देश में किसान आंदोलन के समांतर एक लड़ाई डिजीटल जगत में भी चल रही है। ये लड़ाई भारतीय डिजीटल स्टार्ट अप्स बनाम महाकाय बहुराष्ट्रीय टैक्नोलाॅजी कंपनी गूगल है। चूंकि ये लड़ाई सड़कों पर नहीं लड़ी जा रही है, इसलिए नेट और एप यूजर्स को इसका बहुत ज्यादा पता नहीं है। गूगल ने ऐसा पहला झटका करीब दो माह पहले पेटीएम को अपने गूगल प्ले स्टोर से बाहर कर के दिया था। हालांकि बाद में उसे फिर बहाल कर दिया गया।
झगड़े की वजह गूगल कंपनी द्वारा प्ले स्टोर नियमों में किए गए बदलाव हैं। इसका नतीजा यह है कि भारत में अब प्ले स्टोर मामले में भी ‘आत्मनिर्भरता’ की बात हो रही है। यानी गूगल को झटका देने के लिए वैकल्पिक प्ले स्टोर विकसित किया जाए। हालांकि जानकारों के मुताबिक यह काम आसान नहीं है और यदि सरकार भी इसमें शामिल होती है तो कई पेचीदगियां बढ़ सकती हैं।
बताया जाता है कि नए नियमों के अनुसार गूगल ने ऐप डेवलपर्स के लिए इन-ऐप्स की ख़रीदारी कंपनी के अपने बिलिंग सिस्टम से करना अनिवार्य कर दिया है। इससे नाराज भारतीय टैक्नाॅलाजी स्टार्ट-अप्स का कहना है कि गूगल अपने प्रभुत्व का दुरुपयोग कर रही है। बीबीसी में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय स्टार्ट-अप्स में उस 30 प्रतिशत कमीशन को लेकर भी चिंता है जो गूगल लेने की बात करता है। भारत में करीब 50 हजार से ज्यादा स्टार्ट अप्स हैं। इनमे से 10 हजार टैक्नाॅलाजी स्टार्ट अप्स हैं। इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है।
कई भारतीय स्टार्ट-एप्स का कहना है कि गूगल द्वारा ‘जो शुल्क तय किया गया है, वो बहुत अधिक है। ऐसे में ये लोग गूगल प्ले-स्टोर को बाय-पास कर उसका विकल्प तलाशने में लगे हैं। ध्यान रहे कि प्ले स्टोर करने यानी उसका एक विकल्प तैयार करने की बात कर रहे हैं। गूगल प्ले स्टोर वास्तव में एक डिजीटल डिस्ट्रीब्यूशन सेवा है।
जिस में एंड्रायड साॅफ्टवेयर विकास किट के माध्यम से आप मनचाहा ऐप डाउन लोड कर सकते हैं। जानकारों के मुताबिक डर इस बात का है कि इस टकराव का विपरीत असर देश के इंटरनेट उद्योग पर पड़ सकता है। हालांकि भारत के एंटी-ट्रस्ट नियामक ने पिछले दिनो कहा कि वह भारतीय बाज़ार में अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करने के लिए गूगल की जाँच करेगा।हालांकि इस बात में कितना दम है, कहना अभी देखना होगा। इसलिए भी क्योंकि गूगल ने पिछले दिनो ऐलान किया था कि वह भारत में 10 अरब डाॅलर का निवेश करेगी। उधर गूगल का कहना है कि वो अग्रणी भारतीय स्टार्ट अप्स के साथ बात कर सकती है।
वैसे गूगल की इस ‘दादागिरी’ का भारत सहित अन्य देशो में भी विरोध हो रहा है। पेटीएम के संस्थापक विजय शेखर शर्मा ने तो गूगल को ‘बिग डैडी’ करार दिया था। शर्मा की परेशानी यह है कि गूगल ने ‘गूगल पे’ की शुरूआत कर पेटीएम के किले में तगड़ी सेंध लगा दी है। गूगल ने गैम्बलिंग पर अपनी नीतियों का उल्लंघन करने के लिए सितंबर में अपने ऐप स्टोर से पेटीएम को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया था।गूगल के इस रवैए की कड़ी आलोचना करते हुए भारतीय स्टार्ट अप्स ने इसे इंटरनेट के क्षेत्र में गूगल के उपनिवेशवाद की संज्ञा दी। गूगल का यह औपनिवेशिक तंत्र ऑपरेटिंग सिस्टम से लेकर ऐप तक है। ‘भारत मैट्रिमोनी’ के संस्थापक मुरुगावल जानकीरमन ने कहा कि ” अब हम सब गूगल की दया पर हैं।
वैसे नए देशी प्ले स्टोर को विकसित करने में कई चुनौतियां हैं। पहली तो डेटा सुरक्षा की है। भारत में अभी इसके लिए समुचित कानून नहीं है। अगर देशी प्ले स्टोर विकसित कर भी लिया तो सवाल उठेगा कि यूजर डेटा सुरक्षा की कमान किसने हाथ होगी। जबकि गूगल ने इसमें लाखों डाॅलर का निवेश किया है। यह बात अलग है कि खुद गूगल में डाटा कितना सुरक्षित है, इस पर भी प्रश्न चिह्न है। क्योंकि 2018 में एक बड़ा गूगल डाटा चोरी कांड हुआ था। तब गूगल के इंजीनियरों ने सोशल मीडिया नेटवर्क में गूगल+एपीआई साॅफ्टवेयर के जरिए 50 लाख यूजर्स की डाटा चोरी का पता लगाया था। इसकी सूचना खुद गूगल ने दी थी।
इस बीच करीब 150 भारतीय उद्यमियों ने गूगल की नई नीति का विरोध करने के लिए एक नया गठबंधन तैयार किया है। भारत के सबसे महत्वपूर्ण स्टार्ट-अप पेटीएम, ऑनलाइन टिकट बुकिंग सेवा मेक माय ट्रिप और ऑनलाइन मैचमेकिंग सेवा भारत मैट्रिमोनी जैसी कुछ कंपनियाँ इस समूह का हिस्सा हैं। मामले की गहराई में जाएं तो दरसअल सारा विवाद ‘इन-ऐप्स’ खरीदी से जुड़ा है। ‘इन-ऐप’ खरीद से तात्पर्य किसी एक ऐप के अंतर्गत ही डिजीटल गुड्स और सविर्सेज की खरीद है।
इसके जरिए ऐप डेवलपर्स अपने यूजर्स को फ्री ऐप का ऑफर दे सकते हैं। नए नियम के तहत गूगल ने एंड्रायड साॅप्ट वेयर डिस्ट्रीब्यूटरों के लिए यह अनिवार्य कर दिया है कि वो प्ले स्टोर का बिलिंग गूगल प्ले बिलिंग सिस्टम से ही करें बजाए किसी और पेमेंट सिस्टम के। इसके तहत डिस्ट्रीब्यूटरों से 30 फीसदी इन ऐप फीस वसूली जाएगी। भारतीय स्टार्ट अप्स का कहना है कि अगर 100 रूपए में से 30 गूगल ले जाएगा, 18 रू. भारत सरकार ले जाएगी तो उन्हे क्या मिलेगा?
ऐसे में वैकल्पिक वितरण पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने की बात जोरों से उठ रही है। इसके लिए चीन का उदाहरण दिया जा रहा है, जिसने अपना खुद वितरण इकोसिस्टम तैयार किया है। हालांकि कई लोगों का मानना है कि गूगल की यह दादागिरी कारोबार का हिस्सा है। आशंका यह भी है कि अगर देश में वैकल्पिक प्ले स्टोर तैयार किया गया तो एक नए एकाधिकारवाद की शुरूआत भी हो सकती है। वह भी ठीक नहीं होगा। वैसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गूगल का प्रतिद्वंद्वी एपल है, जिसका एपल ऐप स्टोर है। बताया जाता है कि एपल अपने ऐप टैक्स से सालाना 15 अरब डाॅलर कमाता है।
गौरतलब है कि भारत में 99 फीसदी स्मार्टफोन्स में करीब 50 करोड़ यूजर्स गूगल एंड्रायड मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम का उपयोग करते हैं। भारतीय डिजीटल स्टार्ट अप्स कंपनियों को भरोसा है कि उनके विरोध के आगे गूगल को अंतत: झुकना ही पड़ा। गूगल के खिलाफ लड़ाई का बिगुल पेटीएम के विजय शेखर शर्मा ने फूंका। उन्होंने आरोप लगाया कि ‘बिग डैडी’ (गूगल) ऐप डिस्ट्रीब्यूशन की ऑक्सीजन सप्लाई को कंट्रोल करता है।
उन्होंने 50 बड़ी भारतीय कंपनियों के एक्जीक्यूटिव्स से गूगल की इस ‘सुनामी’ को रोकने की अपील की थी। शर्मा ने कहा था कि हमे अपनी डिजीटल डेस्टिनी ( डिजीटल नियति) को खुद कंट्रोल करना होगा। उधर गूगल का तर्क है कि नए नियमों का ज्यादा विरोध भारतीय स्टार्ट अप्स ही कर रहे हैं। बाकी दुनिया में 97 कंपनियां नए नियमों का पालन कर रही हैं। बहरहाल इस लड़ाई का अंजाम क्या होता है, यह देखने की बात है।
क्या गूगल भारतीय स्टार्ट अप्स के आगे झुकेगा और अपने नियमों में बदलाव करेगा या नहीं करेगा? इसी तरह गूगल से इस पंगे की परिणति भारतीय प्ले स्टोर डेवलप करने में होगी या नहीं, यह देखना भी दिलचस्प है। किसानों की लड़ाई से हटकर यह आभासी दुनिया की लड़ाई है। इसमें कौन जीतता और कौन मात खाता है, यह गहरी दिलचस्पी का विषय है। हां, अगर इसके बहाने हम गूगल के मुकाबिल कोई देशी प्ले स्टोर विकसित कर सकें तो यह एक बड़ी उपलब्धि होगी। लेकिन क्या ऐसा होगा?
वरिष्ठ संपादक
अजय बोकिल
‘सुबह सवेरे’