ज़फर सरेशवाला का वाक्य छोटा है, लेकिन ज़फर सरेशवाला के रिश्ते, जफर सरेशवाला की हैसियत और ज़फर सरेशवाला के क़दम इस वाक्य को बहुत बड़ा बना देते हैं. देश के मुस्लिम संगठनों को जफर सरेशवाला की इस बात का विरोध करना चाहिए और कहना चाहिए कि ज़फर सरेशवाला को न भारत के संविधान की समझ है, न भारत के क़ानून की समझ है, न भारत के सोशल फैब्रिक की समझ है, न भारत में जीने के अंदाज़ की समझ है. हिंदुुस्तान में हम स़िर्फ पूजा पद्धति को लेकर अलग हैं, लेकिन देश के सवालों पर इस देश में रहने वाला हर आदमी एक साथ है, संविधान के सामने या क़ानून के सामने उसकी बराबर की हैसियत है.
वक्त आ गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील की जाए कि वह अपने साथियों को या तो समझाएं या फिर उन्हें खुद से अलग करें. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक साथी हैं, ज़फर सरेशवाला. वह विदेशी बिजनेसमैनों की तऱफ से हिंदुस्तानी मुसलमानों के बीच नरेंद्र मोदी का पक्ष लेने की कोशिश का नेतृत्व करने वालों के नेता हैं और लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने हिंदुस्तान के मुसलमानों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि अच्छी बनाने की काफी कोशिश की. यह ज़फर सरेशवाला का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऊपर एहसान है और शायद नरेंद्र मोदी इस एहसान को मानते भी हैं. इसीलिए उन्होंने मुसलमानों के बीच अपना राजदूत भेज दिया है, जो नरेंद्र मोदी की अच्छाइयां मुसलमानों को बता रहा है. हालांकि, मुसलमानों के बीच अभी तक ज़फर सरेशवाला पूरी तरह स्वीकार्य नहीं हैं, लेकिन बहुत सारे मुस्लिम नेता, जिन्हें लगता है कि अगले दस सालों तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही रहने वाले हैं, वे ज़फर सरेशवाला के साथ छिपा हुआ हाथ बढ़ा रहे हैं, ताकि वे उनकी गुडबुक में आ सकें.
ज़फर सरेशवाला ने एक खतरनाक काम किया है. सलमान खान के मामले को लेकर उन्होंने कहा कि सलमान खान को सजा इसलिए हुई, क्योंकि सलमान खान मुसलमान हैं. सलमान खान सलमान खान हैं, यह अगर कोई कट्टरपंथी संगठन कहता, तो बात समझ में आती. कोई ऐसा जाहिल कहता, जिसे भारतीय संविधान की समझ नहीं है, तो भी बात समझ में आती. लेकिन, यह बात ज़फर सरेशवाला कह रहे हैं. इसका मतलब है कि या तो वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सहमति से ऐसा कह रहे हैं या फिर वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मुसीबत में डालने के लिए यह बात कह रहे हैं. इस वाक्य का मतलब बहुत दूर तक जाता है.
क्या इस देश का संविधान अब अपराध करने वालों या अपराध का आरोप लगाने वालों को धर्म के आधार पर देखेगा या सबको एक नज़र से देखेगा? अदालतें दोषी व्यक्ति को संविधान सम्मत सजा, क़ानून सम्मत सजा देंगी या फिर धर्म के आधार पर सजा देंगी? ज़फर सरेशवाला जब यह कहते हैं कि सलमान खान को मुसलमान होने के नाते सजा मिली, तो वह इस तर्क को सही साबित करते हैं कि जो हिंदू उग्रवाद के नाम पर जेल में हैं, उन सारे लोगों को सजा इसलिए मिली, क्योंकि सरकार मुस्लिम अपीजमेंट करना चाहती है या मुसलमानों को संतुष्ट करने के लिए वह कुछ लोगों को जेल में डाल रही है.
क्या ज़फर सरेशवाला देश को यह संदेश दे रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी देश के नागरिकों को धर्म के आधार पर देखे जाने के पक्ष में हैं? क्या अब क़ानून अपराधी को हिंदू या मुसलमान में बांटकर देखेगा? सलमान खान ने अपराध किया है या नहीं किया है, इसका फैसला अदालत करेगी, जहां मुक़दमा चल रहा है. सेशन कोर्ट ने पांच साल की सजा दी है. हाईकोर्ट में उसकी अपील होगी और हाईकोर्ट के बाद उसकी अपील सुप्रीम कोर्ट में होगी तथा सुप्रीम कोर्ट में जाकर यह अंतिम रूप से तय होगा कि जिस व्यक्ति के ऊपर यह म़ुकदमा चल रहा है, वह दोषी है या नहीं है. संजय दत्त का मुक़दमा सुप्रीम कोर्ट तक चला, तब उन्हें सजा मिली. यही प्रक्रिया सलमान खान के केस में होगी या यही प्रक्रिया किसी के भी केस में होगी. बशर्ते, वह सुप्रीम कोर्ट जा सके, क्योंकि हर एक को 20 लाख रुपये प्रति पेशी चार्ज करने वाला वकील नहीं मिल सकता और यह बात इस देश में जो भी क़ानूनी प्रक्रिया से ग़ुजरता है, उसे मालूम है कि सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट में म़ुकदमा लड़ने वाले वकीलों की फीस प्रति पेशी कितनी है, चाहे सुनवाई हो या न हो.
क्या इस देश का संविधान अब अपराध करने वालों या अपराध का आरोप लगाने वालों को धर्म के आधार पर देखेगा या सबको एक नज़र से देखेगा? अदालतें दोषी व्यक्ति को संविधान सम्मत सजा, क़ानून सम्मत सजा देंगी या फिर धर्म के आधार पर सजा देंगी? ज़फर सरेशवाला जब यह कहते हैं कि सलमान खान को मुसलमान होने के नाते सजा मिली, तो वह इस तर्क को सही साबित करते हैं कि जो हिंदू उग्रवाद के नाम पर जेल में हैं, उन सारे लोगों को सजा इसलिए मिली, क्योंकि सरकार मुस्लिम अपीजमेंट करना चाहती है या मुसलमानों को संतुष्ट करने के लिए वह कुछ लोगों को जेल में डाल रही है.
अब ज़फर सरेशवाला कह रहे हैं कि अपराधी को हिंदू और मुसलमान की नज़र से देखना चाहिए और वह व्यक्ति एक बड़ी यूनिवर्सिटी का वाइस चांसलर है. वह व्यक्ति इस देश में नरेंद्र मोदी के प्रतिनिधि के नाते या भाजपा के सर्वोच्च नेता के प्रतिनिधि के नाते घूम भी रहा है. लोगों को आश्वासन भी दे रहा है और उनसे नरेंद्र मोदी के साथ आने की बात भी कर रहा है. क्या इसके पीछे भाजपा खड़ी है? अगर खड़ी है, तो इस देश में बहुत जल्दी संविधान या क़ानून की यह बात ग़लत साबित करने की कोशिश होगी कि क़ानून के सामने सब बराबर हैं या संविधान के सामने सब बराबर हैं. इस देश में कोई दोयम दर्जे का नागरिक नहीं है और क़ानून यह कहता है कि सौ अपराधी छूट जाएं, लेकिन एक निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिए. ये सारे वाक्य अर्थहीन साबित हो जाएंगे.
ज़फर सरेशवाला अगर तत्काल माफी नहीं मांगते और भाजपा उन्हें अलग नहीं करती तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ज़फर सरेश वाला पर सख्त एक्शन नहीं लेते, तो देश में यह ग़लत संदेश जाएगा कि ज़फर सरेशवाला के माध्यम से इस देश में हिंदुओं और मुसलमानों को बांटने की एक नई कोशिश होने वाली है. ज़फर सरेशवाला ने यह वाक्य बिल्कुल उसी अंदाज़ में कहा है, जिस अंदाज़ में या तो कट्टरपंथी या अलगाववादी या देश में दहशतगर्दी फैलाने वाला व्यक्ति कह सकता है. इस बयान को सुनते ही भविष्य का दृश्य सामने आता है.
ज़फर सरेशवाला का वाक्य छोटा है, लेकिन ज़फर सरेशवाला के रिश्ते, जफर सरेशवाला की हैसियत और ज़फर सरेशवाला के क़दम इस वाक्य को बहुत बड़ा बना देते हैं. देश के मुस्लिम संगठनों को जफर सरेशवाला की इस बात का विरोध करना चाहिए और कहना चाहिए कि ज़फर सरेशवाला को न भारत के संविधान की समझ है, न भारत के क़ानून की समझ है, न भारत के सोशल फैब्रिक की समझ है, न भारत में जीने के अंदाज़ की समझ है. हिंदुुस्तान में हम स़िर्फ पूजा पद्धति को लेकर अलग हैं, लेकिन देश के सवालों पर इस देश में रहने वाला हर आदमी एक साथ है, संविधान के सामने या क़ानून के सामने उसकी बराबर की हैसियत है. उसे धर्म के आधार पर आज अगर ज़फर सरेशवाला बांटने की बात करेंगे, तो कल कोई यह भी कह सकता है कि उसे सजा इसलिए मिली या उसके ऊपर मुक़दमा इसलिए चला, क्योंकि वह दलित है, वह निर्बल है, वह वंचित है, वह आदिवासी है, वह अपनी आवाज़ नहीं उठा सकता. पद्धति में असमानताएं हो सकती हैं, लेकिन सिद्धांत में असमानताएं नहीं हो सकतीं और इसीलिए ज़फर सरेशवाला के इस वाक्य का विरोध होना चाहिए. और, इसमें छिपी हुई भावना का न केवल खंडन होना चाहिए, बल्कि उसकी लानत-मलामत भी होनी चाहिए. इस देश का संविधान इस देश में रहने वालों को समान अधिकार देता है, समान दृष्टि देता है और क़ानून के सामने हर एक की हैसियत इंसान की हैसियत होती है. किसी धर्म के नाते विशेष या कमजोर स्थिति नहीं होती.
बहरहाल, इस फैसले के बाद क्या अब इस पर बहस होगी कि देश में उन लोगों को भी, जो 20 लाख रुपये का वकील अपने लिए कोर्ट में खड़ा नहीं कर सकते, इसी तरह से न्याय मिलेगा? क्या आज के बाद उन सारे लोगों को जमानत पर जेल से रिहा कर दिया जाएगा और उन सबको जमानत मिल जाएगी, जो छोटे-मोटे अपराधों में जेल में बंद हैं और जिनके केस की सुनवाई जारी है? देश में इस समय ढाई लाख विचाराधीन कैदी जेल में हैं. क्या ऐसे लोगों को सर्वोच्च अदालत से अंतिम ़फैसला आने तक जेल से बाहर रहने का मा़ैका मिलेगा या फिर क़ानून के सामने सब एक हैं, वाली बात स़िर्फ जुमला बनकर रह जाएगी?