध्यक्ष की कमान सौंपी गई है तो दूसरी ओर कुछ पुराने साथियों को फिर से पार्टी में सक्रिय कर लोकसभा के साथ ही आगामी बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी का भी मार्ग प्रशस्त किया जाने लगा है.

सीतामढ़ी में जद (यू) की टिकट पर सांसद बन चुके पूर्व सांसद डॉ. अर्जुन राय ने 2014 में चुनाव हारने के बाद अब पार्टी से भी रिश्ता तोड़ लिया है. इस जिले में जद (यू) के मजबूती की जिम्मेदारी कुछ पार्टी नेताओं पर होने की चर्चा की जा रही है. इनमें पूर्व मंत्री सह विधायक डॉ. रंजूगीता, विधायक सुनीता सिंह चौहान, विधान पार्षद रामेश्वर कुमार महतो, पूर्व सांसद नवल किशोर राय, पूर्व विधायक गुड्‌डी देवी व पूर्व विधान पार्षद राज किशोर कुशवाहा समेत अन्य शामिल हैं. वहीं दूसरी ओर मो. ज्याउद्दीन खां, प्रो. अमर सिंह, शंकर बैठा व किरण गुप्ता, समेत अन्य दल की मजबूती को लेकर हर संभव प्रयास में जुटे हैं.

2019 के चुनाव में सीतामढ़ी सीट दलगत गठबंधन के तहत अगर पुन: जद (यू) के हिस्से आती है तो दावेदारों की तादाद में वृद्धि की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है. साथ ही पार्टी के अंदर अंदरूनी कलह की भी पूरी गुंजाईश हो सकती है. फिलहाल मो. ज्याउद्दीन खां को जिलाध्यक्ष पद से मुक्त किए जाने और राणा रंधीर सिंह चौहान को पार्टी की कमान दिए जाने की चर्चा भी जोरों पर है.

चल रही चर्चाओं पर यकीन करें तो इस असमय बदलाव का अहम कारण स्थानीय दलीय नेताओं की गुटबाजी है. सच्चाई चाहे जो हो मगर इतना तो साफ है कि चुनाव आते-आते जद (यू) में नेताओं के बीच अंदरूनी कलह की पूरी संभावना है. ऐसे हालात में पार्टी के जिलाध्यक्ष के लिए दल को संभालना एक चुनौती साबित हो सकती है. साथ ही प्रदेश नेतृत्व को भी जिले में दलीय राजनीति को संभाल पाना मुश्किल हो सकता है. अब देखना यह है कि जिला संगठन को दल के धुरंधर नेता किस रफ्तार से चुनावी सफर तय करा पाते हैं.

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