कोरोना की दूसरी लहर को लेकर सरकार मुगालते में रही और भारत को “कोरोना-जीत” विश्व-गुरु घोषित कर दिया. इस आत्ममुग्धता का नतीजा यह रहा कि देश में कोरोना तूफानी रफ़्तार से पसरा और इससे लड़ने के हर औजार कम पड़ गए. दूसरी लहर का कहर जारी है. सरकार से अपेक्षा यह थी कि दवा, बेड, ऑक्सीजन, डॉक्टर उपलब्ध कराये और साथ हीं उससे तेज रफ़्तार से वैक्सीन बनवाने और लगवाने के प्रबंध मुकम्मल करे. अगर वैक्सीन का उत्पादन वर्तमान ३० लाख टीके से बढ़ा कर 70 लाख तक पहुंचाया जा सके और इतना हीं लगवाया जा सके तो अगले आठ माह में देश में ८० करोड़ लक्षित लोगों को दोहरा टीका लग जाएगा और हम महफूज हो सकेंगें.

लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई बड़ा सार्थक प्रयास होता नहीं दिखाई दे रहा है. जहाँ करोड़ों लोग अदृश्य दहशत के साए में जी रहे हैं, उसी बीच इस बार सरकार के एक नुमाइंदे ने मीडिया को बताया कि तीसरा लहर भी आयेगा और चार गुनी ज्यादा संघटक क्षमता के साथ आयेगा. सरकार की चैतन्यता काबिले तारीफ है लेकिन इस अलार्म का स्रोत क्या है, कितना विश्वसनीय है और नतीजे पर पहुँचाने का तरीका क्या है नहीं बताया गया. यह भी नहीं मालूम कि टीकाकरण का इस तीसरे वेव पर क्या असर रहेगा.

सरकार को याद रखना चाहिए कि पिछली बार की गफलत के पीछे भी सरकार-नियुक्त एक्सपर्ट्स की एक टीम द्वारा प्रस्तुत गणितीय माडल था जिसका नाम “सूत्र” था. टीम ने रिपोर्ट में सरकार को नवम्बर में बताया था कि कोरोना की भारत से पूर्ण विदाई फरवरी में हो जायेगी. फिर अगर तीसरी लहर की भविष्यवाणी पुख्ता वैज्ञानिक आधार पर की गयी है तो सरकार के पास और भी बड़ा कारण है टीकाकरण को तेज करने का. सच है कि १४० करोड़ की आबादी के लिए दुनिया की कोई सरकार महामारी में संसाधन उपलब्ध नहीं करा सकती लिहाज़ा रास्ता एक हीं है देश भर में पूर्ण टीकाकरण. अगर अगले आठ माह में देश के ७० प्रतिशत लोगों को टीका लग जाएगा तो कम से कम दूसरी लहर का डंक तो नहीं डसेगा.

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