Maoistsझारखंड में नक्सली घटनाएं लगातार बढ़ती ही जा रही हैं. लेकिन राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास एवं मुख्य सचिव राजबाला वर्मा द्वारा दिए जा रहे बयानों से ऐसा लग रहा है कि इस माह के अंत तक राज्य से नक्सलवाद समाप्त हो जाएगा और झारखंड में नक्सली नाम की कोई चीज नहीं रहेगी. इधर नक्सली, सरकार द्वारा दिए जा रहे बयानों को गीदड़ भभकी ही मान रहे हैं. मुख्यमंत्री ने कहा था कि नक्सलियों से लड़ाई निर्णायक दौर में है और अब नक्सलवाद पूरी तरह से खत्म कर दिया जाएगा. लेकिन रघुवर दास के इस बयान के बारह घंटों के भीतर नक्सलियों ने इसका जवाब दे दिया.

राजधानी से सटे खूंटी में भाजपा नेता भैया राम मुंडा की हत्या कर नक्सलियों ने सरकार को यह अहसास करा दिया कि नक्सलवाद को खत्म करना आसान नहीं है. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि झारखंड में नक्सलियों की जड़ें काफी मजबूत हैं. माकपा माओवादी से टूटकर नक्सलियों ने राज्य में अपने दर्जनों संगठन बना लिए हैं. नक्सलियों के वर्चस्व का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि विकास कार्यों में बिना लेवी दिए काम करना ठेकेदारों एवं अधिकारियों के टेढ़ी खीर साबित होता है.

कहा तो यहां तक जाता है कि नक्सलियों की इजाजत के बिना नक्सल प्रभावित क्षेत्र में पत्ता तक नहीं हिलता. प्रशासनिक एवं पुलिस अधिकारियों तक को अपनी रक्षा के एवज में एक निश्चित राशि प्रतिमाह नक्सली संगठन को देना होता है. हाल यह है कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में स्थानान्तरण को अधिकारी सजा ही मानते हैं.

सरकार के दावे पर सवाल

विधानसभा चुनाव में भाजपा का यह महत्वपूर्ण वादा था कि सत्ता में आने के बाद वे झारखंड से नक्सलियों का नामो-निशान मिटा देंगे. इसके लिए सरकार ने एक-दो ऑपरेशन भी किए और नक्सलियों के खिलाफ कार्रवाई को अभियान के रूप में शुरू किया, लेकिन इन सबसे कोई खास सफलता नहीं मिल पाई. झारखंड को नक्सल मुक्त बनाने की दिशा में सरकार की ताजी डेड लाइन है दिसम्बर 2017. मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा है कि इस बार झारखंड से नक्सलियों का सफाया हो जाएगा. उन्होंने यह दावा किया कि पिछले तीन वर्षों में नक्सली हिंसा में कमी आई है और जो नक्सली अब तक छुप कर बैठे हैं, उनके विरुद्ध भी कार्रवाई की जा रही है. मुख्यमंत्री का दावा है कि दिसम्बर के अंत तक इन माओवादियों के खिलाफ बूढ़ा पहाड़ पर चल रहा पुलिस का ऑपरेशन पूरा कर लिया जाएगा. इसके साथ ही राज्य से नक्सलवाद पूरी तरह से खत्म हो जाएगा.

मुख्यमंत्री ने कहा कि शांति के बगैर विकास नहीं हो सकता. झारखंड, बिहार, उड़ीसा एवं छत्तीसगढ़ की ओर से माओवादियों के खिलाफ संयुक्त ऑपरेशन चलाया जा रहा है. सम्पत्ति जब्त करने की कार्रवाई के बाद कई नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है. उन्होंने कहा कि अगर नक्सली मुख्यधारा में नहीं लौटते तो उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने को तैयार रहना चाहिए. इधर राज्य के पुलिस मुखिया डीके पाण्डेय भी दावा कर रहे हैं कि नक्सलियों से लड़ाई अंतिम दौर में है. उनका कहना है कि नक्सलियों के सामने दो ही रास्ते हैं, या तो वे आत्मसमर्पण करें, वरना गोली खाने के लिए तैयार रहें.

उन्होंने कहा कि झारखंड से नक्सलियों का सफाया करना ही पुलिस का मिशन है. उन्हे कहा गया है कि यही मौका है, वे मुख्यधारा में लौट आएं और सरकार के विकास मॉडल के साथ काम करें. पुलिस मुखिया ने यह भी बताया कि 13 शीर्ष नक्सलियों की सम्पत्ति को जब्त किया गया है. नक्सलियों की कमर टूट चुकी है. जल्द ही नक्सलियों का सफाया कर दिया जाएगा. पुलिस महानिदेशक ने कहा कि सरकारी योजनाओं को नक्सली गरीबों तक नहीं पहुंचने दे रहे हैं. लेवी वसूली कर वे विकास कार्यों में बाधा उत्पन्न करते हैं. इधर खुफिया विभाग ने पुलिस को आगाह किया है कि कई पुराने नक्सली संगठन फिर से सक्रिय हो रहे हैं. सरकार और पुलिस के दावों से इतर नक्सली अब भी शासन तंत्र के लिए गंभीर चुनौती बने हुए हैं.

राजधानी से सटे खूंटी में बीते तीन महीनों में चार भाजपा नेताओं की हत्या हो चुकी है. नक्सलियों की ताकत का सहज अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि करोड़ों रुपयों के ईनामी नक्सली सुधाकरण और अरविंद जी के राज्य के बूढ़ा पहाड़ पर छिपे होने की पुख्ता सूचना पुलिस के पास है, लेकिन इनकी गिरफ्तारी नहीं हो पा रही है. इन दोनों नक्सलियों को पकड़ने के लिए हजारों की संख्या में पुलिस ने पहाड़ की घेराबंदी भी की, दर्जनों बार मुठभेड़ भी हुए, लेकिन अभी तक पुलिस इन्हें पकड़ पाने में नाकाम रही है.

हालांकि इन्हें पकड़ने का अभियान अब भी चल ही रहा है. इस अभियान में सीआरपीएफ, झारखंड जगुआर और कोबरा के 400 जवान शामिल हैं. पुलिस अभियान के आरक्षी महानिरीक्षक आशीष वत्रा का कहना है कि अरविंद जी और सुधाकरण के साथ ही अन्य 250 नक्सली भी बूढ़ा पहाड़ पर हैं. पुलिस ने इन्हें घेर रखा है और ये जल्द ही पकड़े जाएंगे. दरअसल नक्सलियों ने पहाड़ पर लैंडमाइंस बिछा रखा है और वे अत्याधुनिक हथियारों से लैस हैं. उनके पास भारी क्षमता वाले हैंड ग्रेनेड भी हैं. यही कारण है कि पुलिस इतनी मशक्कत के बाद भी इन तक नहीं पहुंच पा रही है.

एक करोड़ का ईनामी नक्सली अरविंद जी 2011 से यहां सक्रिय है, जबकि सुधाकरण अपनी पत्नी नीलिमा के साथ मार्च 2016 में लातेहार आया था. इसके बाद इन लागों ने कई बड़ी घटनाओं को अंजाम दिया. लेकिन पुलिसिया कार्रवाई बढ़ जाने के कारण दोनों यहां से निकल नहीं पाए. उसके बाद इन्होंने इस इलाके से सटे बूढ़ा पहाड़ को अपना ठिकाना बना लिया है. ये दोनों नक्सली नेता अपने साथियों के साथ जोको नाला के पास छुपे हुए हैं, जो पहाड़ के सबसे ऊपर है. इन नक्सलियों ने जोको नाला क्षेत्र के चारों ओर लैंड माइंस बिछा रखा है. यही कारण है कि बूढ़ा पहाड़ का दुर्गम क्षेत्र अब भी नक्सलियों के लिए सेफ और पुलिस के लिए चुनौती का सबब बना हुआ है.

इधर वामपंथी विचारक और पत्रकार बरबरा राव ने झारखंड सरकार से अनुरोध किया है कि वे बूढ़ा पहाड़ से पुलिस की घेराबंदी हटा ले. उनका कहना है कि आम जनता के साथ अभी भी दमन और शोषण की कार्रवाई हो रही है. झारखंड सहित देश के अन्य राज्यों में फासीवादी ताकतें उभर रही है. इन सबके खिलाफ संघर्ष भी चल रहा है. उन्होंने कहा कि राज्य में समानता की बात कही तो जा रही है, लेकिन यह जमीन पर नहीं दिख रहा है. नक्सलियों के नाम पर निर्दोष लोगों को भी पुलिस निशाना बना रही है.

पुलिस पर भारी नक्सली

झारखंड में नक्सली पुलिस पर हमेशा भारी रहे हैं. कुख्यात नक्सली कुंदन पाहन को पुलिस अंत तक नहीं पकड़ सकी थी. कुंदन पाहन ने दिन-दहाड़े कैशवैन से साढ़े पांच करोड़ और लगभग 10 किलो सोना लूट लिया था. कुंदन को पकड़ने के लिए पुलिस जंगलों में पांच वर्षों तक खाक छानती रही, लेकिन वो पकड़ में नहीं आ सका. बाद में जब कुंदन पाहन ने पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण किया, तब पुलिस ने उसे हीरो की तरह पेश किया था. इस आत्मसमर्पण को लेकर उच्च न्यायालय ने भी सरकार को फटकार लगाया था और कहा था कि एक नक्सली के साथ पुलिस के ऐसे रवैये से युवा भटकेंगे और अपराध की ओर जाने के लिए प्रेरित होंगे. कुंदन पाहन पूर्व मंत्री रमेश सिंह मुंडा हत्याकाण्ड का मुख्य आरोपी था.

झारखंड गठन के बाद से अब तक नक्सलियों के हाथों या उनसे मुठभेड़ में 510 पुलिसकर्मियों की मौत हो चुकी है. लगभग 1800 आम नागरिक भी नक्सली हिंसा का शिकार हुए हैं. वैसे पुलिस ने भी जवाबी कार्रवाई में लगभग 850 नक्सलियों को मार गिराया है. इसके बाद भी नक्सली संगठन अपने संगठन का विस्तार कर अपनी ताकत को बढ़ा रहे हैं. राज्य में तो दर्जनों नक्सली संगठन खड़े हो गए हैं और ये सभी अपने-अपने क्षेत्रों में वर्चस्व स्थापित करने में लगे हुए हैं. लेवी से होने वाली कमाई इनके लिए खाद-पानी साबित हो रही है. एक अनुमान के अनुसार, नक्सली संगठन लगभग 200 करोड़ रुपए की अवैध कमाई कर रहे हैं और अपनी इस कमाई से अत्याधुनिक हथियार खरीदकर अपनी ताकत को बढ़ाने में लगे हुए हैं. झारखंड में नक्सली संगठन ही विकास में बाधक बने हुए हैं.

नसलियों की बढ़ती ताकत को लेकर पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं भाजपा के वरिष्ठ सांसद करिया मुंडा ने सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है. उन्होंने कहा है कि सरकार नक्सलियों से निपटने में पूरी तरह से अक्षम साबित हुई है. नक्सली लगातार घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं, लेकिन सरकार मूकदर्शक बनकर बैठी हुई है. केवल बड़े-बड़े बयान देना ही सरकार अपना दायित्व समझा रही है. नक्सलियों से लड़ने के लिए सरकार को ठोस कदम उठाना चाहिए. अब देखना यह है कि राज्य सरकार झारखंड से नक्सलियों का सफाया करने के अपने वादे पर इसबार खरी उतरती है, या फिर यह दावा भी खोखला ही साबित होता है.

नक्सलियों ने माना, इस साल मारे गए हमारे 140 साथी

सुरक्षा बलों के कसते शिकंजे से नक्सली कमजोर पड़ते जा रहे हैं. दस राज्यों के 106 जिलों में सक्रिय नक्सलियों ने खुद माना है कि 2017 के दस महीनों में उन्हें तगड़ा झटका लगा है. नक्सलियों का कहना है कि इस साल उनके 140 साथियों को सुरक्षा बलों ने मार गिराया है, जिनमें 30 महिलाएं थीं. यह जानकारी पीपुल्स लिब्रेशन गुरिल्ला आर्मी (पीएलजीए) के स्थापना दिवस से पहले नक्सलियों के केन्द्रीय सैन्य आयोग की तरफ से जारी बयान में दी गई है.

इसमें बताया गया है कि नक्सलियों को सबसे ज्यादा नुकसान दंडकारण्य (छत्तीसगढ़) में उठाना पड़ा. वहां इस साल अब तक 98 नक्सली मारे जा चुके हैं. ई-मेल के जरिए मीडिया को जारी बयान में नक्सलियों ने बताया है कि सुरक्षा बलों ने उन्हें बहुत नुकसान पहुंचाया है. तेलंगाना में दो, एओबी (आंध्र-ओडिसा बॉर्डर) में सात, ओड़ीशा व पश्चिम बंगाल में दो-दो एवं पश्चिमी घाटियों में एक नक्सली की मौत की बात कही गई है.

नक्सली अरविंद की घेराबंदी हटाने की मांग

आंध्र प्रदेश के वामपंथी विचारक कवि और पत्रकार बरबरा राव ने राज्य सरकार से माओवादी नेता अरविंद जी के खिलाफ तैनात जवानों को हटाने की अपील की है और कहा है कि इसके लिए राजनीतिक रास्ता ही निकाला जाए. उन्होंने कहा कि सरकार से मेरी अपील है कि माओवादी नेता अरविंद के खिलाफ जो हजारों जवान लगे हैं, उन्हें हटाया जाए. उनका कहना है कि आज वैसी ही स्थिति बनती जा रही है, जैसी रुसी क्रांति के समय थी. वैसा ही दमन और शोषण किया जा रहा है. झारखण्ड, छत्तीसगढ़ सहित देश के अन्य राज्यों में फासीवादी व साम्राज्यवादी ताकतें उभर रही हैं. इन सबके खिलाफ संघर्ष भी चल रहा है.

इस संघर्ष को एकजुट हुए बिना नहीं जीता जा सकता. उन्होंने कहा कि वोल्शेविक क्रांति इसके लिए प्रेरणा है. बरबरा राव का कहना है कि हम लोगों ने सोवियत संघ के टूटने और ऐसी ही अन्य घटनाओं से सबक ली है. वियतनाम में लाखों लोग मारे गए, लेकिन वियतनाम आज भी है. साम्यवाद, समाजवाद हारा नहीं है. फासीवादी ताकतों से लड़ने के लिए एकता जरूरी है. हम लोग एकता लाने की कोशिश कर रहे हैं. वैज्ञानिक और दार्शनिक दर्शन कम्युनिस्ट ही दे सकते हैं. हम समानता की बात करते हैं, पर अभी तक यह नहीं हो सका है.

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