किसानों की आत्महत्या को लेकर बदनाम महाराष्ट्र का विदर्भ क्षेत्र एक बार फिर चर्चा में है. इस बार वजह किसानों की आत्महत्या नहीं, बल्कि हत्या है. जी हां, ये हत्या ही है कि अच्छी उपज का लालच देकर किसानों को कीटनाशक के प्रयोग के लिए तैयार किया जाए, लेकिन उन्हें उस कीटनाशक के कुप्रभाव के बारे में जागरूक नहीं किया जाय. कीटनाशक के दुष्प्रभाव के कारण विदर्भ के यवतमाल में पिछले दो हफ्ते में 19 किसानों की मौत हो चुकी है, 25 से ज्यादा लोगों की आंखों की रोशनी चली गई है और 700 से ज्यादा किसान अब भी अस्पतालों में भर्ती हैं, जिनमें से कई की हालत गंभीर है.
दरअसल, यवतमाल में बड़ी संख्या में किसान कपास की खेती करते हैं. कपास की खेती को गुलाबी कीड़े यानि पिंक बोलवर्म से खतरा होता है. इन कीड़ों से कपास की फसल को बचाने के लिए किसानों को प्रोफेनोफॉस जैसे कीटनाशक का छिड़काव करना पड़ा, क्योंकि ऐसा नहीं करने पर कीड़े पूरी फसल को बर्बाद कर देते. कीड़ों की बर्बादी होगी या नहीं, ये तो बाद की बात है, अभी तो यह कीटनाशक किसानों की ही बर्बादी का कारण बन गया है. कीटनाशक का छिड़काव करने वाले किसान उसके जहर के प्रकोप में आ गए. स्थानीय लोगों का कहना है कि जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग चाहता, तो शायद मरने वालों की संख्या कम हो सकती थी, लेकिन किसानों पर अस्पतालों की कुव्यवस्था की दोहरी मार पड़ी और देखते-देखते 19 किसानों ने दम तोड़ दिया.
गौर करने वाली बात है कि यवतमाल में कीटनाशक के दुष्प्रभाव के कारण पहली मौत 19 अगस्त को हुई थी. लेकिन उसके बाद भी इसे लेकर प्रशासन के स्तर पर कोई ठोस पहल नहीं हुई. जब मौत का आंकड़ा बढ़ने लगा, तो सरकार और प्रशासन की तंद्रा भंग हुई. राज्य सरकार ने आनन-फानन में सचिव स्तरीय जांच का आदेश दिया. किसानों द्वारा आवाज उठाने पर भी नदारद रहने वाले भाजपा विधायक और महाराष्ट्र सरकार में मंत्री मदन येरावार किसानों की मौत के बाद सामने आए और कहा कि किसानों और खेतिहर मज़दूरों को छिड़काव के लिए मास्क और दस्तानों का मुफ्त वितरण शुरू हो चुका है. गौरतलब है कि ये मास्क और दस्ताने अगर पहले वितरित किए गए होते तो किसानों के घर में यूं मातम न मनता.